1 2 2 1 2 2 1 2 2 1 2 2
समन्दर की लहरों सी है जिन्दगानी
कभी बर्फ गोला कभी बहता पानी
उदासी के बूटे जड़े हैं सभी में
हो तेरी कहानी या मेरी कहानी
बुढ़ापे में होने लगी ताज़पोशी
किसी काम की अब नहीं है जवानी
ये मौजें भी अब मुतमइन सी हैं लगती
नहीं है वो जज्बा नहीं वो रवानी
नये ये नज़ारे बहुत दिलनशीं हैं
मगर मुझको भाती हैं चीज़ें पुरानी
अमित दुबे अंश मौलिक व अप्रकाशित
Added by अमित वागर्थ on September 30, 2013 at 2:00pm — 14 Comments
Added by Ravi Prakash on September 30, 2013 at 1:12pm — 18 Comments
**जवाँ दिल है,धड़कने दो |**
जवाँ दिल है, धडकनें भी,
ये धड़केंगी,
धड़कने दो |
नसों में लावा बहता है,
लहू बन के,
फड़कने दो ||
वतन के काम आएगा,
हर एक कतरा,
एक-एक बूँद ,
बंधी बेड़ी-जंज़ीरों को,
हौंसलों से,
तड़कने दो ||
उठो जागो कमर बाँधो,
विजय पथ पे,
अग्रसर हो |
खटकते हो गर दुश्मन की,
आँखों में,
खटकने दो…
ContinueAdded by Jitender Kumar Jeet on September 30, 2013 at 1:00pm — 9 Comments
बह्रे रमल मुसम्मन महज़ूफ़
================
2122/ 2122/ 2122/ 212
हैं परे सिद्धांत से, आचार की बातें करें;
भोथरे जिनके सिरे हैं, धार की बातें करें;।।1।।
मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?
पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें;।।2।।
उँगलियाँ थकने लगीं हैं, गिनतियाँ बढ़ने लगीं,
जब जहाँ मिल जाएँ, बस दो-चार की बातें करें;।।3।।
इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,
लाश के…
Added by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on September 30, 2013 at 12:30pm — 11 Comments
Added by Poonam Shukla on September 30, 2013 at 11:01am — No Comments
देना युवकों को सभी ,देश की अब कमान
ये हैं भविष्य देश का, इनसे ही है शान
इनसे ही है शान, जानलो इनको प्रहरी
करते नव निर्माण बात यह समझो गहरी
उज्जवल हो भविष्य, सभी से सम्मति लेना
करके मार्ग प्रशस्त ,साथ है इनका देना //
............मौलिक व अप्रकाशित............
Added by Sarita Bhatia on September 30, 2013 at 9:00am — 7 Comments
मैं कैसे बताऊँ बिटिया
हमारे ज़माने में माँ कैसी होती थी
तब अब्बू किसी तानाशाह के ओहदे पर बैठते थे
तब अब्बू के नाम से कांपते थे बच्चे
और माएं बारहा अब्बू की मार-डांट से हमें बचाती थीं
हमारी छोटी-मोटी गलतियां अब्बू से छिपा लेती थीं
हमारे बचपन की सबसे सुरक्षित दोस्त हुआ करती थीं माँ
हमारी राजदार हुआ करती थीं वो
इधर-उधर से बचाकर रखती थीं पैसे
और गुपचुप देती थी पैसे सिनेमा, सर्कस के लिए
अब्बू से हम सीधे कोई…
ContinueAdded by anwar suhail on September 29, 2013 at 9:30pm — 5 Comments
थाल किरणों का सजाकर
भोर देखो आ गयी
रात भी थक-हारकर
फिर जा क्षितिज पर सो गयी
चाँद का झूमर सजा
रात की अंगनाई में
और तारे झूमते थे
नभ की अमराई में
चाँदनी के नृत्य से
मदहोशियाँ सी छा गयी
तब हवा की थपकियों से
नींद सबको आ गयी
सूर्य के फिर आगमन की
जब मिली आहट ज़रा
जगमगाया आकाश सारा
खिल उठी ये धरा
छू लिया जो सूर्य ने
कुछ यूँ दिशा शरमा गयी
सुर्ख उसके गाल…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 29, 2013 at 6:30pm — 30 Comments
(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मगरूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मजबूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही खुशियों का इक साधन मेरी खातिर
तुम्हारा प्रेम ही खुशियों से कोसो दूर करता है,
तुम्हारा प्रेम ही हिम्मत मुझे मुश्किल घड़ी में दे,
तुम्हारा प्रेम ही तो हौंसला भी चूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही मरहम बने जख्मों…
Added by अरुन 'अनन्त' on September 29, 2013 at 3:18pm — 28 Comments
आरजू है माँ कि फिर लौट आऊँ तेरे आँचल की छाँव में !
