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नवगीत : नवल वर्ष है आया.

*नवल वर्ष है आया.

बीता वर्ष पुरातन छोडो,

क्या खोया क्या पाया.

नवल वर्ष है आया.

 

तन्द्रा भंग सुहाना कलरव,

मुर्गा बांग लगाता.

किरण धो रही कालिख सारी,

दिनकर द्वार बजाता.

सागर जल में नहा रश्मियाँ,

दुति चन्दन लेपेंगीं.

पौ फटते ही तिलक सिंदूरी,

सूरज भाल लगाया.

नवल वर्ष है आया.

 

भोर उठी आगी सुलगाती,

धुंध धुंआ संग जाती.

पीली धूप पकौड़ी तलती,

श्यामा दूध दुहाती.

किया…

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Added by harivallabh sharma on December 19, 2014 at 11:30pm — 12 Comments

बाबू जी मेरी माँ -लघु कथा

                  

     वह चालीस वर्ष का हट्टा –कट्टा जवान था I बस में मेरी खिड़की के करीब आया I डबडबायी आँखों से मेरी ओर देखा –‘बाबू जी मेरी माँ अस्पताल में दम तोड़ रही है, उसकी दवा लेने गया था, फकत इक्कीस रुपये कम पड़ गए है I बाबू जी आप मेहरबानी कर दे तो मेरा माँ शायद बच जाय I अल्लाह आपको नेमते देगा I’

      उसकी आँखों से आंसू  छलक पड़े I मुझे तरस आ गया I मैंने उसे रुपये दे दिए I वह दुआ देता आँखों से ओझल हो गया I  

      किसी कारण से मेरी बस वही रुकी रही I इतने में…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 19, 2014 at 7:04pm — 16 Comments

नव वर्ष पर ...हों सृजन अब कुछ नये से..

नव वर्ष पर....



हों सृजन अब कुछ नये से.....

कुछ नई सी कल्पनाएं।

फिर नया यह वर्ष आओ

हम सभी मिलकर मनाएं।



छोड़ दें हम पंगु सब

परिपाटियों को।

दें नये स्वर से गुँजा

इन वादियों को।

जो सुखद सी सीख गत से

है मिली थाती हमें

साथ ले बढ़ते चले हम

तोड़ कर सब वर्जनाएं।



फिर नया यह वर्ष आओ

हम सभी मिलकर मनाएं।



मुफलिसी सीलन भरे

कोनों पसरती।

जिन्दगी भय लूट के

सायों सिसकती

घूप पर हक है सभी… Continue

Added by seemahari sharma on December 19, 2014 at 5:38pm — 12 Comments

गजल -- देखकर मासूम बच्चों की हँसी

ग़ैर तरही गजल



देखकर मासूम बच्चों की हँसी

आज कुछ मन की उदासी कम हुई



गीत गजलें छन्द मुक्तक फिर कभी

तुझसे मन उकता गया है शायरी



मुझमें शायद कुछ न कुछ तो है कमी

हर किसी को मुझ से जो नाराज़गी



कल मेरे दिल को बहुत सदमा लगा

मेरी गजलें उसने बेगानी कही



गुजरा बचपन जैसे कल की बात हो

तेज़ है रफ़्तार कितनी वक़्त की



रेत पर लिक्खी इबारत की तरह

कुछ ही पल टिकतें हैं मेरे ख़्वाब भी



आप इसको जो भी चाहे नाम… Continue

Added by दिनेश कुमार on December 19, 2014 at 4:18pm — 18 Comments

ग़ज़ल ................... गुमनाम पिथौरागढ़ी

१२२२  १२२२ १२

है उसकी याद बादल की तरह

भटकता हूँ मैं पागल की तरह

हवास व्यापार के नाले हैं यहाँ

मुहब्बत थी गंगाजल की तरह

ये जीवन हादसों का मलवा है

किसी बेवा के आँचल की तरह

हुई नाकाम कोशिश भूलने की

थी तेरी याद दल दल की तरह

है चुप का रूप गोया ताज हो

है उसकी बात कोयल की तरह

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

Added by gumnaam pithoragarhi on December 19, 2014 at 2:51pm — 8 Comments

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र ....

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे

ख़ामोश थी खून की चीखें सभी

ख़ामोश वो अश्कों के धारे थे

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे …….

खूनी चेहरों के मंजर ने

हर धर्म का फर्क मिटा डाला

क्या अपना और बेगाना क्या

हर दुःख को अपना बना डाला

हर चेहरे पे इक दहशत थी

और सपनें सहमे सारे थे

ख़ामोश जुबां, ख़ामोश नज़र

ख़ामोश वो सारे नज़ारे थे ….

बिखरे चूडी के टुकडों…

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Added by Sushil Sarna on December 19, 2014 at 12:02pm — 12 Comments

पछतावा (लघुकथा)

"सीमा, अपनी बारहवीं से आगे की पढ़ाई पूरी कर लो। कुछ बन जाओगी तो कामयाब हो जाओगी।"

"मुझे कामयाब होकर क्या करना है भगवान का दिया सबकुछ तो है हमारे पास।"- सीमा ने सौरभ को यही जवाब दिया था।

काल का ऐसा चक्र चला सौरभ इस दुनिया को अलविदा कह गया। पार्टनर भाई ने सारे बिजनेस पर धीरे-धीरे कब्जा कर लिया।

"निशा, अब हमारा क्या होगा? मेरे तो बच्चे भी छोटे-छोटे हैं उनका पालन-पोषण कैसे करूँगी? जेठ जी से कहकर थोड़ा काम दिलवा दो ना।"

"देख सीमा, तुमको तो पता ही है अब मुझसे घर का काम बनता नहीं… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 19, 2014 at 8:10am — 7 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
सूर्य तो बस सुधा कूप है/ नवगीत (मिथिलेश वामनकर)

प्रेम की गुनगुनी धूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

हंस रहा रश्मियाँ भेजकर

तीर्थ के दीप सा बल रहा

कष्ट में पुष्प सा खिल गया

अनगिनत विश्व का छंद है

कांति का शांति का रूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

ब्रह्म के कण विचरते हुए

बल तेरा मिल गया हर दिशा

शून्य में रूप तू इष्ट का

अस्त पर व्यस्त तू फिर कहीं

कर्म का धर्म का यूप है

सूर्य तो बस सुधा कूप है

 

सृष्टि के पुत्र का…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 19, 2014 at 3:50am — 20 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
नये साल का मौसम आया (नवगीत) // --सौरभ

नये साल के नये माह का

मौसम आया..

लेकिन सूरज भौंचक

कितना घबराया है !



चटख रंग की हवा चली है

चलन सीख कर..

खेल खेलती, बंदूकों के राग सुनाती

उनियाये कमरों में बच्चे रट्टा…

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Added by Saurabh Pandey on December 19, 2014 at 3:31am — 20 Comments


मुख्य प्रबंधक
अतुकांत कविता : केसर के फूल (गणेश जी बागी)

अतुकांत कविता : केसर के फूल

चौक गया

यह देखकर 

स्कूल के फर्श पर

फैला गाढ़ा रंग

बिलकुल वैसा ही था

जैसा

कुछ वर्ष पहले था

मुंबई के प्लेटफॉर्म पर  

कोई अंतर नहीं

एकदम सुर्ख़ लाल रंग

उपजाऊ भूमि

बो दिया बारूद

इस उम्मीद में

कि .........

केसर फूलेंगे ।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट…

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Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2014 at 12:00am — 24 Comments

कली तुझसे पूछूँ एक बात

कली तुझसे पूछूँ एक बात,

की जब होती है आधी रात,

कौन  भवंरा बनके चुपचाप,

तेरी  गलियों में आता है !!

 

कली  से काहे पूछे  बात,

की जब होती है आधी रात,

मैं महकती रहती हूँ चुपचाप,

बिचारा खिंच-खिंच आता है !!

 

कभी करता है मिलन की बात ,

सह काटों के आघात वो आधी रात,

नैन से नैन मिला कर चुपचाप,

वो  भवंरा खुद शरमा जाता है !!

 

सखी क्या कह दूँ दिल की बात ,

की अब तो ढलती जाए रात,

नैनों के…

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Added by Hari Prakash Dubey on December 19, 2014 at 12:00am — 6 Comments

गज़ल ~ पेशावर के आँसू

1222 1222 1222 1222



खबर ऐसी करे हैरान पेशावर से आयी है ।

कि बू हैवानियत की फिर पडोसी घर से आयी है ।



धर्म के नाम पर मासूम बच्चे भी नहीँ बख्शे ,

ये बरबरता तुम्हारे कौन से जौहर से आयी है ।



कत्ल इंसानियत का कर जिहादी पायेँगे जन्नत ,

भला तालीम ऐसी कौन पैगम्बर से आयी है ।



जो बोता था हमेशा से किसी के वास्ते काँटे ,

उसे ये चोट अपने ही उगाये खर से आयी है ।



संभल जा दूसरोँ पर नफरतोँ के वार करने से ,

कि अब तो दर्द की आवाज तेरे… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 18, 2014 at 11:32am — 8 Comments

जिंदगी जिंदगी

तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है

कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है

समय कैसे जाता समझ मैं ना पाता
अब समय को चुराने लगी जिंदगी है

कभी ख्बाब में तू हमारे थी आती
अब सपने सजाने लगी जिंदगी है

तेरे प्यार का ये असर हो गया है
अब मिलने मिलाने लगी जिंदगी है

मैं खुद को भुलाता, तू खुद को भुलाती
अब खुद को भुलाने लगी जिंदगी है

"मौलिक व अप्रकाशित"

मदन मोहन सक्सेना

Added by Madan Mohan saxena on December 18, 2014 at 11:10am — 6 Comments

आज़ाद

-"देखो ये लाल-पीले आकाश मेँ उड़कर जाते पंछी कितने प्यारे लगते हैँ न?"

-"हाँ, भइया। आप ठीक कहते हो। ", उसने कुछ बेरूख़ी से कहा।



-"पर तूने क्यूँ चहकना बन्द कर रखा है आजकल, मेरी चिरैया?

कुछ बता तो क्या बात है?"



-"अब भइया मैँ क्या कहूँ ? आप परेशान हो जाओगे।"



-"तू बता तो बाकी सब मुझ पर छोड़।"

"भइया मुझे हॉस्टल मेँ नही रहना। मेर दम घुटता है वहाँ। वो सारी लड़कियाँ मुझे डाँटती रहती हैँ मुझे बात भी नही करने देती उन्हे डिस्टर्ब होता है न।

मैँ बाहर भी नही… Continue

Added by pooja yadav on December 18, 2014 at 10:58am — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
आतंकवाद (लघुकथा)

“अब्बास ये आतंकवादी दीन और ईमान की बात करते हैं, आतंकवादियों का कोई दीन कोई मजहब होता है क्या? बंदूक के ज़ोर पर आतंक फैलाकर कौन सा दीन कायम करना चाहते हैं ?“

अब्बास टी वी की तरफ इशारा करते हुये- “ये बंदूकवाले आतंकवादी खुद मारते और मरते हैं पर कुछ आतंकवादी सिर्फ ज़ुबान चला कर आतंक फैलाते हैं, खुद नहीं मरते मारते ये काम दूसरों से करवाते हैं, दीनो ईमान इनका भी नहीं होता।”

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

Added by शिज्जु "शकूर" on December 18, 2014 at 9:00am — 20 Comments

खुदा ने खुदकुशी कर डाली

महा-खुदा की अदालत में

खुदा आज रो रहा है

लाख  मनाने पर भी वो

चुप  नहीं हो रहा  है !!

