लघुकथा - प्यास –
फ़ौज़ी सौदान सिंह रात के गस्त पर था। उसकी पीने के पानी की बोतल खाली हो गयी। उसे प्यास लगी थी| इधर उधर नज़र दौड़ाई। यूनिट की चौकी बहुत दूर थी।
अचानक उसकी नज़र एक किसान पर पड़ी जो खेत में सिंचाई कर रहा था। सौदान सिंह को लगा कि उसके पास पानी अवश्य मिलेगा। अतः वह उसके पास चला आया,
"भाई जी, क्या आपके पास पीने का पानी मिलेगा"?
"वीर जी, तुम्हारी कौम क्या है"?
"भाई जी, आपके इस सवाल का पानी से क्या ताल्लुक़ है"?
" वीर जी, ताल्लुक़ है तभी तो पूछा…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 27, 2018 at 6:42pm — 10 Comments
कलम उठाई है मैंने अब, सोयी रूह जगाने को
जिस मिट्टी में जन्म लिया है, उसका कर्ज चुकाने को
कलमकार का फर्ज निभाऊं, हलके में मत लेना जी
भुजा फड़कने अगर लगे तो, दोष न मुझको देना जी
सन सैतालिस हमसे यारो, कब का पीछे छूटा है
भारत के अरमानों को खुद, अपनो ने ही लूटा है
भूख गरीबी मिटी नही है, दिखती क्यो बेगारी है
झोपड़ियो के अंदर साहब दिखती क्यों लाचारी है
भारत माता की हालत को, देखों तुम अखबारों में
कैद…
ContinueAdded by नाथ सोनांचली on January 26, 2018 at 1:23pm — 8 Comments
मैं ....
मैं
कल भी
ज़िंदा था
आज भी
ज़िंदा हूँ
और
कल भी
ज़िदा रहूंगा
फ़र्क
सिर्फ़ इतना है
कि
मैं
कल गर्भ था
आज
देह हूँ
कल
अदेह हो जाऊंगा
गर्भ की यात्रा से शुरू
मैं
मैं की केंचुली छोड़
अनंत के गर्भ में
अमर
अदेह हो जाऊंगा
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on January 26, 2018 at 12:00pm — 12 Comments
एक किसान, एक सैनिक से यूं रूबरू हुआ :
"तुम्हारे पास क्या-क्या है?"
"मेरे पास हैं बंदूक, तोप, गोला-बारूद और रक्षा और युद्ध के आधुनिक साजो-सामान! अब तू बता, तेरे पास क्या-क्या है?"
"हमरे पास तो बाबू गैंती-फावड़े, बीज-खाद, और खेती-किसानी के पुराने और आधुनिक साजो-सामान हैं! वैसे अपनी चीज़ों के नाम और रूप भले अलग-अलग हैं, पर काम और नसीब तो अपन दोनों के एक जैसे लगते हैं!"
"हां, दोनों ही अपनी मां के लिए अपना-अपना ख़ून-पसीना और परिवार दांव पर लगा देते हैं!"
"पर बाबू अपनी इस…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 26, 2018 at 5:00am — 4 Comments
शत्रु दल को धूल चटाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ,
आज़ादी की धुन बजाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ,
बलिदानियों की गाता हरदम शौर्य गाथा ,
कर्म की बजी शहनाई वो मेरा हिन्दुस्तान है ।
*********
बलिदानी रंग से सजा मेरा हिन्दुस्तान है ,
हरा-गुलाबी , केसरिया मेरा हिन्दुस्तान है ,
मेरा तो जीना मरना सबकुछ इसके साथ है
खुशी-उल्लास में डूबा मेरा हिन्दुस्तान है ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Added by Mohammed Arif on January 25, 2018 at 3:53pm — 7 Comments
मसाला मिलाओ बनाओ मूवी
किसी को नचाओ सजाओ मूवी।1
चलें लात मुक्के डिगो मत निडर
बड़ी हसरतें हैं दिखाओ मूवी।2
लजाते नहीं आजकल सब बेढ़ब
लगे आग चाहे चलाओ मूवी।3
बँधी आँख पर पट्टियाँ कितनी हैं!
