For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अखबार हाथ में लेकर सृजन लगभग दौड़ते हुए  घर  मे घुसा

"मम्मा!, पापा! ये देखो ये तो वही है ने जो हमारे गणपति बप्पा को..."

सुदेश ने उसके हाथ से पेपर झपटकर टेबल पर फ़ैलाया

"देखो दिशा! ये तो वही लड़का है  ना, इसका नाम तो रहमान लिखा है इन्होंने तो क्या ये गैर... "

अरे हा! कहते वो भी समाचार पत्र पर झुक गई. सब कुछ चल चित्र सा उसकी आँखो से गुज़र गया

यही कोई १४-१५ बरस का दूबला-पतला सा  किशोर होगा वह. उसका असली नाम तो नहीं जानते थे पर उसके रूप-रंग को देखकर सब उसे कल्लू के नाम से पुकारते थे. वह हमेशा ही उन्हें बडे तालाब के किनारे मिल जाया करता था. अंग्रेजी नही जानता था फ़िर भी विदेशी सैलानियों का दिल जीतकर उन्हे नौका विहार करा देता था. स्वभाव से खुश दिल था किंतु उसकी आँखो से लाचारी झलकती थी. उसका बाप बीमार रहता था. वो ही सहारा था घर का शायद इसलिए वो तालाब की परिक्रमा लगाया करता था.

बप्पा के विसर्जन के दिन तो भाग-भाग कर सबसे विनय करता कि लाओ मैं बप्पा को ठीक मध्य भाग मे विसर्जित कर दूँगा.आप चाहे अपनी दक्षिणा बाद मे दे  देना.

तालाब के मध्य भाग मे जोर-जोर से भजन गाकर बप्पा को प्रणाम कर उनको जल समाधि  दिया करता था. इसी बिच यदि अजान सुनाई देती तो आसमान की  ओर आँखें उठा कर अपना हाथ हृदय से लगा लेता.

 कुछ कायर,भिरुओ को शायद ये बात अखर गई थी. एक पवित्र परिसर मे छुरा घोपकर उसे मार दिया गया था.

 उसके मृत देह से उसकी वही लाचार दृष्टि दिखाई दे रही थी कि अब मेरे बप्पा को कौन सिराएगा (immerse) .

लगा बप्पा भी पास मे ही बैठे है अपने भक्त का रक्तरंजित हाथ लेकर  मानो कह रहे हो...विसर्जन तो अब भी होगा. दूसरे बच्चे ये काम करेंगे,किंतु

राम-राम कहने वाला रहमान अब शायद ही कोई हो.

*** विवेक सावरीकर "मृदुल" की  मराठी कविता "तो पोरगा" से प्रेरित होकर. उनकी अनुमति से

 मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 794

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on July 25, 2016 at 10:05pm
दिल को छू गयी आपकी ये रचना आदरणीया दीदी!बहुत बधाई आपको ।सादर
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 25, 2016 at 9:23pm

मर्माहत कर गयी आपकी ये लघुकथा  और समाज को एक सन्देश भी!

Comment by Sushil Sarna on July 25, 2016 at 9:23pm

राम-राम कहने वाला रहमान अब शायद ही कोई हो..... हृदय को झिंझोड़ती इस मार्मिक और संदेशात्मक लघुकता के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
इंसान में ही राम है उसी में रहमान है , मज़हब की हदों से दूर है जो ,सही मायने में वो इंसान है। इस बेहतरीन लघुकथा के लिए हार्दिक बधाईआदरणीया नयना जी,

Comment by Nita Kasar on July 25, 2016 at 8:13pm
कथा तारीफेकाबिल है,विसर्जन आगे भी होगा और कोई ये काम करेगा बधाई आपके लिये,आद०नयना जी ।
Comment by Shubhranshu Pandey on July 24, 2016 at 8:03pm

आदरणीया नयना जी, सबसे पहले तो इस बाद की बधाई कि आपने अपनी कथा के प्रेरणा का नाम बता दिया है. ये एक बहुत प्रसंशनीय  कदम है. बहुत सुन्दर कथा का ताना बाना बुना है आपने. कट्टरता का एक  घिनौना खेल खेला जा रहा है जिसमें सभी आहत होते हैं. सादर.

Comment by pratibha pande on July 24, 2016 at 5:59pm

हमारी गंगा जमुनी संस्कृति पर ऐसे ही  आघात  होते रहते हैं और उसे तोड़ने की कोशिश होती रहती है ,  बहुत सशक्त कथा है आपकी हार्दिक बधाई स्वीकार करें  आदरणीया नयना जी 

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 24, 2016 at 2:11pm

आ.उस्मनी जी मेरी  रचना पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी से हर्षित हूँ.तहे दिल से शुक्रिया आपका 

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 24, 2016 at 2:09pm

आ.रवि प्रभाकर भाई जी इस बार रचना पर आपका अनुमोदन पढ उत्साह बढा हैं. ह्रदयतल से आभार आपका

Comment by नयना(आरती)कानिटकर on July 24, 2016 at 2:04pm

आ. राजेश दीदी रचना पर आपकी प्रथम टिप्पणी से मन प्रफुल्लित हुआ. आपका बहुत-बहुत आभार उत्साहवर्धन के लिए.

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 24, 2016 at 12:16pm
इस गंगा-जमुनी संस्कृति में कुछेक ऐसे और भी कल्लू/रहमान/राम/किशन/रहीम ...हैं, जिनकी हमें आवश्यकता है आज के दौर में और भविष्य में भी। इस समसामयिक संदेश वाहक बेहतरीन रचना से हमें सबक़ लेने चाहिए। वर्तमान परिदृश्य पर बढ़िया प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको आदरणीया नयना (आरती) कानिटकर जी। मराठी कवि महोदय श्री विवेक सावरीकर जी को भी हार्दिक बधाई जिनकी रचना से प्रेरित होकर यह सृजन हुआ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
22 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
yesterday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service