For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

माँ ममता की लाली घर आँगन छा जाए

जब प्राची की गोद बाल दिनकर आ जाए ।

कलरव कर कर पंछी अपना सखा बुलाएं

चलो दिवाकर खुले गगन क्रीड़ा हो जाए ॥

 

सब जग में सुन्दरतम तस्वीर यही मन भाती

गोद हों शिशु अठखेलियाँ मैया हो दुलराती |

लगे ईश सी चमक मुझे उन नयनों से आती

तभी यक़ीनन नित प्रातः प्राची पूजी जाती ||

 

शीत काल है जब जब कठिन परीक्षा आई

खेल हुआ है कम तब तब रवि करे पढाई ।

और, स्वतंत्र हो खूब सूर्य तब चमक दिखाए

विद्यालय हो बंद, ग्रीष्म जब छुट्टी आये ॥

 

छोड़ो यह खिलवाड़, है आता यौवन जब रे

पश्चिम की प्रमदा सूर्य पर डारे डोरे ।

चुम्बन से अंग अंग उसका जब भानु सजाए 

लाज लालिमा चुनर ओढ़ पश्चिम शर्माए ॥

 

प्रणय मिलन में तन जब दोनों का है अकड़े

निज बाहों में खींच प्रभाकर पश्चिम जकड़े ।

अपने कारे केश फेर अंबर पर देती  

करती जग अंधियार डुबो खुद में रवि लेती || 

 

जब यौवन का ज्वार उतर शीतल हो जाता

रवि को आती याद है उसकी प्राची माता ।

कहता "सुन हे प्रिये, मात के पास रहेंगे

पूर्ण जगत की भांति नमन नित उन्हें करेंगे” ॥

 

लेकिन, पश्चिम चिढ़ी सासु संग नहीं रहूंगी

सब प्राची को मान, वेदना नहीं सहूँगी ।

पूर्व पड़ोसन दक्षिण उससे सदा जली है

मिले न प्राची पश्चिम, द्वय के बीच खड़ी है ॥

 

इस पर देखो बही है शीतल सी पुरवाई

बहू को अनुभव कथा, पूर्वा ने कहलाई ।

“तुम पश्चिम हो मुझे तुम्हे कोई पूर्व कहेगा

अचर नहीं कुछ जगत, चक्र में सब बदलेगा” ॥

 

यौवन का पर जोश वधू में भरा हुआ है

बोली भानुप्रिया, बही तब गर्म हवा है ।

“छोड़ो तुम आध्यात्म, पश्चिमी स्वार्थ सुनो

जब झुकनी है कमर, मान में कुछ तो झुको” ॥

 

निशिदिन यह आदित्य, चक्र नियमित दुहराता

घर घर में चल रही पुरातन है यह गाथा ।

मिलन को न तैयार हैं प्राची पश्चिम अकड़े

फिर कैसे तब बंद हों सास बहू के झगड़े ॥

 

मौलिक एवं अप्रकाशित

‘प्रदीप’

२४ सितम्बर २०१३

Views: 1070

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Pradeep Kumar Shukla on October 28, 2013 at 4:32pm

bahut bahut dhanyavaad Brijesh ji

Comment by बृजेश नीरज on October 28, 2013 at 12:03pm

वाह! बहुत सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Pradeep Kumar Shukla on September 26, 2013 at 12:50pm

आदरणीय लक्षमन प्रसाद जी .... आपसे बधाई पाकर निश्चित ही मेरा मनोबल बहुत बढ़ गया है

Comment by Pradeep Kumar Shukla on September 26, 2013 at 12:45pm

भाई बैद्य नाथ 'सारथी' जी, इस बात की बड़ी खुशी है कि आपको आनंद आया .... आपसे प्रशंसा पाकर मैं भी सफल हुआ 

Comment by Pradeep Kumar Shukla on September 26, 2013 at 10:38am

आदरणीया मीना पाठक जी ..... सादर धन्यवाद

Comment by Pradeep Kumar Shukla on September 26, 2013 at 10:35am

आदरणीया आनपूर्णा जी ..... कविता पढ़ने और उत्साह बढ़ाने के लिए आभार

Comment by annapurna bajpai on September 25, 2013 at 11:41pm

वाहह !!!! आ0 प्रदीप जी बहुत बधाई , पहली ही रचना जानदार हो गई । 

Comment by Meena Pathak on September 25, 2013 at 6:19pm
प्रतिदिन यह आदित्य, कथा चक्र दुहराता
घर घर में चल रही पुरातन है यह गाथा ।
मिलन को न तैयार हैं प्राची पश्चिम अकड़े
फिर कैसे हों बंद सास बहू के झगड़े ॥.................बहुत सुन्दर .. बधाई आप को
Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 5:13pm

:
माँ के दुलार की लाली घर आँगन छा जाए

जब प्राची की गोद बाल दिनकर आ जाए ।

कलरव कर कर पंछी अपना सखा बुलाएं

चलो दिवाकर खुले गगन क्रीड़ा हो जाए ॥...... प्रशंसक हो गया जी आपका ! बस , मजा आ गया !..नमन व बधाई स्वीकारें :)

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 25, 2013 at 4:46pm

ओबीओ मंच पर आपका स्वागत है भाई श्री प्रदीप कुमार शुक्ला जी | एक बेहतरीन रचना | पूरब पश्चिम की 

विरोधाभासी संस्कृति को और समय चक्र के अंतराल के कारण साँस-बहु के झगडे को दिशाओं के माध्यम से

चित्रण करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारे | 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"तौर-ए-इमदाद ये भला तो नहीं  शहर भर में अब इतना गा तो नहीं     मर्ज़ क्या है समझ…"
8 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ. दयाराम जी, ग़ज़ल का मतला भरपूर हुआ है। अन्य शेर आयोजन के बाद संवारे जाने की मांग कर रहे…"
34 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ दयाराम मैठानी जी। आपके द्वारा इंगित मिसरा ऐसे ही बोला जाता है अतः मैं इसे यथावत रख रहा…"
38 minutes ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"धन्यवाद आ. अजय जी"
40 minutes ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"शब में तारों से जगमगाते फ़लक मेरे पुरखों के नक़्श-ए-पा तो नहीं  लगता ईमान सा ही कुछ शायद गिर…"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश जी नमस्कार बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त दिया मतले के सानी को उला से साथ कहने की कोशिश…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
5 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
16 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
16 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
18 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service