उन बचपन की गलियों में , उस बचपन के गाँव में !
वो तेरी ममता के साए , वो रातो की लौरी !
वो गय्यियो का माखन , वो दूध की कटोरी !
वो बचपन के संगी साथी , वो गाँव के गलियारे !
लगते थे मुझको स्वर्ग से भी प्यारे !
वो राजा रानी के किस्से , परियो की कहानी !
याद है मुझको आज भी जबानी !
अमृत सा रस लिए वो तेरे हाथो का निवाला !
वो गर्मी का मौसम , वो सर्दी का पाला !
अपने सीने से…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 3:00pm — 5 Comments
जाते-जाते वो मुझे लाकर की चाबी दे गया।
माल तो सब ले गया लाकर वो खाली दे गया।
मैं कभी तहजीब से बाहर निकल पाया नही ,
एक अदना आदमी फिर मुझको गाली दे गया।
उसने मेरी सादगी का यूँ उठाया फायदा ,
छीनकर दिन का उजाला रात काली दे गया।
जब भुनाने मैं गया उस रोज सेंट्रल बैंक में ,
तब पता मुझको चला कि चेक वो जाली दे गया।
रोटियाँ जो बांटने आया था भूखों को वही ,
खा गया खुद रोटियाँ आधी औ आधी दे गया।
अच्छे -अच्छे पारखी…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on September 29, 2013 at 10:00am — 10 Comments
आँख मिचौली खेलता, मुझसे मेरा मीत
अंतरमन के तार पर, गाए मद्धम गीत
जैसे सूरज में किरण, चन्दन बसे सुगंध
प्रियतम से है प्रीत का, मधुरिम वह सम्बन्ध
क्यों अदृश्य में खोजता, मनस सत्य के पाँव
सहज दृश्य में व्याप्त जब, उसकी निश्छल छाँव
संवेदन हर गुह्यतम, सहज चित्त को ज्ञप्त
आप्त प्रज्ञ सम्बुद्ध वो, ज्ञानांजन संतृप्त
प्रीत प्रखरता जाँचती, नित्य नियति की चाल
मोहन लोभन…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on September 29, 2013 at 1:30am — 28 Comments
उठती टीस हृदयतल से
क्यूँ ये बेरंगी लगती है
घाव अनंत देती कभी तो
उमंगों से जीवन भरती है....
कभी लगती रति कामदेव की
तो लगती कभी मधुशाला है
तिनका तिनका करके बनती
सुखद घरोंदा कभी लगती है....
लगती कभी नववधू जैसी
आलिंगन प्रेम का करती है
कभी नाचती गोपियों जैसी
मुरली मधुर जब सुनती है .....
फिर भी ये ज़िन्दगी है
जीने का दम भरती है
शुन्य से शुरू होती…
ContinueAdded by Aarti Sharma on September 28, 2013 at 9:30pm — 12 Comments
एक धमाका
फिर कई धमाके
भय और भगदड़....
