"सर!ये भागवती हत्याकांड के कई पहलू सामने आ रहे है।"
"जैसे कि?"फिर कुछ सोचकर
"ये वही सरकारी स्वास्थ्य कर्मचारी वाली घटना की बात कर रहे हो?जिसकी उसी के कार्यालय में गांव के किसी दबंग ने कुल्हाड़ी मारकर हत्या कर दी है।"
हाँ ,हाँ..!वही।दरअसल जितने मुंह उतनी बातें है सर! छोटा सा गांव है जहाँ मृतका पदस्थ थी।कुछ का कहना ये है, कि उच्च जाति का होने के कारण हत्यारे को दलित महिला का अपनी बराबरी से बैठना नहीं सुहाता था ।"
"तो क्या वो भी कर्मचारी था? "
"जी,और मृतका के…
ContinueAdded by Rahila on October 17, 2016 at 4:00pm — 7 Comments
मेरी तालीम का मुझ पर असर है,
जो तेरे सामने झुकती नज़र है ।
बिना गलती के माँगूं मैं मुआफ़ी,
यही रिश्ते निभाने का हुनर है ।
के जब इंसान पत्थर भी जो मारे,
उसे बदले में फल देता शज़र है ।
हर इक चेहरे पे नक़ली मुस्कुराहट,
बड़े फनकार लोगों का शहर है ।
अमीरी में भी कितने ग़म है तुमको,
किसी की बददुआओं का कहर हैं ।…
Added by Ambesh Tiwari on October 17, 2016 at 4:00pm — 11 Comments
221 2121 1221 212
हर मयकशी के बीच कई सिलसिले मिले ।
देखा तो मयकदा में कई मयकदे मिले ।।
साकी शराब डाल के हँस कर के यूं कहा।
आ जाइए हुजूर मुकद्दर भले मिले ।।
कैसे कहूँ खुदा की इबादत नहीं वहां ।
रिन्दों के साथ में भी नए फ़लसफ़े मिले ।।
यह बात और है की उसे होश आ गया ।
वरना तमाम रात उसे मनचले मिले ।।
जिसको फ़कीर जान के लिल्लाह कर दिया ।
चर्चा उसी के घर में ख़ज़ाने दबे मिले ।।
मुझ से न पूछिए कि…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 17, 2016 at 3:00pm — 8 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 17, 2016 at 11:47am — 5 Comments
2122 1212 22/112
Added by योगराज प्रभाकर on October 17, 2016 at 11:24am — 25 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on October 17, 2016 at 7:27am — 12 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 17, 2016 at 7:02am — 10 Comments
122 122 122 122
मुहब्बत सभी से जताते नहीं हैं|
मगर दोस्तों से छुपाते नहीं हैं|
हमें तो पता है सबब आशिकी का,
तभी दिल किसी से लगाते नहीं हैं ।
बहुत चोट खाई है अपनों से अब तक
तभी जख्म सबको दिखाते नहीं हैं|।
अमिट कुछ निशां पीठ पर दे गए वो,
नये दोस्त हम अब बनाते नहीं हैं|
कि दौरे मुसीबत में थामा जिन्होंने
तो हर्गिज उन्हें हम भुलाते नहीं हैं।
अगर हो न मुमकिन जो…
ContinueAdded by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 17, 2016 at 12:30am — 8 Comments
युद्ध थम चुका था जश्न भी मना चुके थे पनडुब्बी ,हवाई जहाज ,टैंक बहुत खुश दिखाई दे रहे थे तीनों का सीना गर्व से फूला था| युद्ध की घटनाओं का तीनों ही बढ़ चढ़ कर जिक्र कर रहे थे न जाने कहाँ से वार्तालाप में अचानक मोड़ आया कि एक के बाद एक तीनों ही अपनी अपनी सफलताओं का बखान करने लगे |
टैंक बोला- “सबसे आगे मैं था कुचल डाला सबको मेरा तो डीलडौल और रौब देख कर ही दुश्मन की घिघ्घी बंध गई थी”|
“अरे तुझे क्या पता तेरे ऊपर मैं दुश्मनों को कवर कर रहा था वरना मेरे सामने तेरी क्या…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 16, 2016 at 6:00pm — 10 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on October 16, 2016 at 4:59pm — 4 Comments
Added by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:49pm — 5 Comments
बह्र : २१२२ १२१२ २२
दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है
वो यक़ीनन कोई फ़रिश्ता है
दूर गुणगान से मैं रहता हूँ
एक तो जह्र तिस पे मीठा है
मेरे मुँह में हज़ारों छाले हैं
सच बड़ा गर्म और तीखा है
