टेरत टेरत जुग भया, सुधि नहि लीन्ही मोहि
Added by Ashish Srivastava on September 27, 2013 at 1:22pm — 9 Comments
सपने !!!!!!!
सुहाने से
सँजोये थे जो मन के
भीतर आवरणो की परतों मे
सँजोया और सींचा था
नव पल्लव देख
मन झूम उठा था
खुशी के अंकुर भी
फूट पड़े थे
उड़ान की आकांक्षा मे
पंखों को कुछ फड़फड़ा कर
ज्यों हुआ उड़ने को आतुर !!!!
आह !!
पंख कतर दिये किसने ?
धराशायी हुआ
स्वर भी बाधित हुआ
जख्म लगे
अभिलाषी मन
परित्यक्त सा
कुलबुला उठा
अश्रुओं ने साथ छोड़ा
धैर्य ने भी…
ContinueAdded by annapurna bajpai on September 27, 2013 at 12:30pm — 26 Comments
**जल से हम कल बनायेंगे**
मदमस्त पवन, घनघोर घटा,
छाई बदली, सूरज को हटा ।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,
तपती धरा पे कतरा-कतरा ।
सौंधी-सौंधी महक लिए,
मिट्टी जल संग बहने लगी,
नाले से बनकर नदी जल वो,
मन ही मन बूँद कहने लगी ।
सागर से उठी बादल मैं बनी,
संग पवन के मैं इठला के उड़ी ,
प्यासी धरती की तपन को देख,
बेबस ही बस मैं बरस पड़ी ।
अब बहती हूँ धारा बनकर,
नदियों में कल-कल-कल-कल कर,
निर्झर…
Added by Jitender Kumar Jeet on September 27, 2013 at 11:30am — 15 Comments
1.
भ्रष्ट नेता रे,
लालची मतदाता,
लोकतंत्र है ?
2.
पढ़े लिखे हो ?
डाले हो कभी वोट ?
क्यो देते दोष ??
3.
देख लो भाई,
कौन नेता चिटर ?
तुम वोटर ।
4.
तुम हो कौन ?
सरकार है कौन ?
जनता मौन ।
5.
क्या मानते हो ?
ये देश तुम्हारा है ।
मौन क्यों भाई ??
.
...........‘‘रमेश‘‘............
मोलिक अप्रकाशित
Added by रमेश कुमार चौहान on September 27, 2013 at 11:00am — 11 Comments
सत्कर्मों से जो सदा ,खेता है पतवार ,
समझो वो नर हो गया ,भवसागर से पार !!१
राम नाम ही सत्य है ,कहते वेद पुराण!
रमा राम के नाम जो ,उसका ही कल्याण !!२
ज्ञान चक्षु को खोलकर ,ऐसा दीपक बार !
जिससे घटता दंभ तम ,छटते मलिन विचार !!३
श्रद्धानत हो पूजते ,मन में दृढ़ विश्वास !
ऐसे नर के हिय सदा ,शिव शम्भू का वास !!४
सब धर्मों का सार यह ,सुनिये मेरी बात!
