For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गिरिराज भंडारी's Blog (302)

ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )

१२२२    १२२२     १२२२      १२२

मेरा घेरा ये बाहों का तेरा बन्धन नहीं है

इसे तू तोड़ के जाये मुझे अड़चन नहीं है

 

समय की धार ने बदला है साँपों को भी शायद

वो लिपटे हैं मेरी बाहों से जो चन्दन नहीं है

 

जिन्हों ने कामनाओं की जकड़ स्वीकार की थी   

उन्हीं की भावनाओं में बची जकड़न नहीं है

 

न लो…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 29, 2025 at 8:00pm — 8 Comments

ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )

२१२२    २१२२      २१२

गुफ़्तगू चुप्पी इशारा सब ग़लत

बारहा तुमको पुकारा सब ग़लत

 

ये समंदर ठीक है, खारा सही

ताल नदिया वो बहारा सब ग़लत

 

रोज़ डूबे, रोज़ लाया खींच कर

एक दिन क़िस्मत से हारा, सब ग़लत

 

एक क्यारी को लबालब भर दिये

भोगता जो बाग़ सारा, सब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 30, 2025 at 11:00am — 9 Comments

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है  

********************************

२१२२    २१२२     २१२२ 

'मन के कोने में इक इच्छा पल रही है'

पर वो चुप है, आज तक निश्चल रही है

 

एक  चुप्पी  सालती है रोज़ मुझको

एक चुप्पी है जो अब तक खल रही है

 

बूँद जो बारिश में टपकी सर पे तेरे    

सच यही है बूंद कल बादल रही…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on April 19, 2025 at 5:46pm — 14 Comments

ग़ज़ल - हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ ( गिरिराज भंडारी )

22   22   22   22   22   2 

तू पर उगा, मैं आसमाँ तलाश रहा हूँ

हम रह सकें ऐसा जहाँ तलाश रहा हूँ

 

ज़र्रों में माहताब का हो अक्स नुमाया

पगडंडियों में कहकशाँ तलाश रहा हूँ

 

खामोशियाँ देतीं है घुटन सच ही कहा है    

मैं इसलिये तो हमज़बाँ तलाश रहा हूँ

 

जलती हुई बस्ती की गुनहगार हवा अब    

थम जाये वहीं,.. वो बयाँ तलाश रहा हूँ

 

मैं खो चुका हूँ शह’र तेरी भीड़ में ऐसे

हालात ये, कि ज़िस्म ओ जाँ तलाश रहा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on November 7, 2017 at 8:22am — 35 Comments

तरही ग़ज़ल - " पहले ये बतला दो उस ने छुप कर तीर चलाए तो '‘ ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22 22  22 2

वो जितना गिरता है उतना ही कोई गिर जाये तो

उसकी ही भाषा में उसको सच कोई समझाये तो

 

सूरज से कहना, मत निकले या बदली में छिप जाये

जुगनू जल के अर्थ उजाले का सबको समझाये तो

 

मैं मानूँगा ईद, दीवाली, और मना लूँ होली भी   

ग़लती करके यार मेरा इक दिन ख़ुद पे शरमाये तो

 

तेरी ख़ातिर ख़ामोशी की मैं तो क़समें खा लूँ, पर  

कोई सियासी ओछी बातों से मुझको उकसाये तो

 

कहा तुम्हारा मैनें माना,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on October 29, 2017 at 6:11pm — 25 Comments

तरही ग़ज़ल - "ये वो क़िस्मत का लिखा है जो मिटा भी न सकूँ ‘ ( गिरिराज भंडारी )

2122/1122   1122  1122   22 /112

जीभ ख़ुद की है तो दांतों से दबा भी न सकूँ

कैसे खामोश रहे इस को सिखा भी न सकूँ 

 

उनका वादा है कि ख़्वाबों में मिलेंगे मुझसे

मुंतज़िर चश्म को अफसोस सुला भी न सकूँ

 

तश्नगी देख मेरी आज समन्दर ने कहा

कितना बदबख़्त हूँ मैं प्यास बुझा भी न सकूँ



मेरे रस्ते में जो रखना तो यूँ पत्थर रखना

कोशिशें लाख करूँ यार हिला भी न सकूँ 

 

