Added by Sushil Sarna on May 15, 2017 at 7:23pm — 9 Comments
गेट के सामने भीड़ इकठ्ठी हो रही है, कुछ लोग क्रोध से भर कार्यालय के अंदर जाने की कोशिश कर रहे हैं । द्वारपाल भीड़ को रोकने की कोशिश में नकाम हो रहा है।
प्रेस अपने वीडियो कैमरे के साथ कार्यालय तक पहुँच गई है, और पत्रकार कई तरह के सवाल पुछ रहे हैं जैसे “वार्ड नं ३ में होने वाली मौत के बारे आप क्या कहना चाहेंगा। आप बताएँ मौत कि लिए जिम्मेदार चिकित्सक पर क्या एकशन लिया गया है।“
"आप कैसे कह सकते हैं कि मौत के लिए चिकित्सक ही जिम्मेदार है ?" बड़े टेबल की दुसरी तरफ़ बैठे साहिब ने कहा। मैने…
Added by मोहन बेगोवाल on May 15, 2017 at 4:30pm — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 15, 2017 at 1:03pm — 10 Comments
2122 1212 22 /112
मेरी मदहोशियाँ भी ले जाना
मेरी हुश्यारियाँ भी ले जाना
इक ख़ला रूह को अता कर के
आज तन्हाइयाँ भी ले जाना
जाने किस किस से तेरी अनबन हो
थोड़ी खामोशियाँ भी ले जाना
दिल को दुश्वारियाँ सुहायें गर
मुझसे तब्दीलियाँ भी ले जाना
कामयाबी न सर पे चढ़ जाये
मेरी नाकामामियाँ भी ले जाना
राहें यादों की रोक लूँ पहले
फिर तेरी चिठ्ठियाँ भी ले जाना
बे…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 15, 2017 at 10:19am — 23 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on May 14, 2017 at 8:00pm — 18 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 14, 2017 at 11:52am — 18 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 14, 2017 at 8:00am — 14 Comments
Added by Rahila on May 13, 2017 at 3:47pm — 13 Comments
ग़ज़ल
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(फअल-फऊलन-फेलुन-फेलुन )
सिर्फ़ वो महफ़िल से निकला था |
कब वो मेरे दिल से निकला था |
दिलबर के दीदार का मंज़र
चश्म से मुश्किल से निकला था |
रास्ता मेरी मंज़िल का भी
उनकी ही मंज़िल से निकला था |
जिसने बचाया बद नज़रों से
वो जादू तिल से निकला था |
हरफे निदा जो बना अदावत
ज़ह्ने मुक़ाबिल से निकला था |
आ ही गया वो फिर मक़्तल में
बच के जो क़ातिल से निकला था…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on May 13, 2017 at 12:44pm — 16 Comments
122/122/122/12
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नुमायाँ है तू अपनी गुफ़्तार में,
सफ़ाई न दे हम को बेकार में.
.
फ़क़त एक मिसरे में गीता सुनो
है संसार मुझ में, मैं संसार में.
.
ये तामीर-ए-क़ुदरत भी कुछ कम नहीं
हिफ़ाज़त से रक्खा है गुल, ख़ार में.
.
कहानी को अंजाम होने तो दो
सभी लौट आयेंगे किरदार में.
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ऐ ज़िल्ल-ए-ईलाही!! ये इन्साफ़ हो,
कि चुनवा दो शैख़ू को दीवार में.
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तू शिद्दत से माथा पटक कर तो देख
कोई दर निकल…
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2017 at 9:30am — 22 Comments
1222-1222-122
वो ये भी कह रही है सिसकियों में,
बहुत जल बह चुका है नद्दियों में !
युवा फूलों पे मँडराने को लेकर,
मची है होड़ क्वाँरी तितलियों में.
धुँए को चीरकर घुसने लगी है,
चिता की आग गीली लकड़ियों में.
नदी के साथ मीठी मछलियाँ भी,
पहुँच जाती हैं खारी मछलियों में !
कई महलों में रहने योग्य हीरे,
दमकते फिर रहे हैं झुग्गियों में.
ये ‘एस.एम.एस.’ करने वाली…
ContinueAdded by जहीर कुरैशी on May 12, 2017 at 7:22pm — 7 Comments
Added by shikha kaushik on May 12, 2017 at 5:40pm — 15 Comments
Added by नाथ सोनांचली on May 12, 2017 at 12:00pm — 24 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 12, 2017 at 11:38am — 14 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 11, 2017 at 1:30pm — 13 Comments
२१२२, २१२२,२१२
.
बन गया वह राष्ट्र का सरदार क्या?
हो गए हैं स्वप्न सब साकार क्या?
.
सत्य से बढ़कर तो ईश्वर भी नहीं,
राष्ट्र क्या फिर मित्र क्या परिवार क्या?
.
राष्ट्र की सेवा सभी का धर्म है,
कर रहे हो तुम कोई उपकार क्या?
.
देख कर इक कोमलांगी के अधर,
कल्पना लेने लगी आकार क्या?
.
आचरण में धर्मग्रंथो को उतार,
बाद में दे ज्ञान उनका सार क्या.
.
निलेश "नूर"
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मौलिक/ अप्रकाशित
Added by Nilesh Shevgaonkar on May 11, 2017 at 9:24am — 25 Comments
सूरज शोले छोड़ता ,पशु भी ढूँढे छाँव ।
दर खिड़की सब बंद है ,सन्नाटे में गाँव ।।
भीषण गरमी पड़ रही,पशु -मानव हैरान ।
भू जल भी घटने लगा, साँसत में है जान ।।
पारा बढ़ता जा रहा, सूख रहे तालाब ।
देखो गाँव महानगर , हालत हुई खराब ।।
पत्ते झुलसे पेड़ पर ,नीम बबूल उदास ।
पशु किसान सबको लगी, पानी की अब आस ।।
.
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on May 11, 2017 at 8:30am — 14 Comments
2122 2122 2122 212
बेखुदी में यार मेरे याद आना छोड़ दो
मुस्कुराने की अदा है कातिलाना, छोड़ दो।1
सूखती-सी जो नदी उम्मीद की, बहती रही
कान में पुरवाइयों-सी गुनगुनाना छोड़ दो।2
ख्वाहिशों के दौर में थमती नहीं है जिंदगी
उँगलियों पर अब जरा मुझको नचाना छोड़ दो।3
चाँद ढलता जा रहा फिर है पड़ी सूनी गली
बेबसी में अब कभी मुझको बुलाना छोड़ दो।4
राह अपनी मैं चलूँ तुमको मुबारक रास्ते
अनकही बातें बता रिश्ते…
Added by Manan Kumar singh on May 10, 2017 at 9:11pm — 10 Comments
जीवन हमको बुद्ध का , देता है सन्देश |
रक्षा करना जीव की , दूर रहेगा क्लेश ||1||
भोग विलास व नारियां, बदल न पाई चाल |
योग बना था संत का, छोड़ दिया जंजाल ||2||
मन वीणा के तार को, कसना तनिक सहेज |
ढीले से हो बेसुरा , अधिक कसे निस्तेज ||3||
बंधन माया मोह का , जकड़े रहता पाँव |
जिस जिसने छोड़ा इसे , बसे ईश के गाँव ||4||
धन्य भूमि है देश की, जन्मे संत महान |
ज्ञान दीप से जगत का,हरे सकल अज्ञान ||5||
.…
Added by Chhaya Shukla on May 10, 2017 at 2:00pm — 9 Comments
“आंटी जी, अगर उस दिन आप ने मेरे सर पर हाथ न रखा होता तो पता नहीं मैं कहाँ होती”
“कीमत तो वो मेरी पहले ही लगा चुके थे,उस रोज़ तो बस पैसे देने ही आए थे ”।
“मुझ को तो कुछ पता ही नहीं चलने दिया था” ऋतू ये कहती जा रही थी।
“ये तो भला हो, मेरे साथ डांस पार्टी में काम करने वाली सुनीता का,
"उस बता दिया मुझको कि मालिक तो मेरे पैसे ले रहा हैं, कल तुम किसी और डांस पार्टी में काम करोगी "
"तब मुझे आप के पास तो आना ही था, आंटी जी"
“घर से तो अमली ने पहले ही…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on May 10, 2017 at 12:30pm — 8 Comments
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