फल भी वैसा ही मिले ,जैसी करनी तात !!५
सहज नहीं…
ContinueAdded by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 10:30am — 28 Comments
2 1 2 2 1 2 1 2 2 2
सिर्फ कानों सुना नहीं जाता
लब से सब कुछ कहा नहीं जाता
दर्द कि इन्तहां हुई यारों
मुझसे अब यूँ सहा नहीं जाता
देश का हाल जो हुआ है अब
चुप तो मुझसे रहा नहीं जाता
चुन के मारो सभी दरिन्दों को
माफ इनको किया नहीं जाता
वो खता बार- बार करता है
फिर सज़ा क्यूँ दिया नहीं जाता
है भला क्या तेरी परेशानी
बावफ़ा जो हुआ नहीं जाता
कैसे वादा निभाऊ जीने का
तेरे बिन अब…
Added by sanju shabdita on September 27, 2013 at 9:30am — 18 Comments
गली,कटी, तपकर खिली, माटी की संतान
माटी से मोती बने, माटी से इंसान
माटी से मूरत बने, मूरत में भगवान
माटी की भक्ति करे, तर जाये इंसान
माटी से उपजें सभी, माटी में ही अंत
माटी का घर छोड़ के, जाये सभी अनंत
मौलिक व अप्रकाशित
Added by hemant sharma on September 27, 2013 at 12:00am — 11 Comments
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
=================================
सीधी सादी नेक बड़ी हूँ दिल की रानी
भारत माँ की बड़ी दुलारी हिंदी रानी
मै महलो हूँ गाँव बसी हूँ जंगल में भी
आदि काल से जन-जन में हूँ आदिवासी…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 26, 2013 at 11:30pm — 12 Comments
नख-दंत के संसार में गुम
ढूंढता निज मर्म हूँ मैं
ये रूचिर
रूपक तुम्हारे
गुंबजों की
पीढि़यां
दंगों के
फूलों से चटकी
कुछ आरती,
कुछ सीढि़यां
थुथकार की सीली धरा पर
सूखता गुण-धर्म हूँ मैं
रंगों की
थोड़ी समझ है
कृष्ण तक तो
श्वेत था
आह्लाद के
परिपाक में भी
एकसर
समवेत था
युगबोध पर कहता मुझे है
कि नहीं यति-धर्म हूँ…
ContinueAdded by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 1:29pm — 24 Comments
मोहि दुखियारी आँख को,सुक्ख मिलत है नाहि
Added by Ashish Srivastava on September 26, 2013 at 12:00pm — 9 Comments
जन्मा-अजन्मा के भेद से परे
एक सत्य- माँ!
तुम ही तो हो
जिसने गढ़ी
ये देह, भाव, विचार,
शब्द!
रूप-अरूप-कुरूप में
झूलती देह
गल ही जाएगी
भाव, विचार
थिर ही जायेंगे
अभिव्यक्ति को तरसते
स्वप्न-चित्र
तिरोहित हो जायेंगे
फिर भी चाहना के
उथले-छिछले जल में
डूबते-उतराते
बहक ही जाते हैं
उस राह पर
जिसके दोनों तरफ हैं…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 9:00pm — 26 Comments
ठीक जगह पर देख भाल के बैठा हूँ।
मैं अपनी कुर्सी संभाल के बैठा हूँ।
तीसमारखाँ बहुत बना फिरता था वो ,
मैं उसकी पगड़ी उछाल के बैठा हूँ।
दुष्मन से बदला लेने की खातिर मैं
आस्तीन में साँप पाल के बैठा हूँ।
संसद की गरिमा से क्या लेना-देना ,
संसद में जूता निकाल के बैठा हूँ।
कौन समस्यायें जनता की रोज सुने ,
अपने कान में रूर्इ डाल के बैठा हूँ।
ऐरा गैरा नत्थू खैरा मत समझो ,
सारी दुनिया मैं खंगाल के बैठा हूँ।
मौलिक अप्राकिषत एवं…
ContinueAdded by Ram Awadh VIshwakarma on September 25, 2013 at 8:41pm — 12 Comments
ग़ज़ल
....
मयकशी मयकशी नहीं लगती !
रौशनी रौशनी नहीं लगती !!
.....
अब इबादत में दिल नहीं लगता !
बन्दगी बन्दगी नहीं लगती !!
......
हर तरफ भीड़ और मैं तनहा!
बेबसी बेबसी नहीं लगती !!
...
दिल में रखते हैं वोह तो दिल कितने !
आशिकी आशिकी नहीं लगती !!
...
गुफ़्तगू आप से करें कैसे !
आपको तो कमी नहीं लगती
....
हैं खफा वोह अगर खफा हम है !
दोसती दोसती नहीं लगती !!
....
चाँद तारों के साथ चलता हूँ !…
Added by राज लाली बटाला on September 25, 2013 at 8:30pm — 26 Comments
ये क्या हो रहा है
ये क्यों हो रहा है
नकली चीज़ें बिक रही हैं
नकली लोग पूजे जा रहे हैं...
