For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (18,924)

हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे-

ओसारे में बुद्धि-बल, मढ़िया में छल-दम्भ |
नहीं गाँव की खैर तब, पतन होय आरम्भ |


पतन होय आरम्भ, बुद्धि पर पड़ते ताले |
बल पर श्रद्धा-श्राप, लाज कर दिया हवाले |


तार-तार सम्बन्ध, धर्म- नैतिकता हारे |
हुआ बुद्धि-बल अन्ध, भजे रविकर ओसारे ||

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on September 2, 2013 at 6:46pm — 15 Comments

रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका

रोज़ा, नमाज़, हज औ तिलावत न कर सका

अपने वजूद की मैं हिफाज़त न कर सका

दैरो हरम में आ के तो सजदा किया ज़रूर

लेकिन कभी मैं दिल से इबादत न कर सका

बिकता रहा ज़मीर भी कौड़ी के भाव में

मैं चाहकर भी इसकी हिफ़ाज़त न कर सका

तेरे क़दम भी रुक गए उल्फत की राह में 

मै भी अकेला घर से बग़ावत न कर सका

तेरे बदन में देखकर पाकीज़गी की आग 

कोई भी शख्स छूने की ज़ुर्रत न कर सका

मैख़ाने में गुज़ार दी 'साहिल' ने…

Continue

Added by Sushil Thakur on September 2, 2013 at 6:30pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
पांच दोहे ( गिरिराज भंडारी )

पांच दोहे

 

खुद के अन्दर झाँक के, पढ़  ले तू आलेख

अपने ऐसे हाल का,  खुद  खींचा  आरेख

 

बाहर पानी से बुझे, कण्ठ लगी जो प्यास

भीतर जी मे जो लगी,कौन बुझाये प्यास

 

पंछी घर को लौटते, साँझ लगी गहराय…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on September 2, 2013 at 6:00pm — 42 Comments

लघुकथा - अनुष्ठान (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')

बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा…

Continue

Added by shubhra sharma on September 2, 2013 at 12:17pm — 22 Comments

राज़ नवादवी: मेरी डायरी के पन्ने- ६३-६६ (तरुणावस्था-१० से १३)

(आज से करीब ३१ साल पहले)

 

शनिवार, २७/०३/१९८२, नवादा, बिहार: एक मोड़

--------------------------------------------------------

आज हम सभी साथियों की खुशी किसी सीमा में बांधे नहीं बाँध रही है. आज हम सभी सुबह से ही उस घड़ी की प्रतीक्षा में हैं जब हम मैट्रिक की संस्कृत के द्वीतीय पत्र की परीक्षा दे परीक्षा-भवन से आख़िरी बार निकालेंगे.

 

हमारे मैट्रिक इम्तेहान का सेंटर नवादा मुख्यालय से २९ किमी दूर रजौली कसबे के एक सरकारी स्कूल में रखा गया था. मैं और मुझसे…

Continue

Added by राज़ नवादवी on September 2, 2013 at 11:07am — 7 Comments

रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की-

गलती का पुतला मनुज, दनुज सरिस नहिं क्रूर |
मापदण्ड दोहरे पर, व्यवहारिक भरपूर |


व्यवहारिक भरपूर, मुखौटे पर चालाकी |
रविकर मद में चूर, चाल चल जाय बला की |


करे स्वार्थ सब सिद्ध, उमरिया जैसे ढलती |
रोज करे फ़रियाद, दाल लेकिन नहिं गलती ||

मौलिक/अप्रकाशित

Added by रविकर on September 2, 2013 at 10:00am — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ऐ- जान जरा बात बताओ तो सही -- ग़ज़ल (राज )

दीवार तग़ाफुल  की  ये ढाओ  तो सही

इक बाँध रिफ़ाकत का बनाओ तो सही

 

आ पाक मुहब्बत में मिटा दें सरहदें

इस ओर  जरा हाथ बढ़ाओ  तो सही 

 

हैरान परेशान खड़े हो इस…

Continue

Added by rajesh kumari on September 2, 2013 at 9:30am — 35 Comments

!!! मां शारदे !!!

!!! मां शारदे !!! //हरिगीतिका छन्द//

तुम दिव्य देवी बृहम तनुजा हृदय करूणा धारिणी।

संगीत वीणा ताल सरगम धर्म बृहमा चारिणी।।

कर कमल धारण हंस वाहन ज्ञान पुस्तक वाचिनी।

अति मधुर कोमल दया समता प्रेम रसता रागिनी।।1

कल्याणकारी सत्यधारी श्वेत वसनं शोभनं।

संसार सारं कंज रूपं वेद ज्ञानं बोधनं।।

मन प्रीत प्यारी रीति न्यारी प्रकृति सारी धारती।

सब देव-दानव जीव-मानव शरण आते तारती।।2

उध्दार करती द्वेष हरती पाप-संकट काटती।

तुम तेज रूपं…

Continue

Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 1, 2013 at 10:29pm — 16 Comments

