For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरे वृक्षों के बीच खडा एक ठूँठ।

खुद पर शर्मिन्दा, पछताता हुआ

अपनी दुर्दशा पर अश्रु बहाता हुआ।

पूछता था उस अनन्त सत्य से

द्रवित, व्यथित और भग्न हृदय से।

अपराध क्या था दुष्कर्म किया था क्या

मेरे भाग में यही दुर्दिन लिखा था क्या?

जो आज अपनों के बीच मैं अपना भी नही

उनके लिए हरापन सच, मेरे लिए सपना भी नही।

हरे कोमल पात उन्हें ढाँप रहे छतरी बनकर

कोई त्रास नहीं ,जो सूरज आज गया फिर आग उगलकर।

अपनी बाँह फैलाए वे जी रहे आनन्दित जीवन

टहनियों पर खिलती बौरें ,उनका प्रमुदित यौवन।

वे पुण्यों की थाती पाएँ , मैं दुख भरी गागर

मैं बूंद से वंचित, उनके पास सुखों का सागर।

क्षण क्षण प्रतिपल इठलाते वे, मैं कुंठित होता

काश ! मैं इस रूप यौवन से कभी नही वंचित होता।

सौभाग्य के सारे साधन किये तूने उनपर लक्षित

मैं हतभाग्य! रहा अपने पूर्व रूप से भी वंचित।

जिन्हें आकार दिया था मैंने अपने अंशों को झरकर

उनके बीच खड़ा तिरस्कृत, अब सारी गरिमा खोकर।

मेरे अतीत का श्रृंगार क्योंकर छीन लिया तुमने

पर्णरहित, शाखाहीन ठूँठ बना दिया तुमने।

तुझसे ही उद्भूत हुआ मैं, मैं भी हूँ तेरी संतति

क्यूँ कर अपने ही अंशज की, लूटी तूने सारी संपत्ति।

मेरे इन प्रश्नों का उत्तर हे पिता! तुम्हे देना होगा

मन मस्तिष्क मे पसर रहा यह गहन तिमिर हरना होगा।

भान है, बूंद पाने के लिए सागर कभी नही दौडे़गा

विश्वास है पर पालित को पालक मझधार नही छोडे़गा।

कैसे करते तुम न्याय तुम्हारा, कैसे बनता विधि का विधान

क्या होता है भाग्य हमारा , समझा दो हे कृपा निधान।

कातर मन की आर्त ध्वनि से करते प्रश्न कठिन दुर्बोध

आत्मनिमग्न उस दुखित ठूँठ को सहसा हुआ स्वतः उद्बोध।

एक दिव्य स्नेहिल प्रकाश ने चहुँ ओर किया बसेरा

जैसे हो माता का आँचल, ममता का स्नेहसिक्त घेरा।

कल-कल करता प्रेम उमड़कर झर-झर बहता निर्झर बन

तृप्त हो रहे उसके प्राण भीज रहा था सारा तन।

एकाकीपन का भाव ना था, कोई था अब उसके साथ

रूक्ष, दरकते, वृद्ध तन पर फेर रहा था कोमल हाथ।

उस अन्तस्चेतना से फिर प्रस्फुटित हुए शब्द प्रखर

संयुक्त हुए वे, वाक्य बने, जन्मा उनसे ब्रह्म स्वर।

चिंतित, कुंठित, अपमानित क्यों होता मेरी संतान

क्यों लगता है तेरे रूप का किया नही मैने सम्मान।

जितनी प्रिय अखिल सृष्टि  उतना ही प्रिय मुझे तू भी

तेरे गत यौवन, आगत क्षय के खोलूँगा अब भेद सभी।

कैसे भला अन्याय करूँ जब मेरी संतति सारी सृष्टि

सब पर समभाव स्नेह मेरा और सभी पर कृपा दृष्टि।

किंतु बैठा मैं न्याय सिंहासन, करने संचालन जग का

संपत्ति लुटाता मुक्त हस्त, हरता भी समभाव सब का।

सारा ब्रह्माण्ड मुझसे उपजा ,मुझसे ही जन्मी धरती

अनुपम रूप इस जीवन का मेरी ही माया रचती।

निष्पक्ष हृदय हो करता न्याय , लक्ष्य अखंड विकास जग का

बिखरा कर संपदा विश्व में ,करता मैं पोषण सब का।

