कल से आगे ..............................
रावण उल्लसित भी था और व्यथित भी। उसे शिव जैसे शक्तिशाली व्यक्ति की अनुकंपा प्राप्त हो गयी थी पर वह अपनी मूेर्खता को कैसे भूल सकता था। शिव अगर चाहते तो उसे भुनगे की तरह मसल सकते थे पर उन्होंने उसे छोड़ दिया था। छोड़ ही नहीं दिया था अपना वात्सल्य भी प्रदान किया था। उसकी सारी अवज्ञा को क्षमा कर दिया था। कितना अद्भुत शौर्य है उनमें, शायद त्रिलोक में दूसरा कोई नहीं होगा उनकी समता करने वाला फिर भी कितना शांत व्यक्तित्व है। अपनी शक्ति का कोई दंभ…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 26, 2016 at 8:43am — No Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on July 25, 2016 at 11:00pm — 2 Comments
राष्ट्र का विकास रास्ते में पड़ा नहीं है,
विकास की राह में हर कोई बढ़ा नहीं हैं.
पर बयार बह रही है विकास की.
आम नागरिक ख़ुशी से उछल रहा है,
टैक्स की मार भी चुपचाप सह रहा है,
विकास की धार में बह रहा है.
नीति धर्म स्पष्ट है, समझ जाओगे.
सेवा करो, मेवा पाओगे,
सेवा करवाओगे तो
सेवा कर चुकाओगे.
नौकर मालिक से अड़े नहीं,
आज्ञाकारी माथे पे चढ़े नहीं,
ईमानदार सिर्फ शिकायत करता है.
और चुपचाप अपना काम करता…
ContinueAdded by डा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्मा on July 25, 2016 at 7:00pm — 3 Comments
नव गीत
सूर्य ने
छाया को ठगा |
काँपता थर.थर अँधेरा
कोहरे का है बसेरा
जागता अल्हड़ सवेरा
किरनों ने
दिया है दग़ा |
रोशनी का दीपकों से
दीपकों का बातियों से
बातियों का ज्योतियोँ से
नेह नाता
क्यों नहीं पगा |
छाँव झीनी काँपती सी
बाँह धूपिज थामती सी
ठाँव कोई ताकती सी
अब कौन है
किसका सगा
......आभा
प्रस्तुत नव गीत अप्रकाशित एवं मौलिक है .....आभा
Added by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
दोहे !
डायन महँगाई करे, पिया को परेशान
काट छाँट हर चीज़ में, कम हुआ खान -पान
खमा बहादुर ही करे, कायर का क्या काम
क्रोध घृणा की भावना, खुद को करे तमाम |
रस्सी खोलो मोह की, फिर देखो संसार
भौतिक धन दौलत सभी, दुनियाँ निरा असार |
चिंता छोड़ जहान की, चिन्तन कर भगवान
चिन्ता मन का रोग है, चिन्ता चिता समान
ज्योत जलाकर ज्ञान की, रोशन कर तू राह
राह नहीं चलना सरल, आँधार है अथाह…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on July 25, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
उनकी शाम दे दो ....
आज
सहर में अजीब उजास है
हर शजर पर
समर के मेले हैं
सबा में अजीब सी
मदहोशी है
साँझ के कानों में
तारीक की सरगोशी है
शायद किसी को
मेरी तन्हाई पे
तरस आया है
किसके हैं लम्स
कौन मेरे करीब आया है
मुद्दतों की नमी ने
आज सब्र पाया है
लम्हे रुके से लगते हैं
अब्र झुके झुके लगते हैं
देखो ! तरीक के कन्धों पे
शाम झुकी है
सहर भी कुछ रुकी रुकी है
पसरती सम्तों में
पसरती…
Added by Sushil Sarna on July 25, 2016 at 4:10pm — 4 Comments
कल से आगे .........
गुरुदेव वशिष्ठ और महामात्य जाबालि की आशंका अकारण नहीं थी। दोनों ही चिंतन प्रधान व्यक्तित्व के स्वामी थे और दोनों का ही सामाजिक चरित्र पर विशद चिंदन था।
अगली बार जब वेद घर पहुँचा तो उसने मित्रों के साथ समय व्यतीत नहीं किया था। इस बार उसके पास कुछ विशेष था मंगला को बताने के लिये। अभी दोपहर नहीं हुई थी। वह घर पहुँचते ही सीधा अंदर गया। मंगला घर के आँगन में स्थित कुयें से पानी खींच रही थी। वेद ने सीधे उसकी चोटी में झटका मारते हुये सूचना दी…
Added by Sulabh Agnihotri on July 25, 2016 at 3:49pm — No Comments
Added by रामबली गुप्ता on July 25, 2016 at 2:00pm — 8 Comments
“ऑफिस के लिए देर नहीं हो रही ?यहीं बैठे है आप अभी तक i
“वो बाहर बाबूजी बैठे हैं ना ,फिर पूछेंगे कि अशोक का फ़ौज से कागज़ आया कि नहीं I”
“आप साफ़ कह क्यों नहीं देते कि नहीं भेजना हमें अपने बेटे को फ़ौज में I कागज़ आ गया और हमने फाड़ कर फेंक भी दिया I”
“साफ़ कहने की हिम्मत ही तो नहीं कर पा रहा हूँ सविता i बहुत प्यार करते हैं अशोक को , फ़ौज में ऑफिसर देखना चाहते हैं उसे”I
“इन्हें क्या मिला फ़ौज से ? टूटी टांग ,बैसाखियाँ और थोड़ी सी पेंशन.. बस i”
“जानता हूँ ,पर बहस…
ContinueAdded by Pradeep kumar pandey on July 25, 2016 at 10:35am — 3 Comments
Added by Dr. Vijai Shanker on July 25, 2016 at 10:00am — 10 Comments
आदरणीय समर कबीर साहब की ज़मीन पर एक ग़ज़ल
