For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 34

कल से आगे ..............................

रावण उल्लसित भी था और व्यथित भी। उसे शिव जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की अनुकंपा प्राप्त हो गयी थी पर वह अपनी मूेर्खता को कैसे भूल सकता था। शिव अगर चाहते तो उसे भुनगे की तरह मसल सकते थे पर उन्होंने उसे छोड़ दिया था। छोड़ ही नहीं दिया था अपना वात्सल्य भी प्रदान किया था। उसकी सारी अवज्ञा को क्षमा कर दिया था। कितना अद्भुत शौर्य है उनमें, शायद त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं होगा उनकी समता करने वाला फिर भी कितना शांत व्यक्तित्व है। अपनी शक्ति का कोई दंभ…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 26, 2016 at 8:43am — No Comments

बैठा चिता पर हवन कर रहा है-ग़ज़ल

22 122 122 122

बैठा हुआ बस मनन कर रहा हूँ।
दुख बाँटने का जतन कर रहा हूँ।।

पीड़ा जगत की है मन को लपेटे।
नयन नीर से आचमन कर रहा हूँ।।

संसार से तम मिटाने की चाहत।
चिन्ता चिता पर हवन कर रहा हूँ।।

अधरों पे मुस्कान आई अचानक।
प्रियतम से मानो मिलन कर रहा हूँ।।

लिखता चला जा रहा भावनायें।
कहते हैं सब मैं सृजन कर रहा हूँ।।

हर शब्द महके मेरी लेखनी का।
मनुजता मनुजता भजन कर रहा हूँ।।

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2016 at 11:00pm — 2 Comments

लोकतंत्र और विकास

राष्ट्र का विकास रास्ते में पड़ा नहीं है,

विकास की राह में हर कोई बढ़ा नहीं हैं.

पर बयार बह रही है विकास की.

आम नागरिक ख़ुशी से उछल रहा है,

टैक्स की मार भी चुपचाप सह रहा है,

विकास की धार में बह रहा है.

 

नीति धर्म स्पष्ट है, समझ जाओगे.

सेवा करो, मेवा पाओगे,

सेवा करवाओगे तो

सेवा कर चुकाओगे.

नौकर मालिक से अड़े नहीं,

आज्ञाकारी माथे पे चढ़े नहीं,

ईमानदार सिर्फ शिकायत करता है.

और चुपचाप अपना काम करता…

Continue

Added by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on July 25, 2016 at 7:00pm — 3 Comments

सूर्य ने छाया को ठगा .......

नव गीत
सूर्य ने
छाया को ठगा |


काँपता थर.थर अँधेरा
कोहरे का है बसेरा
जागता अल्हड़ सवेरा
किरनों ने
दिया है दग़ा |


रोशनी का दीपकों से
दीपकों का बातियों से
बातियों का ज्योतियोँ से
नेह नाता
क्यों नहीं पगा |


छाँव झीनी काँपती सी
बाँह धूपिज थामती सी
ठाँव कोई ताकती सी
अब कौन है
किसका सगा

......आभा

प्रस्तुत  नव गीत  अप्रकाशित एवं मौलिक है .....आभा 

Added by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:00pm — 9 Comments

दोहे

दोहे !

डायन महँगाई  करे, पिया को परेशान

काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान

खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम

क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |

   

रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो  संसार   

भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |

चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान

चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान

ज्योत जलाकर  ज्ञान की, रोशन कर तू राह 

राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on July 25, 2016 at 5:00pm — 6 Comments

उनकी शाम दे दो ....

उनकी शाम दे दो ....

आज

सहर में अजीब उजास है

हर शजर पर

समर के मेले हैं

सबा में अजीब सी

मदहोशी है

साँझ के कानों में

तारीक की सरगोशी है

शायद किसी को

मेरी तन्हाई पे

तरस आया है

किसके हैं लम्स

कौन मेरे करीब आया है

मुद्दतों की नमी ने

आज सब्र पाया है

लम्हे रुके से लगते हैं

अब्र झुके झुके लगते हैं

देखो ! तरीक के कन्धों पे

शाम झुकी है

सहर भी कुछ रुकी रुकी है

पसरती सम्तों में

पसरती…

Continue

Added by Sushil Sarna on July 25, 2016 at 4:10pm — 4 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 33

कल से आगे .........

