For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

All Blog Posts (19,140)

दोहे {सावन}

भारत में हर मास में, होता इक त्यौहार

केवल सावन मास है, पर्वों से भरमार |1|

 

रस्सी बांधे साख में,  झूला झूले नार

रिमझिम रिमझिम वृष्टि में, है आनन्द अपार |२|

 

जितने हैं गहने सभी, पहन कर अलंकार

साथ हरी सब चूड़ियाँ, बहू करे श्रृंगार |३|

 

काजल बिन्दी साड़ियाँ, माथे का सिन्दूर

और देश में ये नहीं, सब हैं इन से दूर |४|

 

कभी तेज धीरे कभी, कभी मूसलाधार

सावन में लगती झड़ी, घर द्वार अन्धकार…

Continue

Added by Kalipad Prasad Mandal on August 6, 2016 at 8:00am — 4 Comments


सदस्य टीम प्रबंधन
गाय हमारी माता है // --सौरभ

गाय हमारी माता है

हमको कुछ नहीं आता है..



हमको कुछ नहीं आता है

कि, गाय हमारी माता है !



गाय हमारी माता है

और हमको कुछ नहीं आता है !?



जब गाय हमारी माता है

हमको कुछ क्यों नहीं आता है ?



गाय हमारी माता है

फिरभी हमको कुछ नहीं आता है !



फिर क्यों गाय हमारी माता है..

जब हमको कुछ नहीं आता है ?



तो फिर, गाय हमारी कैसी माता है

कि हमको कुछ नहीं आता है ?



चूँकि गाय हमारी माता है..

क्या…

Continue

Added by Saurabh Pandey on August 6, 2016 at 1:30am — 19 Comments

बिन पैंदी का लौटा (लघुकथा)

मैं न बदलूंगा

"तुम्हारे जैसा चमचा नहीं देखा आज तक । कितनी चापलूसी कर लेते हो तुम । और देखो तो दोनों मेनेजर तुम्हारी मुट्ठी में हैं ।" अ ने ब से कहा

"अब यह तो अपनी अपनी कला है । हाँ यह सच है दोनों मेनेजर मेरी बात मानते है । पर मैं चमचा हूँ यह कैसे कह दिया तुमने । "

" सुनो अ यह अपनी अकड़ अपने पास ही रखो । मैं ही नहीं सारा ऑफिस स्टाफ यही कहता है । सब बेवकूफ तो नही । वैसे तुम एक बिन पेंदी के लौटे हो । तुम्हारे जैसा बेशर्म इंसान नहीं देखा है मैंने सुना है एक मेनेजर ने तुमको घर बुलाया… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 5, 2016 at 5:46pm — 8 Comments

गीत (विधाता छ्न्द)

1222,1222,1222,1222



कभी छाया मिली गहरी ,कभी फिर धूप पड़ती है

चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है



जमाना ये उसे चाहे दुखों को जो भुलाता है

सतत बढ़ता चला जाए नहीं खुद को रुलाता है

मुसीबत को बहुत छोटी,समझ कर जो चला जाए

खुदा देखो उसे ही तो ज़माने में सदा लाए

नहीं तो देख लो कितनी यहाँ पर उम्र झड़ती है

चले जीवन सही साथी,नहीं मुश्किल अकड़ती है।1।



मुहब्बत एक प्यारा सा ख़ुशी का ही खज़ाना है

इसी को पास रखकर ही हमें जीवन बिताना… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 4, 2016 at 11:00pm — 10 Comments

शब्दों का सैलाब (लघुकथा)/शेख़ शहज़ाद उस्मानी

विद्यालय के स्टाफ-रूम में शिक्षकगण लाल-स्याही की परम्परागत औपचारिक रस्म निभा रहे थे। उत्तर-पुस्तिकायें कई तरह से व्यवस्थित या अव्यवस्थित अपनी बारी की प्रतीक्षा में थीं। निर्धारित समय सीमा में उनको जांचने व मूल्यांकन करने का कार्य सम्पन्न करना था।



मानसिक दबाव सहते शिक्षकों में से एक ने कहा- "ये लाल कलम कब थमेगी?कब थमेगा यह सैलाब?"



