1222 1222 1222 1222
मुख़ालिफ इन हवाओं में ठहरना जब ज़रूरी है
चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है
रुला देना, रुलाकर फिर हँसाने की जुगत करना
सियासत है , सियासत में यही करतब ज़रूरी है
उन्हें चाकू, छुरी, बारूद, बम, पत्थर ही दें यारो
तुम्हें किसने कहा बे इल्म को मक़तब ज़रूरी है
तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी
फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है
पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 26, 2016 at 8:30am — 24 Comments
2122 2122 2122 2
फूल हैं खिलते निगाहें चार करते हैं,
बागवाँ पर हम बड़ा एतबार करते हैं।1
बाँटते खुशबू जमाने से रहे सब हम,
झेलते झंझा कहाँ तकरार करते हैं?2
हम बटोही प्यार के दो बोल के भूखे ,
खुशनुमा बस आपका संसार करते हैं।3
हैं विहँसते हम सदा बगिया सजाने को,
प्यास आँखों की बुझा आभार करते हैं।4
हो नहीं सकता मसल दे पंखरी कोई,
खार भी रखते बहुत हम प्यार करते हैं।5
जां लुटाने की अगर नौबत हुई तब भी,…
Added by Manan Kumar singh on September 26, 2016 at 7:00am — 6 Comments
Added by दिनेश कुमार on September 26, 2016 at 5:32am — 4 Comments
Added by Azeem Shaikh on September 25, 2016 at 11:30pm — 5 Comments
छाँव बने तन भाव जगे मन चाव सजे चहकी फुलवारी ,
पावन भाव जगे मन में जब मात बनी यह देह हमारी,
ये वरदान मिला जग में जब बिटिया खेलत गोद हमारी,
चाव जगे इस जीवन के जब आँगन बीच सजी किलकारी,
.
नन्हि परी जब मात पुकारत आतम हो जय धन्य हमारी
झांझर डोलत कोयल बोलत व्याकुल हो महकी अंगनारी
मीत सखी बन जाय सदा सब बात सुने अब मोरि दुलारी
मान करे सबका फिर भी प्रतिपात सहे जग में हर नारी
.
जोगन प्रीत तजे रसना सब भोग सजे मुख खावत नाही
कृष्ण सदा बसते मन में सब भार…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on September 25, 2016 at 11:00pm — 6 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 25, 2016 at 10:34pm — 8 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 25, 2016 at 6:00pm — 16 Comments
Added by मनोज अहसास on September 25, 2016 at 3:00pm — 2 Comments
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on September 25, 2016 at 11:30am — 8 Comments
बहर : २१२ २१२ २१२ २१२
पेट को चाहिए खाद्य, नारा नहीं
पेट जितने से भर जाय, सारा नही |
भावना की कमी, जाँचना चाहिए
भूखे को चाहिए खाना,चारा नहीं |
सारे रिश्ते बिगड़ते हैं, तकरार से
शत्रुवत और हो जाता यारा नहीं |
बात है कर्ण प्रिय ,’आयगा अच्छा दिन”
अब किसी को भी यह, लगता प्यारा नहीं |
देख कर ठण्ड वातावरण क्या कहें
पी गए मय मधुर किन्तु प्यारा नहीं |
सिन्धु जल मेघ बन फिर बरसता…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on September 25, 2016 at 8:30am — 6 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on September 25, 2016 at 7:35am — 8 Comments
(चवपैया छंद-10, 8, 12 मात्रा के तीन -तीन चरणों के कुल चार पद , प्रत्येक पद के प्रथम एवं द्वितीय चरण मं समतुक एवं दो-दो पद में 1122 मात्रा या पदांत 2 मात्रा के के साथ समतुक पर हो)
हे आदि भवानी, जग कल्याणी, जन मन के हितकारी ।
माँ तेरी ममता, सब पर समता, जन मन को अति प्यारी ।।
हे पाप नाशनी, दुख विनाशनी, जग से पीर हरो माँ ।
आतंकी दानव, है क्यों मानव, जन-मन विमल करो माँ ।।
...................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 25, 2016 at 7:30am — 2 Comments
Added by S.S Dipu on September 25, 2016 at 12:24am — 6 Comments
श्रद्धांजलि
राज पथ पर अवस्थित
शहीद चौक ..
लोगो का हुजूम
मिडिया वालों का आवागमन
चकमक करते कैमरे
चमकते-दमकते चेहरे
फोटो खिंचाने की होड़
हाथों में मोमबत्तियाँ
नहीं-नहीं, कैंडल....
साथ में लकदक पोस्टर, बैनर
जिनपर अंकित था -
'शहीदों को
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि' !!
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2016 at 12:00am — 11 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on September 24, 2016 at 11:54am — 12 Comments
मैं फूल इक छुपा दूँ दिल में किताब रखना
तैयार कल उसी में अपना जबाब रखना
वो सामने कहूँगा जो बात सच लगी है
तुम नाम चाहे मेरा खानाखराब रखना
कैसा एजाज़ वल्लाह कैसा हुनर है तुझमे
होटों पे इक तबस्सुम दिल में अज़ाब रखना
ले लेगी जान मेरी तेरी अदा कसम से
इस वक्त-ए-वस्ल में भी मुख पे निकाब रखना
पीकर जिसे सुखनवर अशआर दिल के कह दे
ज़ज्बात के समंदर ऐसी शराब रखना
मैं खुश रहूँ वहाँ पर है…
ContinueAdded by rajesh kumari on September 24, 2016 at 10:45am — 16 Comments
Added by S.S Dipu on September 24, 2016 at 1:28am — 5 Comments
Added by C.M.Upadhyay "Shoonya Akankshi" on September 23, 2016 at 11:30pm — 2 Comments
किसी को हँसाये,किसी को रुलाये,
कोई परेशां है,कोई हंसे कोई बिलखे,
कोई चुप- तो कोई चीखे,
उम्र के अलग अलग पड़ावों में,
अभिनय मिले नये-नये किरदारों में,
ज़िन्दगी तू मक़बूल अदाकार है,
कि क्या खूब अदायगी है तेरी...
सब कुछ बिल्कुल मौलिक लगे ।
और उस भगवान् का निर्देशन तो देखो !
कि हम जग के लोगों को सांसारिक लगे ।
आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला'
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by आशीष सिंह ठाकुर 'अकेला' on September 23, 2016 at 3:00pm — No Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 23, 2016 at 3:00pm — 10 Comments
2025
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
Switch to the Mobile Optimized View
© 2025 Created by Admin.
Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |