Added by विनोद खनगवाल on December 12, 2014 at 4:34pm — 11 Comments
Added by Neeraj Nishchal on December 12, 2014 at 1:32pm — 8 Comments
2122 2122
ये भी जीने की अदा है
ग़म खुशी में मुब्तला है
रात भी है चाँद भी और
चाँदनी की ये रिदा है
नेस्त हो जाएगा इक दिन
रेत पर जो घर बना है
हादसों के दरमियाँ इक
ज़िन्दगी का सिलसिला है
मखमली सा लम्स तेरा
सर्द जैसे ये सबा है
तुझमें है यूँ अक्स मेरा
तू कि जैसे आइना है
मैं नहीं तन्हा सफ़र में
साथ अपनो की दुआ है
छोर पर नाकामियों…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 10:15pm — 23 Comments
Added by Rahul Dangi Panchal on December 11, 2014 at 10:00pm — 14 Comments
कुछ लिखना चाहता हूँ
पर सोचता हूँ क्या लिखूं
कलम जब होती है हाथ में
दिल करता है कुछ सांय-सांय
सोचता हूँ
पुण्य लिखूं
सेवा लिखूं, सम्मान लिखू
हाथ से फिसलता आसमान लिखूं
सत्य लिखूं , प्रेम लिखूं
ममता लिखूं , मौन-व्यापार लिखूं
किसी उजड़ी बस्ती का हाहाकार लिखूं
पाप लिखूं, शाप लिखूं
मन का परिमाप लिखूं
भूख लिखूं , स्वार्थ लिखूं
टी वी से झांकता
आधुनिक परमार्थ लिखूं
थाना लिखूं, जेल…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 11, 2014 at 12:30pm — 17 Comments
Added by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 9:59am — 13 Comments
२२ २२ २२ २२ २२ २२
कैलेण्डर के सवालों से सहम जाता हूँ मैं
ईद दीवाली को जब नज़र मिलाता हूँ मैं
परदों से घर का हाल भला लगता है
परदों से घर की मुफलिसी छुपाता हूँ मैं
जीवन और गणित का हिसाब यार खरा है
जब आंसूं जुड़ता है हँसी घटाता हूँ मैं
मैं था काफिला था और सफ़र लम्बा
मन्जिल तक जाते तनहा रह जाता हूँ मैं
कोई मुझसे भी पूछे तू क्या चाहे गुमनाम
है प्यास प्यार की ,प्यासा रह जाता हूँ…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 5:30pm — 16 Comments
शादी को ३ महीने हुए थेI सुबह करीब १०.३० बजे, चित्रा नहा धो कर बाहर निकली और एक प्याला गर्म चाय का ले कर अपना LP प्लेयर ओंन कर दिया I यह वह समय था जब वह एकांत में चाय के साथ कोई ग़ज़ल या गीत सुनती है I यह वक़्त किसी के साथ भी शेयर करना उसे पसंद ना था I ख़ास तौर पर, पति के साथ I उन दोनों के स्वभाव का अंतर इस वक़्त और मुखर हो कर उसे डसने लगता था I इसलिए उनके जाने के पश्चात वह फारिग हो, कुछ समय नितांत अपने लिए चुनती थी, और यह वही समय था I आँखें बंद किये मेंहदी हसन की आवाज़ उसके अंतर में पहुँच रही थी I…
ContinueAdded by poonam dogra on December 10, 2014 at 4:00pm — 13 Comments
हूँ महफ़िलों में तन्हा, खुद की नज़र में रुस्वा
हर एक रंग फीका , हर एक शै फसुर्दा
आवाज़ें दोस्तों की ,मुझ से नहीं हैं गोया
ज़िंदा दिली भी जैसे , करती है मुझ से पर्दा
क्या ग़म है ज़िन्दगी में , तुमको बताऊँ कैसे
अब तक हुआ नहीं है , ये राज़ मुझे पे अफ़्शाँ
उलझन है कैसी दिल की ? उलझन यही है मुझको
रंग ज़िन्दगी से रूठे , दिल भी रंगों से रूठा…
Added by saalim sheikh on December 10, 2014 at 3:30pm — 7 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:51am — 22 Comments
1 2 2 2
हुआ पैदा कि धोके से, किसी का पाप मैं बन के
मुझे फेंका गया गन्दी कटीली झाड़ियों में फिर
कि चुभती झाड़ियाँ फिर फिर, कि होता दर्द भी फिर फिर
यहाँ काटे कभी कीड़े, वहां फिर चीटियाँ काटे
पड़ा देखा, उठा लाई, मुझे इक चर्च की दीदी.
