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जन्मा-अजन्मा के भेद से परे

एक सत्य- माँ!

 

तुम ही तो हो

जिसने गढ़ी

ये देह, भाव, विचार,

शब्द!

 

रूप-अरूप-कुरूप में

झूलती देह

गल ही जाएगी

 

भाव, विचार

थिर ही जायेंगे

 

अभिव्यक्ति को तरसते

स्वप्न-चित्र

तिरोहित हो जायेंगे

 

फिर भी चाहना के

उथले-छिछले जल में

डूबते-उतराते

बहक ही जाते हैं  

उस राह पर

जिसके दोनों तरफ हैं ठूंठ

बरसात और धूप में

मुँह बिराते

 

यह राह खो जाती है

दूर क्षितिज में

जहाँ से रोज़

उगता और अस्त होता है

सूर्य

 

इस राह से परे

पगडंडियों के छोर पर

मंदिर की घंटियाँ

निशब्द हैं

 

माँ! शब्द दो!

अर्थ दो!

          - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 7:59pm

आदरणीय सौरभ जी आपका हार्दिक आभार! मेरा प्रयास आपको सार्थक लगा, इस बात ने मुझे ऊर्जा दी है!

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 7:51pm

आदरणीया महिमा जी आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2013 at 7:48pm

भौतिक आधार की आवश्यकता भले समाप्त हो जाये, एक व्यक्ति को वैचारिक आधार की आजीवन आवश्यकता बनी रहती है. वह विचार-प्रदाता इकाई चाहे कोई हो, जबतक माँ की संप्रभूता को अंगीकार कर स्वीकार्य न हो जाय और संतुष्ट न कर दे, देर तक साथ बनी नहीं रह सकती.  भ्रम और उलझाव में जीते मनुष्य की भावदशा और सोच को जीती यह कविता अचानक संयत हो जाती है जब आत्मविश्वास की कौंध के साथ जीवन के अर्थ को पाने को आग्रही हो जाती है.
अत्यंत सशक्त और सार्थक बिम्बों से कविता ने बहुत कहा है. इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं.


बहुत-बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएँ

Comment by MAHIMA SHREE on September 28, 2013 at 11:11pm

बेहद ह्रदयस्पर्शी प्रस्तुती आदरणीय ब्रिजेश जी बधाई स्वीकार करें

Comment by बृजेश नीरज on September 28, 2013 at 8:05pm

आदरणीय विजय जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by विजय मिश्र on September 28, 2013 at 12:39pm
बृजेशजी ,भाव मर्म को स्पर्श करते हैं . याचना सर्वसम्मत है और प्रेरित करता है इन्हीं शब्दों संग स्वेम को भी प्रस्तुत करने के लिए . सार्थक और सुन्दर . अंतस शुभकामनाएँ.
Comment by बृजेश नीरज on September 27, 2013 at 8:17pm

आदरणीय राम भाई, आपका हार्दिक आभार! रचना आपको पसंद आई, ये मेरे लिए पुरुस्कार समान है!

Comment by बृजेश नीरज on September 27, 2013 at 8:16pm

आदरणीय बैद्य नाथ जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 27, 2013 at 8:06pm

आदरणीय अरुण भाई जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 27, 2013 at 8:05pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

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