Added by Dr.Prachi Singh on February 9, 2017 at 8:52am — 5 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 8, 2017 at 10:48pm — 13 Comments
Added by Aparajita on February 8, 2017 at 3:00pm — 15 Comments
ओ मेरे जीवन के सृंगार, मेरे पहले पहले प्यार,
तुम आओ तो हो जाये, मेरा हर सपना साकार
खेतों में सरसों लहराई, चलने लगी बैरन पुरवाई,
तन - मन में है आग लगाये, सुने न मेरी वो हरजाई,
तुम बिन सूना - सूना लागे, मुझको ये संसार।।
तुम आओ तो हो जाये, मेरा हर सपना साकार। ....
फागुन ने है पंख पसारे, रस्ता देखे नैन तिहारे,
चूड़ी, काजल, बिंदिया, पायल,…
ContinueAdded by Anita Maurya on February 8, 2017 at 4:48am — 7 Comments
Added by जयनित कुमार मेहता on February 7, 2017 at 11:30pm — 16 Comments
१२१२ ११२२ १२१२ ११२
मेरी वफा का तुम्हें कुछ ख़याल हो के न हो
इनायतों का खुदा की कमाल हो के न हो
मैं हो गई हूँ मुहब्बत में क्या से क्या ए सनम
मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो
बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब
लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो
गुलाब से ही मुहब्बत करे ज़माना यहाँ
शबाब उसमे है पूरा जमाल हो के न हो
कमाँ से कितने उछाले हैं तीर भँवरे यहाँ
ये हाथ में है…
ContinueAdded by rajesh kumari on February 7, 2017 at 10:00pm — 16 Comments
Added by Naveen Mani Tripathi on February 7, 2017 at 9:00pm — 8 Comments
1222 1222 1222 1222
कहो तो घोल दें मिसरी ये हम अधिकार रखते हैं
सिराओं में जहर भर दे वो हम फुफकार रखते हैं
बहुत से बेशरम आते हैं छुप –छुप कर हमारे घर
उन्ही के दम से हम भी हैसियत सरकार रखते हैं
दिखाते है हमें वे शान-शौकत से झनक अपनी
तो उनसे कम नहीं घुँघरू की हम झनकार रखते हैं
छिपे होते है आस्तीनों में अक्सर सांप जहरीले
इधर हम बज्म में उनसे बड़े फनकार रखते…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 7, 2017 at 8:13pm — 12 Comments
2122 2122 212
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गीत कौवे गा रहे हैं आजकल
कंठ कोयल के भरे हैं आजकल।1
दुश्मनी सारी भुलाकर मसखरे
फिर गले से मिल रहे हैं आजकल।2
गालियाँ देते परस्पर जो रहे
प्रीत के सागर बने हैं आजकल।3
आज दुबके हैं सभी गिरगिट यहाँ
रंग बदलू आ गये हैं आजकल।4
कुर्सियों का ताव इतना बढ़ गया
धुर विरोधी भा गये हैं…
Added by Manan Kumar singh on February 7, 2017 at 7:00pm — 12 Comments
Added by Sheikh Shahzad Usmani on February 7, 2017 at 6:51pm — 7 Comments
Added by Rahila on February 6, 2017 at 10:08pm — 21 Comments
मन की बात
करते, कभी जाना
मन की बात
समझौते हैं
समझ का फेर, जो
समझ सको
रिश्ते नाते तो
ज्यों पतंग की डोर
उलझे जाते
मौलिक एवं अप्रकाशित.
Added by Neelam Upadhyaya on February 6, 2017 at 5:02pm — 3 Comments
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on February 5, 2017 at 9:00pm — 9 Comments
22 22 22 2
नवजीवन की आशा हूँ।
दीप शिखा सा जलता हूँ।।
रक्त स्वेद सम्मिश्रण से।
लक्ष्य सुहाने गढ़ता हूँ।।
जीवन के दुर्गम पथ पर।
अनथक चलता रहता हूँ।।
प्रभु पर रख विश्वास अटल।
बाधाओं से लड़ता हूँ।।
घोर तिमिर के मस्तक पर।
अरुणोदय की आभा हूँ।।
भावों का सम्प्रेषण मैं।
शंखनाद हूँ कविता हूँ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by डॉ पवन मिश्र on February 5, 2017 at 6:58pm — 12 Comments
Added by रामबली गुप्ता on February 5, 2017 at 6:00pm — 23 Comments
बियाबान-सी रात, मद्धम है चाँदनी
एक अधूरे रिश्ते के आकुलित अनुभव
बिखरे-बिखरे-से... कोने-कोने में
बेचैन इस दर्द भरे अन्धेरे में
चेहरे पर भय की रेखाएँ
माना कि बीच हमारे अब कोई दीवार
बहुत ऊँची बहुत ऊँची
ढरते-भुरते विश्वास के आईने पर
घावों की छायाओं के धब्बेे
भी गहरे अब बहुत गहरे
फिर भी कुछ जीवित है
समय की टूटी सीढ़ी चढते
क्षण-भर को भी भाव-विभोर हो
आ सको तो आओ
पाओ मुझमें…
Added by vijay nikore on February 5, 2017 at 5:07pm — 15 Comments
Added by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2017 at 4:15pm — 4 Comments
महाबुद्ध से शिष्य ने पूछा, “भगवन! समाज में असत्य का रोग फैलता ही जा रहा है। अब तो इसने बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। आप सत्य की दवा से इसे ठीक क्यों नहीं कर देते?”
महाबुद्ध ने शिष्य को एक गोली दी और कहा, “शीघ्र एवं सम्पूर्ण असर के लिये इसे चबा-चबाकर खाओ, महाबुद्धि।”
महाबुद्धि ने गोली अपने मुँह में रखी और चबाने लगा। कुछ ही क्षण बाद उसे जोर की उबकाई आई और वो उल्टी करने लगा। गोली के साथ साथ उसका खाया पिया भी बाहर आ गया। वो बोला, “प्रभो ये गोली…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 5, 2017 at 10:30am — 16 Comments
( अज़ीम शायर मुहतरम जनाब कैफ़ी आज़मी साहब की ज़मीन पर एक प्रयास )
221 2121 1221 212
मुझको कहाँ अज़ीज़ है कुछ भी चमन के बाद
क्या मांगता ख़ुदा से मैं हुब्ब-ए-वतन के बाद
तहज़ीब को जो देते हैं गंग-ओ-जमुन का नाम
ये उनसे जाके पूछिये , गंग-ओ-जमन के बाद ?
वो लम्स-ए-गुल हो, या हो कोई और शय मगर
दिल को भला लगे भी क्या तेरी छुवन के बाद
वो चिल्मनों की ओट से देखा किये असर
बातों के तीर छोड़ के हर इक चुभन के…
Added by गिरिराज भंडारी on February 5, 2017 at 7:46am — 24 Comments
ग़ज़ल
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(मफ़ाइलातुन--मफ़ाइलातुन)
किया है अपनों ने जब किनारा |
दिया है अग्यार ने सहारा |
करम हुआ दोस्तों का जब से
वफ़ा का गर्दिश में है सितारा |
अगर गिला है तो सिर्फ़ है यह
न दे सके साथ वो हमारा |
हुआ है दीदार जब से उनका
लगे न मंज़र कोई भी प्यारा |
हसीन रुख़ में ज़रूर कुछ है
जो देखे हो जाए वो तुम्हारा |
हो और मज़बूत अपनी यारी
कहाँ ज़माने को है गवारा…
Added by Tasdiq Ahmed Khan on February 4, 2017 at 9:42pm — 6 Comments
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