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आइना सबको दिखाया जाये

२१२२/११२२/२२

झूठ अब सामने लाया जाये

आइना सबको दिखाया जाये

तीरगी है तो उदासी कैसी

दीप फ़ौरन ही जलाया जाये

आज दिल में है बड़ी बेचैनी

साक़िया  भर के पिलाया जाये

लाडली वो भी किसी मा की है

फिर बहू  को न सताया जाये

तोड़ डाला जो खिलौना उसने

उसको इतना न रुलाया जाये

बात गर करनी मोहब्बत की तो 

दिल से नफरत को मिटाया जाये

रोज बस कहते हवादिस  आते 

आशु लड़ना भी सिखाया जाये 

डॉ आशुतोष मिश्र

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 27, 2013 at 11:49pm

ग़ज़ल पर दाद कुबूल फ़रमायें .. .

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 5:17pm

सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय। सादर।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2013 at 10:15am

आदरणीय वीनस जी ..आपसे लगातार कुछ न कुछ सीखने को मिलता है ...सतत प्रयास कर रहा हूँ ...ये सच है मैं बेटियों की जगह बहुओं कहना चाह रहा था पर बहर में मात्रिक क्रम को नहीं बना पा रहा था ..आपका मार्गदर्शन बस यूं ही मिलता रहे ..तो प्रयास को सदा ही नयी दिशा मिलती रहेगी ..आपकी सह्जता सरलता और बिद्व्ता को नमन करते हुए ...सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 26, 2013 at 10:03am

चद्रशेखर जी ..मेरी ग़ज़लों पर आपकी प्रतिक्रिया से मुझे हौसला मिला ..आपको हार्दिक धन्यवाद 

Comment by वीनस केसरी on September 26, 2013 at 2:47am

आइना सबको दिखाया जाये

आज सच सबको बताया जाये........ मतला में आपने एक ही बात को दोनों पंक्ति में दुहरा दिया है, "आईना दिखाना" मुहावरा का अर्थ ही है "सच बताना"

दूसरा मिसरा पहले मिसरे की बात को आगे बढाता तो लुत्फ़ बढ़ जाता एक कोशिश देखें -

झूठ अब सामने लाया जाये

आइना सबको दिखाया जाये



तीरगी है तो उदासी कैसी

दीप फ़ौरन ही जलाया जाये ...... अच्छा कहा

आज दिल में है बड़ी बेचैनी

साकी जी भर के पिलाया जाये .... जी शब्द भर्ती का है ... साकिया भर के पिलाया जाये .. जबान का शेर हो जाता

उसको फौलादी बनाना है तो

उसको भूखा न सुलाया जाये........... भर्ती का शेर है

लाडली वो भी किसी मा की है

बेटियों को न सताया जाये................. बेटियों की जगह आप बहुओं कहना चाहते हैं

तोड़ डाला जो खिलौना उसने

उसको इतना न रुलाया जाये............. उम्दा शेर है ,, बहुत खूब

बात गर करनी मोहब्बत की तो 

दिल से नफरत को मिटाया जाये ........ अच्छा कहा

रोज बस कहते हवादिश आते 

आशु लड़ना भी सिखाया जाये ... सही लफ्ज़ हवादिस है

अंत में एक बात यह कि आपने ग़ज़ल लय से कही है न कि तक्तीअ से,,, और २१२२ २१२२ २२ पर कहने की कोशिश की है मगर चूंकी इस मात्र क्रम में कोई लय नहीं हैआप एक दूसरी ही बहर को पकड़ बैठे जिसमें शानदार लय है और आपकी पूरी ग़ज़ल उसी बहर पर हो गयी है और वो बहर ये है -

२१२२ ११२२ २२
पोस्ट में मात्रा को सही कर लीजिए

सादर

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on September 25, 2013 at 1:40pm

सुन्दर गजल के लिए बधाई स्वीकारें आदरणीय। आभार, सादर।

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 24, 2013 at 9:39pm

आदरणीय आशुतोष सर प्रयास अच्छा हुआ बहुत ही बारीकी से आदरणीय श्री बागी भ्राताश्री जी ने ग़ज़ल पर टिपण्णी की है मुझे दो अशआर में तदाबुले रदीफ़ का दोष लग रहा है कृपया देख लें. प्रयास हेतु बधाई स्वीकारें.

तोड़ डाला जो खिलौना उसने

उसको इतना न रुलाया जाये

रोज बस कहते हवादिश आते 

आशु लड़ना भी सिखाया जाये


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 24, 2013 at 7:47pm

मेरी टिप्पणी को सम्मान देने हेतु आभार आदरणीय डॉ साहब और प्रिय संदीप जी । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 24, 2013 at 5:48pm

लाडली वो भी किसी मा की है

बेटियों को न सताया जाये

बहुत खूब ! दिल को छू गयी ये पंक्तियाँ !

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on September 24, 2013 at 4:38pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है आपने दाद कुबूले 

आदरणीय गणेश बागी सर जी ने बहुत ही सुन्दर प्रातक्रिया दी है 

उन्हें भी बहुत बहुत धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

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