वो लम्हे विरह गीत न बन जाये
लौट आओ साजन सावन के पहले
पपिहा पीऊ पीऊ आवाज लगाये
पेडो पर पड गये झुले
कजरी लागे मोहे सौतन
बदरा की बुन्दे जलये तन मन
लगी है प्रित मेरी अब अशुअन से
लौट आओ साजन सावन के पहले
जोगन न बन जाये कही ये बिरहन
लौट आओ साजन सावन के पहले
मुख मलिन , जैसे काली बदरिया
पनघट पे ना रिझाये कोइ सवरिया
सुनी सुनी पडी है पुरी डगरिया
आंगन सुना, सुना भयॊ मेरे मन का…
ContinueAdded by arunendra mishra on May 14, 2016 at 7:30pm — 3 Comments
"राजू बेटा, क्या कर रहा है! मेरी दवा खत्म हो गयी है! मेरी डायरी ले जा और मेरी दवाइंयॉ ले आ"!
"मॉ, आज क्लब में हम लोग मदर्स डे मना रहे हैं! मुझे क्लब का सैक्रेटरी होने के नाते मदर्स डे के ऊपर एक भाषण देना है! अपनी सोसाइटी में काम करने वाली बाइयों एवम अन्य महिला कर्मचारियों को वस्त्र, मिठाईयां और दबाईयां वितरण करनी हैं! अतःउसी की रूप रेखा तैयार कर रहा हूं! आज तो बहुत मुश्किल है! "!
“तो बेटा ऐसा कर कि उसी महिलाओं की लिस्ट में मेरा भी नाम लिख ले”!
मौलिक व अप्रकाशित
Added by TEJ VEER SINGH on May 14, 2016 at 1:00pm — 12 Comments
अंधेरे में रोशनी,
जीवन का सहारा ।
शाम को बिछड़ती,
जब सुबह निहारा ।
इधर जब पौ फटी,
तो देखो लो नजारा।
क्या जानवर, पक्षी,
सब दिखे बे सहारा।
कोई रहम न करता ,
क्या कानून निराला ।
भूखे इंसान की रोटी,
बेटी हजम कर डाला।
रोशनी की आस दिखती,
परंपरा का डर दे डाला ।
तन मन पर हजारों पीड़ा,
सहन करके भी जी लेता ।
अपनों का पेट भरता ,
अतीत को भूल जाता ।
मानवता को कलंकित…
ContinueAdded by Ram Ashery on May 14, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
2222 2222 2222 222
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यौवन भर देखी है हमने कैसी कैसी छाँव घनी
कहने से भी मन डरता अब मिलती थोड़ी छाँव घनी।1
धूप अगर होती राहों में तो साया भी मिल जाता
लेकिन अपने पथ में यारो मंजिल तक थी छाँव घनी।2
हमको तो आदत सहने की सर्दी गर्मी बरखा सब
दुख की धूप हमें दे रक्खो सुख की सारी छाँव घनी।3
छाया अच्छी तो है लेकिन बढ़ने से जीवन जो रोके
कड़ी धूप से भी बदतर है यारो ऐसी छाँव घनी।4
फसलों…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 14, 2016 at 10:51am — 6 Comments
Added by Meena Pathak on May 14, 2016 at 8:54am — 3 Comments
Added by Rahila on May 13, 2016 at 4:24pm — 14 Comments
आज सबके मन का उल्लास देखते ही बनता था। सभी के हाथ में पिचकारी व रंग की बाल्टी थी जिससे वे सभी राहगीर और परिचितों को सराबोर कर रहे थे। रास्ते से गुजरने वाले उधर जाने से डर रहे थे कि जाने कब बच्चों की पार्टी उन्हें देख ले और उन पर रंगों की बौछार कर दे। सभी प्रसन्न चित हो घूम रहे थे। रामू ने देखा कि एक आदमी तेजी से उस तरफ चला आ रहा है। वह बगैर इधर-उधर देखे चला आ रहा था लगता था कि उसे बड़ी जल्दी थी। वह जब नजदीक आया तो रामू ने अपने हथियार संभाले और प्रहार की तैयारी की निशाना लगा ही रहा था कि तब…
ContinueAdded by indravidyavachaspatitiwari on May 13, 2016 at 6:00am — 3 Comments
ख्वाब-ऐ-बशर ...
