For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल-लोग अब आपका बोलते है मुझे!

212 212 212 212

आपके नाम से टोकते है मुझे!
लोग अब आपका बोलते है मुझे!!

रोज में इक नजर देखते भी नहीं!
रात में चाँद से पूछते है मुझे!!

जख्म के पेड को फिर हरा कर चले!
किस तराजू में वे तोलते है मुझे!!

मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!
आज तक भी कई कोसते है मुझे!!

नाम दिल से मिटा तो दिया पर सनम!
दर्द बेघर हुए घूरते है मुझे!!

लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!
जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!

पूछ 'राहुल' उन्हें आज क्या चाहिए!
रोज दर रोज जो बाँटते है मुझे!!

मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 800

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 1:11pm
आदरणीय somesh kumar जी टंकण त्रुटी से गलत हो गया क्षमा चाहता हुँ! वह शब्द उत्साहवर्धक है! सादर!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 1:08pm
आदरणीय somesh kumar जी आपकी प्रतिक्रिया बहुत सउत्वसाहर्धक है! दिल की गहराईयों से आपका आभारी हुँ!
Comment by somesh kumar on January 22, 2015 at 11:34am

लगता है सांस दो चार ही रह गयी!!
जिस नजर से सभी देखते है मुझे!!

गज़ल के लिए आपके मन में ललक है ,उम्मीद है लगातार कोशिशों से आप जरुर इस विधा में सिद्धि हासिल करेंगे |

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 9:39am
आदरणीय pratibha tripathi जी ह्रदय तल से धन्यवाद स्वीकार करें!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 22, 2015 at 9:39am
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सफल हुई सादर धन्यवाद!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:16am

लाजवाब गज़ल हुई है , आदरणीय राहुल भाई । बधाइयाँ ।

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 10:38pm
आदरणीय rajesh kumari जी मेरा मार्ग दर्शन हेतु मैं आपका ह्रदयतल से आभार प्रकट करता हुँ! आपका आशिर्वाद मुझ पे ह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 10:30pm

दिन में वो इक नज़र देखते भी नहीं ...या ..धूप में इक नज़र देखते भी नहीं ..या एसा ही कुछ सोचिये  

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 21, 2015 at 10:24pm
आदरणीय rajesh kumari जी बहुत बहुत धन्यवाद! मैं कोई शब्द सोचता हुँ अगर आपके जहन में कोई शब्द हो तो क्रपया बताने का कष्ट करें! सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 21, 2015 at 9:23pm

मर गया हूँ मगर चैन अब भी नहीं!
आज तक भी कई कोसते है मुझे!!-----वाह ...बहुत मर्मस्पर्शी 

रोज में इक नजर देखते भी नहीं!----रोज  के साथ में ..ठीक नहीं ---शायद आप दिन के लिए रोज लिख रहे हैं  जब की रोज में रात  दिन दोनों शामिल होते हैं सानी में आप रात की बात कर रहे हैं तो उला में कोई और शब्द सोचिये --जैसे.... दिन में वो इक नजर देखते भी  नहीं 
रात में चाँद से पूछते है मुझे!!------

अच्छी ग़ज़ल हुई बहुत- बहुत बधाई राहुल जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

दोहा सप्तक. . . . . नजरनजरें मंडी हो गईं, नजर बनी बाजार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार…See More
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
3 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"कौन है कसौटी पर? (लघुकथा): विकासशील देश का लोकतंत्र अपने संविधान को छाती से लगाये देश के कौने-कौने…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"सादर नमस्कार। हार्दिक स्वागत आदरणीय दयाराम मेठानी साहिब।  आज की महत्वपूर्ण विषय पर गोष्ठी का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी , सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ.भाई आजी तमाम जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"विषय - आत्म सम्मान शीर्षक - गहरी चोट नीरज एक 14 वर्षीय बालक था। वह शहर के विख्यात वकील धर्म नारायण…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उम्र  का खेल । स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।…See More
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सादर प्रणाम - सर सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार…"
Saturday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपकी लघुकविता का मामला समझ में नहीं आ रहा. आपकी पिछ्ली रचना पर भी मैंने…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service