दूसरे शिक्षक ने कहा- "शब्दों का मेला है, छल्ले डालो जनाब! आइने हैं बच्चों की ये उत्तर-पुस्तिकायें! जागो और जगाओ जनाब!"



तभी प्राचार्य… Continue

Added by Sheikh Shahzad Usmani on August 4, 2016 at 7:29pm — 11 Comments

निर्जन पगडंडी - एक नयी राह

" तुमसे कुछ भी कहना बेकार है । तुम कभी नहीं सुधर सकते । जाने कितनी बार जेल जा चुके हो , हर बार कहते हो बस यह आखरी चोरी है , फिर वही करने लग जाते हो । तुम्हारे पीछे तुम्हारे परिवार वालों को जो परेशानियाँ होती है , तुमने कभी इस और ध्यान ही नहीं दिया ......।"रमेश अपने दोस्त को कुछ समझाने की कोशिश कर रहा था पर वह दोस्त तो !!!

"बन्द करो अपनी शिक्षा दिक्षा नहीं सुनना तुमसे कोई भाषण । मेरी मर्ज़ी जो चाहूँ करूँ । बचपन से करते आया हूँ । घर में किसीने नहीं रोका अब यह मेरी बेरी बीवी जब से आई है…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 4, 2016 at 3:30pm — 11 Comments

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

अँधेरे में रहा करता है साया साथ अपने पर

बिना जोखिम उजाले में है रह पाना बहुत मुश्किल

ख्वाबों और यादों की गली में उम्र गुजारी है

समय के साथ दुनिया में है रह पाना बहुत मुश्किल

कहने को तो कह लेते है अपनी बात सबसे हम

जुबां से दिल की बातो को है कह पाना बहुत मुश्किल

ज़माने से मिली ठोकर तो अपना हौसला बढता

अपनों से मिली ठोकर तो सह पाना बहुत मुश्किल

कुछ पाने की तमन्ना में हम खो देते बहुत कुछ है

क्या खोया और क्या पाया कह पाना बहुत मुश्किल

कुछ…

Continue

Added by Madan Mohan saxena on August 4, 2016 at 1:03pm — 3 Comments

आखिर क्यों?(अतुकांत)-रामबली गुप्ता

वो समुद्रतट की

चांदनी रातें

सुहानी बातें

रजनी का रजनीकर के

स्नेहिल ज्योत्स्ना में

नहाना

भीगना।

प्रेम-सिक्त

पुलकित

यामिनी के

निःशब्दता में

चुम्बन

आलिंगन

रति-परिणय, आहा!

हृदय में

उमड़ते

लहराते

गहरे प्रेमधि का

विश्वास

और

गंभीर जलधि की

उपेक्षा

पर आज

वो दृश्य नही

प्रेमधि नही

सिर्फ अश्रुधि

वही रजनी

रजनीकर

निःशब्दता

किन्तु

सर्प की भाँति डंसता… Continue

Added by रामबली गुप्ता on August 4, 2016 at 12:37pm — 8 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 42

कल से आगे ..........

‘‘दोनों बाहर आओ जरा। कुछ वार्ता करनी है।’’ रावण के सो जाने पर सुमाली ने वजृमुष्टि और मारीच से कहा।

दोनों कुटिया से निकल आये। जो मंथन सुमाली के मस्तिष्क में चल रहा था वहीं इनके मस्तिष्कों में भी चल रहा था। रावण की मनस्थिति लंका के सर्वनाश की द्योतक थी। रावण की अनुपस्थिति में विष्णु के लिये उन्हें पुनः समाप्त करना बच्चों का खेल ही था। विष्णु के लिये उन पर आक्रमण करने के लिये कुबेर के साथ किया घात ही पर्याप्त कारण था। और देखो तो विष्णु की टाँग यहाँ भी अड़ी थी।…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on August 4, 2016 at 9:14am — No Comments

धंधे का उसूल(लघुकथा)राहिला

एक भिखारी के झोपड़े में आग क्या लग गयी,सारी मीडिया मछों की तरह भिनभिन करती मौका-ए-वारदात पर पहुँच गयी ।ये एक सामान्य आगजनी की घटना हो सकती थी ,लेकिन उस झोपड़े से जो जले हुए नोटों के बोरे के बोरे बरामद हुए ,ये खास खबर थी ।अब इस घटना को किस तरह सारे दिन की खबर बनाना है इसकी कबायत में मीडिया बाल की खाल निकल रही थी।

