For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,119)

अहसास की ग़ज़ल

12122×4

अंधेरी घाटी में रोशनी का हसीन चश्मा जरूर होगा

हमें खबर तो नहीं है फिर भी तलब का रस्ता जरूर होगा

पुराने शब्दों की बारिशों में सकून अपना तलाश कर ले

जो उसके दिल में कहीं नहीं था वो खत में लिक्खा जरूर होगा

तेरे कदम यूं जमे हुए हैं, तुझे हिलाना सरल नहीं है

हमारी आहों से फिर भी इक दिन तेरा तमाशा जरूर होगा

चरागों का दम चुराने वाले क्या तुझको इतनी समझ नहीं है,

बुझेगी सूरज की जिंदगी जब, इन्हें जलाना जरूर होगा…

Continue

Added by मनोज अहसास on September 24, 2019 at 12:50am — 4 Comments

"लक्ष्य तय करो जीवन का "(कविता)

स्वरचित कविता

शीर्षक- "लक्ष्य तय करो जीवन का"

पंचभूत तन दो दिन का

लक्ष्य तय करो जीवन का

शैशव में मासूम रहें सब

सीखें हैं जीने का ढब

धीरे-धीरे तन मुस्काए

मन में चुलबुल शोखी आए

पथ पर मंथर कदम पड़ें

करतब करते लघु बड़े

गतिमय जीवन निश-दिन का

पंचभूत तन दो दिन का

लक्ष्य तय करो जीवन का

सदाचार का पाठ पढ़ो

सुगढ़ प्रेम के तंत्र गढ़ो

करो बड़ों का तुम सम्मान

बंधु!देव!मनुज-संतान!

छोटों पर वात्सल्य लुटाओ

खिलखिल करके गले…

Continue

Added by Dr. Anju Lata Singh on September 23, 2019 at 6:44pm — 3 Comments

शमा और मैं

शमा जली, उठा धुँआ 

तुम वहाँ औऱ मैं यहाँ 

सोचती हूँ के क्या लिखूं 

जिस्म यहाँ औऱ दिल वहाँ

पकड़ी क़लम ने उंगलियां 

टो सुझा नहीं के क्या लिखें 

तेरी अधूरी दास्तां या फ़िर …

Continue

Added by प्रदीप देवीशरण भट्ट on September 23, 2019 at 6:30pm — 1 Comment

कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं

कहाँ हूँ, कौन हूँ मैं

क्यूँ मद हवा सा डोल रहा

क्या कोई हवा का झोका हूँ जो

क्यूँ हर नियम को तोड़ चला ||

 

क्या बहते जल की धारा हूँ

जिधर चले उस ओर मार्ग बना

कल-कल, छल-छल की आवाज कर

शुद्ध तन-मन को मैं करता चला ||

 

क्या खुला आकाश हूँ मैं

जो अनंत, असीम है

जीव जन्म का बीज है जो

छोर का जिसके नहीं पता ||

 

क्या असीमित सी भू-धरा हूँ मैं

सहनता की सीमा नहीं

हर…

Continue

Added by PHOOL SINGH on September 23, 2019 at 3:51pm — 6 Comments

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।

हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।

उड़ने की ख़्वाहिश और सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।

अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।

इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।

फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना…

Continue

Added by Usha on September 23, 2019 at 3:22pm — 3 Comments


मुख्य प्रबंधक
ग़ज़ल

घोघा रानी, कितना पानी ।

बदला मौसम, बरसा पानी ।।

डूब गई गली और सड़कें ।

नगर निगम का उतरा पानी ।।

सब कुछ अच्छा करते दावा ।

नही बचा आँखों का पानी ।।

गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।

सब नदियों में उफना पानी ।।

मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।

पितरों को भी देता पानी ।।

नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।

उठा गरीब का दाना पानी ।।

जल दूषित से उनको क्या है ?

वो पीते बोतल का पानी…

Continue

Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2019 at 12:30pm — 7 Comments

क्या सोचते हैं हम — डॉo विजय शंकर

सोचता हूँ ,

अब तो यह भी सोचना पड़ेगा

कि कैसे सोचते हैं हम ?

