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सपना (लघुकथा)

"सर, मैं मुंबई वाले प्राॅजेक्ट पर आपके साथ नहीं चल पाऊँगी।"- कहते हुए निशा ने फोन रख दिया।

"क्या हुआ निशा?"- अपनी बहन को परेशान देखकर नीरज ने पूछा।

"भैया हमारी कम्पनी एक नया प्राॅजेक्ट शुरू कर रही है। बाॅस मुझे मुंबई साथ में चलने की जिद्द कर रहे हैं और मैं वहाँ अकेले उनके साथ जाना नहीं चाहती। बाॅस कह रहे हैं अगर साथ नहीं चली तो समझो जाॅब गई। भैया फिर घर का खर्चा कैसे चलेगा?"

पढाई पूरी करने के बाद बेरोजगार घुम रहे नीरज का सपना बहुत बड़ा आदमी बनने का था लेकिन आज अपनी बहन को दुविधा… Continue

Added by विनोद खनगवाल on December 12, 2014 at 4:34pm — 11 Comments

गजल ~ बज्म ए मुहब्बत मेँ

122 122 122 122



मुहब्बत मेँ अब क्या से क्या बन गया वो ।

किसी की नजर का खुदा बन गया वो ।



कि अब मन्नतोँ मेँ भी है नाम उसका ,

किसी दिल की माँगी दुआ बन गया वो ।



किसी ने तराशी जो तस्वीर उसकी ,

तो इंसान सबसे जुदा बन गया वो ।



उसे देखकर देखकर चैन पाता है कोई ,

किसी दर्दे दिल की दवा बन गया वो ।



कभी बेवफाई के भी था न काबिल ,

मगर अब किसी की वफा बन गया वो ।



लिखी थी खिजाँओँ ने तकदीर जिसकी ,

बहारोँ की महकी फिजा बन… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 12, 2014 at 1:32pm — 8 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल- ग़म खुशी में मुब्तला है

2122  2122

ये भी जीने की अदा है

ग़म खुशी में मुब्तला है

 

रात भी है चाँद भी और

चाँदनी की ये रिदा है

 

नेस्त हो जाएगा इक दिन

रेत पर जो घर बना है

 

हादसों के दरमियाँ इक

ज़िन्दगी का सिलसिला है

 

मखमली सा लम्स तेरा

सर्द जैसे ये सबा है

 

तुझमें है यूँ अक्स मेरा

तू कि जैसे आइना है

 

मैं नहीं तन्हा सफ़र में

साथ अपनो की दुआ है

 

छोर पर नाकामियों…

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Added by शिज्जु "शकूर" on December 11, 2014 at 10:15pm — 23 Comments

गजल- वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है

2212 122 1222

हर शेर में ये दरकार रखनी है!
वो बेवफा तो हर बार रखनी है!!

अशआर शेर अशआर रखनी है!
वो लफ़्ज लफ़्ज गद्दार रखनी है!!

जब तक वो खुदखुशी कर न ले मुझको!
हर लफ़्ज एक तलवार रखनी है!!

बीमार हूँ तो हँस कर दिखाऊं क्यूं!
ये नज़्म भी तो बीमार रखनी है!!

तू मर अभी नहीं सकता ऐ'राहुल'!
के बात और दो चार रखनी है!!


मौलिक व अप्रकाशित!

Added by Rahul Dangi Panchal on December 11, 2014 at 10:00pm — 14 Comments

आदमी

कुछ लिखना चाहता हूँ

पर सोचता हूँ क्या लिखूं 

कलम जब होती है हाथ में

दिल करता है कुछ सांय-सांय

सोचता हूँ

पुण्य लिखूं

सेवा लिखूं, सम्मान लिखू

हाथ से फिसलता आसमान लिखूं

सत्य लिखूं , प्रेम लिखूं

ममता लिखूं , मौन-व्यापार लिखूं

किसी उजड़ी बस्ती का हाहाकार लिखूं

पाप लिखूं, शाप लिखूं

मन का परिमाप लिखूं

भूख लिखूं , स्वार्थ लिखूं

टी वी से झांकता

आधुनिक परमार्थ लिखूं 

थाना लिखूं, जेल…

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Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 11, 2014 at 12:30pm — 17 Comments

गीत ~ उसकी दीवानगी मेँ अब

उसकी दीवानगी मेँ अब मचलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी यादोँ मेँ रह रहकर

युँ जलना छोड दे ऐ दिल ।



जो तेरा हो नहीँ सकता उसे पाने की चाहत क्योँ ।

किसी संगदिल से आखिर तू करे इतनी मुहब्बत क्योँ ।



ये झूठी ख्वाहिशोँ की राह चलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ अब.............

