Added by Dr. Vijai Shanker on December 17, 2014 at 11:33am — 12 Comments
बर्तन भांडे चुप चुप सारे
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बर्तन भांडे चुप चुप सारे
चूल्हा देख उदासा है
टीन कनस्तर खाली खाली
माचिस देख निराशा है
लकड़ी की आँखें गीली बस
स्वप्न धूप के देख रही
सीली सीली दीवारों को
मन मन में बस कोस रही
पढा लिखा संकोची बेलन
की पर सुधरी भाषा है
बर्तन भांडे चुप चुप सारे
चूल्हा देख उदासा है
स्वाभिमान बीमार पडा है
चौखट चौखट घूम रहा
गिर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 17, 2014 at 11:00am — 26 Comments
जब भी कलम उठाता हूँ
तुम्हे यादों में पाता हूँ
शब्द नहीं मिलते लिखने को
तेरा चित्र बनाता जाता हूँ !!
कितना कुछ है कहने को
जड़ जुबान हो जाता हूँ
अंतर्मन व्याकुल हो जाता है
उलझन में फंस जाता हूँ !!
मैं दबा कुंठित स्वर को
कागज़ की लाशों पर, बस
अक्षर के फूल सजाता हूँ
फिर फाड़ उन्हें जलाता हूँ !!
कैसे करूँ दिल की बाते
जब हुई चार दिन मुलाकातें
मैं कैसे करूँ तुम्हे…
ContinueAdded by Hari Prakash Dubey on December 17, 2014 at 2:00am — 9 Comments
उसके हज़ारों रूप लगे
किसी को सायाँ किसी को धूप लगे
वो एक ही है मगर उसके हज़ारों रूप लगे
मेघ बनते है ,उमड़ते है ,बरसते हैं
किसी को प्यास ,किसी को कैनवास
किसी का विश्वास ,किसी को मीत…
ContinueAdded by somesh kumar on December 16, 2014 at 11:00pm — 7 Comments
हाँ
किसी अज्ञात यात्रा से
लोग यहाँ आते है
कोई आता है चुपके से दुबक कर
कोई आता है सीने से चिपककर
कोई आता इन्तेजार ख़त्म करने
किसी के आने पर बजते है नगाड़े
ढोल-ताशे
यहाँ आकर
फिर शुरू होती है एक नयी यात्रा
गंतव्य तक जाने की मंजिल पाने की
परिश्रम गंवाने की कुछ सुस्ताने की
जी भर रोने की मन-मैल धोने की
शांति से सोने की खुद अपने होने की
जो अभी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 16, 2014 at 12:15pm — 22 Comments
क्यों होता है अकेलापन
क्यों खो जाता है बचपन.
क्यों हो जाते है हम बड़े
कहाँ चल जाता है छुटपन.
क्यों नहीं आती नींद,
क्यों अपने जाते बिंध
क्यों पराया बनता मित्र
क्यों होते स्वयं में लिप्त.
क्यों तिरोहित हो जाता
जीवन का सुखद संगीत.
क्यों छूट जाता अतीत.
क्यों उदासीन होता मन
जबकि साथ है तन- धन .
क्यों बढ़ जाता मोह
जीवन का यह उहापोह.
.
विजय प्रकाश शर्मा
मौलिक व अप्रकाशित.