तुझ पर भी फूटी थीं कोंपल, छाया था नख-शिख यौवन

अपनी तेजस हरीतिमा संग तूने भरपूर जिया था जीवन।

पर कालचक्र का निज पथ से होता नही तनिक विचलन

बचपन, यौवन और जरा का क्रम से करता संचालन।

पहले भी एक ‘ठूँठ’ था रोया ,मुझ तक पहुँची आर्त पुकार

किन्तु उसी के अवषेषों पर मैने तुझे दिया आकार।

कल को आज, आज को कल जब तक राह नहीं देगा

न्यायिक संचालन इस जग का ,तब तक कभी नहीं होगा।

हर आगत हेतु विगत को स्वयं को हवि करना होगा

इस अनिरूद्ध बलिवेदी पर सहर्ष शीश धरना होगा।

यही है विधि का विधान इसे अंगीकार कर

उन्मुक्त जीवन जिया तूने अब मृत्यु भी स्वीकार कर।

छँट चुका था घुप्प अंधेरा ,फैल रहा था शुभ्र उजास

उसके ही अश्रुबिन्दु बुझा रहे थे उसकी प्यास।

तन्द्रा टूटी, चेतना लौटी लिए सरस ब्रह्म सार

शीश नवाकर ईश को बोला सविनय साभार।

धन्य हुआ! तृप्त हुआ! तुमसे मिला जो आत्मज्ञान

हृदय के अतल गहन को सींच गया तुम्हारा दान।

अपनी इस कुरूप काया पर अब मैं नही तनिक लज्जित

वर्तमान का श्रृंगार करेंगी मेरी अतुल स्मृतियाँ संचित।

तुझसे ही उत्पन्न हुआ मैं लय हो जाऊँगा तुझमें

तेरी छवि ढूढुँगा उसमे जो कुछ शेष रहा मुझमें ।।                                                                                              

  (तनूजा उप्रेती ) 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 715

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Tanuja Upreti on June 3, 2016 at 6:03pm

बहुत बहुत धन्यवाद कल्पना जी एवं कांता जी ,हार्दिक आभार

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on June 2, 2016 at 3:43pm

वाह | अद्भुत रचना हुई है आदरणीया तनूजा जी बधाई स्वीकारें |

Comment by kanta roy on June 2, 2016 at 11:20am
कल को आज, आज को कल जब तक राह नहीं देगा
न्यायिक संचालन इस जग का ,तब तक कभी नहीं होगा।
हर आगत हेतु विगत को स्वयं को हवि करना होगा
इस अनिरूद्ध बलिवेदी पर सहर्ष शीश धरना होगा।
यही है विधि का विधान इसे अंगीकार कर
उन्मुक्त जीवन जिया तूने अब मृत्यु भी स्वीकार कर।...... वाह ! अद्वितीय लेखन । दर्शन भाव में जीवन-मृत्यु का सार बताती अप्रितम रचना है यह । जो एकबार इन रहस्यों को जान लेता है उसके लिए जीवन का हर क्षण मधुमय हो उठता है । महाप्रयाण की बेला में भी नव आगत को अभिनंदन कर अपने जीवन सफर को अमर कर जाता है । भावों से ओतप्रोत इस सार्थक रचना के लिए अभिनंदन आपको ।
Comment by Tanuja Upreti on June 1, 2016 at 10:21am

बहुत बहुत आभार नरेंद्र जी 

Comment by narendrasinh chauhan on May 30, 2016 at 7:38pm

खूब सुन्दर रचना 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
17 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
19 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service