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दोहा -५ प्रेम पीयूष

सुन्दर प्रिय मुख देखकर, खुले लाज के फंद।
नयनों से पीने लगा, भ्रमर भाँति मकरन्द !!१

प्रेम जलधि में डूबता ,खोजे मिले न राह !
विकल हुआ बेसुध हृदय, अंतस कहता आह!!२

प्रेम भरे दो बोल मधु,स्वर कितने अनमोल !
कानों में सबके सदा ,मिश्री देते घोल !!३

रवि के जाते ही यहाँ ,हुई मनोहर रात !
चाँद निखरकर आ गया,मुझसे करने बात !!४

अधर पंखुड़ी से लगें ,गाल कमल के फूल !!
ऐसी प्रिय छवि देखकर, गया स्वयं को भूल॥५

मुझसे कहने आ गयी ,अपने दिल की बात !
लिए चाँदनी साथ में ,तारों की बारात !!६

उनके आते ही यहाँ,उड़ने लगी सुगंध !
धीरे धीरे टूटते, मर्यादा के बन्ध।!७

व्यथित ह्रदय अब ढूंढता,वही पत्र दो चार !
जिसमे तुमने था लिखा,तुमको मुझसे प्यार !!८

साँसों में मधु रागिनी, अधरों पर शुभ गीत।
मधुर कंठ की स्वामिनी, बना रही मन मीत॥९

************************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by ram shiromani pathak on October 4, 2013 at 2:52pm

उत्साह वर्धन हेतु  बहुत बहुत आभार आदरणीय भाई विन्ध्येश्वरी जी  ///सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 4, 2013 at 2:51pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय निकोर जी ///सादर 

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on October 2, 2013 at 6:35pm
आज बहुत दिनों बाद प्रिय! ओ. बी. ओ. को समय दे पा रहा हूँ। इधर पखवारों से महाविद्यालय पर NAAC के मूल्याङ्कन की तैयारी चल रह थी, जिसमें कुछेक उत्तरदायित्व मिला था। फलत: समयभाव के कारण इधर नहीं आ सका। सम्पूर्ण ओ बी ओ परिवार से क्षमा प्रार्थी हूँ।

भाई रामशिरोमणि जी! सबसे पहले आपको इतना बड़े होने की बधाई (हा हा हा हा, थोड़ी ठिठोली कर रहा हूँ बड़े आप पहले से थे)। क्योंकि मैं उस रामशिरोमणि से आज के रामशिरोमणि को काफी परिपक्व हुआ देख रहा हूँ।
आपने अत्यंत कमनीय ढंग से शृंगार रस का परिपाक किया है। कुछेक स्थानों पर रस की संयोगता अधिक ही प्रभावी है। आदरणीय श्री सौरभ जी की सम्पुष्ट शैली की समीक्षा को नमन करते हुए उनका अनुमोदन करता हूँ।
सादर
Comment by vijay nikore on October 2, 2013 at 5:24am

बहुत सुन्दर मनमोहक दोहे। बधाई, आदरणीय राम जी।

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 8:34pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी //सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 1, 2013 at 8:21pm

वाह वाह वाह शानदार श्रंगारिक  दोहे मजा आ गया पढ़ के अतिसुन्दर बहुत बहुत बधाई प्रिय राम पाठक जी. 

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 5:27pm

 बहुत बहुत  आभार आदरणीय रविकर जी  //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 5:26pm

अपना अनुमोदन मिला आदरणीया प्राची जी ,मेरा लिखना सफल हुआ बहुत बहुत  आभार //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 5:24pm

उत्साह वर्धन हेतु  बहुत बहुत  आभार आदरणीय भाई अरुण शर्मा  जी //सादर 

Comment by ram shiromani pathak on October 1, 2013 at 5:24pm

हार्दिक आभार आदरणीय भाई संदीप जी //सादर 

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