कितनी सीमाओं में सोचते हैं हम ?

या किस सीमा तक सोचते हैं हम ?

कुछ सोचते भी हैं हम ?

अगर नहीं तो क्यों नहीं सोचते हैं हम ?

सच तो यह है कि ' बिना विचारे जो करे ' .....

भी नहीं सोचते हैं हम।

खुद में गज़ब का विश्वास रखते है हम ?

बस सोचने में क्रियाशील रहते हैं हम ,

जितनी तेजी से आगे जाते हैं

उतनी हे तेजी से लौट आते हैं।

नतीज़तन वहीं के वहीं रह जाते हैं हम।…

Continue

Added by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2019 at 10:01am — 6 Comments

देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में(६४)

देखा इतना दर्द दिलों का इस बेदर्द ज़माने में

बस थोड़ा सा वक़्त बचा है सैलाबों को आने में

**

अपनापन का जज़्बा खोया और मरासिम भी टूटे

कंजूसी करते हैं सारे थोड़ा प्यार दिखाने में

**

उनकी फ़ितरत कैसी होगी ये अंदाज़ा मुश्किल है

जिनको खूब मज़ा आता है गहरी चोट लगाने में

**

वादा पूरा करना अपना इस सावन में आने का

वरना दिलबर क्या रक्खा है सावन आने जाने में

**

बात…

Continue

Added by गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' on September 23, 2019 at 7:30am — 6 Comments

फिर से जी लूँ ... अतुकांत कविता

ज़िम्मेदारियों में उलझी ज़िंदगी,

सरक-सरक कर गुज़रने लगी।



हादसों का सिलसिला ऐसा चला,

उम्र का अहसास गहराता गया।



उड़ने की ख़्वाहिश औ सारे ख़्वाब,

कहीं घुप अंधेरे में आंखें मूंदे बैठ गए।



अचानक तेज़ हवा के झोंके ने,

यूँ छू दिया कि नये अरमान उमड़ पड़े।



इस लम्बी रात का सुंदर सवेरा हुआ,

बादल छँट गए, इंद्रधनुष ने रंग बिखेरे।



फिर से जी लूँ, दिल ने तमन्ना की,

ऐ हवा के हसीं झोंके, रूख़ ना बदल लेना ।

मौलिक…

Continue

Added by Usha on September 22, 2019 at 2:14pm — 2 Comments

उदास बैठे हैं - सलीम रज़ा रीवा

1212 1122 1212 22

जो मेरी छत पे कबूतर उदास बैठे हैं

वो तेरी याद में दिलबर उदास बैठे हैं



तुम्हारी याद के लश्कर उदास बैठे हैं

हसीन ख़्वाब के मंज़र उदास बैठे हैं



तमाम गालियाँ हैं ख़ामोश तेरे जाने से

तमाम राह के पत्थर उदास बैठे हैं



बिना पिए तो सुना है उदास रिंदों को

मियाँ जी आप तो पी कर उदास बैठे हैं 



ज़रा सी बात पे वो छोड़ कर गया मुझको…

Continue

Added by SALIM RAZA REWA on September 20, 2019 at 11:00pm — 4 Comments

नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना- ग़ज़ल

1222 1222 122
नहीं अच्छा है यूँ मजबूर होना
दिखो नजदीक लेकिन दूर होना।

कली का कुछ समय को ठीक है, पर
नहीं अच्छा चमन, मगरूर होना।

अँधेरों में उजालों को दे रस्ता
चिरागों का न थकना चूर होना

कोई कहता इसे वरदान है ये
खले लेकिन किसी को हूर होना।

अभी सूखा नहीं रख ले तसल्ली
दिखेगा ज़ख्म का नासूर होना।

कदम तो चूम लेगी जीत तेरे
है बाकी बस तुझे मंजूर होना।

मौलिक अप्रकाशित

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on September 20, 2019 at 2:00pm — 2 Comments

"जब तुम्हारें शह्र में आना हुआ"