आज फिर
किसी का चूल्हा
उदास ही
बिन जले सो गया।
आज फिर
सांझ के दामन पे
भूख लिख गया कोई।
आज फिर
पेट की आग
झूठी आशा की बर्फ से
ठंडी कर
सो गया कोई।
आज फिर
कटोरे से
सिक्कों की आवाज़
रूठी रही।
आज फिर
खारा जल
पकी दाढ़ी को
धोता रहा।
आज फिर
निराशा का कफ़न ओढ़े
बिन साँसों के
सो गया कोई।
आज फिर…
ContinueAdded by Sushil Sarna on May 12, 2016 at 2:47pm — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 12, 2016 at 9:53am — 6 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on May 12, 2016 at 8:46am — 5 Comments
Added by शिज्जु "शकूर" on May 11, 2016 at 8:57pm — 7 Comments
Added by Manan Kumar singh on May 11, 2016 at 8:04pm — No Comments
Added by Tanuja Upreti on May 11, 2016 at 11:30am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:30pm — 3 Comments
Added by amita tiwari on May 10, 2016 at 7:30pm — 3 Comments
ज़िंदगी के फ्रेम में ....
यादें
आज पर भारी
बीते कल की बातें
वर्तमान को अतीत करती
कुछ गहरी कुछ हल्की
धुंधलके में खोई
वो बिछुड़ी मुलाकातें
हाँ ! यही तो हैं यादें
ये भीड़ में तन्हाई का
अहसास कराती हैं
आँखों से अश्कों की
बरसात कराती हैं
सफर की हर चुभन
याद दिलाती हैं
जब भी आती हैं
ये ज़ख़्म कुरेद जाती हैं
अहसासों के शानों पर
ये कहकहे लगाती हैं
ज़हन की तारीकियों में
ये अपना घर बनाती हैं…
Added by Sushil Sarna on May 10, 2016 at 3:54pm — 4 Comments
2 1 2 2 2 1 2 2 2 1 2 2 2 2 2 1
फाईलातुन फाईलातुन फाईलातुन मफऊलात
कट गए जंगल सभी कैसे रहे विवरों में नाग
इसलिए सब भाग कर अब आ गए नगरों में नाग
चारपाई पर नहीं चढ़ते थे जो पहले कभी
अब वही बेख़ौफ़ होकर घूमते शहरों में नाग
अब बचाकर जान देखो भागता है आदमी
फन उठाये मिल रहे हैं हर कही डगरों में नाग
हो सके तो बाज आओ प्यार से इनके बचो
कौन जाने दंश…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 10, 2016 at 1:00pm — 3 Comments
गुमशुदा हूँ मैं
तलाश जारी है
अनवरत 'स्व ' की
अपना ‘वजूद’
है क्या ?
आये खेले ..
कोई घर घरौंदा बनाए..
लात मार दें हम उनके
वे हमारे घरों को....
रिश्ते नाते उल्का से लुप्त
विनाश ईर्ष्या विध्वंस बस
'मैं ' ने जकड़ रखा है मुझे
झुकने नहीं देता रावण सा
एक 'ओंकार' सच सुन्दर
मैं ही हूँ - लगता है
और सब अनुयायी
'चिराग' से डर लगता है
अंधकार समाहित है
मन में ! तन - मन दुर्बल…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 10, 2016 at 12:30pm — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 10, 2016 at 10:00am — 4 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on May 10, 2016 at 9:44am — 4 Comments
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