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ग़ज़ल -चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है ( गिरिराज भंडारी )


1222    1222    1222    1222 

मुख़ालिफ इन हवाओं में ठहरना जब ज़रूरी है

चरागों को जलाने का कोई तो ढब ज़रूरी है

 

रुला देना, रुलाकर फिर हँसाने की जुगत करना

सियासत है , सियासत में यही करतब ज़रूरी है

 

उन्हें चाकू, छुरी, बारूद, बम, पत्थर ही दें यारो  

तुम्हें किसने कहा बे इल्म को मक़तब ज़रूरी है

 

तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी

फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है

 

पतंगे आसमाँनी हों या रिश्ते हों ज़मीनों के

यहाँ पर ढील भी, जानें कि, देना कब ज़रूरी है

 

वो दे कर ज़ह्र,.. मेरा वक़्त में करते हैं चारा भी 

मेरा मरना, मेरा जीना उन्हें तो सब ज़रूरी है

 

हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भाँप सकते हैं

तो फिर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है

 

अगर अंजाम हर इक ज़िन्दगी का मौत ही है, तो

तुम्हीं कह दो, कहाँ ,कैसे ,किसीको रब ज़रूरी है
*********************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:59am

आदरणीय बृजेश भाई , उत्साह वर्धन के लिये आअका हार्दिका आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:58am

आदरनीय मनन भाई , हौसला अफज़ाई का शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:58am

आदरणीय काली पद भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हृदय से आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:57am

आदरणीय विजय भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 25, 2016 at 11:56am

अदरणीय कंवर करतार भाई , हौसला अफज़ाई का तहेदिल से शुक्रिया आपका । आपकी सलाह उचित है , आपका हृदय से आभार ।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 12, 2016 at 9:57pm

तगाफुल भी ,वफा भी और थोड़ी बेवफाई भी

फसाना है मुहब्बत का, तो इसमें सब ज़रूरी है........बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना  हुई है 

Comment by Manan Kumar singh on October 9, 2016 at 5:05am
एक अच्छी गजल के लिए बधाइयाँ आदरणीय गिरिराज भाई!
Comment by Kalipad Prasad Mandal on September 28, 2016 at 6:59pm

आदरणीय गिरिराज जी , बहुत सुन्दर ग़ज़ल रचना  हुई है | शेर दर शेर बधाई स्वीकार करें |

सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 28, 2016 at 11:56am
अगर अंजाम हर इक ज़िन्दगी का मौत ही है, तो
तुम्हीं कह दो, कहाँ ,कैसे ,किसीको रब ज़रूरी है
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , पूरी ग़ज़ल बहुत खूबसूरत है , यहां उपरवर्णित शेर ने एक नए चिंतन का रास्ता दिखाया है।
बधाई , सादर।
Comment by कंवर करतार on September 27, 2016 at 10:07pm

भाई गिरिराज भंडारी जी अति सुंदर ग़ज़ल हुई है बधाई कबूल करें I आप बहुत उच्च  कोटि के शायर हैं Iमैं तो अभी  ग़ज़ल सीख रहा हूँ Iआपको सुझाब देने के स्तर पर नहीं हूँ I पर आपके इस सुंदर शे'र  .......कि/...

"हवा की सरसराहट को भी कुत्ते भौंक सकते हैं
मगर इंसाँ तो ये जाने बयाँ क्या?..कब ज़रूरी है"

मैं इसके  ऊला मिसरे को अगर इस तरह  पढूँ तो कैसा रहेगा ....

"हवा की सरसराहट पे  भी कुत्ते भौंक देते हैं"

आपका  हर शे'र लाजबाब बन पाया है Iकोटिश बधाई बन्धुवर I

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