दिखेगा नहीं जो जलाओ मूवी।4
"कहाँ मोल खूं का रहा पहले का
बहाओ, बहाओ,बहाओ, मूवी!"5
मौलिक और अप्रकाशित
Added by Manan Kumar singh on January 25, 2018 at 10:00am — 8 Comments
बह्र:- 1222-1221-22
अरे ! हम कोई लेखक थोड़ी हैं।।
समय हो पास , वो मुमफली हैं।।
कहाँ कहना हमें मंच-कविता।
बहल बस दिल ही जाएं ख़ुशी हैं।।
बड़े ओहदे ,रंगीं रात ,ना ना।
गरीबां का निवाला, सही हैं।।
मुहब्बत में हमारी भी दोस्त।
नशा भी वो ,वही मयकशी हैं।।
कोई रूठे तो रूठे मेरा क्या।
मेरी दौलत ओ शोहरत नही हैं।।
आमोद बिंदौरी /मौलिक अप्रकाशित
Added by amod shrivastav (bindouri) on January 24, 2018 at 8:42pm — 2 Comments
1222 1222 122
ग़मो का इक समंदर टूटता है।
किसी का भी अगर घर टूटता है।।
मिले धोख़े पे धोख़ा जब किसी को।
तो वो अंदर ही अंदर टूटता है।।
सँभलता मुश्किलों से आदमी फिर।
भरोसा जब कहीं पर टूटता है।।
करो कोशिश भले तुम लाख यारो।
न आईने से पत्थर टूटता है।।
उजड़ते है परिंदों के कई घर।
कभी कोई भी खण्डहर टूटता है।।
यही तक़दीर में शायद लिखा हो।
जो देखूं ख़्वाब अक्सर टूटता है।।
ग़ज़ल…
ContinueAdded by surender insan on January 24, 2018 at 9:30am — 10 Comments
असाधारण आस
हवा की लहर का-सा
हलका स्पर्ष
कि मानो कमरे में तुम आई
मेरे कन्धे पर हलका-सा हाथ ...
छू कर मुझे, स्वपन-सृष्टि में
पुन: विलीन हो गई
कुछ कहा शायद
जो अनसुना रहा
या जो न कहा
वह मेरे खयालों ने सुना
कोई एक खयाल अधूरा
जो पूरा न हुआ
कण-कण काँप रहे तारों के
तिमिर-तल के तले
खयाल जो पूरा न हुआ
मुराद
बन कर रह गया,…
ContinueAdded by vijay nikore on January 24, 2018 at 9:03am — 25 Comments
"चलो चलो!जल्दी तैयार हो जाओ सब लोग यहाँ पंक्ति में खड़े हो जाओ।" सफ़ेद कुर्ते वाला चिल्ला रहा था। गाँव के चौपाल पर महिलाओं को इक्कठा किया जा रहा था। महिलाएं सजी -धजी पंक्ति में खड़ी होती जा रही थी। चौपाल पर कुछ नव-युवक और कुछ बुज़ुर्ग वर्ग बैठे हुए थे। बुज़ुर्गों के लिए तो जैसे यह आम बात थी। चौपाल पर भारतीय प्रजातंत्र की बातें हो रही थी। नव-युवक बुज़ुर्गों की बातें ध्यान से सुन रहे थे। किसी ने पूछा,"ये महिलाएं कहाँ जा रही हैं? इनको यह कुर्ते वाला क्यों लेने आया है? यह कौन है?" तरह- तरह की बातें हो…
ContinueAdded by KALPANA BHATT ('रौनक़') on January 24, 2018 at 8:12am — 8 Comments
विगत -गत
कल कोने में दुबके सहमे
डरे डरे कुछ लम्हे पाए
मैंने जा कर के सहलाया
झूठ सही पर जा बहलाया
कि मेरे होते न यूं डरो
परिचय दे ले बात करो
सुन कर पल ने ली अंगडाई
व्यंग बुझी सी हँसी थमाई
बोला कलंक से कलुषित हो
आत्मग्लानि से झुका हुआ था
विगत साल हूँ रुका हुआ था
उत्सुक था क्या नया करोगे
मुझे भेज जब नया…
ContinueAdded by amita tiwari on January 24, 2018 at 5:23am — 5 Comments