तमाशे मेँ तेरे पडकर तमाशा हो गया हूँ मै ।

तेरी नादानियोँ से अब परेशाँ हो गया हूँ मै ।



खयालोँ तू उसके अब बहलना छोड दे ऐ दिल ।

उसकी दीवानगी मेँ… Continue

Added by Neeraj Nishchal on December 11, 2014 at 9:59am — 13 Comments

ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, गुमनाम पिथौरागढ़ी

२२  २२  २२  २२  २२  २२

कैलेण्डर के सवालों से सहम जाता हूँ मैं

ईद दीवाली को जब नज़र मिलाता हूँ मैं

परदों से घर का हाल भला  लगता है

परदों से घर की मुफलिसी छुपाता  हूँ मैं

जीवन और गणित का हिसाब यार खरा है

जब आंसूं जुड़ता है हँसी घटाता हूँ मैं

मैं था काफिला था और सफ़र लम्बा

मन्जिल तक जाते तनहा रह जाता हूँ मैं

कोई मुझसे भी पूछे तू क्या चाहे गुमनाम

है प्यास  प्यार की ,प्यासा रह जाता हूँ…

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Added by gumnaam pithoragarhi on December 10, 2014 at 5:30pm — 16 Comments

पुरानी औरत (कहानी)

शादी को ३ महीने हुए थेI सुबह करीब १०.३० बजे, चित्रा नहा धो कर बाहर निकली और एक प्याला गर्म चाय का ले कर अपना LP प्लेयर ओंन कर दिया I यह वह समय था जब वह एकांत में चाय के साथ कोई ग़ज़ल या गीत सुनती है I यह वक़्त किसी के साथ भी शेयर करना उसे पसंद ना था I ख़ास तौर पर, पति के साथ I उन दोनों के स्वभाव का अंतर इस वक़्त और मुखर हो कर उसे डसने लगता था I इसलिए उनके जाने के पश्चात वह फारिग हो, कुछ समय नितांत अपने लिए चुनती थी, और यह वही समय था I आँखें बंद किये मेंहदी हसन की आवाज़ उसके अंतर में पहुँच रही थी I…

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Added by poonam dogra on December 10, 2014 at 4:00pm — 13 Comments

ग़ज़ल

हूँ महफ़िलों में तन्हा, खुद की नज़र में रुस्वा

हर एक रंग फीका , हर एक शै फसुर्दा



आवाज़ें दोस्तों की ,मुझ से नहीं हैं गोया

ज़िंदा दिली भी जैसे , करती है मुझ से पर्दा



क्या ग़म है ज़िन्दगी में , तुमको बताऊँ कैसे

अब तक हुआ नहीं है , ये राज़ मुझे पे अफ़्शाँ



उलझन है कैसी दिल की ? उलझन यही है मुझको

रंग ज़िन्दगी से रूठे , दिल भी रंगों से रूठा…

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Added by saalim sheikh on December 10, 2014 at 3:30pm — 7 Comments

घर वो होता है -- डॉo विजय शंकर

घर वो होता है ,

जहां आपका सदैव

इन्तजार होता है ।

जहां आप जाते नहीं ,

आप , जहां भी जाते हैं ,

वहीँ से जाते हैं ।

घर न दूर होता है , न पास होता है ,

जहां से हम सारी दूरियां नापते हैं ,

घर वो होता है ।

घर वो होता है,

जहां माँ होती है ,

जहां से माँ आपको कहीं भी भेजे ,

आपका इन्तजार वहीँ करती होती है ।

माँ जननी होती है , जनम देती है ,

धरती पर लाती है , माँ घर बनाती है ,

माँ ही घर देती है ,जब तक माँ होती है ,

अपने सब… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 10, 2014 at 9:51am — 22 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मुझे तो जीतना ही था (नज़्म, बह्र-ए-हजज़)