"बाबा!भीख मांग ,मांग कर करोड़ों रुपये जमा किये।और आज उनमें आग लग गयी।इससे तो अच्छा होता आप इन रुपयों का भरपूर उपयोग कर लेते।अच्छा खाते ,अच्छा पहनते।"

"आपके कहने का मतलब है हम… Continue

Added by Rahila on August 4, 2016 at 6:30am — 17 Comments

गीत,हरिगीतिका छ्न्द पर प्रथम प्रयास

नारी

------

अबला बनीं सबला अभी तो हम उन्हें सम्मान दें

उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें



चलते रहे यह मानकर कुछ कर नहीं सकती कभी

कमजोर उनको मानते अब तक चले हैं जी सभी

हैं जानते यह हम सभी सबला हुई अब नार हैं

जीवन उन्हीं से चल रहा,वे ही सबल आधार हैं

नारी सही हैं बढ़ रहीं अपने वतन पर जान दें

उत्साह से वे कर रहीं हर काम को अब मान दें।



इक कल्पना ने था रचा इतिहास सब हैं जानते

आकाश पर लहरा गई थी जो ध्वजा पहचानते

लक्ष्मी… Continue

Added by सतविन्द्र कुमार राणा on August 3, 2016 at 5:00pm — 11 Comments

वह प्रीत की फसल उगाती है/ कविता

मेरा निश्छल मन

किसी से बैर

या शत्रुता नहीं

पालता है।



वह पालता है

प्रीत की सघनता को

वो बहता रहता है

भाव की अविचलता में

उसे फुरसत नहीं

प्रेम में बहते रहने से

उसकी दृष्टि हटती नहीं

अपने प्रियतम से।



हृदय की गहन तलहटी में

उनकी गुंजों में डूबी हुई

भोर की दूर्बा-सी

ओस को आँखों में सजाये

गुँथा करती है

प्रतिदिन जयमाल

मन के फूलों से।



कोकिल-सी कूक लिये

अंधकार को बेधा करती… Continue

Added by kanta roy on August 3, 2016 at 2:35pm — 12 Comments

राम-रावण कथा (पूर्व-पीठिका) 41

कल से आगे ..............

सुमाली ठीक एक वर्ष बाद वहीं पहुँच गया जहाँ उसने रावण को छोड़ा था। उसके साथ मारीच और वजमुष्टि भी थे। रावण उस कुटिया में नहीं था। उन्होंने चारों ओर खोजा, थोड़ी ही दूर पर एक दूसरी कुटिया के बाहर बैठा रावण उन्हें दिख गया। वहाँ पहुँचते ही वे चैंक कर रह गये। रावण की गोद में एक छोटी से कन्या थी जो उसकी छाती में दूध खोजने की व्यर्थ प्रयास कर रही थी। सामने एक चिता जल रही थी। रावण का मुँह उतरा हुआ था जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो। बाल बिखरे हुये, आँखें लाल जैसे कई…

Continue

Added by Sulabh Agnihotri on August 3, 2016 at 10:07am — No Comments

गर तुम न होते

गर तुम न होते



सोचती हूँ अक्सर मैं

क्या होता गर

तुम न होते !

क्या बिखर जाती

क्या संवर जाती

दीवारों से पूछ लेती हूँ

शायद यही बता दें

जिसने करी है बातें अनगिनित

वे ही कुछ बतादें।

वो खिड़कियों से झाँकती हुई

कुसुम लताएँ

उस पेड़ पर बने हुए

घोसलें चिड़ियाओं के

आसमान से देखते है जो बादल

यह चाँद जो गवाह था

प्रीत का

यह सूरज जिसने तपते हुए

रिश्तों की लौ को जलाया था ।

बताओ तुम ही किससे पूँछू

क्या होता इस… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 3, 2016 at 7:00am — 1 Comment

वृद्धाश्रम: लघुकथा

कौन है जो घंटी बजा रहा है,?चौकीदार तुम से काम ढंग से नही होता तो काम छोड़ दो।

'मेडम जी एक बुड्डा आया है,जिद्दी है कहता मिलना ज़रूरी है।

"देख राजू आख़िरी चेतावनी है तेरे लिये आलतू ,फ़ालतू लोगों को भगा नही सकता चले आते है समय बेसमय।