2122 2122 212

इस कदर था इश्क़ में डूबा हुआ।

चढ़ गया सूली पे वो हँसता हुआ।।

अब कहूँ क्या इश्क़ में क्या क्या हुआ।

हर कदम पर इक नया धोखा हुआ।।

जब किसी को इश्क़ में धोखा हुआ।

फिर उसे देखा नहीं हँसता हुआ।।

क्या बताऊँ मैं तुझे क्या क्या हुआ।

है मेरा जीवन बहुत उलझा हुआ।।

और कुछ तेरे सिवा दिखता नहीं।

इस कदर मैं तेरा दीवाना हुआ।।

मानता कब है किसी की बात वो।

वक़्त जिसका हो बुरा आया…

Continue

Added by surender insan on September 20, 2019 at 1:00pm — 2 Comments

नज़रिया - लघुकथा ---

नज़रिया - लघुकथा ---

अमर अपने सहपाठी के साथ घर से लगे लॉन में क्रिकेट खेल रहा था। उसके मित्र को प्यास लगी तो अमर अंदर पानी लेने चला गया। इसी बीच अमर की विधवा बुआजी तुलसी के पत्ते  लेने बाहर आईं।

"ए लड़के कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो?"

"मैं अमर के साथ पढ़ता हूँ। उसने ही बुलाया था।"

"अमर के सभी दोस्तों को जानती हूँ।तुम्हें तो कभी नहीं देखा।"

"हाँ आँटी, मैं पहली बार आपके यहाँ आया हूँ।"

"क्या नाम हैं तुम्हारा?"

"असगर अली।"

"तुम मुसलमान…

Continue

Added by TEJ VEER SINGH on September 19, 2019 at 8:32pm — 2 Comments

ग़ज़ल-लालफीताशाही-बृजेश कुमार 'ब्रज'

मंच को प्रणाम करते हुए ग़ज़ल की कोशिश

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

लालफीताशाही कितनी मिन्नतों को खा गई

ये व्यवस्था  ढेर  सारे  मरहलों  को खा गई

ये  कहा था  साहिबों  ने घर नये  देंगे  बना

साब की दरियादिली भी झोपड़ों को खा गई

अब तरक़्क़ी की बयारें इस क़दर काबिज़ हुईं

पेड़ तो काटे  जड़ों से कोपलों  को खा गई

कुछ गवाही दे रही है मयक़दे की रहगुज़र

मयकशी हँसते हुये कितने घरों को खा गई

भूख  से बेहाल…

Continue

Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 19, 2019 at 2:29pm — 9 Comments

दु:स्वप्न (लघुकथा )

‘सीते ---- ?’

‘कौन --- स्वामी ?’

‘नही मैं अभाग्य हूँ I’

‘ तो मुझसे क्या चाहती हो ?’

‘मैं कुछ चाहती नहीं , मैं तो तुम्हे सावधान करने आयी हूँ I ‘

‘किस बात के लिए ?’

‘तुम्हारा राम से बिछोह होगा I…

Continue

Added by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 19, 2019 at 2:00pm — 6 Comments

वे ही सन्त होते हैं

करो कितना विवेचन

शैलियों , पांडित्य का, लेकिन

भावों के धरातल पर ही

गौतम बुद्ध बनते हैं

हुए तर्कों , वितर्कों से परे

वे शुद्ध हो गए

प्रकृति के सब प्रपंचों से 

निरुद्ध , प्रबुद्ध हो गए

जो खेलें दूसरों की गरिमा से

उन्मत्त होते हैं

सदा जो प्रेम से भरपूर

वे ही सन्त होते हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Usha Awasthi on September 18, 2019 at 10:30pm — 1 Comment

दीप बुझा करते है जिसके चलने पर - गजल( लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर')

२२२२/२२२२/२२२


अश्क पलक से भीतर रखना सीख लिया
गम थे बेढब फिर  भी हँसना सीख लिया।१।


जख्म दिए  हैं  जब से  हँसकर  फूलों ने
काँटों को भी फूल हैं कहना सीख लिया।२।


कदम- कदम  पर  खंजर  रक्खे  अपनों  ने
हम भी शातिर जिन पर चलना सीख लिया।३।


दीप बुझा  करते  है  जिसके चलने पर
उस आँधी से हमने जलना सीख लिया।४।


उनकी कोशिश  थी  पत्थर से अटल रहें
नदिया बनकर हम ने बहना सीख लिया।५।


मौलिक/अप्रकाशित

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on September 18, 2019 at 7:29pm — 4 Comments

व्यस्तता- लघुकथा

"अब गांव चलें बहुत दिन बिता लिए यहाँ", शोभाराम ने जब पत्नी ललिता से कहा तो जैसे उनके मुंह की बात ही छीन ली.

