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भला क्या ?

बुरा क्या ?

 

खुदी से

मिला क्या

 

शज़र फिर

फला क्या ?

 

लिखे बस

पढ़ा क्या ?

 

फलक था

गिरा क्या ?

 

कहे बस

सुना क्या ?

 

नहीं दम

चला क्या ?

 

गजल ये

क़ता क्या ?

 

कटे पर

हवा क्या ?

 

मुहब्बत

दवा क्या ?

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:42pm

आदरणीया प्रतिभा जी आपकी सराहना और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार ... एक रुक्नी ग़ज़ल ऐसे ही कह सकते है और इस रुक्न में केवल 5 मात्रा ही उपलब्ध है वो भी 122 में ...


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:22pm

आदरणीय  Hari Prakash Dubey जी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ...धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:21pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  सर आपकी सराहना और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद . नमन 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 9:17pm
आदरणीय गिरिराज सर इस प्रयोग पर उत्साहवर्धक टिप्पणी और स्नेह के लिए हार्दिक आभार।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 12, 2015 at 5:06pm

गज़ब .........आदरणीय मिथिलेश जी दिल से बधाई आपको !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 3:28pm

गजल कहूं या पहेली  ! लाजवाब i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 12, 2015 at 10:48am

बस ! कमाल है भाई मिथिलेश जी , बहुत खूबसूरती से इतनी छोटी बह्र निभाई है आपने । बधाइयाँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:27am

आदरणीय गुमनाम सर जी इस सराहना के लिए हार्दिक आभार ... हार्दिक धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:26am

आदरणीय खुर्शीद जी प्रयोग को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार, धन्यवाद 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 12, 2015 at 8:24am

आदरणीय सोमेश भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई .. हार्दिक आभार धन्यवाद 

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