पथिक !!!
चल दिये कहाँ ?
क्या कंटक पथ देख
विचलित हो उठे तुम
चिलचिलाती धूप की तपन मे
सुलग उठे तुम
ढूँढने छाँव, तड़प कर
चल दिये कहाँ ?
स्वप्नों की टूटी गागर
व्यथित आकुल मन
हारी हुईं अभिलाषायेँ
बिखरा कर तुम
ढूँढने नव उजास
चल दिये कहाँ ?
रेतीले !!!!
ये गर्द भरे रास्ते
मरुथल मे जल की बूंद
मृग मरीचिका मे कस्तूरी
ढूँढने नन्दन वन
चल दिये कहाँ ?
अप्रकाशित…
ContinueAdded by annapurna bajpai on September 23, 2013 at 1:45pm — 21 Comments
तुमको देखे
बरसों बीते
सूखे फूल
किताबों में
अहिवाती बस
एक छुअन ही
रही महकती
हाथों में
मन के कोरे
काग़ज भी तो
क्षत को गिरे
प्रपातों में
अनगिन पारिजात
मगर तुम
रख गए
कलम-दावातों में
आओ ना
इस इंद्रधनुष पर
दो पल बैठें
बात करें
शावक जैसी
कोमल राते
उतर रही
आहातों में
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 1:06pm — 16 Comments
212 212 212 212
.
छांव में धूप का क्यों गुमाँ हो रहा
दर्द क्या इक नया फिर कोई बो रहा
सड़ चुकी मान्यता सांस फिर ले रही
दिन चढ़े तक कोई शख़्स ज्यों सो रहा
ज़ाहिरन बात ये कह रहा है करम
बढ़ गया पाप जब तो कोई धो…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on September 23, 2013 at 12:00pm — 38 Comments
मसले पर जब बलबला, शब्द मनाते जीत |
भाव मौन रहकर मरे, यही पुरातन रीत |
यही पुरातन रीत, तीर शब्दों के घातक |
दे दे गहरी पीर, ढूँढ़ ले खुशियाँ पातक |
बड़े विकारी शब्द, मचलती इनकी नस्लें |
मसले पड़े ज्वलंत, शब्दश: रविकर मसले ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 23, 2013 at 11:32am — 9 Comments
शर्म से हम आँख मीचे क्यूँ रहें
दौड़ है सोहरत की पीछे क्यूँ रहें
तब हुए पैदा जमीं पे अब मगर
हौसलों के पर हैं नीचे क्यूँ रहें
सच का लज्जत चख चुके हैं हम यहाँ
फिर बता दो हम भी तीखे क्यूँ रहें
जानते हैं फल में कीड़े कब लगे
इस कदर फिर हम भी मीठे क्यूँ रहें
जिन लकीरों ने कराई जंग है
“दीप” अब तक उनको खींचे क्यूँ रहें
संदीप कुमार पटेल “दीप”
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on September 22, 2013 at 8:13pm — 32 Comments
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मस्तक राजे ताज सभी भाषा की हिन्दी
ज्ञान दायिनी कोष बड़ा समृद्ध विशाल है
संस्कृत उर्दू सभी समेटे अजब ताल है
दूजी भाषा घुलती हिंदी दिल विशाल है
लिए हजारों भाषा करती कदम ताल है
जन - मन जोड़े भौगोलिक सीमा को बांधे
पवन सरीखी परचम लहराती है हिंदी
भारत माँ की बिंदी प्यारी अपनी हिन्दी ...........
============================
१ १ स्वर तो ३ ३ व्यंजन 52 अक्षर अजब व्याकरण
गिरना…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 22, 2013 at 7:30pm — 14 Comments
Added by Poonam Shukla on September 22, 2013 at 10:20am — 20 Comments
मोर दशा वह देखत सोचत अविरल प्रेम अश्रु जल ढारे ।
पागल जो बन घूम रहा दर बे दर प्यार छुपा मन मारे ।
दोष रहा किसका वह बन चातक ढूंढ रहा दिल हारे ।
मै वरती उसको पर ये दुनिया भई प्रेम दुश्मन हमारे ।
मोर - मेरा/मेरी
..................................
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 22, 2013 at 10:00am — 7 Comments
अब न मैं भयभीत तुझसे, मेघ माघी..!!
मैं पड़ी थी,
एक युग से चिर निशा की कालिमा में कैद कल तक,
रश्मि से अनजान, रवि की लालिमा से भी अपरिचित,
दृष्टि में संकोच का संचार, भय से प्राण सिमटे,
दृग झुके से, अश्रु प्लावित, अधर भी अधिकार वंचित,…
Added by अजय कुमार सिंह on September 22, 2013 at 12:33am — 8 Comments
कोई अच्छा बहाना देख लेना
कहीं दिलकश ठिकाना देख लेना /१
अगर मिलना हो तुमको हमनशीं से
तो फिर मौसम सुहाना देख लेना/२
भले ही मुश्किलों में हम पले हैं
हमारा मुस्कुराना देख लेना/३
मजा लेना अगर है दुश्मनी का
कोई दुश्मन पुराना देख लेना /४
किसी की आबरू यूँ मत उछालो
कभी इज्ज़त गंवाना देख लेना/५
सितारों की कबड्डी में मजा क्या
कभी परदा हटाना देख लेना /६
हमारा ‘सारथी’ है नाम समझे
मिज़ाजे - शाइराना देख…
ContinueAdded by Saarthi Baidyanath on September 21, 2013 at 5:00pm — 32 Comments
आज फिर याद कई, ज़ख्म पुराने आये
धड़कने बंद करो, शोर मचाने आये//१
.