ग़ज़ल : सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं

बह्र : २१२२ ११२२ ११२२ २२

-----------

धर्म की है ये दुकाँ आग लगा देते हैं

सिर्फ़ कचरा है यहाँ आग लगा देते हैं

 

कौम उनकी ही जहाँ में है सभी से बेहतर

जिन्हें होता है गुमाँ आग लगा देते हैं

 

एक दूजे से उलझते हैं शजर जब वन में

हो भले खुद का मकाँ आग लगा देते हैं

 

नाम नेता है मगर काम है माचिस वाला

खोलते जब भी जुबाँ आग लगा देते हैं

 

हुस्न वालों की न पूछो ये समंदर में भी

तैरते हैं तो वहाँ आग…

Continue

Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on September 1, 2013 at 10:16pm — 12 Comments

चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये -

माने मन की बात तो, आज मौज ही मौज |
कल की जाने राम जी, आफत आये *नौज |


आफत आये *नौज, अक्ल से काम कीजिए |
चुन रविकर सद्मार्ग, प्रतिज्ञा आज लीजिये |


रहे नियंत्रित जोश, लगा ले अक्ल दिवाने |
आगे पीछे सोच, कृत्य मत कर मनमाने ||

*ईश्वर ना करे -
आदरणीय पाठक गण-कृपया नौज के उपयोग पर कुछ कहें-

मौलिक/अप्रकाशित-

Added by रविकर on September 1, 2013 at 9:00pm — 3 Comments

मै और तुम

बिखेरे रंग
प्यार के संग-संग
मै और तुम

बिखेरे हँसी

दोस्तो के संग-संग
मै और तुम

बिखेरे गंध
फूलो के संग-संग
मै और तुम

बिखेरे सुर
कुहू के संग-संग
मै और तुम

बिखेरे शब्द
कलम के संग-संग
मै और तुम

मौलिक अप्रकाशित रचना
नयना(आरती कानिटकर
०१/०९/२०१३

Added by नयना(आरती)कानिटकर on September 1, 2013 at 2:17pm — 7 Comments

यह कैसा व्यापार (दोहे)

जादू  टोने टोटके,  फैले पाँव पसार,
श्याणे भौपे कर रहे,जिस्मों का व्यापार । 
 
झांड़-फूक के आड़ में, करते रहे शिकार,
धर्म जगत बदनाम हो,यह कैसा व्यापार । 
 
परम्परा के नाम पर, बढे अंध-विश्वास,
तत्व-बोध जाने बिना, क्यो कर रहे प्रयास । 
 
ड़ायन कहकर दागते, जीना करे हराम,
पागल कहकर साधते, तांत्रिक अपना काम । 
 
पाने की हो लालसा, बढ़ता जावे लोभ,
भाग्य…
Continue

Added by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 1, 2013 at 1:30pm — 24 Comments


मुख्य प्रबंधक
लघुकथा : त्रिया चरित्र (गणेश जी बागी)

ये साहब बहुत ही कड़क और अत्यंत नियमपसंद स्वाभाव के थे ।  कई दिन रेखा देवी की हाजिरी कट गई |  फटकार लगी सो अलग ।

उस दिन साहब के चैम्बर से तेज आवाज़ें आ रही थीं । रेखा देवी चीखे जा रही थीं, "ये साहब मेरी इज़्ज़त पर हाथ डाल रहा है.."

सब देख रहे थे, ब्लाउज फटा हुआ था । साहब भी भौचक थे । उनकी साहबगिरी और बोलती दोनो बंद थी |



साहब संयत हुए और बोले, "जाओ रेखा देवी.. जब आना हो कार्यालय आना और जब जाना हो जाना, आज से मैं तुम्हें कुछ नही कहनेवाला । वेतन भी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 1, 2013 at 10:00am — 50 Comments

गर्जत बरसत सावन आया

गर्जत बरसत सावन आया

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव, धमतरी

मेघों का दल आया है, सावन का संदेशा लाया है।  

जल भरकर ये काले जलधर, जल बरसाने आया है॥                   

मेघों का दल आया है ......

चांदी जैसी बिजली चमकी, उमड़-घुमड़ आये बादल।

लगता है आकाश छोड़कर, धरती पर छाए बादल॥

गर्मी हम से रूठ गई, बरसात ने नाता निभाया है  ।

मेघों का दल आया है ......

