मूढ़ तू क्या कर सकेगा, अनुभवी जग को पराजित!
है सदा जिसको अगोचर, प्राण की संवेदना भी,
क्यों करे तू उस जगत से प्रेम-पूरित याचना ही,
तू करेगा यत्न सारे भावना का पक्ष लेकर,
किन्तु तेरे भाग्य में होगी सदा आलोचना…
ContinueAdded by अजय कुमार सिंह on September 25, 2013 at 2:00am — 15 Comments
नेता स्वार्थ के अपने, बदल रहे संविधान ।
करने दो जो चाहते, डालो न व्यवधान ।।
डालो न व्यवधान, है अभी उनकी बारी ।
लक्ष्य पर रखो ध्यान, करो अपनी तैयारी ।।
बगुला बाट जोहे, बैठे नदी तट रेता ।
शिकारी बन बैठो, शिकार हो ऐसे नेता ।।
.............................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:49pm — 11 Comments
कुण्डलियाँ छंद
टोपी बुर्के कीमती, सियासती उन्माद |
सत्तइसा के पूत पर, पढ़ते मियाँ मिलाद |
पढ़ते मियाँ मिलाद, तिजारत हो वोटों की |
ढूँढे टोटीदार, जरुरत कुछ लोटों की |
रविकर ऐसा देख, पार्टियां वो ही कोपी |
अब तक उल्लू सीध, करे पहना जो टोपी |
अप्रकाशित/मौलिक
Added by रविकर on September 24, 2013 at 9:37pm — 6 Comments
इससे पहले कभी
कहा नही जाता था
तो बम के साथ हम
फट जाते थे कहीं भी
और उड़ा देते थे चीथड़े
इंसानी जिस्मों के...
अब कहा जा रहा है
मारे न जायें अपने आदमी
सो पूछ-पूछ कर
जवाब से मुतमइन होकर
मार रहे हैं हम...
बस समस्या भाषा की है
उन्हें समझ में नही आती
हमारी भाषा
हमें समझ में नही आती
उनकी बोली
हेल्लो हेल्लो
क्या करें हुज़ूर..
एक तरफ आपका फरमान
दूजे टारगेट की…
ContinueAdded by anwar suhail on September 24, 2013 at 6:30pm — 7 Comments
Added by गिरिराज भंडारी on September 24, 2013 at 5:30pm — 26 Comments
मन की अंतर्वेदना , कहीं बह ना जाए आंसुओ में !
बहुत टुटा हूँ ,समेट लो बाजुओं में !
अपमान के ना जाने कितने घूंट पी चूका !
पर प्यासा हूँ , डूब जाने दो आँखों में !
घना होता जाता है ये अन्धकार क्यों ?
एक दिया तो उम्मीद का जलाओ रातो में !
तिरस्कार किया गया , हिकारत से देखा गया !
ना जाने कैसा भाग्य है मेरे इन हाथो में !
लौट जाओ कि अब रंगीन जवानी गुजर चुकी !
हासिल होगा क्या अब इन मुलाकातों में…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:00pm — 9 Comments
शोहरतें पाने मचलता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
हसरतों पे जीता मरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
यूँ किसी की याद में जलने का मौसम गम भरा
फिर उसी को याद करता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
चोट खाता है मुसलसल जिन्दगी की राह में
तब सनम जैसे सँवरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
आईने से रू-ब-रू होने की हिम्मत है नहीं
हार के फिर आह भरता नादाँ दिल क्यूँ सोचिये
इल्म है उसको गली ये…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:39pm — 22 Comments
अनुभूति
( जीवन साथी नीरा जी को सस्नेह समर्पित )
अनंत्य सुखमय सौम्य संदेश लिए
भावमय भोर है ओढ़े छवि तुम्हारी,
पल-पल झंकृत, पथ-पथ ज्योतित
आनंदमय नाममात्र से तुम्हारे...
औ, अरुणित उत्कर्षक उष्मा !
संगिनी सुखमय प्राणदायक..!