देखिए बैल बन गये हैं हम
जाति रस्सी है धर्म खूँटा है
सब को उल्लू बना दे जो पल में
ये ज़माना मियाँ उसी का है
अब छुपाने से छुप न पायेगा
जख़्म दिल तक गया है, गहरा है
आज…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 16, 2016 at 1:00am — 10 Comments
Added by दिनेश कुमार on October 16, 2016 at 12:53am — 3 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 15, 2016 at 11:50pm — 6 Comments
"अरे मुंगेरी, खाना खाने भी चलेगा, या मगन रहेगा यहीं |" मुंगेरी को दीवार से बात करता हुआ देख चाचा ने कहा |
बहुमंजिला इमारत में प्लास्टर होने के साथ बिजली का भी काम चल रहा था | दोपहर में भोजन करने सब नीचे जाने लगे थे | मुंगेरी भी चाचा के साथ नीचे आकर जल्दी-जल्दी खाना ख़त्म करने लगा | तभी अचानक इमारत धू-धूकर जलने लगी | जैसे ही आग मुंगेरी के बनाये मंजिल पर पहुँची, मुंगेरी फफक कर रो पड़ा | सारे मजदूर महज हो-हल्ला मचा रहे थे | लेकिन मुंगेरी ऐसे रो रहा था जैसे उसकी अपनी कमाई जल…
Added by savitamishra on October 15, 2016 at 8:00pm — 2 Comments
सीमा पार से आके तुमने हमको जो ललकारा है
भागो तुम उस पार चलो यह भारतवर्ष हमारा है।
आये दिन जो तुम करते रहते हो उत्पात यहां
अब हम नहीं सहेंगे यह सब यह संकल्प हमारा है।
ऐसा क्या व्यवहार तुम्हारा जो कहके जाते हो पलट
अपनी सीमा पर है नहीं नियंत्रण यह दुर्भाग्य तुम्हारा है।
सरहद पर जो आते हैं करते स्वागत है हम उन का
मित्र तुम्हारे चरणों में यह झुका शीश हमारा है।
आये हो तो रहो यहां होकरके निर्भीक मगर
धोखा देने वालों पर गिरता फिर खड्ग…
ContinueAdded by indravidyavachaspatitiwari on October 15, 2016 at 6:19am — 3 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on October 14, 2016 at 7:47pm — 6 Comments
एक प्रयास
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कान्हा की मैत्री मेरा मान हुई
तुमसे जुड़ा जो नाता मेरी शान हुई
इसे जोड़ा है गिरधर ने बड़े प्रेम से
हमारी खुशियां ही मुरली की तान हुई
मैं उलझी थी शब्दो की उलझन में
तुम्हारी ख़ामोशी तुम्हारा पयाम हुई
धूप में बादल से तुम, अंधेरों में किरण सी मैं
तुम्हारी बाहें हर तूफ़ां में मेरी मचान हुई
कई दांव देखे है रिश्तों के हमने
निष्ठा हमारी लोबान हुई
बीते बरस इम्तहानों के जैसे…
ContinueAdded by अलका 'कृष्णांशी' on October 14, 2016 at 4:03pm — 6 Comments
'मेरे लिए क्या लायी, मेरे लिए क्या है", बच्चे हल्ला मचा रहे थे| बड़े भी कुछ कह तो नहीं रहे थे लेकिन उनकी भी नज़रें उसी की तरफ टिकी हुई थीं| नौकरी शुरू करने के दो महीने बाद श्रुति अपने कस्बे वाले घर लौटी थी और इस बीच घर के अधिकतर सदस्यों ने उससे कुछ न कुछ लाने की फरमाईस कर दी थी| अपनी सीमित तनख़्वाह में भी उसने सबके लिए कुछ न कुछ ले लिया था| एक किनारे बैठी उसकी दादी उसे बेहद प्यार भरी नज़रों से देख रही थी और इंतज़ार कर रही थीं कि कब सब लोग हटें तो वह अपनी पोती को लाड करें| श्रुति उनकी सबसे ज्यादा…
ContinueAdded by विनय कुमार on October 13, 2016 at 8:07pm — 8 Comments
रावण
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तिल्ली का मुंह
दियासलाई की पीठ पर
रगड़ते ही
रावण
धू धू कर जल उठा
उसके जिस्म की आग
धुंआ और राख
ऊपर उठकर
फ़ैल गए चार सू
यहाँ वहां जहाँ तहां
अँधेरे से जुगलबंदी कर
लोट आये पुनः धरा पर
शबनम संग चुपके से
जब आप थे निद्रा के आगोश में
उसके भस्मबीज
चू पड़े खेतों में
खड़ी साग सब्जी और फसलों
के अंतरमन में
और
उग आये रावण
गाँव -गाँव …
Added by Anant Alok on October 13, 2016 at 8:00pm — 3 Comments
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