इंसानी जिस्मों के बिखरे चीथड़े
टीवी चैनलों के ओबी वैन
संवाददाता, कैमरे, लाइव अपडेट्स
मंत्रियों के बयान
कायराना हरकत की निंदा
मृतकों और घायलों के लिए अनुदान की घोषणाएं
इस बीच किसी आतंकवादी संगठन द्वारा
धमाके में लिप्त होने की स्वीकारोक्ति
पाक के नापाक साजिशों का ब्यौरा
सीसीटीवी कैमरे की जांच
मीडिया में हल्ला, हंगामा, बहसें
गृहमंत्री, प्रधानमन्त्री से स्तीफे…
Added by anwar suhail on September 28, 2013 at 8:00pm — 6 Comments
(1)
हे अबलाबल भगवती, त्रसित नारि-संसार।
सृजन संग संहार बल, देकर कर उपकार।
देकर कर उपकार, निरंकुश दुष्ट हो रहे ।
करते अत्याचार, नोच लें श्वान बौरहे।
समझ भोग की वस्तु, लूट लें घर चौराहे ।
प्रभु दे मारक शक्ति, नारि क्यूँ सदा कराहे ॥
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(2)
प्रणव नाद सा मुखर जी, पाता है सम्मान |
मौन मृत्यु सा बेवजह, ले पल्ले अपमान |
ले पल्ले अपमान , व्यर्थ मुट्ठियाँ भींचता…
ContinueAdded by रविकर on September 28, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
जाने कितने बसंत
शीत,पतझड़, सावन
आये गये
तपती,भीगती,ठिठुरती
मुरझाती पर फिर भी
चलती रही अनवरत
हाँफती,दौड़ती,पसीजती
डोर अपनी साँसों की पकड़े
कोलाहल अंतर का समेटे
मूक, निःशब्द बस्
अपने काफिले के साथ
बढ़ती ही गई
जीवन के पथ पर !!
अपनी साँसें संयत करने को
रुकी इक पल को
पीछे मुड़ कर देखा जो
छोड़ गये थे सभी मुझको
मेरे पीछे था अब सुनसान
आगे वियावान
नीचे तपती रेत
ऊपर सुलगता आसमान…
Added by Meena Pathak on September 28, 2013 at 4:08pm — 14 Comments
चाल चला जब हंस की, बगुला बहुत सयान
बगुला खाया मात तब, खोया अपना मान
खोया अपना मान, इस्तीफे की है मांग
बात बड़ेन की मान, है टूटी छोटी टांग
कह सागर कविराय, नेता इनका है बाल
इन्हीं को अब पड़ी, है उलटी इनकी चाल
आशीष ( सागर सुमन )
मौलिम एवं अप्रकाशित
Added by Ashish Srivastava on September 27, 2013 at 11:00pm — 10 Comments
हौंसला चाहिए जहाँ में मोहब्बत पाने के लिए !
मोहब्बत जताने के लिए , मोहब्बत निभाने के लिए !
रुश्वायियाँ मिला नही करती खैरात में !
इज्ज़त से भी खेलना पड़ता है , इन्हें पाने के लिए !
बहुत मशहूर है शराबी अपने हाल पर !
हस्ती भी मिट जाती है , ये शोहरत पाने के लिए !
दिल का हाल कभी उस बाजारू नारी से पूछो !
मजबूर होती है जो बाज़ार में बिक जाने के लिए !
बस्ती मिटाने वालो पलभर को तो जरा सोच लो !
जवानी बुढापे में बदल जाती है एक आशियाँ बनाने…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 27, 2013 at 10:13pm — 6 Comments
समय समय की बात है ,देखो बदली रीत !
मौन कोकिला हो गयी ,कौवे गाते गीत !!१
दुबका दुबका सच दिखे ,सहमा सहमा धर्म !
जबसे लोगों के हुए ,उल्टे गंदे कर्म !!२
मेरे प्यारे गाँव की ,बदल गयी तसवीर !
वही नदी है ,नाव है, किन्तु न दिखता नीर !!३
देखो फिर से हो गया ,मुख प्राची का लाल !
किरणों ने कुछ यूँ मला ,उसके गाल गुलाल !!४
तन पर कपड़ों की कमी ,हाड़ कपाती शीत !
बना गरीबों के लिए ,यही दर्द का गीत !!५
लालच कटुता…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:38pm — 26 Comments
कहकशाँ में उठ रही लहरों की बातें क्या करें
इस गुबारे-गर्द में सहरों की बातें क्या करें
हर कोई पहने मुखौटे फिर रहा है जब यहाँ
फिर बताओ हम भला चेहरों की बातें क्या करें
इस कदर मसरूफ हैं पाने को नाम औ शोहरतें
वक़्त इक पल का नहीं पहरों की बातें क्या करें
तुक मिलाने को समझ बैठा जो शाइर शाईरी
नासमझ से वजन औ बहरों की बातें क्या करें
नफरतें हैं वहशतें हैं दहशतें हैं राह में
हर घडी है गमजदा कहरों की…
ContinueAdded by SANDEEP KUMAR PATEL on September 27, 2013 at 4:30pm — 28 Comments
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