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तुम्हारा मौन जो कह गया -- डॉo विजय शंकर

दिल में जो था मेरे ,

मैंने कहा , मैं कह गया ॥

सब कुछ कह गया ॥

सुन लिया तुमने ,

और कुछ ,

कुछ भी नहीं कहा ॥

शांत , सब सुन लिया ,

मौन एक , बस , धर लिया।

ये मौन तुम्हारा ,

दीर्घ मौन तुम्हारा ,

कितना कुछ कह गया ,

कितना गहरा उतर गया ||

इसी में डूबता - उतराता रहूंगा

मैं , अब उम्र भर ,

और समझता रहूंगा ,

विवशता तुम्हारी ,

सब सुनना , सुन लेना ,

कुछ न कहना , कुछ भी न कहना ,

एक बोझ , लिए रहना ,

उस बोझ को सहते… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2014 at 11:33am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
गीत / नवगीत - बर्तन भांडे चुप चुप सारे ( गिरिराज भंडारी )

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

*************************

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

टीन कनस्तर खाली खाली

माचिस देख निराशा है

 

लकड़ी की आँखें गीली बस 

स्वप्न धूप के देख रही 

सीली सीली दीवारों को

मन मन में बस कोस रही

 

पढा लिखा संकोची बेलन 

की पर सुधरी भाषा है

बर्तन भांडे चुप चुप सारे

चूल्हा देख उदासा है

 

स्वाभिमान बीमार पडा है

चौखट चौखट घूम रहा

गिर…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments

कागज़ की लाशों पर

जब भी कलम उठाता हूँ

तुम्हे यादों में पाता हूँ

शब्द नहीं मिलते लिखने को

तेरा चित्र बनाता जाता हूँ !!

 

कितना कुछ है कहने को

जड़ जुबान हो जाता हूँ

अंतर्मन व्याकुल हो जाता है

उलझन में फंस जाता हूँ !!

 

मैं दबा कुंठित स्वर को

कागज़ की लाशों पर, बस

अक्षर के फूल सजाता हूँ

फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!

 

कैसे करूँ दिल की बाते

जब हुई चार दिन मुलाकातें

मैं कैसे करूँ तुम्हे…

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Added by Hari Prakash Dubey on December 17, 2014 at 2:00am — 9 Comments

उसके हज़ारों रूप लगें

उसके हज़ारों रूप लगे

किसी को सायाँ किसी को धूप लगे

वो एक ही है मगर उसके हज़ारों रूप लगे

मेघ बनते है ,उमड़ते है ,बरसते हैं

किसी को प्यास ,किसी को कैनवास

किसी का विश्वास ,किसी को मीत…

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Added by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:00pm — 7 Comments

यात्रा

 हाँ

किसी अज्ञात यात्रा से

लोग यहाँ  आते है

कोई आता है चुपके से दुबक कर

कोई आता है सीने से चिपककर

कोई आता इन्तेजार ख़त्म करने

किसी के आने पर बजते है नगाड़े

ढोल-ताशे   

 

यहाँ आकर

फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा

गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की

परिश्रम गंवाने की कुछ सुस्ताने की

जी भर रोने की मन-मैल धोने की

शांति से सोने की खुद अपने होने की

 

जो अभी…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 16, 2014 at 12:15pm — 22 Comments

उहापोह

क्यों होता है अकेलापन
क्यों खो जाता है बचपन.
क्यों हो जाते है हम बड़े
कहाँ चल जाता है छुटपन.
क्यों नहीं आती नींद,
क्यों अपने जाते बिंध
क्यों पराया बनता मित्र
क्यों होते स्वयं में लिप्त.
क्यों तिरोहित हो जाता
जीवन का सुखद संगीत.
क्यों छूट जाता अतीत.
क्यों उदासीन होता मन
जबकि साथ है तन- धन .
क्यों बढ़ जाता मोह
जीवन का यह उहापोह.

.
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित.

Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 16, 2014 at 11:00am — 8 Comments

ग़ज़ल ---------------------- गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२ २२  २२ २२/१२१

रंगों की नादानी देखो

तेरी करें गुलामी देखो

चाँद धनुक गुलशन और हूर

तेरी रचें जवानी देखो

पहले आम की नई बौरें

यौवन से अनजानी देखो

जोग लगा दे जोग छुड़ा दे

सूरत एक सुहानी देखो

शेख बिरहमन करने लगे

रब से बेईमानी देखो

तुझको पूजूं या प्यार करू

ये अजब परेशानी देखो

तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा

कहके प्रेम कहानी…

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Added by gumnaam pithoragarhi on December 16, 2014 at 10:36am — 15 Comments

गज़ल ~ बडा मासूम सा एहसास

1222 1222 1222 1222



बडा मासूम सा एहसास तेरी दोस्ती का है ।

मुकद्दर ने दिया तोहफा मुझे ये जिन्दगी का है ।



हो जन्मोँ का कोई बिछडा हुआ साथी मिला जैसे ,

न पूछो कौन सा मंजर मेरे दिल मेँ खुशी का है ।



हजारोँ लोगोँ से मिलकर लगा यूँ देख ली दुनिया ,

मगर कहता रहा दिल इंतजार अब भी किसी का है ।



कहीँ खोया सा रहता हूँ जगा सोया सा रहता हूँ ,

असर ये हो न हो , बेशक , तेरी जादूगरी का है ।



मुहब्बत के नशेमन मेँ न जाने कौन सा रिश्ता… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 16, 2014 at 7:01am — 18 Comments

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||

शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |

शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ || 



सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही 

धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही 

शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को 

समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को …

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Added by ajay sharma on December 15, 2014 at 11:10pm — 7 Comments

एक मुठ्ठी की भांति (तांका)

क्यों भूले तुम ?

अपनी मातृभाषा

माॅं का आॅंचल

कभी खोटा होता है ?

खोटी तेरी किस्मत ।



2.

दूर के ढोल

मधुर लगे बोल

नभ में सूर्य

धरातल से छोटा

बहुत सुहाना है ।



3.

आतंकवाद

धार्मिक कट्टरता

नही सीखाता

बाइबिल कुरान

हिन्द का गीता पुराण ।



4.

स्वीकार करें

दूसरो का सम्मान

क्यों थोपते हो ?

पंथ धर्म विचार

सभी खुद नेक हैं ।



5.

गरज रहा

आई.एस.आई.ई

सचेत रहे

हिन्दू मुस्लिम एक

एक…

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Added by रमेश कुमार चौहान on December 15, 2014 at 9:30pm — 7 Comments

मौसम भी नीर बहायेगा ………….

मौसम भी नीर बहायेगा …



भोर होते ही

चिड़ियों का कलरव

इक पीर जगा जाएगा

सांझ होते ही सूनेपन से

हृदय पिघल जाएगा

मुक्त- केशिनी का संबोधन

इक छुअन की याद दिलायेगा

बिना पिया के राह का हर पग

अब बोझिल हो जाएगा

निष्ठुर पवन का वेग भला

कैसे दीप सह पायेगा

रैन बनी अब हमदम तुम बिन

चिरवियोग तड़पायेगा

जाने जीवन के पतझड़ में

मधुमास कब आयेगा

अश्रु बूंदों से तब तक दिल का

स्मृति आँगन गीला हो जाएगा

प्राण प्रिय तुम प्राण…

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Added by Sushil Sarna on December 15, 2014 at 11:23am — 14 Comments

माँ होती तो ऐसा होता ,..................

माँ होती तो ऐसा होता

माँ होती तो वैसा होता

खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको 

जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से 

कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?

पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको 

कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता

माँ तुम ही हो एक सहारा

तब तुम कहते अच्छा होता 

माँ होती तो ऐसा होता

माँ…

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Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:12pm — 9 Comments

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I

मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I 

मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I

मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I 

तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I 

मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…

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Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं…

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Added by rajesh kumari on December 14, 2014 at 10:45am — 30 Comments

इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति -- डॉo विजय शंकर

देश-प्रेम से ओत-प्रोत लोगों में देश के लिए भावुक हो जाना स्वभाविक है। पर भावुकता के साथ साथ यथार्थ को यथावत स्वीकार कर लेना भी देशप्रेम ही है।

ओ बी ओ स्वर्ण जयंती महोत्सव में ' भारत बनाम इण्डिया ' के सन्दर्भ में इण्डिया शब्द की व्युत्पत्ति पर एक दृष्टि डाल लेना किंचित विसंगत न होगा।