यहाँ तो सिर्फ अँधेरों के तरफदार बचे

छिपा रक्खा है,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 27, 2017 at 9:00am — 31 Comments

ग़ज़ल - दो पहर की धूप भी अच्छी लगी ( गिरिराज भंडारी )

2122    2122    212

दो पहर की धूप भी अच्छी लगी

साथ उनके हर कमी अच्छी लगी

 

यादों की थीं खुश्बुयें फैलीं वहाँ

तुम न थे फिर भी गली अच्छी लगी

 

कब कहा मैनें कि मैं था शादमाँ

कुल मिला कर ज़िन्दगी अच्छी लगी

 

सब में रहता है ख़ुदा ये मान कर

जब भी की तो बन्दगी अच्छी लगी

हाँ, ज़बाँ से भी कहा था कुछ मगर  

जो नज़र ने थी कही, अच्छी लगी

 

दोस्ती तो थी हमारी नाम की  

पर तुम्हारी दुश्मनी,…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 18, 2017 at 3:30pm — 17 Comments

ग़ज़ल - मैं उसकी ताब से खो कर हवास बैठा था ( गिरिराज भंडारी )

1212   1122   1212   22  

नहीं ये ठीक, मैं तन्हा उदास बैठा था

मैं उसकी ताब से खो कर हवास बैठा था

                                                                                    

नज़र उठा के तेरी सिम्त कैसे करता मैं

नज़र से चल के कोई दिल के पास बैठा था

 

कहीं नदी की रवानी थमी थी पत्थर से

कहीं लिये कोई सदियों की प्यास बैठा था

 

है मोजिज़ा कि ख़ुदा का करम बहा मुझ पर   

वो तर बतर हुआ जो मेरे पास बैठा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 16, 2017 at 8:00am — 29 Comments

तरही ग़ज़ल - ये ग़म कहाँ कहाँ ये मसर्रत कहाँ कहाँ " ( गिरिराज भंडारी )

221    2121     1221     212

नफरत कहाँ कहाँ है मुहब्बत कहाँ कहाँ

मैं जानता हूँ होगी बग़ावत कहाँ कहाँ

 

गर है यक़ीं तो बात मेरी सुन के मान लें

लिखता रहूँगा मैं ये इबारत कहाँ कहाँ

 

धो लीजिये न शक़्ल मुआफ़ी के आब से  

मुँह को छिपाये घूमेंगे हज़रत कहाँ कहाँ

 

कल रेगज़ार आशियाँ, अब दश्त में क़याम

ले जायेगी मुझे मेरी फित्रत कहाँ कहाँ 

 

कर दफ़्न आ गया हूँ शराफत मैं आज ही

सहता मैं शराफत की नदामत कहाँ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 30, 2017 at 9:00am — 29 Comments

ग़ज़ल - अब हक़ीकत से ही बहल जायें ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212   22 /122

मंज़रे ख़्वाब से निकल जायें

अब हक़ीकत से ही बहल जायें

 

ज़ख़्म को खोद कुछ बड़ा कीजे

ता कि कुछ कैमरे दहल जायें

 

तख़्त की सीढ़ियाँ नई हैं अब

कोई कह दे उन्हें, सँभल जायें

 

मेरे अन्दर का बच्चा कहता है  

चल न झूठे सही, फिसल जायें

 

शह’र की भीड़ भाड़ से बचते

आ ! किसी गाँव तक निकल जायें

 

दूर है गर समर ज़रा तुमसे

थोड़ा पंजों के बल उछल जायें

 

चाहत ए रोशनी में…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 23, 2017 at 8:11pm — 37 Comments

ग़ज़ल - रोशनी है अगर तेरे दिल में- ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212   112/22

गर अँधेरा है तेरी महफिल में

हसरत ए रोशनी तो रख दिल में

खुद से बेहतर वो कैसे समझेगा ?

सारे झूठे हैं चश्म ए बातिल में

क़त्ल करने की ख़्वाहिशों के सिवा

और क्या ढूँढते हो क़ातिल में

 

बेबसी, दर्द और कुछ तड़पन

क्या ये काफी नहीं था बिस्मिल में ?