लेकिन बेटे और बहू से क्या कहेंगे, गांव पर तो कोई रहता नहीं था,पट्टीदारों के अलावा. वैसे वहां पर अपने हिसाब से जीने की आज़ादी थी लेकिन यहाँ भी तो है ही, कोई बंधन नहीं है. उनके दिमाग में कई दिनों से यह सब घूम रहा था.

"अच्छा यह बताओ, आखिर क्या कह कर गांव जाओगे. बेटा तो यही कहकर शहर लाया था कि गांव में अकेले रहते हैं, कौन है जो आपका अकेलापन बाँटने के लिए", ललिता के सवाल पर लाजवाब हो…

Continue

Added by विनय कुमार on September 17, 2019 at 7:36pm — 6 Comments

क्षणिकाएं —डॉo विजय शंकर

एक नेता ने दूसरे को धोया ,
बदले में उसने उसे धो दिया।
छवि दोनों की साफ़ हो गई।।.......1.

मातृ-भाषा हिंदी दिवस ,
एक उत्सव हम ऐसा मनाते हैं ,
जिसमें हम हिंदी बोलने वालों से
उनकीं माँ का परिचय कराते हैं।। .......2 .

अपनों से हट के कभी
दूर के लोगों से भी मिला करो ,
वो कुछ देगा नहीं ... ,
हाँ ,धोखा भी नहीं देगा।l ....... 3 .

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on September 17, 2019 at 10:30am — 8 Comments

हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

हिंदी...... कुछ क्षणिकाएं :

फल फूल रही है

हिंदी के लिबास में

आज भी

अंग्रेज़ी

वर्णमाला का

ज्ञान नहीं

शब्दों की

पहचान नहीं

क्या

ये हिंदी का

अपमान नहीं

शोर है

ऐ बी सी का

आज भी

क ख ग के

मोहल्ले में

शेक्सपियर

बहुत मिल जायेंगे

मगर

हिंदी को संवारने वाले

प्रेमचंद हम

कहाँ पाएँगे

हम आज़ाद

फिर हिंदी क्यूँ

हिंग्लिश की…

Continue

Added by Sushil Sarna on September 16, 2019 at 4:07pm — 10 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post भादों की बारिश
"यह लघु कविता नहींहै। हाँ, क्षणिका हो सकती थी, जो नहीं हो पाई !"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

भादों की बारिश

भादों की बारिश(लघु कविता)***************लाँघ कर पर्वतमालाएं पार करसागर की सर्पीली लहरेंमैदानों में…See More
20 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान ।मुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।। छोटी-छोटी बात पर, होने लगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय चेतन प्रकाश भाई ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक …"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सुशील भाई  गज़ल की सराहना कर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका आभार "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - चली आयी है मिलने फिर किधर से ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"विगत दो माह से डबलिन में हूं जहां समय साढ़े चार घंटा पीछे है। अन्यत्र व्यस्तताओं के कारण अभी अभी…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"प्रयास  अच्छा रहा, और बेहतर हो सकता था, ऐसा आदरणीय श्री तिलक  राज कपूर साहब  बता ही…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"अच्छा  प्रयास रहा आप का किन्तु कपूर साहब के विस्तृत इस्लाह के बाद  कुछ  कहने योग्य…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"सराहनीय प्रयास रहा आपका, मुझे ग़ज़ल अच्छी लगी, स्वाभाविक है, कपूर साहब की इस्लाह के बाद  और…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"आपका धन्यवाद,  आदरणीय भाई लक्ष्मण धानी मुसाफिर साहब  !"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182
"साधुवाद,  आपको सु श्री रिचा यादव जी !"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service