लगता हैवह इनाम की आस में आया है , हमारे टामी का विज्ञापन पढ़कर।"

अरे! क्या कह रहे हो राजू उसे बैठक में बैठाओ ,पानी,चाय लेते आना ,अभी आती हूँ।

बाहर ससुर को देखकर मालकिन के पाँव तले ज़मीन खिसक गई ।

"बेटा ,टामी वृद्धाश्रम आ गया था मेरे…

Continue

Added by Nita Kasar on August 2, 2016 at 9:00pm — 8 Comments

कितना अच्छा होता .....

कितना अच्छा होता .....

कितना अच्छा लगता है

फर्श पर

चाबी के चलते खिलौने देखकर

एक ही गति

एक ही भाव

न किसी से कोई गिला

न शिकवा

ऐ ख़ुदा

कितना अच्छा होता

ग़र तूने मुझे भी

शून्य अहसासों का

खिलौना बनाया होता

अपना ही ग़म होता

अपनी ही ख़ुशी होती

न लबों से मुस्कराहट जाती

न आँखों में नमी होती

सब अपने होते

हकीकत की ज़मीं न होती

ख़्वाबों का जहां न होता

बस ऐ ख़ुदा

तूने हमें भी वो चाबी अता की होती…

Continue

Added by Sushil Sarna on August 2, 2016 at 7:30pm — 24 Comments

लजाते क्यूँ हो?

2122 2122 22

अपने बच्चों को आज़माते क्यूँ हो?
निर्धनों को यूँ सताते क्यूँ हो?

वो तो वैसे ही है अभिशापित; फिर।
ख़्वाब मुफ़लिस को दिखाते क्यूँ हो?

जो कि रिश्ते में #भसुर# है धन का।
उसको महफ़िल में बुलाते क्यूँ हो?

जिसकी कुटिया में नहीं दरवाज़े।
बाप बेटी का बनाते क्यूँ हो?

मैं ख़फ़ा हूँ तेरी मनमानी से।
सामने आओ लजाते क्यूँ हो?

मौलिक अप्रकाशित

Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 2, 2016 at 6:12pm — 4 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ? ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22   बहरे मीर

फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ

नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ

 

खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?

आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ

 

वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये

अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ

 

शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम

बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ

 

फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी

कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ 

 

क्षितिज…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:05pm — 12 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
ग़ज़ल - कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22 

कैसे दुर्योधन को कोई मोहन कह ले  

और सुदामा मित्र बने तो, दुश्मन कहले

 

मुझको तेरी बाहों का घेरा जन्नत है

मेरी बाहों को चाहे तू बन्धन कह ले

 

मै रातों को चीख, नींद से उठ जाता हूँ

तू समझे तो इसको मेरी तड़पन कह ले

 

अब केवल कंक्रीट दिखेंगे शहर नगर में

बन्द आँख कर तू इसको ही मधुबन कह ले

 

विष ही वमन किया हर पत्ता, हवा चली जब

तू उन बीजों को बोया, तू चंदन कह…

Continue

Added by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 1:03pm — 17 Comments


सदस्य कार्यकारिणी
शक (लघु कथा 'राज')

  

“अब बोल चारू कैसे आना हुआ कैसे याद आ गई आज मेरी ” जूही ने चाय  के  प्याले  हटाते  हुए प्यार से ताना देते हुए कहा|

 “बस ये समझ ले मेरा उस जगह से मन भर गया तू यहाँ मेरे लिए मकान ढूँढ ले ”|

  “फिर भी बता न क्या हुआ?”

 “तुझे याद होगा मैंने एक बार बताया था कि मेरे घर के ठीक सामने  सड़क  के  दूसरी पार गाडियालुहारों ने अपनी झोंपड़ियाँ डाल  रक्खी हैं | जिनका काम लोहे से औजार व् बर्तन बनाना फिर उनको आस पास के घरों में बेचना होता है”  |

“हाँ हाँ याद है…

Continue

Added by rajesh kumari on August 2, 2016 at 11:28am — 23 Comments

Monthly Archives

2025

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

2012

2011

2010

1999

1970

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
2 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service