एक ताज़ा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले ....
पत्थरों में खौफ़ का मंज़र भरे बैठे हैं हम |
आईना हैं, खुद में अब पत्थर भरे बैठे हैं हम |
हम अकेले ही सफ़र में चल पड़ें तो फ़िक्र क्या,
अपनी नज़रों में कई लश्कर भेरे बैठे हैं हम |
जौहरी होने की ख़ुशफ़हमी का ये अंजाम है,
अपनी मुट्ठी में फ़कत पत्थर भरे बैठे हैं हम |
लाडला तो चाहता है जेब में टॉफी मिले,
अपनी सारी जेबों में दफ़्तर भरे बैठे हैं हम…
Added by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 12:00am — 15 Comments
सौतेली माँ
जब मैं छोटा था
भूख से तड़पता था
लेकिन अब –
वो हर वक्त पूछती है
बेटा खाना खाओगे !
.
पुजारिन
करबध्द खड़ी है
न जाने कब से ?
मीरा की तरह
और , कन्हैया –
किसी राधा के साथ
रास रचाने
निकल गए हैं ।
--- मौलिक एवं अप्रकाशित ---
Added by S. C. Brahmachari on March 23, 2014 at 8:00pm — 8 Comments
( महाप्रभु चैतन्य के जीवन चरित्र को पढ़ते – पढ़ते जब उनका निर्वाण पक्ष पढ़ रही थी तभी उनकी माँ और पत्नी के वियोग से मेरी आँखें भर आयीं और मन में कुछ भाव प्रस्फुटित हुए उन्हीं को शब्दबंध करने का एक छोटा – सा प्रयास है ये
ContinueAdded by ANJU MISHRA on March 23, 2014 at 4:30pm — 8 Comments
भारतीय किसान
-----------------
जय जवान जय किसान
जग का नारा झूंठा
भाग्य किसान कैसा तेरा
प्रभू भी तुझसे रूठा
लेकर हल खेत में
नंगे पाँव तू जाए
मखमली कालीन पे
वणिक विश्राम पाए
भरता सगरे जग का पेट
खुद है भूखा सोता
बिके फसल तेरी जब
कर्जा कम न होता
हाय रे किस्मत तेरी
कैसा भाग्य अनूठा
जय जवान जय किसान
जग का…
ContinueAdded by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 23, 2014 at 3:30pm — 20 Comments
फकत वोटों की खातिर झूठे वादे करने वालों को
सबक सिखलाएंगे अब के छलावे करने वालों को ...
नहीं गुमराह होंगे हम किसी की बातों में आ कर
न गद्दी पर बिठाएंगे तमाशे करने वालों को...
गरीबी,भुखमरी,बेरोजगारी से लड़ेंगे वो
चलो हम हौसला देवें इरादे करने वालों को ...
चुनावी वायदे अपने कभी पूरे नहीं करते
बहाना चाहिए कोई बहाने करने वालों…
Added by Ajay Agyat on March 23, 2014 at 3:00pm — 9 Comments
निःश्वसन
उच्छ्वसन
सब देह-कर्म, यह अवगुंठन
मोह-पाश के बंधन तुम
बस तुम! तुम ही तुम
व्यक्त हाव
अव्यक्त भाव
नेह-क्लेश, अभाव-विभाव
रूप-गंध के कारण तुम
बस तुम! तुम ही तुम
सम्मुख हो जब
विमुख हुए, तब
मनस-पटल की चेतनता सब
अनुभूति-रेख में केवल तुम
बस तुम! तुम ही तुम
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Added by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 11:30am — 30 Comments
अरुण से ले प्रकाश तू
तिमिर की ओर मोड़ दे !
मना न शोक भूत का
है सामने यथार्थ जब
जगत ये कर्म पूजता
धनुष उठा ले पार्थ ! अब
सदैव लक्ष्य ध्यान रख
मगर समय का भान रख
तू साध मीन-दृग सदा
बचे जगत को छोड़ दे !
विजय मिले या हार हो
सदा हो मन में भाव सम
जला दे ज्ञान-दीप यूँ
मनस को छू सके न तम
भले ही सुख को साथ रख
दुखों के दिन भी याद रख
हृदय में स्वाभिमान हो
अहं को पर, झिंझोड़ दे !…
Added by विवेक मिश्र on March 23, 2014 at 4:00am — 17 Comments
उत्तुंग शृंखलाओ को
चीर कर
रफ्ता रफ्ता
उतरती चली आती है
सदा ही अवनत
मचलती लहराती वो
करती धरा का आलिंगन
सहर्ष ..... वलयित हो
मुसकाती
बढ़ती जाती निरंतर
सागर की बाँहों मे
समा जाने को विकल
अद्भुत निरखता सौम्य रूप
कुछ उच्छृंखल
राह के अवरोध समेट
तरण तारिणी
सागर से मिलन की
मधुर बेला मे
पूर्ण समर्पण लखता
अहा ! क्या ही अद्भुत
विहंगम दृश्य.......