गुरुदेव वशिष्ठ और महामात्य जाबालि की आशंका अकारण नहीं थी। दोनों ही चिंतन प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे और दोनों का ही सामाजिक चरित्र पर विशद चिंदन था।



अगली बार जब वेद घर पहुँचा तो उसने मित्रों के साथ समय व्यतीत नहीं किया था। इस बार उसके पास कुछ विशेष था मंगला को बताने के लिये। अभी दोपहर नहीं हुई थी। वह घर पहुँचते ही सीधा अंदर गया। मंगला घर के आँगन में स्थित कुयें से पानी खींच रही थी। वेद ने सीधे उसकी चोटी में झटका मारते हुये सूचना दी…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 25, 2016 at 3:49pm — No Comments

गज़ल : मधु-मिलन -रामबली गुप्ता

वह्र-122 122 122 122



निशा मध्य धीरे से घूँघट उठेगा।

खिला रूप विधु का ये मन मोह लेगा।।



प्रतीक्षा हृदय जिसकी करता रहा है।

उसी रात्रि का इंदु हिय में खिलेगा।।



मुदित होंगे मन सुख के सपने सजेंगे।

अमित स्रोत सुख का उमड़ के बहेगा।।



रहा आज तक है जो अव्यक्त हिय में।

वही प्रेम-सागर तरंगें भरेगा।।



नयन बंद होंगे अधर चुप रहेंगे।

मुखर मौन ही हाल हिय का कहेगा।।



खिला पुष्प-यौवन बिखेरेगा सौरभ।

भ्रमर पी अमिय मत्त आहें… Continue

Added by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:00pm — 8 Comments

ताक़त वतन की हमसे है [लघु कथा ]

“ऑफिस के लिए देर नहीं हो रही ?यहीं बैठे है आप अभी तक i

“वो बाहर बाबूजी बैठे हैं ना ,फिर पूछेंगे कि अशोक का फ़ौज से कागज़ आया कि नहीं I”

“आप साफ़ कह क्यों नहीं देते कि नहीं भेजना हमें अपने बेटे को फ़ौज में I कागज़ आ गया और हमने फाड़ कर फेंक भी दिया I”

“साफ़  कहने की हिम्मत ही तो  नहीं कर पा रहा हूँ सविता i बहुत प्यार करते हैं अशोक को , फ़ौज में ऑफिसर देखना चाहते हैं उसे”I

“इन्हें क्या मिला फ़ौज से ? टूटी टांग ,बैसाखियाँ और थोड़ी सी पेंशन.. बस i”

“जानता हूँ ,पर बहस…

Continue

Added by Pradeep kumar pandey on July 25, 2016 at 10:35am — 3 Comments

चोर को चोर कहना गुनाह होता है - डॉo विजय शंकर

हर गुनाह की सजा होती है ,
ये तो पता नहीं ,
पर हर गुनाह पर किसी न किसी का
हक़ होता है , ये पता है।
कभी कोई गुनाहगार मजबूर लाचार भी होता है ,
ये तो पता नहीं ,
पर बड़ा गुनाहगार अक्सर बड़ा ताक़तवर होता है ,
ये सबको पता है।
चोरी तो चौसठ कलाओं में से एक है ,
पता है न ,
पर चोर ताक़तवर हो तो
चोर को चोर कहना गुनाह होता है।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am — 10 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है ( गिरिराज भंडारी ) ज़मीन , मोहतरम जनाब समर कबीर साहिब ।

आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल

22   22   22   22   22   2

उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है

***********************************

जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है

तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है

 

समाचार में वो सुन कर आया होगा

एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है

 

वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये

सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है

 

भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:00am — 18 Comments

नफरत का रिश्ता--

नफरत का रिश्ता--

पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या…

Continue

Added by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:49am — 9 Comments

कुण्डलियाँ

पीर पराई बूझता,है सच्चा इंसान

दर्द लगे सबका जिसे,अपने दर्द समान

अपने दर्द समान, दूर उसको वह करता

जाता खुद को भूल,देख औरों को मरता

लगता उसका जोर,बचाने में भी भाई

हर अच्छा इंसान,समझता पीर पराई।



------



आस लगाए जो रहें,करें नहीं कुछ कर्म

बनें रहें बस आलसी,नहीं उन्हें है शर्म

नहीं उन्हें है शर्म,रहें पुरषार्थ भुलाकर

जो देखें बस बाट, हाथ पर हाथ चढ़ाकर

उनका राखा राम,नहीं जिनको श्रम सुहाए

बिना करे कुछ कर्म,रहें जो आस… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:30am — 4 Comments

गजल(अब नयी पहचान देगा...)