1 2 2 2

 

हुआ पैदा कि धोके से, किसी का पाप मैं बन के

मुझे फेंका गया गन्दी कटीली झाड़ियों में फिर

कि चुभती झाड़ियाँ फिर फिर, कि होता दर्द भी फिर फिर

यहाँ काटे कभी कीड़े, वहां फिर चीटियाँ काटे

 

पड़ा देखा, उठा लाई, मुझे इक चर्च की दीदी.

 

हटा के चीटियाँ कीड़े, धुलाए घाव भी मेरे

बदन छालों भरा मेरा, परेशां मैं अज़ीयत से

खुदा से मांगता हूँ मौत अपनी सिर्फ जल्दी से

 

बड़ी नादान दीदी वो, लगाती जा रही मरहम

दुआ…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 10, 2014 at 1:30am — 15 Comments

पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे...............

पीर पैरों की खड़ा होने नही देती मुझे

मेरी देहरी ही बड़ा होने नहीं देती मुझे

फिर वही आँगन की परिधि में बँट गया 

किंतु सीमाएँ मेरी खोने नहीं देती मुझे

उधर पाबंदी ज़माने की हैं हँसनें पे मेरे

इधर दीवारें मेरी रोने नहीं देती मुझे

कर्म के ही हल…

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Added by ajay sharma on December 9, 2014 at 11:00pm — 8 Comments

विश्राम !!

सुन्दर शय्या

अधमुँदी सी आँखे

एक लम्बी सांस

एकांत वास

सोच के तार

अतीत मे जा 

जिंदगी की किताब

खोली जो इक बार

पन्ना- दर- पन्ना

धोखा, छल, आघात

कभी भावुकता तो 

कभी अज्ञानता

भरे निर्णय,

कभी विवशता

रिश्ते निभाने की

तो कभी मजबूरी 

सामाजिकता की,

जीवन की लम्बी डगर

पग-पग अवरोध,

बावजूद, बढ़ती गई वो 

कदम-कदम

लड़खड़ाती,संभलती

तपन दिनकर की सहती,

चढती गई

हर चढाई

मिले…

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Added by Meena Pathak on December 9, 2014 at 10:30pm — 14 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
माहिया- क़िस्त एक

22-22-22 / 22-22-2 / 22-22-22

 

मस्जिद न शिवाला है,

दिल में रहता तू,

तेरा घर भी निराला है.

 

तू मन का दरपन है

बस एक उजाले से,

सूरज भी रौशन है.

 

देखों मन का आँगन,

बादल आँखों में,

फिर खूब झरा सावन.

 

लो छूटा अपना घर,

एक मुसाफिर हूँ,

लम्बा है आज सफ़र.

 

सूरज जब ढल जाए,

मन अँधियारा हो,

तब दीपक जल जाए.

 

परबत पर बादल है,

दरिया बहता…

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Added by मिथिलेश वामनकर on December 9, 2014 at 1:00am — 16 Comments

ग़ज़ल : समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था

बह्र : २२१२ १२११ २२१२ १२

------------

अपनी मिठास पे उसे बेहद गरूर था

समझा था जिसको आम वो बंदा खजूर था

 

मृगया में लिप्त शेर को देखा जरूर था

बकरी के खानदान का इतना कसूर था

 

दिल्ली से दिल मिला न ही दिल्ली में दिल मिला

दिल्ली में रह के भी मैं यूँ दिल्ली से दूर था

 

शब्दों में विश्व जीत के शब्दों में छुप गया

लगता था जग को वीर जो शब्दों का शूर था

 

हीरे बिके थे कल भी बहुत, आज भी बिकें

लेकिन…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on December 8, 2014 at 8:30pm — 30 Comments

ना जाने क्यों ?