धारा का जलध…
ContinueAdded by annapurna bajpai on March 23, 2014 at 12:00am — 15 Comments
चुपके-चुपके चैत ने, घोला अपना रंग।
और बदन की स्वेद से, शुरू हो गई जंग।
पल-पल तपते सूर्य की, ऐसी बिछी बिसात।
हर बाज़ी वो जीतकर, हमें दे रहा मात।
लू लपटों ने कर लिया, दुपहर पर अधिकार।
दिन भर तनकर घूमता, दिनकर…
ContinueAdded by कल्पना रामानी on March 22, 2014 at 10:00pm — 15 Comments
जिंदगी जब से सधी होने लगी
जाने क्यूँ उनकी कमी होने लगी
डूब कर हमने जिया है काम को
काम से ही अब ख़ुशी होने लगी
हारना सीखा नहीं हमने यदा
दुश्मनो में खलबली होने लगी
नेक दिल की बात करते है चतुर
हर कहे अक से बदी होने लगी
चाँद पूनम का खिला जब यूँ लगा
यादें दिल की फिर कली होने लगी
------- शशि पुरवार
मौलिक और अप्रकाशित
Added by shashi purwar on March 22, 2014 at 9:30pm — 11 Comments
2122 1122 1122 22
अब्र चाहत के जहाँ दिल से करम करते हैं
ऐसी झीलों में मुहब्बत के कँवल झरते हैं
मजहबी छीटें रकाबत के जहाँ पर गिरते
उन तड़ागों के बदन मैले हुआ करते हैं
बस गए हैं जो बिना खौफ़ विषैले अजगर
वादियों में वो सभी आज जह्र भरते हैं
मस्त भँवरों की शरारत की यहाँ अनदेखी
फूल पत्तों पे चढ़ी दर्द भरी परते हैं
सौदे बाजों की बगल में हुई आहट सुनकर
धीमे-धीमे…
ContinueAdded by rajesh kumari on March 22, 2014 at 9:00pm — 12 Comments
बह्र : १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता
भटक जाता परिंदा, गर ख़ुदा, रहबर नहीं होता
कहें कुछ भी किताबें, देश का हाकिम ही मालिक है
दमन की शक्ति जिसके पास हो, नौकर नहीं होता
बचा पाएँगी मच्छरदानियाँ मज़लूम को कैसे
यहाँ जो ख़ून पीता है महज़ मच्छर नहीं होता
मिलाकर झूठ में सच बोलना, देना जब इंटरव्यू
सदा सच बोलता है जो कभी अफ़सर नहीं होता
ये पीली पत्तियाँ, पत्ते हरे आने…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2014 at 8:00pm — 28 Comments
गजल (रहनुमा)
2122 2122 2122 2122
इस शहर मैं रस्मे-आमद लोग इस तरह निभाते हैं
हाथों मैं गुल होते नहीं और पत्थर लिए नजर आते हैं
तेरी सूरत मेरी सूरत से हसीं नहीं बताने को ये
आने वाले हर शख्स को वो आईना दिखलाते हैं
वो भी देख लें कभी गिरेवां मैं अपने झांककर यारों
दूसरों पे जो यूँ ही अक्सर उँगलियाँ ऊठाते हैं
मैं जो निकला हूँ सफर पे तो मंजिल पा ही लूँगा कभी
फिर क्यूँ मुझे मेरी मंजिल का पता बतलाते हैं
जाने किस भेष…
Added by Sachin Dev on March 22, 2014 at 5:00pm — 14 Comments
घनाक्षरी- (कलाधर) -छन्द........होली....!
गुरू लघु गुणे 15 अन्त में एक गुरू कुल 31 वर्ण होते हैं।
अंग अंग में तरंग, बोलचाल में बिहंग, धूप सृष्टि में रसाल, बौर रूप आम है।
रूप रंग बाग लिए, अग्नि बाण ढाक लिए, शम्भु ने कहा अनंग, सौम्य रूप काम है।।
प्राण-प्राण में उमंग, रास रंग में बसंत, ऊंच - नीच, भेद - भाव, टूटता धड़ाम है।
प्रेम का प्रसंग फाग, रंग - भंग भी सुहाग, अंग से मिला सुअंग, हर्ष को प्रणाम है।।
के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2014 at 10:30am — 3 Comments
बीज मन्त्र..................!