 

फ़िक्र क्या ? बाहरी जिया न मिले

रोशनी है अगर तेरे दिल में

 

कोई तो कोशिश ए नजात भी हो

अश्क़ बारी के…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 10, 2017 at 8:30am — 30 Comments

ग़ज़ल - आदमी वो सरफिरा, लगता तो है ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122  212  

दूध में खट्टा गिरा लगता तो है

काम साज़िश से हुआ,लगता तो है

 

था हमेशा दर्द जीवन में, मगर  

दे कोई अपना, बुरा, लगता तो है

 

बज़्म में सबको ही खुश करने की ज़िद

आदमी वो सरफिरा, लगता तो है

 

सच न हो, पर गुफ़्तगू हो बन्द जब,

बढ़ गया कुछ फासिला, लगता तो है 

 

गर मुख़ालिफ हो कोई जुम्ला, मेरे

दोस्त अब दुश्मन हुआ, लगता तो है

 

ज़िन्दगी की फ़िक्र जो करता न था

मौत से वह भी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 7, 2017 at 8:30am — 23 Comments

ग़ज़ल - क्यों भला दंड वत हुआ जाये ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22/112

अब यहाँ पर विगत हुआ जाये

या, जहाँ से विरत हुआ जाये

 

खूब दीवार बन जिये यारो

चन्द लम्हे तो छत हुआ जाये

 

कोई खोले तो बस खला पाये

प्याज़ की सी परत हुआ जाये

 

ताब रख कर भी सर उठाने की

क्यों भला दंड वत हुआ जाये

 

आग, पानी , हवा की ले फित्रत 

हैं जहाँ, जाँ सिफत हुआ जाये

 

खूबी ए  आइना बचाने को 

क्यूँ न पत्थर फ़कत हुआ…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 6, 2017 at 6:00pm — 24 Comments

ग़ज़ल - अजब मासूम है क़ातिल हमारा ( गिरिराज भंडारी )

1222    1222   122

वो दहशत गर्द है या मुस्तफ़ा है

क्या तुमने फैसला ये कर लिया है ?

 

अजब मासूम है क़ातिल हमारा

वो ख़ूँ बारी से अब दहशत ज़दा है

 

तमाशाई के सच को कौन जाने ?

वो सच में मर रहा है, या अदा है

 

वो सारी ख़ूबियाँ पत्थर की रख कर

किया है मुश्तहर... वो.. आइना है

 

कज़ा से बस कज़ा की बात होगी

हमारा बस यही इक फैसला है

 

बहुत दूरी नहीं है, पर चला जो

कभी मस्ज़िद से मन्दिर... हाँफता…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 7, 2017 at 10:10pm — 18 Comments

ग़ज़ल - रास्ते ही मेरे तवील आये ( गिरिराज भंडारी )

2122     1212    22  /112

चाहे ग़ालिब, या फिर शकील आये  

गलतियाँ कर.., अगर दलील आये

 

मिसरे मेरे भी ठीक हो जायें

साथ गर आप सा वक़ील आये

 

ख़ुद ही मुंसिफ हैं अपने ज़ुर्मों के

और अब खुद ही बन वक़ील आये  

 

भीड़ में पागलों की घुसना क्यों ?

हो के आखिर न तुम ज़लील आये

 

ज़िन्दा लड़की ही घर से निकली थी

जाने क्या सोच कर ये चील आये

 

आग-पानी सी दुश्मनी रख कर

बह के पानी सा, बन ख़लील…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on June 11, 2017 at 8:30am — 6 Comments

ग़ज़ल - हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर सके ( गिरिराज भंडारी )

221  2121  1221 212

हो चाह भी, तो कोई ये हिम्मत न कर सके

तेरी जफ़ा की कोई शिकायत न कर सके

 

तुम क़त्ल करके चौक में लटका दो ज़िस्म को

ता फिर कोई  भी शौक़ ए बगावत न कर सके

 

हाल ए तबाही देख तेरी बारगाह की  

हम जायें बार बार ये हसरत न कर सके

बारगाह - दरबार

मैंने ग़लत कहा जिसे, हर हाल हो ग़लत

तुम देखना ! कोई भी हिमायत न कर सके

 