लेके मरहम न सही, हाथ में गर खंजर हो
हक़ उसी को है, मेरा दर्द बढ़ाने आये//२
.
इश्क़ में आह की दौलत के, बदौलत हम हैं
कोई तो हो जो मेरा, ज़ख्म चुराने आये//३
.
रोते-रोते ही कहा, मुझको मुआफ़ी दे दो
अश्क़ अपना जो, समंदर में छुपाने आये//४
.
कम चरागें न जलाई थी, तेरी यादों की
जल रहा दिल है, उसे कोई बुझाने आये//५
.
आशिक़ी मौत से…
ContinueAdded by रामनाथ 'शोधार्थी' on September 21, 2013 at 4:00pm — 27 Comments
हाँ
मैं पिघला दूँगा अपने शस्त्र
तुम्हारी पायल के लिए
और धरती का सौभाग्य रहे तुम्हारे पाँव
शोभा बनेंगे
किसी आक्रमणकारी राजा के दरबार की
फर्श पर एक विद्रोही कवि का खून बिखरा होगा !
हाँ
मैं लिखूंगा प्रेम कविताएँ
किन्तु ठहरो तनिक
पहले लिख लूँ एक मातमी गीत
अपने अजन्मे बच्चे के लिए
तुम्हारी हिचकियों की लय पर
बहुत छोटी होती है सिसकारियों की उम्र
हाँ
मैं बुनूँगा…
ContinueAdded by Arun Sri on September 21, 2013 at 11:00am — 15 Comments
सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और इरादे मजबूत
सोच लो ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:02pm — 14 Comments
छंद त्रिभंगी : चार पद, दो दो पदों में सम्तुकांतता, प्रति पद १०,८,८,६ पर यति, प्रत्येक पद के प्रथम दो चरणों में तुक मिलान, जगण निषिद्ध
रज कण-कण नर्तन, पग आलिंगन, धरती तृण-तृण, अर्श छुए
कर तन मन चंचल, फर-फर आँचल, मुक्त उऋण सी, पवन बहे
सुन क्षण-क्षण सरगम, अन्तर पुर नम, विलयन संगम, भाव बिंधे
सुन्दरतम नियमन, श्रुति अवलोकन, लय आलंबन, सृजन सुधे
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Dr.Prachi Singh on September 20, 2013 at 8:00pm — 25 Comments
Added by Meena Pathak on September 20, 2013 at 7:18pm — 22 Comments
ऐसा नही है
कि रहता है वहाँ घुप्प अन्धेरा
ऐसा नही है
कि वहां सरसराते हैं सर्प
ऐसा नही है
कि वहाँ तेज़ धारदार कांटे ही कांटे हैं
ऐसा नही है
कि बजबजाते हैं कीड़े-मकोड़े
ऐसा भी नही है
कि मौत के खौफ का बसेरा है
फिर क्यों
वहाँ जाने से डरते हैं हम
फिर क्यों
वहाँ की बातें भी हम नहीं करना चाहते
फिर क्यों
अपने लोगों को
बचाने की जुगत लागाते हैं हम
फिर क्यों
उस आतंक को घूँट-घूँट पीते हैं…
Added by anwar suhail on September 20, 2013 at 7:00pm — 7 Comments
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 6:21pm — 34 Comments
मुझको दीवाना बना देंगे ये तेरे जल्वे
आग सी दिल में लगा देंगे ये तेरे जल्वे
नींद में डूबा हुआ जाने हुआ मेरा दिल
उसको लगता है जगा देंगे ये तेरे जल्वे
जैसे परवाना जले कोई शमा जलते ही
बैसे ही मुझ को जला देंगे ये तेरे जल्वे
हमने इस दिल को बचाया था बड़ी मुश्किल से
दिल को अब लगता मिटा देंगे ये तेरे जल्वे
क्या तेरे दिल में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 20, 2013 at 4:00pm — 14 Comments
Added by Parveen Malik on September 20, 2013 at 3:30pm — 15 Comments
उमा दादी ने जब बड़े प्यार से सभी कन्याओं को चरण धो धो कर जमीन पर बिछे आसन पर बैठाया और रोली कुमकुम का टीका लगा कर सभी कन्याओं को चुनरी ओढ़ाई और भोजन परोस कर वही बगल मे हाथ जोड़ कर बैठ गईं - “भोजन जिमों मेरी माता रानी ।"
अचानक उनके बीच मे बैठी उमा दादी की पोती उठ खड़ी हुई - “ आप गंदी हो दादी ! आज कितने प्यार से खिला रही हो रोज तो माँ को कहती हो बेटी पैदा करके रख दी । अब बताओ अगर बेटियाँ नहीं पैदा होती तो तुम कन्या कहाँ से लाती और किसको खिलाती, कैसे कन्या पूजन करती…
ContinueAdded by annapurna bajpai on September 20, 2013 at 1:00pm — 29 Comments
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