2122 2122 212

अब नयी पहचान देगा आदमी

बात पत्थर से करेगा आदमी।1



जो मरा अबतक बचाते जिंदगी

क्या कभी आगे मरेगा आदमी?2



पोंछता आँसू जमाने से रहा

खून बन अब तो बहेगा आदमी।3



लाज का फटता वसन हर मोड़ पर

अब भला कितना सियेगा आदमी।4



मोहरों का बन रहा है मोहरा

आपको पहचान लेगा आदमी?5



गलतियों पर चढ़ रही कबसे बरक

कब भला यह मान लेगा आदमी?6



ढूँढते तुम आ गये हो दूर तक

देख लो शायद मिलेगा आदमी।7

मौलिक व… Continue

Added by Manan Kumar singh on July 24, 2016 at 3:11pm — 6 Comments

ग़ज़ल: यही बात दिल देख मेरा जलाये

१२२-१२२-१२२-१२२



यही बात दिल देख मेरा जलाये

तुझे याद भी क्या जरा हम न आए



मुहब्बत किसी से करो तो पता हो

इशारे से महबूब कैसे बुलाये



गुनाहों ने तुमको कहीं का न छोड़ा

शराफत खड़ी मुंह में ये बुदबुदाये



खुदा प्यार बांटे सभी को हमेशा

यही सोच मुझको सदा गुदगुदाये



बफा साथ लेकर परीक्षा है आती

दुआ है खुदा से मुझे आजमाये



नदी गुनगुनाती हुई बह रही है

मिलन साथ सागर तभी खिलखिलाए

.

 मुनीश…

Continue

Added by munish tanha on July 24, 2016 at 11:30am — 2 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 32

कल से आगे ..........

जैसा कि संभावित था, रावण ने अपने बड़े भाई कुबेर का मानमर्दन कर ही दिया। इस विजय ने उसके अहंकार का पोषण करने का कार्य भी किया। सत्ता के साथ सत्ता का मद आना स्वाभाविक ही है। इस मद के अतिरिक्त इस विजय से उसे जो कुछ भी प्राप्त हुआ था उसमें सबसे महत्वपूर्ण था कुबेर का पुष्पक विमान।



रावण ने कुबेर को परास्त करने के बाद अमरावती का राज्य हस्तगत नहीं किया। जैसे बहुत बाद में, ऐतिहासिक मध्य काल में इस्लामी आक्रमण कारी भारत आते थे और लूट का माल समेट कर लौट…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 24, 2016 at 8:46am — No Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 31

कल से आगे ...............

वेद बड़े उहापोह में था। किस प्रकार बात करे वह गुरुजी से मंगला के विषय में। गुरुदेव क्रोधी स्वभाव के कदापि नहीं थे तो भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह नित्य प्रातः निश्चय करता कि आज मध्यान्ह में भोजन के समय अवश्य ही गुरुदेव से पूछेगा किंतु मध्यान्ह से साँझ पर टल जाता और साँझ से पुनः अगली प्रातः पर। अंततः एक दिन उसने निश्चय किया कि अब कोई सोच-विचार नहीं करेगा बस सीधे जाकर गुरुजी से पूछ लेगा, फिर जो होगा देखा जायेगा। नहीं पूछेगा तो फिर घर जाते ही मंगला…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on July 23, 2016 at 10:11pm — No Comments

हुनरबाज [लघु कथा ]

दर्जी रमेश के एक कमरे के घर में आज उत्साह पसरा हुआ था I टी वी के एक कार्यक्रम में बेटे राजू का गाना आनेवाला था I

“काकी टी वी नहीं खोला i राजू भैया का गाना शुरू हो गया है “  पडौस  की लड़की  हाँफती  अन्दर आई I

“सुबह से इंतज़ार था और इनकी मशीन की खट खट में समय का ध्यान नहीं रहा, चल लगा  दे जल्दी से “I  बेटे को टी वी में देखने को बेताब कांता , टी वी के एकदम पास बैठ गई  I

टी वी खोलने तक गाना हो चुका था I तालियों की गडगडाहट के बीच राजू को देख उसकी आँखें भर आईं Iमाथे के…

Continue

Added by pratibha pande on July 23, 2016 at 7:43pm — 18 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
मगर दीवार रिश्तों से कभी ऊँची नहीं होती फिल्बदीह ग़ज़ल (राज )

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

 

दिलों में दूर रहकर भी कोई दूरी नहीं होती 

किसी का प्यार पाने से बड़ी पूंजी नही होती

कहाँ किसको कोई पूछे यहाँ तो नाम बिकता है 

किसी मजदूर के फन की कोई गिनती नहीं होती

 …

Continue

Added by rajesh kumari on July 23, 2016 at 6:30pm — 12 Comments

"विसर्जन" लघुकथा

अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए  घर  मे घुसा

"मम्मा!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे गणपति बप्पा को..."…

Continue

Added by नयना(आरती)कानिटकर on July 23, 2016 at 3:30pm — 12 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
45 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
3 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service