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घरवाली (राहिला)लघुकथा

"निकल जा मेरे घर से...बड़ा कमाने वाली हो गयी।तू क्या समझती है तेरे वगैर काम नहीं चलेगा मेरा!बड़ी आई उपदेश देने वाली।" शराब के नशे में धुत भावसिंग,रोज की तरह कुसमा के साथ मारपीट कर, बके जा रहा था।
"अरे शर्म कर नासमिटे..!भगवान से डर ।जो दिनभर घर ,घर काम करके तेरी औलाद और मुझ अपाहिज़ का पेट पाल रही है, उसे,जानवर की तरह मारते हुए तुझे जरा भी लाज नहीं आती।"अपाहिज़ लाचार माँ ने अपनी ही नाकारा औलाद को कोसा।
"तू चुप कर,ज्यादा वकील मत बन इसकी!वरना इसके साथ तुझे भी बाहर का रास्ता दिखा दूंगा।"
बेटे के मुँह से अपने लिए ऐसे कटु वचन सुन कर उसका सब्र का बाँध टूट गया।
"सही कह रहा है कपूत! मुझ पापिन के सपूत कैसे पैदा सकता है।आखिर तुझे पाने की खातिर दो, दो मासूमों का खून का भी इंसाफ होना है।"बरसों पहले
अपने कुकृत पर वह कलप उठी। वहीं अपनी ही माँ के लगातार कोसने और नशे का चरम पर होने के कारण उसके गुस्से की आग और भड़क गयी।
"तो निकल तू भी इसी वक़्त ..।"उसने लगभग घसीटते हुए अपनी माँ को घर से बाहर ला पटका ।लेकिन पीछे ,पीछे कुसमा भागी और सास को सम्हाला।वह फिर बोला-
"निकलो दोनों..!ना मुझे तेरी जरूरत है ना इसकी !इस जैसी तो हजारों औरतें मिल जाएंगी मुझे।"
"हाँ,हाँ..!हजारों क्या बेटा! लाखों औरतें मिल जाएँगी तुझे! लेकिन याद रखना हर सुख-दुःख में साथ निभाने वाली घरवाली कभी नहीं मिल सकती।"अब दर्द, माँ के दिल से गुजरता हुआ ममतामयी सास के दिल तक पहुँचते, पहुँचते दुगना हो गया था।
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by TEJ VEER SINGH on November 6, 2016 at 9:06pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राहिला जी। सुन्दर लघुकथा।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on November 5, 2016 at 9:48pm
बहुत ही बेहतरीन...भावपूर्ण...गहरी सीख देती रचना
Comment by Sushil Sarna on November 4, 2016 at 7:32pm

आदरणीय राहिल जी मार्मिक एवम सुंदर लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई। 

Comment by Samar kabeer on November 4, 2016 at 5:25pm
मोहतरमा राहिला जी आदाब,बढ़िया कघुकथा लिखी असपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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