प्रत्येक फूल के ओंठों पर
विकसित हँसी तुम्हारी,
स्नेहमय उन्माद नितांत
सोच तुम्हारी रंग देती है
स्वच्छंद फूलों के गालों को
गालों के गुलाल से…
ContinueAdded by vijay nikore on September 24, 2013 at 4:30pm — 12 Comments
माँ ममता की लाली घर आँगन छा जाए
जब प्राची की गोद बाल दिनकर आ जाए ।
कलरव कर कर पंछी अपना सखा बुलाएं
चलो दिवाकर खुले गगन क्रीड़ा हो जाए ॥
सब जग में सुन्दरतम तस्वीर यही मन भाती
गोद हों शिशु अठखेलियाँ मैया हो दुलराती |
लगे ईश सी चमक मुझे उन नयनों से आती
तभी यक़ीनन नित प्रातः प्राची पूजी जाती ||
शीत काल है जब जब कठिन परीक्षा आई
खेल हुआ है कम तब तब रवि करे पढाई ।
और, स्वतंत्र हो खूब सूर्य तब चमक…
ContinueAdded by Pradeep Kumar Shukla on September 24, 2013 at 4:00pm — 14 Comments
रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए
खुदा का चाँद भी फिर लाजबाव हो जाए
.
तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए
.
तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो…
Added by Sachin Dev on September 24, 2013 at 1:30pm — 33 Comments
कुण्डलियाँ-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
लेकिन अब भी नारि, पड़े अबला पर भारी |
इक ढाती है जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 24, 2013 at 11:53am — 12 Comments
प्रेम दुलार जगावत मानवता मन भावत भारत प्यारा ।
गीत खुशी सब गावत नाचत मंगल थाल सजावत न्यारा ।
बंधु सभी मिल बैठ करे नित चिंतन सुंदर हो जग प्यारा ।
ये सपना मन भावन देख ‘‘रमेश‘‘ खुशी मन गावत न्यारा ।
.........................................................
मौलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 24, 2013 at 10:34am — 8 Comments
अरकान : १२२२/ १२२२/ १२२२/ १२२२
गिरें तो फिर सम्हलना ही हमारी कामयाबी है !
सफर में चलते रहना ही हमारी कामयाबी है !
नही ये कामयाबी है कि मंजिल पा लिया हमने…
ContinueAdded by पीयूष द्विवेदी भारत on September 24, 2013 at 8:24am — 26 Comments
Added by Ravi Prakash on September 24, 2013 at 7:30am — 14 Comments
काम बेहद मामूली था पर बड़े बाबू फाइल पर कुंडली मारे बैठे थे । मित्रों ने बताया कि बिना हजार-डेढ़ हजार का चढ़ावा लिए वो काम करने वाले नही हैं । गुप्ताजी यह सुन कर चुप रह गये ।
"बड़े बाबू एक छोटा सा काम आपके पास पेंडिंग है, यदि कर देते तो बड़ी मेहरबानी होती"
"हाँ-हाँ, गुप्ताजी हो जाएगा, थोड़ा खर्च-वर्च कर दीजिएगा", बड़े बाबू बगैर लाग-लपेट बोल उठे ।
"देखिए बड़े बाबू मैं खर्च करने की स्थिति मे तो नही…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2013 at 8:59pm — 60 Comments
Added by Neeraj Neer on September 23, 2013 at 8:30pm — 25 Comments
कुण्डलिया
सावन संग आज लगी, सखी नैन की होड़|
मान हार कौन अपनी, देत बरसना छोड़||
देत बरसना छोड़, नैन परनार बहे हैं |
कंचुकि पट भी भीज , विरह की गाथ कहे हैं ||
पड़े विरह की धूप, जले है विरहन का मन|
हिय से उठे उसाँस, बरसे नैन…
ContinueAdded by shalini rastogi on September 23, 2013 at 6:29pm — 14 Comments
Added by डॉ. अनुराग सैनी on September 23, 2013 at 5:48pm — 6 Comments
२१२२/११२२/२२
झूठ अब सामने लाया जाये
आइना सबको दिखाया जाये
तीरगी है तो उदासी कैसी
दीप फ़ौरन ही जलाया जाये
आज दिल में है बड़ी बेचैनी
साक़िया भर के पिलाया जाये
लाडली वो भी किसी मा की है
फिर बहू को न सताया जाये
तोड़ डाला जो खिलौना उसने
उसको इतना न रुलाया जाये
बात गर करनी मोहब्बत की तो
दिल से नफरत को मिटाया…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on September 23, 2013 at 5:30pm — 25 Comments
Added by shashi purwar on September 23, 2013 at 3:30pm — 20 Comments
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