For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : तुम्हारा प्रेम ही - अरुन शर्मा 'अनन्त'

(बह्र: हज़ज़ मुसम्मन सालिम )
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन

तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मगरूर करता है
तुम्हारा प्रेम ही अक्सर मुझे मजबूर करता है

तुम्हारा प्रेम ही खुशियों का इक साधन मेरी खातिर
तुम्हारा प्रेम ही खुशियों से कोसो दूर करता है,

तुम्हारा प्रेम ही हिम्मत मुझे मुश्किल घड़ी में दे,
तुम्हारा प्रेम ही तो हौंसला भी चूर करता है

तुम्हारा प्रेम ही मरहम बने जख्मों पे लग जाए ,
तुम्हारा प्रेम ही तो घाव को नासूर करता है

तुम्हारा प्रेम ही अस्तित्व मिटाने को सदा आतुर,
तुम्हारा प्रेम ही रक्षा मेरी भरपूर करता है... 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 738

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 12:47am

क्या कमाल है !! बधाई भाई...

शुभ-शुभ

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 10:50pm

वाह वा भाई

जिंदाबाद जिंदाबाद
क्या मुरस्सा ग़ज़ल हुई है ...

इस अभिनव प्रयोग की सफलता पर आपको शत शत बधाई

एक एक शेर पर ढेरो दाद ,,,,,

अस्तित्व = २२१ होता है

ज़रा इस मिसरे को फिर से देखिएगा

Comment by Neeraj Neer on October 1, 2013 at 9:10am

बहुर ही सुन्दर रचना आदरणीय अरुण जी .. बधाई 

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 6:59am

बहुत सुन्दर प्रस्तुति! आपको हार्दिक बधाई!

लेकिन आपके कद के हिसाब से ये रचना कमतर है!

सादर!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 30, 2013 at 10:42pm

प्रेम के विरोधाभास का लाजावाब प्रदर्शन । संयोग वियोग श्रृंगारित रचना पर बधाई बधाई.................

Comment by मोहन बेगोवाल on September 30, 2013 at 9:47pm

 प्रिय अरुण जी,

बहुत ही प्यारी मुसलसल गजल पढने को मिली  सभी शेर बहुत उम्दा  ये बहुत ही प्यारा लगा 

तुम्हारा प्रेम ही मरहम बने जख्मों पे लग जाए ,
तुम्हारा प्रेम ही तो घाव को नासूर करता है - बधाई हो 

Comment by MAHIMA SHREE on September 30, 2013 at 9:28pm

तुम्हारा प्रेम ही अस्तित्व मिटाने को सदा आतुर,
तुम्हारा प्रेम ही रक्षा मेरी भरपूर करता है... .......        क्या बात है बहुत ही सुंदर .... बधाई आदरणीय अरुण जी

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 8:24pm

वाह आदरणीय  भाई अरुण शर्मा  जी ,बहुत सुन्दर ग़ज़ल हुई है /

बहुत बहुत बधाई आपको //सादर

Comment by shalini rastogi on September 30, 2013 at 6:40pm

प्रेम के रंग में सराबोर सुन्दर ग़ज़ल ... प्रेम को पूर्णतया परिभाषित करती हुई .. हर अशआर प्रेम की नई संभावनाओं और सीमाओं को तलाशता हुआ .. वाह! दिली मुबारकबाद कुबूल करें !

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 6:09pm
प्यार पर प्यार से लिखी प्यारी गज़ल , निश्चित रूप से अंतिम पंक्ति श्रेष्ठ भाव लिए हुए है , सचमुच ईश्वर का विस्तार ऐसा ही है - प्रभव से पराभव तक . बधाई अरुनजी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
3 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
12 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service