हटा के चीटियाँ कीड़े, धुलाए घाव भी मेरे
बदन छालों भरा मेरा, परेशां मैं अज़ीयत से
खुदा से मांगता हूँ मौत अपनी सिर्फ जल्दी से
बड़ी नादान दीदी वो, लगाती जा रही मरहम
दुआ…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 1:30am — 15 Comments
पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे
मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे
फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया
किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे
उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे
इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे
कर्म के ही हल…
ContinueAdded by ajay sharma on December 9, 2014 at 11:00pm — 8 Comments
सुन्दर शय्या
अधमुँदी सी आँखे
एक लम्बी सांस
एकांत वास
सोच के तार
अतीत मे जा
जिंदगी की किताब
खोली जो इक बार
पन्ना- दर- पन्ना
धोखा, छल, आघात
कभी भावुकता तो
कभी अज्ञानता
भरे निर्णय,
कभी विवशता
रिश्ते निभाने की
तो कभी मजबूरी
सामाजिकता की,
जीवन की लम्बी डगर
पग-पग अवरोध,
बावजूद, बढ़ती गई वो
कदम-कदम
लड़खड़ाती,संभलती
तपन दिनकर की सहती,
चढती गई
हर चढाई
मिले…
Added by Meena Pathak on December 9, 2014 at 10:30pm — 14 Comments
22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22
मस्जिद न शिवाला है,
दिल में रहता तू,
तेरा घर भी निराला है.
तू मन का दरपन है
बस एक उजाले से,
सूरज भी रौशन है.
देखों मन का आँगन,
बादल आँखों में,
फिर खूब झरा सावन.
लो छूटा अपना घर,
एक मुसाफिर हूँ,
लम्बा है आज सफ़र.
सूरज जब ढल जाए,
मन अँधियारा हो,
तब दीपक जल जाए.
परबत पर बादल है,
दरिया बहता…
ContinueAdded by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 1:00am — 16 Comments
बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२
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अपनी मिठास पे उसे बेहद गरूर था
समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था
मृगया में लिप्त शेर को देखा जरूर था
बकरी के खानदान का इतना कसूर था
दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला
दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था
शब्दों में विश्व जीत के शब्दों में छुप गया
लगता था जग को वीर जो शब्दों का शूर था
हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें
लेकिन…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:30pm — 30 Comments
अब नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
हालाँकि बदला कुछ खास नहीं है.
सिर्फ माता-पिता का साया उठा है ,
उस घर से , अलावा सब वैसा ही तो है,
भाई-भाभी, बच्चे , पडोसी सब.
पर पता नहीं अब क्यों नहीं ,
लगता मन ,
सोचता हूँ क्या खास था तब ,
दौड़ा चला आता था मैं ,
बेवजह छुट्टियां लेकर ,
अब छुट्टी हो तब भी ,
नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर जाने को ,
ना जाने क्यों ?
अप्रकाशित -मौलिक
Added by Naval Kishor Soni on December 8, 2014 at 6:07pm — 13 Comments
अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर
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स्वीकार हैं मुझे आज भी
कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे
तुम्हारे फेके गये पत्थर
तब भी फल ही दिये मैनें
आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा
मैं जानता हूँ और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है
यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी
चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं
मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में
पर आज…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on December 8, 2014 at 4:30pm — 20 Comments
.
"मौलिक व…
Added by Shraddha Thawait on December 8, 2014 at 3:30pm — 11 Comments
डाटा
मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |
पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -
वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|
उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…
ContinueAdded by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2014 at 9:51am — 14 Comments
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