For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो चार कहीं लगते पौधे , रोज कटते हैं पेड़ हज़ार |

दो चार कहीं लगते  पौधे , 
रोज कटते हैं  पेड़ हज़ार |
वन झाड़ी का होत सफाया , बाग कानन  का  मिटता नाम |
कहीं  पेंड नज़र  नहीं आते  ,    कहाँ   जा करे  राही विश्राम |
खग जाकर कहाँ  करे कलरव  , मिले ना कही जब  फलाहार |
घर सजते नकली  फूलों से , जभी आये कोई त्यौहार |
दो चार कहीं लगते  पौधे , 
रोज कटते हैं  पेड़ हज़ार |
कहीं सड़क वन बाग़ उजाड़े , कहीं मानव करता वन खाक  |
हर तरफ तरुवर सहे  आफत , आँधीं तूफ़ाँ करता  मजाक |
वन झाड़ का होता  सफाया ,  घर ही बनते जाते हज़ार |
कम  हैं खेत बढ़ी आबादी  ,   वन झाड़ काटें  हो लाचार |
दो चार कहीं लगते  पौधे , 
रोज कटते हैं  पेड़ हज़ार |
कहीं  पौध जिसने  ना रोपी  , फूल फलों  को कहें बेकार |
बाग़ बेचकर खेत बनाये  ,  माँ बाप का था जो आधार  |
फल फूल कहीं मिले  कैसे , पौधों का जब मिटे  अधिकार | 
जब हर लोग  लगायें पौधे , तब बढे हरा भरा संसार |
दो चार कहीं लगते  पौधे , 

रोज कटते हैं  पेड़ हज़ार |

श्याम नारायण वर्मा 
मौलिक व अप्रकाशित |

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on October 25, 2016 at 1:13pm

आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय

Comment by vijay nikore on October 24, 2016 at 3:44pm

बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई।

Comment by Shyam Narain Verma on August 11, 2016 at 3:32pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना पर उत्साहित करती प्रतिक्रिया और सुझाव  के लिए आपका हार्दिक आभार | मैं सुधार करने की कोशिश करूँगा |

सादर

Comment by Shyam Narain Verma on August 11, 2016 at 3:27pm

आदरणीय शुरेश कुमार कल्याण जी , तहे दिल से आभार आपका
सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2016 at 12:34pm

आदरणीया श्याम नाराइन भाई , पर्यावरण संरक्षण पर अच्छा गीत रचना आपने , दिल से बधाइयाँ आपको । बस मात्रिकता और कलों का निरवहन मे कुछ कमियाँ लगीं , इसी लिये लय कहीं कहीं बाधित हैं ।

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on August 11, 2016 at 12:33pm
आदरणीय श्री श्याम नारायण जी बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति हुई है । पर्यावरण को बचाने के लिए और लोगों को जागरूक करने के लिए हार्दिक बधाई । बहुत ही सुन्दर रचना । बधाई प्रेषित है ।
Comment by Shyam Narain Verma on August 10, 2016 at 11:20am
आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 10, 2016 at 11:10am
वनस्पति एवं पर्यावरण को समर्पित इस सुन्दर रचना की प्रस्तुति पर बधाई, आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on August 10, 2016 at 10:48am
मेरी रचना को प्रोत्साहन देने के लिए तहे दिल धन्यवाद ..सादर
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 9, 2016 at 10:48pm
पर्यावरण पर सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय।हार्दिक बधाई!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
1 hour ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
11 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज भाईजी के प्रधान-सम्पादकत्व में अपेक्षानुरूप विवेकशील दृढ़ता के साथ उक्त जुगुप्साकारी…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service