22 22 22 22 22 2
उस मंज़र को खूनी मंज़र लिक्खा है
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जिसने तुझको यार सिकंदर लिक्खा है
तय है उसने ख़ुद को कमतर लिक्खा है
समाचार में वो सुन कर आया होगा
एक दिये को जिसने दिनकर लिक्खा है
वो दर्पण जो शक़्ल छिपाना सीख गये
सोच समझ कर उनको पत्थर लिक्खा है
भाव मरे थे , जिस्म नहीं, तो भी…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:00am — 18 Comments
नफरत का रिश्ता--
पूरा गाँव पार कर गए पंडित लेकिन दुक्खू नहीं दिखा| जल्दी जल्दी कदम बढ़ाते वो गाँव से बाहर निकल गए, बहुत जरुरी काम से जा रहे थे और ऐसे में दुक्खू न दिखे, यही मना रहे थे| पंडित को लगा कि लगता है गाँव के बाहर चला गया है आज, राहत की सांस ली उन्होंने| पंडित पूरे नियम कानून वाले थे, बिना नहाए धोए अन्न ग्रहण नहीं करते थे और सारी गणना करके ही घर से निकलते थे| कब किस दिशा में जाना है, कब नहीं, सब देख समझ ही किसी यात्रा की तैयारी करते थे| ख़ुदा न खास्ता अगर किसी ने छींक दिया या…
Added by विनय कुमार on July 25, 2016 at 12:49am — 9 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on July 25, 2016 at 12:30am — 4 Comments
Added by Manan Kumar singh on July 24, 2016 at 3:11pm — 6 Comments
१२२-१२२-१२२-१२२
यही बात दिल देख मेरा जलाये
तुझे याद भी क्या जरा हम न आए
मुहब्बत किसी से करो तो पता हो
इशारे से महबूब कैसे बुलाये
गुनाहों ने तुमको कहीं का न छोड़ा
शराफत खड़ी मुंह में ये बुदबुदाये
खुदा प्यार बांटे सभी को हमेशा
यही सोच मुझको सदा गुदगुदाये
बफा साथ लेकर परीक्षा है आती
दुआ है खुदा से मुझे आजमाये
नदी गुनगुनाती हुई बह रही है
मिलन साथ सागर तभी खिलखिलाए
.
मुनीश…
ContinueAdded by munish tanha on July 24, 2016 at 11:30am — 2 Comments
कल से आगे ..........
जैसा कि संभावित था, रावण ने अपने बड़े भाई कुबेर का मानमर्दन कर ही दिया। इस विजय ने उसके अहंकार का पोषण करने का कार्य भी किया। सत्ता के साथ सत्ता का मद आना स्वाभाविक ही है। इस मद के अतिरिक्त इस विजय से उसे जो कुछ भी प्राप्त हुआ था उसमें सबसे महत्वपूर्ण था कुबेर का पुष्पक विमान।
रावण ने कुबेर को परास्त करने के बाद अमरावती का राज्य हस्तगत नहीं किया। जैसे बहुत बाद में, ऐतिहासिक मध्य काल में इस्लामी आक्रमण कारी भारत आते थे और लूट का माल समेट कर लौट…
Added by Sulabh Agnihotri on July 24, 2016 at 8:46am — No Comments
कल से आगे ...............
वेद बड़े उहापोह में था। किस प्रकार बात करे वह गुरुजी से मंगला के विषय में। गुरुदेव क्रोधी स्वभाव के कदापि नहीं थे तो भी उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी। वह नित्य प्रातः निश्चय करता कि आज मध्यान्ह में भोजन के समय अवश्य ही गुरुदेव से पूछेगा किंतु मध्यान्ह से साँझ पर टल जाता और साँझ से पुनः अगली प्रातः पर। अंततः एक दिन उसने निश्चय किया कि अब कोई सोच-विचार नहीं करेगा बस सीधे जाकर गुरुजी से पूछ लेगा, फिर जो होगा देखा जायेगा। नहीं पूछेगा तो फिर घर जाते ही मंगला…
ContinueAdded by Sulabh Agnihotri on July 23, 2016 at 10:11pm — No Comments
दर्जी रमेश के एक कमरे के घर में आज उत्साह पसरा हुआ था I टी वी के एक कार्यक्रम में बेटे राजू का गाना आनेवाला था I
“काकी टी वी नहीं खोला i राजू भैया का गाना शुरू हो गया है “ पडौस की लड़की हाँफती अन्दर आई I
“सुबह से इंतज़ार था और इनकी मशीन की खट खट में समय का ध्यान नहीं रहा, चल लगा दे जल्दी से “I बेटे को टी वी में देखने को बेताब कांता , टी वी के एकदम पास बैठ गई I
टी वी खोलने तक गाना हो चुका था I तालियों की गडगडाहट के बीच राजू को देख उसकी आँखें भर आईं Iमाथे के…
ContinueAdded by pratibha pande on July 23, 2016 at 7:43pm — 18 Comments
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
दिलों में दूर रहकर भी कोई दूरी नहीं होती |
कहाँ किसको कोई पूछे यहाँ तो नाम बिकता है
किसी मजदूर के फन की कोई गिनती नहीं होती
…
ContinueAdded by rajesh kumari on July 23, 2016 at 6:30pm — 12 Comments
अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए घर मे घुसा।
"मम्मा!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे गणपति बप्पा को..."…
ContinueAdded by नयना(आरती)कानिटकर on July 23, 2016 at 3:30pm — 12 Comments
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