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" देखो तो , आज माँ के लिए मैं क्या लाया हूँ "|
" क्या जरुरत थी माताजी को इतनी बढ़िया साड़ी लाने की !" , पत्नी की आवाज में आश्चर्य झलक रहा था |
" माँ की आँखें नहीं हैं लेकिन मेरी तो हैं ना "|

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on February 3, 2015 at 5:57pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय शरदिंदु मुख़र्जी जी .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 4:36pm
बहुत सुंदर....तात्पर्यपूर्ण.....
Comment by विनय कुमार on January 21, 2015 at 9:28pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी..

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on January 21, 2015 at 8:20pm

लघुकथा और आज का सत्य ...

Comment by विनय कुमार on January 21, 2015 at 12:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:29am

लाजवाब , गागर मे सागर । बहुत बधाइयाँ आदरणीय विजय भाई ।

Comment by विनय कुमार on January 20, 2015 at 12:45am

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 19, 2015 at 10:41pm
आदरणीय विनय जी सफल लघुकथा। बधाई।
Comment by विनय कुमार on January 19, 2015 at 10:00pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय गुमनाम पिथौरागढ़ी जी..

Comment by gumnaam pithoragarhi on January 19, 2015 at 9:15pm

वाह बहुत खूब सर ..

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