 

कभी जाता है, सदमें में

कभी जोर से चिल्लाता है

अपनी, अपनों की हत्या में

मैं शामिल हूँ, दुहराता है !!

 

अव्यक्त था चिर निद्रा में

व्यक्त हुआ ब्रम्हांड रचा है

शुन्य से हुआ अनंत में

सृष्टी का निर्माण किया है !!

 

अभिव्यक्त हुआ कण-कण में

मनुष्य का निर्माण किया है

इतने  सुन्दर गुण डाले…

Continue

Added by Hari Prakash Dubey on December 18, 2014 at 2:00am — 11 Comments

पापा (लघुकथा)

"ये दुनिया तब सच्ची थी जब आप जिंदा थे या अब सच्ची है पापा? हर रिश्ता-नाता झूठा ही लग रहा है अंकल की हिम्मत तो देखिए आज मुझे दिलासा देने के बहाने कई जगह से छुआ। आप हमें छोड़कर क्यों चले गए पापा ये दुनिया बहुत गंदी है।"

"सीमा, मेरी प्यारी बेटी रो मत। भेड़ों के लबादे में भेड़िए हैं सारे के सारे। अपने पापा की एक बात याद रखना ये भेड़िए उन्हीं को नुकसान पहुँचाने की कोशिश करते हैं जो कमजोर होते हैं इसलिए हमेशा खुद को मजबूत रखना मजबूर नहीं।"- सीमा की जब आँखें खुली तो ऐसा लग रहा था जैसे हिम्मत के… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 17, 2014 at 11:50pm — 6 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मेंह्दी वाले हाथ (मिथिलेश वामनकर)

पूरब  से जैसे  चले, शीतल  मंद  बयार ।

मैं रोया तुम रो पड़ी, समझो जीवन पार ।१।

 

जीवनसाथी तू सखी, इक मंदिर का छंद ।

तेरे सहचर  में  मिला, पूजा  का आनंद ।२।

 

तेरी  फूलों-सी हंसी, कलियों सी मुस्कान ।

जीवन को जैसे मिला, खुशियों का सामान।३।

 

ईश्वर  ने कैसा रचा, तेरा  मेरा साथ ।

मेरी ताकत बन गए, मेंह्दी वाले हाथ ।४।

 

रिश्ता अपना खूब है, तू शाखा मैं पात ।

बिन बोले क्या खूब तू, समझे मेरी…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 17, 2014 at 10:30pm — 17 Comments

गीत

जो टूटा सो टूट गया

रूठा सो रूठ गया ।

साथ चले जिस पथ पर थे

आखिर तो वो भी छूट गया ।



गाँव की पगडण्डी वो छूटी , पानी पनघट छूट गया

खेतवारी बँसवारी छूटी, बचपन कोई लूट गया

भर अँकवारी रोई दुआरी ,नइहर मोरा छूट गया ।

जो....



अँचरा अम्मा का जो छूटा ,घर आँगन सब छूट गया

छिप - छिप बाबा का रोना भइया वो बिसुरता छूट गया

तीस उठी है करेजे में ज्यूँ पत्थर कोई कूँट गया ।

जो…।



पाही पलानी मौन हुए मड़ई से छप्पर रूठ गया

सोन चिरईया…

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Added by mrs manjari pandey on December 17, 2014 at 9:30pm — 9 Comments

शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

(दोस्तों मतला लिखा था तरही मुशायरे के लिए ...लेकिन कल पेशावर की घटना ने इतना भाव विह्वल कर दिया कि जो कुछ बन पड़ा है,   बच्चो को श्रद्धांजली के रूप में आज ही पेश कर रहा हूँ .)



शामिल न हुए अब तक हम उनकी दुआओं में,

पर आज भी रखते हैं हम उनको ख़ुदाओं में.



हैवान हुए जाते हो अपनी…

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Added by Nilesh Shevgaonkar on December 17, 2014 at 9:00pm — 6 Comments

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