For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है (ग़ज़ल)

बह्र : २१२२ १२१२ २२

 

दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है

वो यक़ीनन कोई फ़रिश्ता है

 

दूर गुणगान से मैं रहता हूँ

एक तो जह्र तिस पे मीठा है

 

मेरे मुँह में हज़ारों छाले हैं

सच बड़ा गर्म और तीखा है

 

देखिए बैल बन गये हैं हम

जाति रस्सी है धर्म खूँटा है

 

सब को उल्लू बना दे जो पल में

ये ज़माना मियाँ उसी का है

 

अब छुपाने से छुप न पायेगा

जख़्म दिल तक गया है, गहरा है

 

आज नेता भी बन गया ‘सज्जन’

कुछ न करने का ये नतीज़ा है

------------------------

(मौलिक एवम अप्रकाशित)

Views: 859

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 18, 2016 at 1:05pm

आदरणीय समर साहब आप ठीक कह रहे हैं ये उदाहरण मैंने ग़लत ले लिया था। पर ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं। फुर्सत मिलती है तो ढूँढता हूँ। ईता-ए-जली तभी होता है जब ईता-ए-हुस्न न हो। जैसा आपने उदाहरण में बता ही दिया है।

Comment by Samar kabeer on October 18, 2016 at 12:27pm
जैसा कि आप फ़रमा रहे हैं कि आपके मतले में ईता-ए-हुस्न है, और वो ऐब नहीं ख़ूबी है तो बराह-ए-करम ये भी बता दें कि ईता-ए-जली किसे कहते हैं ?
आपने ग़ालिब का जो मतला पेश किया है उसमें कोई भी ईता नहीं है,क्योंकि 'असर'शब्द उर्दू में 'से'से लिखा जाता है और 'सर'शब्द 'सीन'से,इसलिए इसमें किसी भी तरह का दोष नहीं है,ग़ालिब का ये मतला देखिये,इसमें ईता-ए-जली का दोष है :-
बस कि मुश्किल है हर इक काम का आसाँ होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 17, 2016 at 11:12pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय  Ravi Shukla जी। मेरे विचार में वीनस केसरी जी ने इसकी चर्चा मंच पर की है। कहाँ की है ये मुझे ठीक से याद नहीं आ रहा है। वैसे भी ऐसी स्थितियाँ बहुत कम बनती हैं इसलिए इस पर बहुत विस्तृत चर्चा की आवश्यकता मेरे विचार में नहीं है। बस यह ध्यान रखना है कि जिस शब्द के टुकड़े किये जायँ वह मूल शब्द हो। अगर मूल शब्द नहीं होगा तब दोष उत्पन्न हो जाएगा जैसे ‘नाम’ और ‘बदनाम’ लेने पर काफ़िया न होने की स्थिति बन जाएगी। ऐसे उदाहरण कम हैं पर हैं जैसे देखिए चचा ग़ालिब को,

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक

कौन रहता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक

इसके बाद कवाफ़ी में ‘अर’ को निभाया गया है जैसे ‘ख़बर’ इत्यादि

Comment by Ravi Shukla on October 17, 2016 at 1:55pm

आदरणीय धर्मेन्‍द्र जी बहुत अच्‍छी गजल कही आपने मतले से मकते तक हर शेर बढि़या दिली दाद कुबूल करें । मंच पर उपलब्‍ध लेख में शायद ईता ए हुस्‍न की चर्चा नहीं हुई है इसलिये ये नई बात है हमारे लिये भी । काफिया के दिये गये नियम के अनुसार नये अभ्‍यासियों ( हम भी )   गजल मे आ का काफिया समझने में अभी थोड़ी मुश्किल आ सकती है ।  जैसा कि पढ़ा गया है अंतिम समान हर्फ को हटा कर देखें, .... इस लिहाज से कुछ मार्ग दर्शन और चर्चा इसी बहाने हो तो सबको विषय समझने में आसानी होगी । साादर 

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 16, 2016 at 6:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 16, 2016 at 6:47pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेश कुमार जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on October 16, 2016 at 6:40pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर साहब। यहाँ ईताए जली दोष नहीं है बल्कि ईता ए हुस्न है।

ता हुस्न उस स्थिति में होता है जब मतले का एक क़ाफ़िया टूट कर उसी शब्द में बदलाव पैदा कर दे। इस मतले में क़ाफ़िया ‘फरिश्ता’ के दो हिस्से किये गये हैं। ये ऐब नहीं है बल्कि हुस्न है। ऐसे में शाइर के पास ये छूट होती है कि वो आगे क्या कवाफ़ी लेना चाहता है। इसके अलावा यदि कोई बात है जो ज़रूर बताएँ आदरणीय। 

Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:52pm
आदरणीय श्री धर्मेन्द्र कुमार जी सादर प्रणाम, उम्दा गजल के लिए मेरी बधाई आपको
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 16, 2016 at 3:26pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार जी खूबसूरत गजल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on October 16, 2016 at 3:10pm
जनाब धर्मेंद्र कुमार जी आदाब,उम्दा ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।
मतले में ईताए जली का दोष है,देखिएगा ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service