For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ

1222-1222-1222-1222
-------------------------------

ख़ुदाया उसकी तकलीफ़ें मेरी ज़ागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की ख़ुशियाँ उसकी अब ताबीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना और आन्हें मेरे सीने में,
कहीं तब्दील हो आन्हें न अब शमशीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंज़िल है न वादा है न उसकें बिन मैं ज़िन्दा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

जुबां से चुप ये आँखें बंद उसके कानों पर फालिज,
शहर ज़ख्मों के, सीने में, न अब तामीर हो जाएँ |

यूँ किस्से अपने लिक्खे ख़ूब उसने ख़ुद सफ़ीनों पर,
फ़कत चाहत थी उनकी वो सभी तहरीर हो जाएँ |


हर्ष महाजन  

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 920

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Harash Mahajan on May 4, 2018 at 2:10pm

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज'  जी उत्साहवर्धक टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया |

सादर |

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on September 3, 2016 at 8:02pm

बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय 

Comment by Harash Mahajan on August 20, 2016 at 6:32pm
आ0 समर कबीर जी सादर प्रणाम । सर आपने पसंद किया मेहनत सफल हुई । आप इसी तरह नज़रें इनायत रखियेगा सर । बहुत बहुत शुक्रिया ।

आभार ।
Comment by Samar kabeer on August 17, 2016 at 10:53pm
अब क़ाफ़िये ठीक बैठे हैं ,बधाई स्वीकार करें ।
Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:52pm

आ० Samar kabeer जी मैं अपनी तहरीर में कुछ परिवर्तन कर आपके समक्ष लेकर आया हूँ सर !.....उम्मीद है इस बार आप निराश नहीं होंगे.....नज़रें इनायत कीजिये सर !!

सादर !!

खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की खुशियाँ उसकी अब ताबीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना और आन्हें मेरे सीने में,
 कहीं तब्दील हो आन्हें न अब शमशीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंजिल है न वादा है न उसकें बिन मैं जिंदा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

जुबां से चुप ये आँखें बंद उसके कानों पर फालिज,
शहर ज़ख्मों के, सीने में, न अब तामीर हो जाएँ |

यूँ किस्से अपने लिक्खे खूब उसने खुद सफीनों पर,
फकत चाहत थी उनकी वो सभी तहरीर हो जाएँ |
***

Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:44pm

आ० मनोज कुमार जी नमस्कार .....आभार >>>>>
आज कुछ तब्दीली के साथ अपनी ग़ज़ल मैं वापिस लेकर आया हूँ तो देखा आपके हाथों सुधर कर ग़ज़ल उम्दा हुई है.....आपने मेरी तहरीर पर इतना वक़्त देकर उम्दा किया इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया |
उम्मीद है आप इसी तरह हौंसिला अफजाई करते रहेंगे |

आभार |

Comment by Harash Mahajan on August 17, 2016 at 5:41pm

आ० सतविन्दर कुमार जी बहुत बहुत शुक्रिया अहसास पसंद करने हेतु...


सादर !!

Comment by मनोज अहसास on August 14, 2016 at 4:18pm
कुछ परिवर्तन किया है आदरणीय
केवल काफिया
हालांकि काफिया शेर के साथ ही या पहले ही निर्धारित होने पर पूरा अर्थ देता है
यहाँ मेरे काफिया डालने से हो सकता है कुछ शेर अर्थ हीन भी हो गए होंगे
फिर भी आप काफिया इस तरह से ही डालिये
सादर



खुदाया उसकी तकलीफें मेरी जागीर हो जाएँ,
ज़माने भर की खुशियाँ उसकी अब तक़दीर हो जाएँ |

यूँ दर्दों में तडपना उसका, आन्हें मेरे सीने में,
खुदा से इल्तिजा सब आहें ये बेपीर हो जाएँ |

खुदा की हर अदालत में उसे गर चाह मिल जाए,
वो देखे ख्वाब दुनिया के, सभी तस्वीर हो जाएँ |

न मंजिल है न वादा है न उसके बिन मैं जिंदा हूँ,
कहीं ये आदतें उसकी न अब तकदीर हो जाएँ |

यहाँ अब मौत भी बेबस खडी उसके अहाते पर,
ये ऐसी चाहतें दुनियां में अब तहरीर हो जाएँ |
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 13, 2016 at 1:02pm
बहुत् उम्दा ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय हर्ष महाजन जी।
Comment by Harash Mahajan on August 12, 2016 at 4:39pm
आ0 समर कबीर जी रचना पर आपकी उपस्थिति से दिल को होउन्सिल मिलता है । सर आपके पास इस रचना में काफिये के साथ फिर से उपस्थित होता हूँ । बहुत बहुत धन्यवाद् ।

साभार ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय शिज्जु भाई , क्या बात है , बहुत अरसे बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ा रहा हूँ , आपने खूब उन्नति की है …"
43 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" posted a blog post

ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है

1212 1122 1212 22/112मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना हैमगर सँभल के रह-ए-ज़ीस्त से गुज़रना हैमैं…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी posted a blog post

ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)

122 - 122 - 122 - 122 जो उठते धुएँ को ही पहचान लेतेतो क्यूँ हम सरों पे ये ख़लजान लेते*न तिनके जलाते…See More
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधकह दूँ मन की बात या, सुनूँ तुम्हारी बात ।क्या जाने कल वक्त के, कैसे हों…See More
2 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
""रोज़ कहता हूँ जिसे मान लूँ मुर्दा कैसे" "
3 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"जनाब मयंक जी ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है बधाई स्वीकार करें, गुणीजनों की बातों का संज्ञान…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Ashok Kumar Raktale's blog post मनहरण घनाक्षरी
"आदरणीय अशोक भाई , प्रवाहमय सुन्दर छंद रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई "
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय बागपतवी  भाई , ग़ज़ल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका हार्दिक  आभार "
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आदाब, ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल फ़रमाएँ, गुणीजनों की इस्लाह से ग़ज़ल…"
4 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद, इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से…"
12 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी आदाब,  ग़ज़ल पर आपकी आमद बाइस-ए-शरफ़ है और आपकी तारीफें वो ए'ज़ाज़…"
12 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service