For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दो इस्लाम (लघुकथा )राहिला

वह एक दहशतगर्द इलाका था ।जहाँ खण्डरनुमा मकानों में रहने को विवश थी सहमी हुयी इंसानियत ।ऐसे ही एक मकान में-

"माँ! क्या अब मैं कभी स्कूल  नहीं जा सकूंगी?"माँ की गोद में सिर रखे माहिरा ने  पूछा।

"पता नहीं मेरी बच्ची।"जबाब ,उम्मीद और ना उम्मीदी के बीच झूलता सा था।

"क्या लड़कियों का पढ़ना-लिखना गुनाह हैं?"

"नहीं मेरी जान!ये किसने कह दिया ?लड़कियों को पढ़ने-लिखने की इज़ाजत तो खुद ख़ुदा ने दी है।"

"अच्छा!तो फिर उन लोगों ने उस लड़की को स्कूल जाने पर क्यों गोली मार दी?क्या वो खुदा को नहीं मानते?क्या वो दूसरे मज़हब के हैं?"

"पता नहीं बेटी! ये किस मज़हब के हैं ।किसे मानते हैं ,किसे नहीं।क्या चाहते हैं ,क्या नहीं।अब तू ज्यादा सवाल ना कर,सो जा चुपचाप।"

लेकिन  मौजूदा हालात के चलते माहिरा के ज़हन में इतने सवाल कुलबुला रहे थे कि माँ के सिर्फ चुप कहने से वो  थमे नहीं ।वह फिर बोली-

"लेकिन माँ ये सब तो मुसलमान हैं ना! क्या ये इस्लाम को नहीं मानते?"

अपनी मासूम सी बच्ची के मुँह से इतने भारी भरकम सवालों की तबक्को ज़रीना को कतई  नहीं थी।लेकिन हाय रे हालात!तूने जाने कितने बच्चों से उनका बचपन  छीना होगा।

"इस सवाल का क्या जबाब दूँ  बेटी !अगर दे भी दूँ तो तू इतनी बड़ी नहीं की मेरी बात का मतलब समझ सके।"इतना सुनना था की माहिरा माँ की गोद से उछल कर पंजो के बल खड़ी हो गयी।

"नहीं माँ!देखो तो जरा, मैं कहाँ छोटी हूँ? देखो,मैं कितनी बड़ी हो गयी अब ।मास्टर साहब भी कहते हैं मैं सबसे समझदार हूँ। आप  बताओ तो।"

बेटी की इस हरक़त से उसके चेहरे पर पल भर के लिए मुस्कान दौड़ी लेकिन अगले पल थम  भी गयी।

"हाँ बेटी ये भी इस्लाम को मानते हैं ।लेकिन इन्हें देख कर लगता हैंजैसे इस्लाम दो तरह का हो गया है।"उसने खोयी ,खोयी आँखों से बात अधूरी छोड़ दी।

"दो तरह का?"

"हाँ दो तरह का "एक अल्लाह का ,दूसरा मुल्ला का"।ऊँचे पंजों के बावजूद माहिरा  अभी  भी छोटी ही थी।

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 651

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on October 27, 2016 at 11:53am
आदरणीय तेजवीर सर जी!आपको रचना पसंद आई ,मेरा लेखन सार्थक हुआ।सादर नमन
Comment by Rahila on October 27, 2016 at 11:51am
बहुत शुक्रिया आदरणीय गुप्ता सर जी!सादर
Comment by Rahila on October 27, 2016 at 11:50am
बहुत शुक्रिया आदरणीय उस्मानी जी!आपकी टिप्पणी ने तो रचना को और स्पष्ट रूप दे दिया ।सादर आभार।
Comment by TEJ VEER SINGH on October 25, 2016 at 9:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी ।सुन्दर प्रस्तुति ।

Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2016 at 2:05am
सुंदर लघुकथा हुई है दिल से बधाई
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 24, 2016 at 3:10pm
पल भर की विसंगती को सूक्ष्मता से पकड़ने का प्रयास करते हुए उसे उभारते हुए समसामयिक परिदृश्य में सच्चे सुसंस्कृत मुस्लिम परिवारों के मासूम बच्चों के मन-मस्तिष्क की उलझनों को शाब्दिक कर बेहतरीन कटाक्ष पूर्ण प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरमा राहिला साहिबा। कथ्य को और उभारने की कोशिश मासूम बच्ची के सामने बहुत मुश्किल है, फिर भी अंतिम अनुच्छेद में दोहरी पंचपंक्तियों में कहा व अनकहा रचना को दमदार बना सका है। कुछ विकसित देशों के षड़यंत्र ने आतंकवाद की अवसरवादिता का लाभ उठाकर इस्लाम को बदनाम करने का जो बीड़ा उठा रखा है, उसे असफल करने के लिए लोगों को सच्चे इस्लाम से परिचित कराने के लिए सार्थक लेखन कर्म का सदैव स्वागत किया जाना चाहिए। सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service