Added by Sheikh Shahzad Usmani on October 25, 2016 at 8:33pm — 6 Comments
वागीश्वरी सवैया (122×7 + 12)
दया का महामन्त्र धारो मनों में,दया से सभी को लुभाते चलो।
न हो भेद दुर्भाव कैसा किसी से,सभी को गले से लगाते चलो।
दयाभूषणों से सभी प्राणियों के,मनों को सदा ही सजाते चलो।
दुखाओ मनों को न थोड़ा किसी का,दया की सुधा को बहाते चलो।
कलाधर छंद (गुरु लघु की 15 आवृति के बाद गुरु)
मोह लोभ काम क्रोध वासना समस्त त्याग, पाप भोग को मनोव्यथा बना निकालिए।
ज्ञान ध्यान दान को सजाय रोम रोम मध्य, ध्यान ध्येय पे रखें तटस्थ हो…
Added by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on October 25, 2016 at 6:30pm — 9 Comments
Added by Arpana Sharma on October 25, 2016 at 3:59pm — 4 Comments
कल का जंगल ...
खामोश चेहरा
जाने
कितने तूफ़ानों की
हलचल
अपने ज़हन में समेटे है
दिल के निहां खाने में
आज भी
एक अजब सा
कोलाहल है
एक अरसा हो गया
इस सभ्य मानव को
जंगल छोड़े
फिर भी
उसके मन की
गहन कंदराओं में
एक जंगल
आज भी जीवित है
जीवन जीता है
मगर
कल ,आज और कल के
टुकड़ों में
एक बिखरी
इंसानी फितरत के साथ
मूक जंगल का
वहशीपन…
Added by Sushil Sarna on October 25, 2016 at 3:04pm — 8 Comments
वागीश्वरी सवैया [सूत्र- 122×7+12 ; यगण x7+लगा]
करो नित्य ही कृत्य अच्छे जहां में सखे! बोल मीठे सभी से कहो।।
दिलों से दिलों का करो मेल ऐसा, न हो भेद कोई न दुर्भाव हो।।
बनो जिंदगी में उजाला सभी की, सभी सौख्य पाएं उदासी न हो।।
रखो मान-सम्मान माँ भारती का, सदा राष्ट्र की भावना में बहो।।
मत्तगयन्द सवैया [सूत्र-211×7+22 ; भगणx7+गागा]
यौवन ज्यों मकरन्द भरा घट, और सुवासित कंचन काया।
भौंह कमान कटार बने दृग, केश घने सम…
Added by रामबली गुप्ता on October 24, 2016 at 3:30pm — 25 Comments
अम्मा आयी है......
नाती नातिन से मिलने को अम्मा आयी है|
बड़े दिनों के बाद मेरे घर अम्मा आयी है||
बच्चों से छुप छुप कर सुरती पान चबाती है|
पान का डिब्बा और तम्बाखू अम्मा लायी है||
मेरे घर का पानी भी मुश्किल से पीती है|
एक कनस्तर लड्डू मट्ठी अम्मा लायी है||
दिखे जमाई घर के अन्दर झट छुप जाती है|
शर्मो हया का संग पिटारा अम्मा लायी है||
इस दुनिया की है या फिर उस दुनिया की है|
भर कर देसी…
Added by Abha saxena Doonwi on October 24, 2016 at 10:49am — 13 Comments
Added by सुनील प्रसाद(शाहाबादी) on October 24, 2016 at 9:30am — 6 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on October 24, 2016 at 1:00am — 6 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on October 24, 2016 at 12:00am — 10 Comments
2 2 2 2 2 2 2
-.-
पन्नो में घुल जाती हूँ
स्याही सी बह जाती हूँ
.
नाता बस मन से मेरा
भावो को कह जाती हूँ
.
जानूँ न* मैं छंद पिरोना
मन की तह बताती हूँ
.
न सुर है न लय सलीका
पाबन्दी तज जाती हूँ
.
खिलती भी हूँ सावन सी
पतझड़ सी झड़ जाती हूँ
.
सजा कर खुद को फिर से
पन्नो पर सज जाती हूँ
-.-
"मौलिक व अप्रकाशित"
Added by अलका 'कृष्णांशी' on October 23, 2016 at 9:02pm — 13 Comments
वह एक दहशतगर्द इलाका था ।जहाँ खण्डरनुमा मकानों में रहने को विवश थी सहमी हुयी इंसानियत ।ऐसे ही एक मकान में-
"माँ! क्या अब मैं कभी स्कूल नहीं जा सकूंगी?"माँ की गोद में सिर रखे माहिरा ने पूछा।
"पता नहीं मेरी बच्ची।"जबाब ,उम्मीद और ना उम्मीदी के बीच झूलता सा था।
"क्या लड़कियों का पढ़ना-लिखना गुनाह हैं?"
