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"अरे! सुनंदा सुनो भाई कब से फोन पर बातें कर रही हो. चलो अब खाना लगाओ जी. बडी भूख लगी है. क्या  इतनी लंबी बातें किए जा रही हो." 

"जी! "अंकुर" से. बता रहा आज किसे बिज़नेस मीट की डिनर पार्टी पर जाना है. रात देर हो जाएँगी , तो अभी काल कर लिया."

" वो अब क्या बच्चा है. कितनी हिदायत दे रही थी तुम उसे  क्यों पिछे पडी रहती हो उसके . वो अब कमाता पुत्र है तुम्हारा. अच्छा खासा नौजवान. अब उसके दिन उपभोग करने के दिन  हैं." सुदेश थोड़ा खीजते हुए

" तो! क्या बुराईयो से आगाह कराना भी..." 

"  ऑफ़िस के सब लोग उसे मम्माज बाय कहते होगें". 

" तो कहते रहे . मुझे जो गलत लगेगा मैं उसे और आपको टोकती रहूँगी. मानना ना मानना  आपकी आपनी-अपनी मर्जी." सुनंदा भी अब थोड़ा उत्तेजित होकर बोली

" चलो अब भोजन लगाओ और हा! वो "धरा" बेटी  का फोन आया या नहीं. बहुत रात हो गई है अब तक क्या कर रही है ऑफ़िस में.  उससे कहो हमारे घर के कुछ संस्कार है उन्हे उसे मानना ही हैं. सात बजे तक घर आ जाया करे." सुदेश अब तनातनी पर उतर आए थे.

ओह! तो धरा तो आपको उर्वरा चाहिए तो  फिर बीज का निरोगी होना ज़रूरी नहीं है क्या?

मौलिक व अप्रकाशित

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