तुफानों से लड़ कर ,चूर - चूर हो जिंदा थी
बेकल ,चंचल, निर्जन ,निष्प्राण वो बिंदा थी
किसके लिये अखिल व्योम से मोती चुराये
आई थी मधु छाया आस मधुमास लिये
लहरों पर चलने वाली अहम से हारी थी
साहिल की निठुरता बेबस से टकराई थी
अंतर्मन में सुलगती , भटकती भ्रान्त- सी
औचित्यहीन कामनायें ज्वलित कान्त - सी
हरियाली छाहों तले स्पंदित वो जिंदा थी
इतराई सागर पर बौराई विस्मित वो बिंदा…
ContinueAdded by kanta roy on May 24, 2016 at 11:22am — 6 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 24, 2016 at 7:56am — 6 Comments
चलो तलाशें
तुम्हारे मेरे बीच की
गुम हो गई धूप
कितनी कुनमुनी खिली खिली
और बातून थी वो
बोलती रहती थी
या कहूँ कि बस
वो ही बोलती थी
किसी भी सूरज की
नहीं थी मोहताज़
पसरी पड़ी रहती थी
हमारे बीच वो डीठ
जिद्दी इतनी कि
हर जगह चलती थी साथ
कभी आँखों में चढ़कर
तो कभी गालों पर
बारिश कोहरे को चीर
चमकती थी बेख़ौफ़
सर्द ठण्ड में गर्म बिछौना
और गर्मी…
ContinueAdded by pratibha pande on May 23, 2016 at 7:30pm — 10 Comments
2122-2122-212
ग़ज़ल
इस तरह सब पे इनायत कीजिए
बोल कर मीठा इबादत कीजिए
यूँ न दुनिया से बगावत कीजिए
दिल मिला सब से मुहब्बत कीजिए
चाँद छत पे आ गया तुम को नज़र
पेश अपनी अब शराफत कीजिए
नफरतें सारी ये मिटटी में मिलें
प्यार को ऐसी इमारत कीजिए
बोल भारत की जमीं तुमसे रही
माँ समझ कर कुछ तो इज्जत कीजिए
मुनीश “तन्हा” नादौन 9882892447 (मौलिक…
ContinueAdded by munish tanha on May 23, 2016 at 7:17pm — 4 Comments
शहर के इस जाम में
पत्नी को बाइक पे टांग के
मैं जा रहा था काम से
तभी अचानक एक विक्रेता
बोला सीना तान के
छांट बीनकर माल खरीदो
बेंचू मैं कम दाम में
मैंने बोला भीड़ बहुत है
फिर आऊंगा आराम से
बोला दीदी कितनी सुंदर
उनके कुछ अरमान रे
तुम तो भइया बहुत काइयां
लगते कुछ शैतान रे
पहले बोलो क्यूं हो खोले
शॉप बीच मैदान में
हंसकर बोला खाकी वर्दी
साथ निभाए शान से
गाउन, मैक्सी,पर्स खरीदो
करते क्यूं परेशान रे
तभी…
Added by NEERAJ KHARE on May 23, 2016 at 3:30pm — 5 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 23, 2016 at 1:22pm — 2 Comments
सज़दे में सर झुकता है मेरा
राह चलते जहाँभी दरगाह मिली
तुम्हारे मन भी तो इज़्ज़त है
मेरे शंकर और मेरे राम की
जब उर्स होता है तो मैं भी
आती हूँ चादर चढ़ाने को
दशहरे में तुम भी जाते हो
रावण जलाने को
हमें कहाँ हर वक्त याद रहता है
मज़हब अपना
हाँ सियासत नहीं भूलती
मैं हिन्दू तू मुसलमान है
अब ये अलग बात है कि
मैं अगर इज़्ज़त हूँ
अपने भारत की
तो तू भी
हिन्द का सम्मान है ।
तनूजा उप्रेती
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Tanuja Upreti on May 23, 2016 at 1:10pm — 2 Comments
मैले-कुचले कपड़ो में सड़के के किनारे प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी,उसे तो समझ में भी नहीं आ रहा था कि उसके शरीर में परिर्वतन क्यों आया, क्यों हो रही है ये पीड़ा उसे,क्यों बढ़ा है उसके उदर आकार, मगर प्रकृति ने जो मानव जीवन के नियम बना दिये जो क्रिया बना दिया वह होगा जाने या अंजाने, अमीर या गरीब, मानसिक परिपक्त या अर्ध विक्षिप्त , तभी एक जीव उसके शरीर से बाहर आया एक उसी के तरह के उस छोटे जीव को देख कर आश्चर्य चकित रह गयी। उसे क्या पता था कि समाज में कुछ ऐसे…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on May 22, 2016 at 9:41pm — 2 Comments
दुर्मिल सवैया.
