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मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो(ग़ज़ल 'राज')

१२१२  ११२२   १२१२  ११२

मेरी वफा का तुम्हें  कुछ ख़याल हो के न हो

इनायतों का खुदा की कमाल हो के न हो

 

मैं हो गई हूँ मुहब्बत में क्या से क्या ए सनम   

मेरी तरह से तुम्हारा ये हाल हो के न हो

 

बिना पढ़े ही निगाहों से दे दिया है जबाब

लिखा जो खत में वो मेरा सवाल हो के न हो

 

गुलाब  से ही मुहब्बत करे ज़माना यहाँ

शबाब उसमे है पूरा जमाल हो के न हो

 

कमाँ से कितने उछाले  हैं तीर भँवरे यहाँ

ये हाथ में है गुलों के विसाल हो के न हो

 

नजर नज़र से मिली सुखरू हुई वो कली 

हथेलियों ने मला वो गुलाल हो के न हो 

 

ग़ज़ल लिखी है लबों से तुम्हारे दिल पे सनम  

तुम्हारे दिल को भले अब मलाल हो के न हो

------मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by vijay nikore on February 12, 2017 at 12:03am

मुझको आपकी एक और अच्छी गज़ल की प्रतीक्षा रहती है.... बहुत ही शानदार गज़ल के लिए बधाई, आदरणीया राजेश जी


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Comment by rajesh kumari on February 10, 2017 at 8:42am

आद० जयनित कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया 


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Comment by rajesh kumari on February 10, 2017 at 8:42am

आद० दिनेश कुमार जी आपको ग़ज़ल अच्छी लगी बहुत बहुत आभार आपका .आपने सही कहा भला मैं बुरा क्यूँ मानूँगी मैंने भी इस तरफ ध्यान दिया तो आपकी बात सही लगी मूल पोस्ट में शब्द बदल भी दिए हैं यहाँ भी एडिट कर दूँगी आपका बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by जयनित कुमार मेहता on February 9, 2017 at 9:30pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी, उम्दा ग़ज़ल हुई है। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
Comment by दिनेश कुमार on February 9, 2017 at 9:16pm
अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीया राजेश जी। वाह वाह।

अगर बुरा न मानो तो एक बात कहता हूँ। 4th और 5th के उला में आखिरी शब्द भर्ती का है।

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Comment by rajesh kumari on February 9, 2017 at 5:56pm

प्रिय राहिला जी आपको ये ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हो गया तहे दिल से आभार आपका .

Comment by Rahila on February 9, 2017 at 12:44pm
बहुत शानदार गज़ल आदरणीया दीदी!खूब बधाई। सादर

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Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 10:48pm

आद० बृजेश कुमार जी आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका तहे दिल से शुक्रिया .

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 8, 2017 at 9:51pm
वाह बेहतरीन..बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई..सादर..

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Comment by rajesh kumari on February 8, 2017 at 9:05pm

इसी बह्र पर जनाब शफक जी का शेर --

वो जिन्दगी का सुकूं पा गया अमान में है 

जो अपनी माँ की दुआओं के सायबान में है 

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