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मैं वज़ीर, वे चोर और सिपाही (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

भव्य ऐतिहासिक भवन। भवन में बस आग की ही लपटें। बाहर ऊपर की ओर उठता धुआँ ही धुआँ।
कराहते हुए भवन ने कहा- "अब मेरा मंत्री कौन?"

"मैं महाराज !" अपनी लपटों को लहराते हुए आग (वज़ीर) ने कहा।


"चोर और सिपाही का पता लगाओ!" भवन ने आदेश देते हुए कहा।

भवन के अंदर और बाहर चारों ओर फैलती आग ने ताप बढ़ाते हुए कहा- "चोर तो इस दुनिया के विकसित देश हैं, महाराज और सिपाही अंतर्राष्ट्रीय व्यापार है!"

"क्या मतलब?" दक्षिण एशिया रूपी महाराज भवन ने चौंकते हुए कहा।

"चौंकिये मत महाराज, मैं हूँ आतंकवाद!" हवा के तेज झौंके के साथ फैलती आग ने भवन को पुनः झुलसाते हुए कहा।

"तो फिर यह धुआँ क्या है?"

"आपका बाहरी विकास!" आग ने जवाब दिया।

[मौलिक व अप्रकाशित]

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 21, 2016 at 5:16pm
रचना पटल पर समय देकर अनुमोदन व स्नेहिल हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीया राजेश कुमारी जी व आदरणीय सुरेश कुमार 'कल्याण' जी।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 21, 2016 at 9:55pm
ब्लोग पोस्ट रचना पटल पर उपस्थित होकर अनुमोदन व हौसला अफ़ज़ाई हेतु सादर हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप जी व आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 18, 2016 at 10:53am
आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब बिल्कुल यथार्थ सटीक व्यंग्य रचना।बधाई स्वीकार करें ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2016 at 9:30pm

वाह्ह्ह  आज के हालत पर बढिया कटाक्ष करती हुई बिम्बात्मक शैली के लिखी गई लघु कथा |दिल से बधाई लीजिये आद० शेख़ उस्मानी जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 16, 2016 at 10:37pm
सराहनीय प्रस्तुति, बधाई , आदरणीय शेख सहजाद उस्मानी जी , सादर।
Comment by नाथ सोनांचली on October 16, 2016 at 4:44pm
सोचने को मजबूर करती बेहद खुबसूरत लघुकथा, आपको मेरी ह्रदय से बधाई मोहतरम शेख शहजाद उस्मानी साहब

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