भँवरे फूल बगियां खुश हैं, माटी की सोंधी महक उठी।

पंछी सुर में…

Continue

Added by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 1, 2013 at 10:00am — 12 Comments

रास्ते

 

प्रश्न होते हैं ,उत्तर भी होते हैं रास्ते ,

पूर्व-पश्चिम और दक्षिण

सभी दिशाओं मे होते हैं रस्ते

कभी घोड़ों की टापों से कुचले जाते हैं

तो कभी फूलों से सजाये जाते हैं रास्ते

क्या जमीं कया समुंदर आशमां मे भी होते हैं रास्ते

तो क्या मंजिले नसीब नहीं होती सभी को,

पर होते हैं सभी के अपने –अपने रास्ते

कभी मंजिल तक पहुचाते हैं तो कभी खुद मंजिल बन जाते हैं रास्ते

उनकी कहां मंजिलें होती हैं

जो खुद बनाते हैं…

Continue

Added by hemant sharma on August 31, 2013 at 11:08pm — 8 Comments

एक सच्चा गलत आदमी

एक सच्चा गलत आदमी

सच का पैरोकार होता है

नारे लगाता है

हवा में मुट्ठियाँ भांजता है

भरोसा लपकता है

फिर उन्हे चबाता है

प्रगतिशील कहलाता है

एक सच्चा गलत आदमी

कभी पूरा झूठ नही बोलता

गलतियाँ नही दोहराता

कभी धन कभी ताकत

कभी भावनाओं के जोर पर

भोलेपन से खेलता है।

जब आत्मा धित्कारती है

बद्दुआएँ कोचती हैं

सुबह मन्दिर मे मत्था टेक आता है

चढावा चढाता है

फिर बैठ जाता है अनेक प्रेयसियों मे से

किसी एक…

Continue

Added by Gul Sarika Thakur on August 31, 2013 at 10:30pm — 13 Comments

गज़ल

२ १ २ २ १ १  २  २   २  २

जिंदगी   कैसी  कज़ा चाहती है

मर के जीने की दुआ चाहती है

.

बीत गया जो तुझे साथ मुबारक

मेरी दुनिया तो नया चाहती है

.

वो अगर चाहे हमें क्षमा कर दे,

अब मगर वो भी सज़ा चाहती है

.

छीन ली उस ने हमारी दुनिया,

छीन अब न सके खुदा चाहती है

.

वो छुपा लेती है अँधेरा खुद में

जिन से लौ उन का पता चाहती है

.

जो थी मंजल हमें दिखाने निकली ,

राह   में  भटकी  पता  चाहती है

मौलिक…

Continue

Added by मोहन बेगोवाल on August 31, 2013 at 10:30pm — 10 Comments

नई सीख

इस नगर में

मेरे कुछ सपने

हुए साकार

और कुछ

बिखरे किरचियाँ बन

पर

इन सपनों की

फ़ेहरिस्त थी लम्बी

इन्हें पूरा करने

जी जान से थी जुटी

कभी

भावुकता में बही

तो कभी

व्यावहारिकता ओढ़ी

कहीं

करना पड़ा संघर्ष

इसके

विद्रोही मोड़ों पर

लेकिन

इस नगर की

एक बात है ख़ास

मुस्कुराहटों में इसने

दिया मेरा साथ

पर एक बात

है इसकी…

Continue

Added by vijayashree on August 31, 2013 at 10:00pm — 12 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
हे धर्मराज!.............डॉ० प्राची

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,

इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,

फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष…

Continue

Added by Dr.Prachi Singh on August 31, 2013 at 8:30pm — 37 Comments

अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस-

टला फैसला दस दफा, लगी दफाएँ बीस |
अंध-न्याय की देवि ही, खड़ी निकाले खीस |


खड़ी निकाले खीस, रेप वह भी तो झेले |
न्याय मरे प्रत्यक्ष, कोर्ट के सहे झमेले |


नाबालिग को छूट, बढ़ाए विकट हौसला |
और बढ़ेंगे रेप, अगर यूँ टला फैसला ||

.

मौलिक / अप्रकाशित

Added by रविकर on August 31, 2013 at 6:30pm — 11 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"वाह बहुत खूबसूरत सृजन है सर जी हार्दिक बधाई"
yesterday
Samar kabeer commented on Samar kabeer's blog post "ओबीओ की 14वीं सालगिरह का तुहफ़ा"
"जनाब चेतन प्रकाश जी आदाब, आमीन ! आपकी सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत शुक्रिय: अदा करता हूँ,सलामत रहें ।"
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 166 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ पचपनवाँ आयोजन है.…See More
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"तकनीकी कारणों से साइट खुलने में व्यवधान को देखते हुए आयोजन अवधि आज दिनांक 15.04.24 को रात्रि 12 बजे…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, बहुत बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"आदरणीय समर कबीर जी हार्दिक धन्यवाद आपका। बहुत बहुत आभार।"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जय- पराजय ः गीतिका छंद जय पराजय कुछ नहीं बस, आँकड़ो का मेल है । आड़ ..लेकर ..दूसरों.. की़, जीतने…"
Sunday
Samar kabeer replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"जनाब मिथिलेश वामनकर जी आदाब, उम्द: रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना

याद कर इतना न दिल कमजोर करनाआऊंगा तब खूब जी भर बोर करना।मुख्तसर सी बात है लेकिन जरूरीकह दूं मैं, बस…See More
Apr 13

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"मन की तख्ती पर सदा, खींचो सत्य सुरेख। जय की होगी शृंखला  एक पराजय देख। - आयेंगे कुछ मौन…"
Apr 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-162
"स्वागतम"
Apr 13

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service