For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘जीत का सेहरा’ (लघु कथा ‘राज’)

 

युद्ध  थम चुका था जश्न भी मना चुके थे पनडुब्बी ,हवाई जहाज ,टैंक बहुत खुश दिखाई दे रहे थे  तीनों का सीना गर्व से फूला था| युद्ध  की घटनाओं का तीनों ही बढ़ चढ़ कर जिक्र कर रहे थे न जाने कहाँ से वार्तालाप में अचानक मोड़ आया कि एक के बाद एक तीनों ही अपनी अपनी सफलताओं का बखान करने लगे |

टैंक बोला- “सबसे आगे मैं था कुचल डाला सबको मेरा तो डीलडौल  और रौब देख कर ही दुश्मन की घिघ्घी बंध गई थी”|

 “अरे तुझे क्या पता तेरे ऊपर मैं दुश्मनों को कवर कर रहा था वरना मेरे सामने तेरी क्या औकात लड़ाकू हवाई जहाज जोश और क्रोध में घर्र घर्र करता हुआ बोला”

 “अच्छा अगर समुद्र के रास्ते आने वाले दुश्मनों को मैं ना रोकती तो वो घर में घुस कर ही तुम दोनों को उड़ा देते मुझ से पंगा मत लो तुम दोनों  कहे देती हूँ ” पनडुब्बी गुस्से में बोली”|

देखते ही देखते नौबत हाथा पाई तक आ गई तभी श्वेत वस्त्रों में एक देवी उनके सामने आ खड़ी हुई जिसकी आँखों से लगातार आँसू बह  रहे थे उसे देखकर  तीनों ने एक साथ पूछा “आप कौन हैं देवी और रो क्यूँ रही हैं”?

देवी बोली “मैं देश भक्ति हूँ तुम तीनों यहाँ आपस में लड़ मर रहे हो और मैं अपने बच्चों, उन शहीदों की चिताओं को जलता देख कर आ रही हूँ जिनकी शहादत को भूल कर यहाँ तुम अपनी अपनी वीरता का बखान कर रहे हो

 मेरे मन में तो एक बार भी नहीं आया कि वे जाँबाज कहाँ के थे जल या वायु या धरा के ” |   

मौलिक एवं अप्रकाशित       

Views: 580

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2016 at 11:23am

आद० सुरेश कुमार जी ,लघु कथा के मर्म का गहराई से अवलोकन कर दी हुई प्रतिक्रिया के लिए दिल से शुक्रगुजार हूँ जो सन्देश इसमें निहित है वो पाठकों तक पंहुच रहा है इसके लिए हर्षित हूँ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2016 at 11:20am

आद० डॉ० विजय शंकर  जी ,आपको लघु कथा पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभारी हूँ सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 19, 2016 at 11:19am

आद० अर्पणा  शर्मा जी ,आपको लघु कथा पसंद आई आपका  बहुत  बहुत  आभार |

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 12:47pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपने सही कहा देशभक्ति और वीरों की शहादत के बिना अकेली मशीनरी क्या युद्ध जीत सकती है । वीरों का जज्बा ही मशीनरी को चलाता है और एक अहम बात यह है कि युद्ध की हार और जीत का स्वाद तो वही चखते हैं जिनके सुहाग बेटे या भाई कुर्बान हो जाते हैं।बहुत ही सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Dr. Vijai Shanker on October 18, 2016 at 12:00pm
युद्ध तो युद्ध होता है , कहीं भी लड़ा जाए। अर्थपूर्ण लघु-कथा , आदरणीय सुश्री राजेश कुमारी , जी बधाई , सादर।
Comment by Arpana Sharma on October 17, 2016 at 10:24pm
आदरणीय राजेश कुमारी जी-एक दिल छू लेने वाली लघुकथा के लिए बहुत बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2016 at 9:17pm

आद० समर भाई जी ,आपकी सराहना पूर्ण उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया की दिल से बेहद शुक्रगुजार हूँ मेरा लिखना सार्थक हो गया |बहुत बहुत आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2016 at 9:16pm

आद० शेख़ उस्मानी जी, लघु कथा पर सर्वप्रथम आकर उत्साह वर्धन करती हुई एक सकारात्मक  प्रतिक्रिया से अभिभूत किया दिल से बेहद शुक्रिया आपका |

Comment by Samar kabeer on October 17, 2016 at 9:06pm
बहना राजेश कुमारी जी आदाब,ईमानदारी से कहूँ तो आपकी अभी तक जितनी भी लघुकथाएं मैने पढ़ी हैं, ये लघुकथा उनमें सर्वश्रेष्ठ लगी,क्या अंदाज़ है लेखनी का,वाह बहुत ख़ूब बहना कमाल कर दिया आपने मेरे पास शब्द नहीं हैं तारीफ़ के लिये, जियो बहना जियो,ज़िंदाबाद ज़िंदाबाद,ढेरों दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।ख़ुश रहो और ख़ूब लिखो ।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 17, 2016 at 3:58pm
देश भक्तों और जांबाज़ शहीदों की देशभक्ति को सुन्दर प्रतीकात्मक रचना में बयान करती बेहतरीन पंचपंक्ति से गंभीर कथ्य सम्प्रेषित करती रचना के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
10 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
18 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service