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(२ जून २०१६ को जवाहर बाग़, मथुरा की हृदयविदारक घटना के सन्दर्भ में)

थर्रायी धरती फिर देखो, कुछ कुत्सित मंसूबों से।
स्वार्थ वशी हो कुछ अन्यायी, फिर बोले बंदूकों से।।
माँ का आँचल लाल हुआ फिर, रक्त बहा है वीरों का।
मुरली की तानों से हटकर, खेल हुआ शमशीरों का।१।

पूछ रही मानवता तुमसे, क्या तुम मनु के जाये हो।
ऐसा क्या दुष्कर्म किया जो, भारत भू पर आये हो।।
सत्याग्रह का चोला ओढ़े, तुम किस मद में खोये हो।
मथुरा की पावन धरती पर, क्यों अंगारे बोये हो।२।

क्रांति दूत खुद को हो कहते, तुमको शर्म नही आई।
कुछ एकड़ की भूमि देखकर, बन बैठे तुम सौदाई।।
दो वर्षों तक सांठ-गांठ से, तूने मथुरा को लूटा।
आंदोलन का पहन मुखौटा, स्वांग रचाया था झूठा।३।

तूने थोड़ी शह क्या पाई, सत्ता के गलियारों से।
सूर्य बुझाने निकल पड़े तुम, हाथ मिला अँधियारों से।।
राम नाम की मर्यादा का, कुछ तो मान रखा होता।
जिनकी जड़ से अलग हुए हो, उनका भान रखा होता।४।

तेरी ये काली करतूतें, इक दिन मोल चुकायेंगी।
आख़िर बकरों की अम्मायें, कब तक ख़ैर मनायेंगी।।
सुन लो ज्यादा दिन तक अब तुम, छुपकर ना रह पाओगे।
कान्हा की गलियों में ही तुम, जल्दी मारे जाओगे।५।

✍ डॉ पवन मिश्र
--------------------------////
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by डॉ पवन मिश्र on June 9, 2016 at 10:23am
आदरणीय जवाहर लाल जी। उत्सवर्धन के लिये बहुत बहुत आभार
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 7, 2016 at 9:17am

सुन लो ज्यादा दिन तक अब तुम, छुपकर ना रह पाओगे।
कान्हा की गलियों में ही तुम, जल्दी मारे जाओगे।५।

और आपकी भविष्यवाणी कितनी सटीक हुई कि राम नाम को कलंकित करनेवाला आपकी कविता के साथ ही मारा गया! सराहनीय रचना! बहुत बहुत बधाई आदरणीय डॉ पवन मिश्र जी !

Comment by डॉ पवन मिश्र on June 5, 2016 at 4:45pm
आदरणीय अशोक जी हार्दिक आभार आपका। न चाहते हुए भी ऐसे शब्दों के प्रयोग के लिये बाध्य हो गया। घटना के उत्तरदायी के प्रति क्षोभ ही था जो तू और तुम के रूप में निरूपित हुआ है।
Comment by Ashok Kumar Raktale on June 5, 2016 at 3:23pm

आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी सादर, सामयिक घटना  पर बहुत जोश और ललकार लिए  सुंदर  ताटंक  छंद रचे  हैं. बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें. फिरभी कहीं 'तू' और कहीं 'तुम' थोड़ा खटका है. सादर.

Comment by डॉ पवन मिश्र on June 4, 2016 at 7:25pm
आदरणीय समर साहब,,,आपके एक एक शब्द के प्रति कृतज्ञता प्रेषित करता हूँ। आभार
Comment by Samar kabeer on June 4, 2016 at 6:27pm
जनाब डॉ.पवन मिश्र जी आदाब,देश भक्ति पर बहुत सुंदर रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ पवन मिश्र on June 4, 2016 at 4:12pm
उत्साहवर्धन के लिये बहुत बहुत आभार आदरणीय सुशील जी
Comment by Sushil Sarna on June 4, 2016 at 1:14pm

देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत इस प्रासंगिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय डॉ. पवन मिश्र जी। 

Comment by डॉ पवन मिश्र on June 4, 2016 at 11:33am
आभार आदरणीय राजेन्द्र जी,,,
Comment by Rajendra kumar dubey on June 4, 2016 at 11:21am
आदरणीय डॅा पवन मिश्र जी प्रासंगिक छन्द के लिए हृदय से बधाई।

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