बदली - बदली मुख फेर लिया जब सूरज लालमलाल हुआ,
वन शुष्क हुआ हर एक हरा सच शुष्क भरा हर ताल हुआ,
तन शुष्क हुआ मन शुष्क हुआ हर ओर भयंकर हाल हुआ,
जब घाम बढ़ा तब सत्य कहूँ यह हाल बड़ा विकराल हुआ ||
तन ताप लिए तन आग लिए सब व्याकुल हैं तन प्यास लिए,
दिन मानव के खग के वन के पशु के कटते बस आस लिए,
सब सोच रहे अब ग्रीष्म टले बरसे बदली मृदु भास लिए,
निकले फिरसे बरसात लिए दिन सावन भादव मास लिए…
ContinueAdded by Ashok Kumar Raktale on May 22, 2016 at 3:40pm — 6 Comments
हाँ वो ख्वाब हैं
वो ख्वाब ही हैं जब तुम
तख़य्युल के परों से उड़ते
चाँद का नूर चुरा लाती हो
और तोड़ कर बादलों के रेशमी टुकड़े
गूंध कर उनको चांदनी में फिर
किसी अनजान ज़मीं पर उसके
महल तामीर किये हैं तुमने
और उन महलों में बसा रखें हैं वो सारे मंज़र
जो हक़ीक़त में बदल जाएं तो
दर्द दुनिया से चले जाएं हमेशा के लिए
हाँ वो ख्वाब हैं जब तुम
चेहरे पे हवाओं की शोखियाँ…
Added by saalim sheikh on May 22, 2016 at 11:37am — 3 Comments
इक जान हो जाएगी ....
बड़ा अज़ीब मंज़र होगा
जब बहार आएगी
हर गुलशन
गुलों की महक से
लबरेज़ होगा
सब कुछ नया नया होगा
हर गुल में
तू मेरा अक्स ढूंढेगी
हर पंखुड़ी में कसमसाती
मैं तेरी उठान देखूँगा
कितना सुखद अहसास होगा
जब मेरी नज़रों के लम्स
तेरे जिस्म से गुफ़्तगू करेंगे
तेरा हिज़ाब
तुझसे अदावत करेगा
तेरे लबों पे
तिलभर हंसी की जुम्बिश…
Added by Sushil Sarna on May 21, 2016 at 10:00pm — 4 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on May 21, 2016 at 9:50am — 13 Comments
पानी नहीं है , प्यास लगी है
मुन्ने को देखो प्यास लगी है
घर के सारे घड़े खाली पड़े है
बाहर के नल भी सूखे पड़े है
मुन्ने को मैं कैसे समझाऊं
प्यास उसकी मैं कैसे बुझाऊं
गर्मी भी तो बढ़ रही है
बस्तियां जैसे जैसे गढ़ रहीं है
वन उपवन हमने काट दिए है
और जाने कितने विनाश किये है
अब भुगत रहे मासूम यह बच्चे
कौन समझें यह तो अक्ल के कच्चे
अक्ल वाले सब कहाँ गए…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on May 20, 2016 at 11:00pm — 1 Comment
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on May 19, 2016 at 5:12pm — 14 Comments
दिल पे दस्तक जो दूँ तो बुला लिजिए
दूर रहने की अब ना सजा दिजिए
मेरे नयनो की आप रोशनी हो बनी
आप बिन कुछ ना देखूँ है खुद से ठनी
ज्योति को यूँ ना दृग से जुदा किजिए
दिल पे दस्तक .......