बन्दे जो कारनामे तेरे नाम से किये

हम चाह कर ख़ुदा की इबादत न कर…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 17, 2017 at 7:24am — 27 Comments

ग़ज़ल - जाने किस किस से तेरी अनबन हो ( गिरिराज भंडारी )

2122   1212   22 /112

मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना

मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना

 

इक ख़ला रूह को अता कर के

आज तन्हाइयाँ भी ले जाना 

 

जाने किस किस से तेरी अनबन हो

थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना

 

दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर

मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना

 

कामयाबी न सर पे चढ़ जाये

मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना

 

राहें यादों की रोक लूँ पहले

फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना

 

बे…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 10:19am — 23 Comments

ग़ज़ल - इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा करिये ( गिरिराज भंडारी )

( दूसरे शेर के ऐब ए तनाफुर को कृपया स्वीकार करें )

2122  1212   22/112

ज़ह’नियत यूँ न बरहना करिये

अपने जामे में ही रहा करिये

 

आब ठंडक ही दे हमें हरदम     

आग, गर्मी ही दे दुआ करिये

 

बेवफा हो गये हैं जो साबित    

उनसे क्या खा के अब वफ़ा करिये

 

जुगनुओं की चमक चुरायी है  

शम्स ख़ुद को न अब कहा करिये

 

सिर्फ बीमार कह के चुप न रहें

इब्न ए मरियम हैं, तो शिफ़ा…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 10, 2017 at 8:00am — 12 Comments

ग़ज़ल - क्या कज़ा को हयात कहता है ? ( गिरिराज भंडारी )

2122  1212  22 /112

क़ैद को क्यों नजात कहता है

क्या कज़ा को हयात कहता है ?

 

तीन को अब जो सात कहता है

बस वही ठीक बात कहता है

 

क्यूँ न तस्लीम  उसको कर लूँ मैं

वो मिरे दिल की बात कहता है

 

कैसे कह दूँ कि वास्ता ही नहीं

रोज़ वो शुभ प्रभात कहता है

 

ऐतराज उसको है शहर पे बहुत

हाथ अक्सर जो हात कहता है

 

उसकी बीनाई भी है शक से परे   

जो सदा दिन को रात कहता है

 

जीत जब…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 8, 2017 at 10:00am — 21 Comments

दो अतुकांत - वैचारिक रचनाएँ ( गिरिराज भंडारी )

1- आंतरिक सम्बन्ध

**************

मैंने पीटा तो दरवाज़ा था

हिल उठी साँकल ...

खड़ खड़ कर के .... 

और..

आवाज़ अन्दर से आयी

कौन है बे.... ?

बस...

मै समझ गया

तीनों के आंतरिक सम्बन्धों को

******

 2- आग और पानी

*****************

आग बुझे या न बुझे

आग लग जाना दुर्घटना है, या साजिश

किसे मतलब है

इन बेमतलब के सवालों से

 

ज़रूरी है,  अधिकार ....

पानी पर

सारा झगड़ा इसी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on May 6, 2017 at 9:00am — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी "
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"अच्छी रचना हुई है ब्रजेश भाई। बधाई। अन्य सभी की तरह मुझे भी “आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा”…"
17 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Ravi Shukla's blog post तरही ग़ज़ल
"बेहतरीन अशआर हुए हैं आदरणीय रवि जी। सभी एक से बढ़कर एक।"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश नूर भाई। बहुत बधाई "
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आभार रक्षितासिंह जी    "
22 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"अच्छे दोहे हुए हैं भाई लक्ष्मण धामी जी। एक ही भाव को आपने इतने रूप में प्रकट किया है जो दोहे में…"
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"आ. रक्षिता जी, दोहों पर उपस्थिति, और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
22 hours ago
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय !"
yesterday
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"बहुत खूब आदरणीय,  "करो नहीं विश्वास पर, भूले से भी चोट।  देता है …"
yesterday
रक्षिता सिंह replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-175
"सधन्यवाद आदरणीय,  सत्य कहा आपने । निरंतर मनुष्य जाति की संवेदनशीलता कम होती जा रही है, आज के…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service