Added by Sheikh Shahzad Usmani on June 3, 2017 at 1:27pm — 9 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 3, 2017 at 8:56am — 8 Comments
Added by Arpana Sharma on June 2, 2017 at 11:23pm — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on June 2, 2017 at 8:24pm — 13 Comments
इतनी ज्यादा बात न कर
वादों की बरसात न कर
ह्रदय बड़ा ही नाजुक है,
उस पर यूँ आघात न कर
ख्यात न हो कुछ बात नहीं,
पर खुद को कुख्यात न कर
मानव को मानव रहने दे,
ऊंची नीची जात न कर
…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on June 2, 2017 at 10:02am — 20 Comments
Added by Rahila on June 1, 2017 at 10:37pm — 14 Comments
Added by Mohammed Arif on June 1, 2017 at 9:06pm — 11 Comments
Added by VIRENDER VEER MEHTA on June 1, 2017 at 5:17pm — 8 Comments
क्या यह मुझे जानने में मदद करेगा
वहां उनकी हंसी है
रिक्त स्थान में भर
हवा में फसी
क्या यह मुझे सीखना शांत करेगा
हर जगह से आनंद के फैल आँसू
दिल खुश से विस्फोट
जैसा कि यह केवल उचित है.
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by narendrasinh chauhan on June 1, 2017 at 4:08pm — 1 Comment
तृषित ज़िंदगी ...
गाँव की
उदास और चुप शाम
टूटे छप्पर
हवाओं से
बिखरे तिनके
बयाँ कर रहे थे
ज़ुल्म आँधियों का
बिखरे
रोटियों के टुकड़े
और
टूटे हुए मटके में
दो हाथों के इंतज़ार में
ठहरा
तृप्ति को तरसता
अतृप्त पानी
कह रहा था
चली गयी
शायद
कोई ज़िंदगी
तृषित ही
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 31, 2017 at 2:00pm — 8 Comments
Added by Dr.Prachi Singh on May 31, 2017 at 11:17am — 5 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on May 31, 2017 at 8:30am — 10 Comments
बिन मौसम बरसात कहीं
साथ होती है यादें
रिम झिम रिम झिम बरसे पानी
साथ होती हैं बातें
उस नदी की अल्हड लहरें
साथ होती है रातें
आसमान पर चाँद सितारे
बादल गीत हैं गातें
कल कल करता बहता पानी
कागज़ की नाव बहाते
चल मुसाफिर चलता चल तू
साथ नहीं कोई आते
मौलिक एवं…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 30, 2017 at 10:34pm — 4 Comments
वो घर मेरा नहीं ...
कितना कठिन है
अपने घर का पता जानना
लौट जाते हैं
हर बार
आकर भी
घर के पास से हम
किस से पूछें पता
सभी मुसाफिर लगते हैं
अपने घरों से
अंजाने लगते हैं
जानते हैं
ये घर
हमारा नहीं
फिर भी
उसको घर मानते हैं
टूट जाते हैं
जो पत्ते शज़र से
फिर वो शज़र
उनका घर नहीं रह जाता
हो जाते हैं
वो हवाओं के हवाले
घर के पास होते हुए भी…
Added by Sushil Sarna on May 30, 2017 at 6:00pm — 9 Comments
मापनी २२ २२ २२ २२
यदि करना इनकार नहीं है,
क्यों करता इकरार नहीं है
सच से रहता उसका झगड़ा,
झूठ मुझे स्वीकार नहीं है
शूल नहीं है प्रेम अगर, तो,
फूलों का भी हार नहीं है
दिल से कभी न कह…
ContinueAdded by बसंत कुमार शर्मा on May 30, 2017 at 9:30am — 11 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 28, 2017 at 11:11pm — 3 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 28, 2017 at 10:30pm — 9 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on May 28, 2017 at 6:26pm — 12 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 28, 2017 at 4:46pm — 7 Comments
महिंद्र की सेवानिवृत्ति पार्टी शुरू हो गई | विभाग के कर्मचारियों के साथ महिंद्र के करीब के रिश्तेदार भी आ कर हाल में बैठ गए | थोड़ी देर बाद साहिब भी आ गए | साहिब और कार्यालय के कर्मचारियों ने महिंद्र और उसकी पत्नी को आगे पड़ी कुर्सियों पे बिठाया और उनके गले में हार डाले और उनको गिफ्ट दिए |
इसी समय सब को भोजन परोसा गया और सभी ने खाना शुरू किया, समारोह के चलते, कुछ लोगों को महिंद्र के बारे में कुछ कहने के लिए क्रमवार बुलाया गया |
मगर सभी…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on May 28, 2017 at 6:02am — 4 Comments
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