१२२२,१२२२,१२२२
नई रुत का अभी तूफ़ान बाकी है।
निज़ामत का नया उन्वान बाकी है।
निवाले छीनकर ख़ुश हो मेरे आका,
अभी अपना ये दस्तरख़ान बाकी है।
अभी टूटा नहीं है सब्र का पुल भी,
ज़रा सा और इत्मीनान बाकी है।
अभी थोड़ी सी घाटी ही तो खोई है,
अभी तो सारा हिन्दुस्तान बाकी है।
हथेली पर तुम्हारी रख तो दीं आँखें,
हमारे पास सुरमेदान बाकी है।
कयामत के बचे होंगे महीने कुछ,
अभी इंसान में इंसान बाकी…
Added by Balram Dhakar on January 23, 2018 at 6:18pm — 16 Comments
काफिया :अन ; रदीफ़ : को
बहर : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अलग अलग बात करते सब, नहीं जाने ये' जीवन को
ये' माया मोह का चक्कर है’ कैसे काटे’ बंधन को|
किए आईना’दारी मुग्ध नारी जाति को जग में
नयन मुख के सजावट बीच भूले नारी’ कंगन को |
सुधा रस फूल का पीने दो’ अलि को पर कली को छोड़
कली को नाश कर अब क्यों उजाड़ो पुष्प गुलशन को|
बदी की है वही जिसके लिए हमने दुआ माँगी
न ईश्वर दोस्त ऐसे दे मुझे या मेरे…
ContinueAdded by Kalipad Prasad Mandal on January 23, 2018 at 11:02am — 8 Comments
गुरु द्रोणाचार्य ने दुर्योधन एवं युधिष्ठिर को एक-एक अच्छे और बुरे व्यक्ति को ढूँढ़ कर लाने को कहा।शाम को दोनों खाली हाथ वापस आ गए।
-क्यूँ, क्या हुआ?खाली हाथ क्यूँ आया',गुरूजी ने दुर्योधन से पूछा।
-गुरुदेव! मैंने बहुत कोशिश की,पर कोई भी ऐसा न मिला जिसमें एक भी बुराई न हो।
-युधिष्ठिर ,तुम क्यूँ खाली हाथ आ गए?'
-आचार्य! मुझे कोई ऐसा न मिला जिसमें एक भी अच्छाई न हो।'
आचार्य मुस्कुराये।
-"युधिष्ठिर समझ गए,पर दुर्योधन आज भी नासमझ बना बैठा है;चाहे लेखन में हो,पत्रकारिता…
Added by Manan Kumar singh on January 23, 2018 at 8:00am — 9 Comments
छन्द- तांटक
जात धरम और ऊँच नीच का, भेद मिटाना होता है
आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है
कैसी ये आज़ादी है औ, क्या हम सब ने पाया है
तहस नहस कर डाला सब कुछ ,दिल में जहर उगाया है
फुटपाथों पर फ़टे कम्बलों, में जब बचपन रोता है
तब प्रगति के आसमान की ,धुँध में सब कुछ खोता है
आज़ादी के बाद सभी को, देश बनाना होता है
क्या किसान औ क्या जवान है, सबकी हालत खस्ता है
टैक्स भरें भूखे मर जाएँ ,क्या ये ही इक रस्ता है
बीमारी…
Added by अलका 'कृष्णांशी' on January 23, 2018 at 12:54am — 8 Comments
221 2121 1221 212
हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया
-
मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं
लेकिन तुम्हारी याद का नक्शा मिटा दिया
-
मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी
और ये किया कि धूप को पागल बना दिया
-
उसके हँसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा
सारा ग़ुरूर ख़ाक़ में उसका मिला दिया
