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मशीन - डॉo विजय शंकर

अपने लिए बनाई थी ,
काम आसान करेगी ,
बहुत से काम करेगी ,
कुछ फुरसत देगी ,
शरीर को आराम देगी।
देखते देखते देखिये
बहुत काम करने लगी ,
अपने ही काम आने लगी ,
शरीर के काम आने लगी ,
शरीर के रोग बताने लगी ,
कि कितने बीमार हैं हम
हमें मशीन बताने लगी ,
रक्तचाप नापने लगी ,
रक्त निकालने लगी ,
खून , बदलने लगी ,
शरीर को बाहर से ,
अंदर से झाँकने लगी ,
किरण बन शरीर में जाने लगी ,
शरीर के हिस्से पुर्जे ,
बदलने लगी।
हमारे मस्तिष्क की एक
बड़ी उपलब्धि थी मशीन,
वो हमारे ही मष्तिष्क को पढ़ने लगी ,
हमारे दुश्मनों को
हमारी कमियां बताने लगी,।
शरीर के बड़े काम आने लगी ,
अब तो मरते को मरने नहीं देती ,
लाइफ सपोर्ट बन ज़िंदा रखती है ,
बहुत ही आराम दिया उसने ,
जीवन का एक एक पल गिनती है,
एक एक पल का हिसाब मांगती है,
जितना कुछ करती है ,
सब का बिल रखती है,
मशीन, कितनी सेवा करती है,
गुलाम की जगह बनाया था हमने ,
हमको अपना गुलाम बना के रखती है ,
अपना गुलाम बना के रखती है ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 303

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2016 at 10:15am
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on May 12, 2016 at 10:15am
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , आपका ह्रदय से आभार एवं धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 11, 2016 at 2:22pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर, आपने मशीनी गुलामी को बढ़िया ढंग से शाब्दिक किया है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on May 10, 2016 at 11:01am
बेहद उम्दा ...बहुत बहुत बधाई आप को आदरणीय | सादर 

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