"नहीं मेरी जान!ये किसने कह दिया ?लड़कियों को पढ़ने-लिखने की इज़ाजत तो खुद ख़ुदा ने दी है।"
"अच्छा!तो फिर उन लोगों ने उस लड़की को स्कूल जाने पर क्यों गोली मार दी?क्या…
ContinueAdded by Rahila on October 23, 2016 at 3:00pm — 6 Comments
२१२२ २१२२ २१२२ २१२
मेरी बगिया खिल उठी मौसम निराला हो गया
आ गई बेटी मेरे घर में उजाला हो गया
दीप खुशियों के जले शुभ शंख मानो बज उठे
देखिये साहिब मेरा तो घर शिवाला हो गया
लहलहाई यूँ फसल खेतों की मेरी देखिये
सोने चाँदी से मढ़ा इक इक निवाला हो गया
बिन सुरा सागर के जैसे खाली था मेरा वजूद
आते ही उसके लबालब ये पियाला हो गया
पढ़ते पढ़ते रात दिन आँखें मेरी थकती नहीं
उसका चेह्रा खूबसूरत इक…
ContinueAdded by rajesh kumari on October 23, 2016 at 12:55pm — 20 Comments
Added by सुरेश कुमार 'कल्याण' on October 23, 2016 at 12:48pm — 10 Comments
नेहा सुबह से उदास थी। शादी के पाँच साल होने को आए थे, पर उसकी गोद अब तक सूनी थी। उसकी और उसके पति की मेडीकल जाँच हो चुकी थी। सब ठीक था। फिर भी बात बन नहीं रही थी। बस सास इसी बात को लेकर अपने बेटे पर लगातार दबाव डाल रही थी कि वह उसे तलाक क्यों नहीं दे देता।
माँ की बातों में आकर आज सुबह ही अभिषेक तलाक के कागजात बनवाने वकील के पास चला गया था। भविष्य की चिंता को लेकर नेहा की आँखों में आँसू छलक आए थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे। उसे लग रहा था कि हो सकता है अभिषेक का गुस्सा ठंडा…
ContinueAdded by विनोद खनगवाल on October 23, 2016 at 10:37am — 7 Comments
Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 23, 2016 at 10:30am — 5 Comments
Added by Manan Kumar singh on October 23, 2016 at 7:30am — 13 Comments
Added by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 23, 2016 at 12:14am — 8 Comments
2212 2212 2212
.
दीवानगी में हम वफ़ा लिखते गए ।
तुम बेखुदी में बस जफ़ा पढ़ते गए ।।
पूछा किया वो आईने से रात भर ।
आवारगी में हुस्न क्यूँ ढलते गए ।।
आयी तबस्सुम जब मेरी दहलीज पर ।
देखा चिराग़े अश्क भी जलते गए ।।
नादानियों में फासलो से बेखबर ।
बस जिंदगी भर हाथ को मलते गए ।।
तालीम ले बैठा था जब इन्साफ की ।
क्यूँ मुज़रिमो के फैसले बदले गए ।।
जिसकी बेबाकी के चर्चे थे बहुत ।
तहज़ीब को अक्सर वही छलते गए…
Added by Naveen Mani Tripathi on October 22, 2016 at 7:00pm — 3 Comments
छुट्टी की बड़ी समस्या है दीदी, पापा अस्पताल में नर्सो के सहारे हैं! भाई से फोनवार्ता होते ही सुमी तुरन्त अटैची तैयार कर बनारस से दिल्ली चल दी|
अस्पताल पहुँचते ही देखा कि पापा बेहोशी के हालत में बड़बड़ा रहें थे| उसने झट से उनका हाथ अपने हाथों में लेकर, अहसास दिला दिया कि कोई है, उनका अपना |
हाथ का स्पर्श पाकर जैसे उनके मृतप्राय शरीर में जान सी आ गयी हो |
वार्तालाप घर-परिवार से शुरू हो न जाने कब जीवन बिताने के मुद्दे पर आकर अटक गयी |
एक अनुभवी स्वर प्रश्न बन उभरा, तो दूसरा…
Added by savitamishra on October 22, 2016 at 9:30am — 14 Comments
फाइलातुन-मफाइलुन-फइलुन
कमसिनी में शबाब पहने हुए |
हुस्न निकला निक़ाब पहने हुए |
तुहमते बेवफ़ाई का कब से
हम हैं बैठे खिताब पहने हुए |
कौन आया है चीखी तारीकी
बज़्म में माहताब पहने हुए |
आँख में इंतज़ार दिल में तड़प
मैं हूँ यह इंक़लाब पहने हुए|
मत यक़ीं करना उसपे आया है
जो वफ़ा का हिजाब पहने हुए |
सामना अस्ल का ज़रूरी है
क्यूँ हैं आँखों में ख्वाब पहने हुए…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on October 20, 2016 at 8:30pm — 17 Comments
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