सामान्यतः यह माना जाता है कि जीवन - दायनी गंगा ने इस देश की संस्कृति निर्माण में अपना अमूल्य योगदान दिया और सिंधु नदी ने इस देश को पाश्चात्य विश्व में एक पहचान दी और एक नाम दिया | सिंधु नदी भारत के… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 14, 2014 at 10:04am — 9 Comments

नवगीत

कोहरे के कागज़ पर

किरणों के गीत लिखें

आओ ना मीत लिखें

सहमी सहमी कलियाँ

सहमी सहमी शाखें

सहमें पत्तों की हैं

सहमी सहमी आँखें

सिहराते झोंकों के

मुरझाए

मौसम पर

फूलों की रीत लिखें

आओ ना मीत लिखें 

रातों के ढर्रों में

नीयत है चोरों की

खीसें में दौलत है

सांझों की भोरों की

छलिया अँधियारो से

घबराए,

नीड़ों पर

जुगनू की जीत लिखें

आओ ना मीत…

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Added by seema agrawal on December 13, 2014 at 9:30pm — 14 Comments

धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला

कोई पढ़वाता नमाज है, कोई जपवाता माला।

भारत और इंडिया का, देखो यह है गड़बड़झाला।

धर्म, जाति, मक्कारी की, हाला उसने जो पी ली है।

मानवता को नोंच, नोंचकर, लगा रहा मुंह पर ताला।

राम, रहीम, मुहम्मद हमको मिले नहीं हैं अभी तलक।

धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला।

भावों का जो घाव मिल रहा, कब तक उसे कुरेदोगे।

मंदिर कभी और मस्जिद में, कब तक मन को तोलोगे।

ईश्वर अल्ला नाम एक ही, बोलो क्यू हो भूल रहे।

धर्म तराजू से भारत की, संतानों को तोल रहे।

तेज सियासी…

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Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on December 13, 2014 at 9:01pm — 3 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़लों का बिस्तर है (माहिया- क़िस्त दो)

22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22

-

ये नींद उड़ाते है,

ख़्वाब हसीं लेकिन,  

रातों को रुलाते है

 

नाचों फिर रो लेना,

कुछ शब बाकी है,

तारों फिर सो लेना

 

सरहद पे दुश्मन है,

सरहद आँखों में,

आँखों में सावन है

 

दो नैन हुए गीले,

बाप बिदाई दे,

लो हाथ हुए पीले

 

गंगा में नहा लेना,

माटी फूल बने,

गंगा…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 8:00pm — 6 Comments

मानसिकता (लघुकथा)

"हे भगवान, मुझे सारी उम्र हो गई आपकी पूजा-पाठ करते हुए और कितनी परीक्षा लोगे? अब तो मुझे दर्शन दीजिए और अपनी सेवा का एक मौका देकर मेरे जीवन को धन्य कीजिए मेरे प्रभु।"

भगवान अपने भक्त की अटूट भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए एक भिखारी का रूप धारण करके उसके द्वार पर पहुँच गए।

"बेटा, कल से भूखा हूँ कुछ जलपान करवा दो।"

"सुबह-सुबह तुमको मेरा ही घर मिला था जलपान के लिए! चल भाग यहाँ से वरना तुझ पर कुत्ता छोड़ दूँगा।"

भगवान मुस्कुराते हुए अपने धाम की…

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Added by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 7:56pm — 4 Comments

ग़ज़ल " है नहीं अभिमान जिसमे "

जिंदगी में क्या कमी है !

हर ख़ुशी मेरी ख़ुशी है !!

है नहीं कोई हुनर तो !

जिंदगी किसकी सगी है !!

इल्म कोई है अगर तो !

नौकरी फिर आपकी है !!

आजकल फन का जमाना !

फेन बिना क्या आदमी है !!

हर कला को जानता वो !

इसलिए तो मतलबी है !!

तैरना तुम जानते हो !

साथ चल आगे नदी है !!

चाहिए क्या और मुझको !

जब खुदा में बंदगी है !!

है नहीं अभिमान मुझको !

जिंदगी में सादगी…

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Added by Alok Mittal on December 13, 2014 at 1:00pm — 12 Comments

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