मद में ही मै भटकता रहा दर-बदर
रास आई तन्हाई मुझे इस कदर
इस तन्हाई को अपना पता दिजिए
दिल पे दस्तक .......
दिल में दर्दे हिज्र की अब तामीर हो रही
ख्वाब में आपके मेरा जिक्र भी नही
दश्ते-बेकसी से अब तो फना किजिए
दिल पे दस्तक…
Added by Pawan Kumar on May 19, 2016 at 11:30am — 8 Comments
ठाकुर सरकार, माफ़ कर दें . मेरी बिटिया अभी नासमझ है .तीन दिन से चूल्हा नहीं जला सरकार .’
‘क्यों चूल्हे को क्या हुआ ?’
‘सरकार, उनका पुलिस चोरी के शक में पकड़ ले गयी , वही कुछ कमा कर लाते थे, घर् में कुछ था ही नहीं तो चूल्हा कैसे जलता?’
‘और---- तेरी बिटिया ने भी तो चोरी ही की है , तुम सब घर भर चोर हो तो माफी कैसी ?’
‘नहीं सरकार, उन्होंने चोरी नहीं की, पुलिस साबित नहीं कर पायी ‘
‘मगर तुम्हारी बेटी तो चोरी करती पकड़ी गयी .’
’हाँ सरकार मगर-----‘
‘अब…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 18, 2016 at 9:30pm — 28 Comments
2122--2122--2122--212
पाँव के नीचे से धरती सर से छप्पर ले गया
ज़लज़ला कुछ बेबसों के सारे गौहर ले गया
ज़िन्दगी के खुशनुमा लम्हों से वो महरूम है
शाम को जो साथ अपने घर में दफ़्तर ले गया
हौसला, हिम्मत, ज़वानी, ख़्वाहिशें, बे-फिक्र दिल
वक़्त का दरिया मेरा सब कुछ बहा कर ले गया
सारी दुनिया जीत कर भी हाथ खाली ही रहे
वक़्त-ए-रुख़सत इस जहाँ से क्या सिकन्दर ले गया
छु न पाये हाथ उसके जब मेरी दस्तार को
तैश में आकर वो काँधे से…
Added by दिनेश कुमार on May 18, 2016 at 5:30pm — 29 Comments
इंतज़ार ....
ये बादे सबा
आज किसकी सदा लाई है
कुछ कम्पन्न है
कुछ नमी है
कुछ भीगी सी तन्हाई है
शायद ! अधूरे अहसासों ने
ज़हन में करवट ली है
लफ्ज़ लबों की हदों पर
तिश्नगी के अज़ाब में
डूबे नज़र आते हैं
इन साँसों की बेचैनियों में
जाने किस अजनबी का ख़ुलूस
करवटें लेता है
ये मेरी तदब्बुर में
किसके लम्स रक्स करते हैं
कोई तो नाख़ुदा होगा
जो मेरी हयात के सफ़ीने को
साहिल तक ले जाएगा
दबे पाँव आकर
मेरी…
Added by Sushil Sarna on May 18, 2016 at 4:32pm — 16 Comments
जिन्दगी का सफर खूब है,
मैं हूँ तनहा , मगर खूब है.
जिन्दगी कट रही शान से ,
ये सुहाना सफ़र खूब है .
क्या कहूँ मैं शबे-वस्ल को,
वो जगा रात भर खूब है.
प्यार की इंतिहा हो गई,
बेकरारी उधर खूब है .
हर दिशा में चमकता रहा ,
ये गणित का सिफर खूब है.
खार के साथ हैं फूल भी, ,
कंटकों की डगर खूब है
मानता हूँ मैं "आभा"तुझे,
वाह! तेरी नज़र खूब…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on May 18, 2016 at 8:30am — 11 Comments
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