अब नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर  जाने को ,
 ना जाने क्यों ?
हालाँकि बदला कुछ खास नहीं है.
सिर्फ माता-पिता का साया उठा है ,
उस घर से , अलावा  सब वैसा ही  तो है,
भाई-भाभी, बच्चे , पडोसी सब.
पर  पता नहीं अब क्यों नहीं ,
लगता मन ,
सोचता हूँ क्या खास था तब ,
दौड़ा चला आता था मैं ,
बेवजह छुट्टियां लेकर ,
अब छुट्टी हो तब भी ,
नहीं करता मेरा मन ,
अपने घर  जाने को ,
ना जाने क्यों ?

अप्रकाशित -मौलिक

Added by Naval Kishor Soni on December 8, 2014 at 6:07pm — 13 Comments


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अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर ( गिरिराज भंडारी )

अतुकांत - स्वीकार हैं मुझे तुम्हारे पत्थर

*****************************************

स्वीकार हैं मुझे आज भी

कल भी थे स्वीकार , भविष्य मे भी रहेंगे

तुम्हारे फेके गये पत्थर

तब भी फल ही दिये मैनें

आज भी दे रहा हूँ , और मेरा कल जब तक है देता रहूँगा

मैं जानता हूँ  और मानता हूँ , इसी में तो मेरी पूर्णता है

यही मेरी नियति है , और उद्देश्य भी

चाहे मेरी जड़ों को तुमने पानी दिया हो या नहीं

मैं अटल हूँ , अपने उद्देश्य में

पर आज…

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Added by गिरिराज भंडारी on December 8, 2014 at 4:30pm — 20 Comments

शिकायतें (लघुकथा)

"गुप्ता की बहुत शिकायतें आ रहीं हैं. लगता है इसका ट्रांसफर करना ही पड़ेगा। "
"लेकिन सर, वह तो नक्सल प्रभावित क्षेत्र में पोस्टेड है। "

"अच्छा-अच्छा ! तब तो ट्रांसफर करवाने के लिए खुद ही शिकायतें भेज रहा होगा। सारी शिकायतें कचरे के डिब्बे में डाल दो।"


.

"मौलिक व…

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Added by Shraddha Thawait on December 8, 2014 at 3:30pm — 11 Comments

डाटा (कहानी )

डाटा

 

मैमोरी-कार्ड लगाकर हरीश ने गैलरी खोली |परंतु-वहाँ सब कुछ खाली था |कोई पिक्चर-वीडियो-ऑडियो कुछ भी नहीं |शायद कैमरे का सोफ्टवेयर खराब हो ये सोच कर वो पड़ोसी के पास पहुँचा |

पहले पड़ोसी का मोबाईल ,फिर पी.सी. पर नतीजा वही - - - -

वही संदेश –ये फाईल खुल नहीं सकती या खराब हो चुकी है|

उसकी आँखों के सामने शून्य तैर गया |सब कुछ खत्म हो जाने के अहसास से वो टूट गया |कुछ भी नहीं बचा था अब जगजाहिर करने को |बेशक उसके मन में स्मृतियों का अनंत संरक्षित हो पर बाहरी तौर…

Continue

Added by somesh kumar on December 8, 2014 at 11:19am — 10 Comments

ये मोहब्बत भी क्या चीज़ होती है -- डॉo विजय शंकर

हर बात की वजह होती है

ये मोहब्बत ही क्यों बेवजह होती है

और जो बवजह हो , वो कुछ भी हो ,

यक़ीनन, वो मोहब्बत नहीं होती है ॥



जानकार कहते हैं ,

बिना हिलाये तो पता भी नहीं हिलता ,

बिना किये तो कुछ भी नहीं होता है ,

फिर ये मोहब्बत क्यूँकर अपने आप होती है ।



यूँ तो बहुत जगाये रहती है , फिर भी ,

ये मोहब्बत क्यों एक गहरी नींद का ,

एक ख़्वाब सी लगती है जो हमेशा

टूट जाने के डर के साये में रहती है ॥



मोहब्बत कोई गुनाह तो नहीं है ,… Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on December 7, 2014 at 9:51am — 14 Comments

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"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
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