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माँ [कुण्डलियाँ]

माँ के आंचल में मिले ,ममता की ही छाँव 

शुभाशीष पाओ मधुर, नित्य दबाकर पाँव 

नित्य दबाकर पाँव , आशीर्वाद तुम लेना

माँ से बड़ा न स्वर्ग ,उसे दुख कभी न देना 

मिट जाते दुख-दर्द , पास में माँ के जा के

ममता के ही फूल ,मिलें आंचल में माँ के 

............मौलिक व अप्रकाशित ...........

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 4:45pm

आदरणीया सरिता जी सुंदर कुण्डलिया//बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 27, 2013 at 11:48am

बहुत सुन्दर प्रयास किया है प्रिय सरिता जी प्राची जी  की सुझाई निम्नलिखित त्रुटी को सुधार लेंगी तो कुण्डलिया निखर उठेगी आपको बहुत बहुत बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 9:48pm

छंदबद्ध रचनाओं पर आपके सतत प्रयास आकर्षित करते हैं ...

नित्य दबाकर पाँव , नित्य ही आशिष लेना... इस एक पंक्ति पर गौर कीजिये  दो बार नित्य का आना लालित्य को कम कर रहा है साथ ही आशीष को आशिष लिखा जाना वर्तनी दोष है 

सादर शुभकामनाएं 

Comment by रविकर on September 26, 2013 at 5:29pm

उत्कृष्टता की ओर बढ़ते कदम-


शुभकामनायें आदरेया-

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 26, 2013 at 3:42pm

सुन्दर संदेशात्मक संतातन कुंडलिया छंद रचना के लिये हार्दिक बधाई सरिता भाटिया जी | सादर 

Comment by annapurna bajpai on September 26, 2013 at 1:30pm

आदरणीया सरिता जी सुंदर कुण्डलिया हेतु बधाई स्वीकारें । 

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