Added by Dr.Vijay Prakash Sharma on December 16, 2014 at 11:00am — 8 Comments
२२ २२ २२ २२/१२१
रंगों की नादानी देखो
तेरी करें गुलामी देखो
चाँद धनुक गुलशन और हूर
तेरी रचें जवानी देखो
पहले आम की नई बौरें
यौवन से अनजानी देखो
जोग लगा दे जोग छुड़ा दे
सूरत एक सुहानी देखो
शेख बिरहमन करने लगे
रब से बेईमानी देखो
तुझको पूजूं या प्यार करू
ये अजब परेशानी देखो
तोड़ो चुप्पी गुमनाम ज़रा
कहके प्रेम कहानी…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 16, 2014 at 10:36am — 15 Comments
Added by Neeraj Nishchal on December 16, 2014 at 7:01am — 18 Comments
शहरो के बीच बीच सड़कों के आसपास |
शीत के दुर्दिन का ढो रहे संत्रास , क्या करे क्या न करे फुटपाथ ||
सूरज की आँखों में कोहरे की चुभन रही
धुप के पैरो में मेहंदी की थूपन रही
शर्माती शाम आई छल गयी बाजारों को
समझ गए रिक्शे भी भीड़ के इशारों को …
Added by ajay sharma on December 15, 2014 at 11:10pm — 7 Comments
क्यों भूले तुम ?
अपनी मातृभाषा
माॅं का आॅंचल
कभी खोटा होता है ?
खोटी तेरी किस्मत ।
2.
दूर के ढोल
मधुर लगे बोल
नभ में सूर्य
धरातल से छोटा
बहुत सुहाना है ।
3.
आतंकवाद
धार्मिक कट्टरता
नही सीखाता
बाइबिल कुरान
हिन्द का गीता पुराण ।
4.
स्वीकार करें
दूसरो का सम्मान
क्यों थोपते हो ?
पंथ धर्म विचार
सभी खुद नेक हैं ।
5.
गरज रहा
आई.एस.आई.ई
सचेत रहे
हिन्दू मुस्लिम एक
एक…
Added by रमेश कुमार चौहान on December 15, 2014 at 9:30pm — 7 Comments
मौसम भी नीर बहायेगा …
भोर होते ही
चिड़ियों का कलरव
इक पीर जगा जाएगा
सांझ होते ही सूनेपन से
हृदय पिघल जाएगा
मुक्त- केशिनी का संबोधन
इक छुअन की याद दिलायेगा
बिना पिया के राह का हर पग
अब बोझिल हो जाएगा
निष्ठुर पवन का वेग भला
कैसे दीप सह पायेगा
रैन बनी अब हमदम तुम बिन
चिरवियोग तड़पायेगा
जाने जीवन के पतझड़ में
मधुमास कब आयेगा
अश्रु बूंदों से तब तक दिल का
स्मृति आँगन गीला हो जाएगा
प्राण प्रिय तुम प्राण…
Added by Sushil Sarna on December 15, 2014 at 11:23am — 14 Comments
माँ होती तो ऐसा होता
माँ होती तो वैसा होता
खुद खाने से पहले तुमने क्या कुछ खाया "पूछा " उसको
जैसे बचपन में सोते थे उसकी गोद में बेफिक्री से
कभी थकन से हारी माँ जब , तुमने कभी सुलाया उसको ?
पापा से कर चोरी जब - जब देती थी वो पैसे तुमको
कभी लौट के उन पैसो का केवल ब्याज चुकाया होता
माँ तुम ही हो एक सहारा
तब तुम कहते अच्छा होता
माँ होती तो ऐसा होता
माँ…
Added by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:12pm — 9 Comments
मैं हूँ बंदी बिन्दु परिधि का , तुम रेखा मनमानी I
मैं ठहरा पोखर का जल , तुम हो गंगा का पानी I I
मैं जीवन की कथा -व्यथा का नीरस सा गद्यांश कोई इक I
तुम छंदों में लिखी गयी कविता का हो रूपांश कोई इक I
मैं स्वांसों का निहित स्वार्थ हूँ , तुम हो जीवन की मानी I I…
ContinueAdded by ajay sharma on December 14, 2014 at 11:00pm — 14 Comments
212 122 212 12
बिन कहा समझते हैं कमाल है
क्या से क्या समझते हैं कमाल है
मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ
तो मना समझते हैं कमाल है
शर्म से निगाहें जो झुकी मेरी
वो अदा समझते हैं कमाल है
कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे
वो वफ़ा समझते हैं कमाल है
चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन
वो सदा समझते हैं कमाल है
झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ
आईना समझते हैं…
ContinueAdded by rajesh kumari on December 14, 2014 at 10:45am — 30 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 14, 2014 at 10:04am — 9 Comments
कोहरे के कागज़ पर
किरणों के गीत लिखें
आओ ना मीत लिखें
सहमी सहमी कलियाँ
सहमी सहमी शाखें
सहमें पत्तों की हैं
सहमी सहमी आँखें
सिहराते झोंकों के
मुरझाए
मौसम पर
फूलों की रीत लिखें
आओ ना मीत लिखें
रातों के ढर्रों में
नीयत है चोरों की
खीसें में दौलत है
सांझों की भोरों की
छलिया अँधियारो से
घबराए,
नीड़ों पर
जुगनू की जीत लिखें
आओ ना मीत…
ContinueAdded by seema agrawal on December 13, 2014 at 9:30pm — 14 Comments
कोई पढ़वाता नमाज है, कोई जपवाता माला।
भारत और इंडिया का, देखो यह है गड़बड़झाला।
धर्म, जाति, मक्कारी की, हाला उसने जो पी ली है।
मानवता को नोंच, नोंचकर, लगा रहा मुंह पर ताला।
राम, रहीम, मुहम्मद हमको मिले नहीं हैं अभी तलक।
धर्म नीति के प्याले में है, दिखता बस जाला-जाला।
भावों का जो घाव मिल रहा, कब तक उसे कुरेदोगे।
मंदिर कभी और मस्जिद में, कब तक मन को तोलोगे।
ईश्वर अल्ला नाम एक ही, बोलो क्यू हो भूल रहे।
धर्म तराजू से भारत की, संतानों को तोल रहे।
तेज सियासी…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on December 13, 2014 at 9:01pm — 3 Comments
22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22
-
ये नींद उड़ाते है,
ख़्वाब हसीं लेकिन,
रातों को रुलाते है।
नाचों फिर रो लेना,
कुछ शब बाकी है,
तारों फिर सो लेना।
सरहद पे दुश्मन है,
सरहद आँखों में,
आँखों में सावन है।
दो नैन हुए गीले,
बाप बिदाई दे,
लो हाथ हुए पीले।
गंगा में नहा लेना,
माटी फूल बने,
गंगा…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 13, 2014 at 8:00pm — 6 Comments
"हे भगवान, मुझे सारी उम्र हो गई आपकी पूजा-पाठ करते हुए और कितनी परीक्षा लोगे? अब तो मुझे दर्शन दीजिए और अपनी सेवा का एक मौका देकर मेरे जीवन को धन्य कीजिए मेरे प्रभु।"
भगवान अपने भक्त की अटूट भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उसकी अभिलाषा पूर्ण करने के लिए एक भिखारी का रूप धारण करके उसके द्वार पर पहुँच गए।
"बेटा, कल से भूखा हूँ कुछ जलपान करवा दो।"
"सुबह-सुबह तुमको मेरा ही घर मिला था जलपान के लिए! चल भाग यहाँ से वरना तुझ पर कुत्ता छोड़ दूँगा।"
भगवान मुस्कुराते हुए अपने धाम की…
Added by विनोद खनगवाल on December 13, 2014 at 7:56pm — 4 Comments
जिंदगी में क्या कमी है !
हर ख़ुशी मेरी ख़ुशी है !!
है नहीं कोई हुनर तो !
जिंदगी किसकी सगी है !!
इल्म कोई है अगर तो !
नौकरी फिर आपकी है !!
आजकल फन का जमाना !
फेन बिना क्या आदमी है !!
हर कला को जानता वो !
इसलिए तो मतलबी है !!
तैरना तुम जानते हो !
साथ चल आगे नदी है !!
चाहिए क्या और मुझको !
जब खुदा में बंदगी है !!
है नहीं अभिमान मुझको !
जिंदगी में सादगी…
Added by Alok Mittal on December 13, 2014 at 1:00pm — 12 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
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