दोहा- बीज बीज से बन रहा, बीज बनाता कौन?
बीज सकल संसार ही, बीज मन्त्र बस मौन।।
चौ0- निष्ठुर बीज गया गहरे में। संशय शोक हुआ पहरे में।।
मां की आखों का वह तारा। दिल का टुकड़ा बड़ा दुलारा।।
सींचा तन को दूध पिलाकर। दीन धर्म की कथा सुनाकर।।
बड़े प्रेम से सिर सहलाती। अंकुर की महिमा समझाती।।
शिशु की गहरी निन्द्रा टूटी। अहं द्वेष माया भी छूटी।।
अंकुर ने जब ली…
Added by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 22, 2014 at 9:30am — 5 Comments
ग़ज़ल
फाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फैलुन
२१२२ ११२२ ११२२ २२
फूल की ख़ुशबू को हम यूं भी लुटा देते हैं |
करते हैं इश्क़ ज़माने को बता देते है |
एक चिंगारी है सीने में हवा देते हैं |
हम ग़ज़ल कहते हुए ख़ुद को सज़ा देते हैं |
जिसकी शाखों पे घरौंदों में मुहब्बत ज़िंदा ,
ऐसे पेड़ों को परिंदे भी दुआ देते हैं |
इश्क़ लहरों से अगर है तो क़िला गढ़ना क्या ,
रेत के घर को बनाते हैं मिटा देते हैं |…
Added by Abhinav Arun on March 22, 2014 at 7:30am — 20 Comments
शौख से आशियाँ उजाड़ ,ये इख्तियार है तुझे ,
खानाबदोश हूँ ,ठहरना मेरी फितरत भी नहीं है
मेरे जख्मों पर नमक छिड़क गया ,वो आज ,
उसके ही दिए तोहफों कि याद दिला गया वो आज
उसकी नफरतों के जाम को भी
शांती कि कीमत समझ पिया…
ContinueAdded by Dr Dilip Mittal on March 21, 2014 at 7:22pm — 6 Comments
कहो प्रिय , कैसे सराहूँ
मैं सौंदर्य तुम्हारा.
मैं चाहता हूँ,
तुम्हारे मुख को कहूँ माहताब.
अधरों को कहूँ लाल गुलाब .
महकती केश राशि को संज्ञा दूँ
मेघ माल की .
लहराते आँचल को कहूँ
मधु मालती .
पर, अपवर्तन का अपना नियम है,
मेरी दृष्टि गुजरती है,
तुम तक पहुचने से पहले
संवेदना के तल से,
और हो जाती है अपवर्तित
सड़क किनारे डस्टबिन में
खाना ढूंढते व्यक्ति पर,
प्लेटफार्म पर भीख मांगते
चिक्कट बालों वाली…
Added by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 7:00pm — 10 Comments
2122- 2122- 2122
दिल से निकले वो तराना चाहता हूँ
इक मसर्रत का फसाना चाहता हूँ (मसर्रत =खुशी)
देख कर मुझको छलक जायें न आँसू
तेरी खातिर मुस्कुराना चाहता हूँ
जी लिया मैंने बहुत बचते हुये अब
मुश्किलों को आजमाना चाहता हूँ
बेझिझक मै पत्थरों के शह्र जाके
उनको आईना दिखाना चाहता हूँ
सुब्ह की चुभती हुई इस धूप को मैं
अपनी आँखों से हटाना चाहता हूँ
हर…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on March 21, 2014 at 6:30pm — 28 Comments
रिश्ते बनते प्यार से, मत करना तकरार
खुशियाँ बसती हैं यहाँ, चहक उठें परिवार /
चहक उठें परिवार, सभी जो मिलझुल रहते
मुश्किल करते दूर ,सुख दुःख मिलकर सहते
सुदृढ बने परिवार ,तो बसें वहाँ फरिश्ते
तनिक न रहे खटास ,बनाना ऐसे रिश्ते //
........................................................
.............मौलिक व अप्रकाशित................
Added by Sarita Bhatia on March 21, 2014 at 9:38am — 8 Comments
2024
2023
2022
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
2012
2011
2010
1999
1970
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |