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shikha kaushik
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kandhla [muzaffarnagar] uttar pradesh
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delhi
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student
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Shikha kaushik's Blog

मैंने गलत को गलत कहा

ना कोई सगा रहा,

जिस दिन से होकर बेधड़क

मैंने गलत को गलत कहा!



तोहमतें लगने लगी,

धमकियां मिलने लगी,

हां मेरे किरदार पर भी

ऊंगलियां उठने लगी,

कातिलों के सामने भी

सिर नहीं मेरा झुका!

मैंने गलत को गलत कहा!



चापलूसों से घिरे

झाड़ पर वो चढ़ गये,

इतना गुरूर था उन्हें

कि वो खुदा ही बन गये,

झूठी तारीफें न सुन

हो गये मुझसे ख़फा!

मैंने गलत को गलत कहा!



मेरी सब बेबाकियों की

दी गई ज़ालिम सज़ा,

फांसी… Continue

Posted on May 12, 2017 at 5:40pm — 15 Comments

गीत -''ये तो मोहब्बत नहीं !

तेरी ज़िद है तू ही सही ;

मेरी अहमियत कुछ नहीं ,

बहुत बातें तुमने कही ;

मेरी रह गयी अनकही ,

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

.......................................

हुए हो जो मुझ पे फ़िदा ;

भायी है मेरी अदा ,

रही हुस्न पर ही नज़र ;

दिल की सुनी ना सदा ,

तुम्हारी नज़र घूरती ;

मेरे ज़िस्म पर आ टिकी !

ये तो मोहब्बत नहीं !

ये तो मोहब्बत नहीं !!

..................................

रूहानी हो ये सिलसिला ;

ना इसमें हवस को मिला…

Continue

Posted on August 9, 2016 at 9:27pm — 3 Comments

''तुझको तेरी नज़रों में गिराने की है कोशिश !''

दिल को आज पत्थर बनाने की है कोशिश !

ज़ज़्बात आज मेरे दबाने की है कोशिश !

.........................................

इल्ज़ाम नहीं तुझ पर तू सख्त दिल ही था ,

नरमाई मेरे दिल की मिटाने की है कोशिश !

........................................................

दरियादिली से मेरी उसको है शिकायत ,

आँखों में आंसू मेरे लाने की है कोशिश !

........................................................

हैं ज़ख्म दिए गहरे लफ़्ज़ों की कटारों से ,

दामन पे मेरे दाग लगाने… Continue

Posted on February 21, 2016 at 12:33pm — 4 Comments

मैं नहीं लिखता कोई मुझसे लिखाता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखाता है !

कौन है जो भाव बन ;

उर में समाता है !

....................................

कौंध जाती बुद्धि- नभ में

विचार -श्रृंखला दामिनी ,

तब रची जाती है कोई

रम्य-रचना कामिनी ,

प्रेरणा बन कर कोई

ये सब कराता है !

मैं नहीं लिखता ;

कोई मुझसे लिखता है !

.........................................................

जब कलम धागा बनी ;

शब्द-मोती को पिरोती ,

कैसे भाव व्यक्त हो ?

स्वयं ही शब्द…

Continue

Posted on June 1, 2015 at 11:00pm — 11 Comments

Comment Wall (7 comments)

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At 6:41pm on July 14, 2011, Shashi Mehra said…
मेरी राय आपसे मिलती तो है पर विपरीत हालात में भी ऐसा ही होता है |
नाकामयाब आदमी भी बहुत कुछ कहता है अपने पक्ष में | 
कभी मैंने एक दोहा लिख था जो इस तरह था ;-
नेकी अपने नाम ली, बड़ी खुदा के नाम |
साज़िश है इंसान की, दाता हो बदनाम ||
At 9:35pm on January 23, 2011, shalini kaushik said…
बहुत सुन्दर भावों से युक्त रचना .बधाई.
At 12:37pm on January 12, 2011, shalini kaushik said…
vastav me josh bhar gayee aapki kavita.bahut joshili kavita...
At 3:13pm on December 17, 2010,
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
said…
At 10:03am on December 13, 2010, Admin said…

At 8:11pm on December 3, 2010, PREETAM TIWARY(PREET) said…

At 5:44pm on December 3, 2010, Ratnesh Raman Pathak said…

 
 
 

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