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जो ज़ख्म खाके भी रहा है आपका सदा
उस दिल पे फिर से आपने खंज़र चला दिया
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उसने निभाई ख़ूब मेरी दोस्ती "…
Added by SALIM RAZA REWA on January 22, 2018 at 9:55pm — 20 Comments
बसंत - लघुकथा –
रजनी के पति का जन्म बसंत पंचमी को हुआ था इसलिये घरवालों ने उसका नाम बसंत ही रख दिया था। रजनी उसके जन्म दिन को खूब जोश के साथ मनाती थी। शादी को चार साल हुए थे लेकिन अभी तक उसकी गोद खाली थी। इसका एक मुख्य कारण उसके पति का सेना में होना भी था। चूंकि बसंत की तैनाती सीमा पर थी अतः परिवार साथ नहीं रख सकता था।
अभी कुछ दिन पहले एक फोन आया था कि बसंत लापता है, तलाश जारी है। रजनी के अरमानों पर तो मानो वज्रपात हो गया था। वह बसंत के जन्म दिन के लिये क्या क्या सपने बुन रही…
ContinueAdded by TEJ VEER SINGH on January 22, 2018 at 6:20pm — 14 Comments
"ज़्यादा मत उड़ो, ज़मीन पे रहो; घर-गृहस्थी पे ध्यान दो, समझे!"
"ऐसा क्यों कह रहे हैं बाबूजी, मुझसे क्या ग़लती हुई?"
"ग़लती नहीं, ग़लतियां कर रहे हो मियां!"
" समझा नहीं! क्या मेरी साहित्यिक यात्राओं से आपको कोई कष्ट?"
" मुझे ही नहीं, हम सब को तक़लीफ है! सुना है कि कल फिर तुम दिल्ली से क़िताबें सूटकेश में भर कर लाये हो! पगलिया गये हो क्या?"
"बाबूजी, ये वे पुस्तकें हैं जिनमें मेरी रचनाएं प्रकाशित हुई हैं या जिन्हें पढ़कर मुझे अपना लेखन सुधारना है!"
"अब बहू ही तुम्हें…
Added by Sheikh Shahzad Usmani on January 22, 2018 at 4:34am — 5 Comments
मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं
कंठ चीर तरु सरकंडों के
अल्गोज़े की बीन बनी है
अंतड़ियों के बान पूरकर
तिलचट्टों ने खाट बुनी है
मजबूरी ने कोख में फ़ाके बोए हैं
लूट खसोट के दंगल भिड़तु
किसने लूटी किसकी जाई
बुक्का फाड़ देवियाँ रोती
सनी लहू में साँजी माई
कंधों पे संयम के मुर्दे ढोए हैं
छल के पैने नाखूनों से
देह खुरचते जात धरम की
मक्कारी की आरी लेकर
लाश बिछाते लाज शरम…
ContinueAdded by rajesh kumari on January 21, 2018 at 10:08pm — 17 Comments
1222 1222 122
बढ़े तो दर्द अक्सर टूटता है
अबस आँखों से झर कर टूटता है
गुमाँ ने कस लिया जिस पर शिकंजा
भटकता है वो दर-दर,टूटता है
नहीं गम घर मेरे आता अकेले
कि वो तो कोह बनकर टूटता है
सुने गर चीख बच्चे की तो देखो
रहा जो सख़्त पत्थर टूटता है
बजें बर्तन हमेशा साथ रह कर
भला इनसेे कभी घर टूटता है
मौलिक अप्रकाशित
अबस:बेबस
कोह:पहाड़
Added by सतविन्द्र कुमार राणा on January 21, 2018 at 9:00pm — 10 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
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2012
2011
2010
1999
1970
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