नकली सवाल खड़े हो रहे हैं
नकली जवाब तलाशे जा रहे हैं
नकली समस्याएं जगह पा रही हैं
नकली आन्दोलन हो रहे हैं
अरे कोई तो आओ...
आओ आगे बढ़कर
मेरे यार को समझाओ
उसे आवाज़ देकर बुलाओ...
वो मायूस है
इस क्रूर समय में
वो गमज़दा है निर्मम संसार में...
कोई नही आता भाई..
तो मेरी आवाज़ ही सुन लो
लौट आओ
यहाँ दुःख बाटने की परंपरा…
Added by anwar suhail on September 25, 2013 at 7:30pm — 7 Comments
निगाहें फेर लो , कि पल भर सुकून मेरे तडपते दिल को मिले !
तेरी नजरों की तपिस मुझसे सही नही जाती !
मेरी बेवफाई को हो रहा है शोर जमाने में , की तू भी मुझे बेवफा कहे !
बात सच है मगर लबों पर तेरे नहीं आती !
होकर बेसुध सोये थे कभी तेरे बांहों के घेरो में, अब ना तु बांहे फैला !
ये सच है की गुजरी घडी कभी लौटकर नही आती !
सुना है कि गमजदा है तु बीते पलो की ख्वाईस में, कि अब उनको भुला दे !
मुझे तो पल भर के लिए भी याद तेरी…
ContinueAdded by डॉ. अनुराग सैनी on September 25, 2013 at 6:30pm — 4 Comments
माँ के आंचल में मिले ,ममता की ही छाँव
शुभाशीष पाओ मधुर, नित्य दबाकर पाँव
नित्य दबाकर पाँव , आशीर्वाद तुम लेना
माँ से बड़ा न स्वर्ग ,उसे दुख कभी न देना
मिट जाते दुख-दर्द , पास में माँ के जा के
ममता के ही फूल ,मिलें आंचल में माँ के
............मौलिक व अप्रकाशित ...........
Added by Sarita Bhatia on September 25, 2013 at 5:30pm — 6 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2
"रमल मुसम्मन महजूफ"
.
जिंदगी तू ही बता दे जुस्तजू क्या है
इक निवाले के सिवा अब आर्ज़ू क्या है
ख़ास जोरोजर समझते हैं जहाँ …
ContinueAdded by rajesh kumari on September 25, 2013 at 2:30pm — 37 Comments
मैं क्या हूँ
बहुत सोचा
पर सुलझी न गुत्थी
शब्द से पूछा तो वह बोला,
‘मैं ध्वनि हूँ अदृश्य
रूप लेता हूँ
जब उकेरा जाता है
धरातल पर’
पेड़ से पूछा तो बोला
‘मैं हूँ बीज का विस्तार’
‘और बीज क्या है?’
‘वह है मेरा छोटा अंश’
अजब रहस्य
विस्तार का अंश
अंश का विस्तार
खुलती नहीं रहस्य की पर्तें
एक सतत क्रम-
सूक्ष्म के विस्तार
विस्तार के सूक्ष्म होने…
ContinueAdded by बृजेश नीरज on September 25, 2013 at 11:00am — 42 Comments
देते है आशीष वे, सर पर रखते हाथ
मन में श्रद्धा भाव हो, तभी श्राद्ध यथार्थ |
तभी श्राद्ध यथार्थ, सभी है उनकी माया
समझों वे है साथ, मिले उनकी ही छाया
मिले सभी संस्कार संज्ञान में जो लेते
माने हम उपकार, पूर्वज ख़ुशी ही देते |
…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 10:30am — 17 Comments
कुण्डलियाँ
सियासती सुपनखा से, सिया-सती अनभिज्ञ |
अब क्या आशा राम से, हो रहे स्खलित विज्ञ |
हो रहे स्खलित विज्ञ, बने खरदूषण साले |
घालमेल का खेल, बुराई कुल अपना ले |
नित आगे की होड़, रखेंगे बढ़ा ताजिया |
सिया सती की लाज, बचा ले पकड़ हाँसिया ||
मौलिक / अप्रकाशित
Added by रविकर on September 25, 2013 at 8:58am — 12 Comments
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