प्यार तुमसे किया तुम निभा ना सके
दर्द दिल का कभी हम मिटा ना सके
जिन्दगी तो हमारी रही ना मगर
मौत से हाथ भी हम मिला ना सके
चाँद कह कह पुकारा हमे जो तुने
उन पलो को कभी हम भुला ना सके
ना किये वेवफाई कभी हम मगर
बात का हम भरोसा दिला ना सके
टूट कर बिखर तो हम गये हैं मगर
खा लिये हम जहर पर खिला ना सके
रात भर आइ सपनो में तुम तो मगर
बात अपनी तुझे हम बता ना सके
लौट आता सुहाना समय वो मगर
गीत भी प्यार के हम सुना ना सके
थक गये है…
Added by Akhand Gahmari on May 11, 2014 at 1:00pm — 8 Comments
कौन हो तुम प्रेयसी ?
कल्पना, ख़ुशी या गम
सोचता हूँ मुस्काता हूँ,
हँसता हूँ, गाता हूँ ,
गुनगुनाता हूँ
मन के 'पर' लग जाते हैं
घुंघराली जुल्फें
चाँद सा चेहरा
कंटीले कजरारे नैन
झील सी आँखों के प्रहरी-
देवदार, सुगन्धित काया
मेनका-कामिनी,
गज…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 11, 2014 at 10:30am — 19 Comments
“इससे अच्छा तो मैं अपने जीवन का ही अन्त कर लूं , अब क्या रखा है इस जीवन में . बेटी ने भाग कर शादी कर ली और बिरादरी में मेरी नाक कटा दी , एक लड़का है जिससे कुछ उम्मीदें थीं पर वो भी अब आवारा ही निकल गया , उसकी बद्तमीजियां दिन पर दिन बढती ही जा रही हैं. पत्नी भी सीधे मुह बात नहीं करती.” इस प्रकार सार्जेंट अभिलाष के जीवन जीने की अभिलाषा सामाप्त होती जा रही थी. हर पल वो सोच के समन्दर में डूबता जा रहा था और उतना ही अवसाद (डिप्रेशन) उसपर हावी होता जा रहा था. वो कहते हैं ना कि विपत्तियां आती हैं तो…
ContinueAdded by Squadron Leader Mukesh Rai on May 11, 2014 at 10:30am — 7 Comments
** मेरे लिए आज मातृ दिवस और माँ की पुण्य तिथि का अद्भुत संयोग है l यह रचना माँ को समर्पित है l
जिंदगीभर कौन देता है खुशी माँ के सिवा
ले अॅधेरा कौन देता रौशनी माँ के सिवा
**
वह लहू को कर सुधा हमको हमेशा पोषती
कौन खुद को यूँ गला दे जिंदगी माँ के सिवा
**
बस रहे खुशहाल जग ये सोचकर भगवान भी
क्या बनाता और अच्छा इक नबी माँ के सिवा
**
दे के रिमझिम जिंदगी भर वो तपन हरती रहे
कौन अपनाता बता दे तिश्नगी माँ के…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 11, 2014 at 10:00am — 16 Comments
Added by Pragya Srivastava on May 10, 2014 at 7:32pm — 5 Comments
महात्माओं और पीरों के देश में
गांधी कवीर और फकीरों के देश में
पूजा प्यार और पहरावे पर भी
इन्सान होने की परिभाषा
न जाने क्यों बदल जाती है
इक छोटी चिंगारी भी
शोला बन जाती है
मुठियाँ भिंच जाती हैं
तलवारें खिंच जाती हैं
घर जलाए जाते हैं
कत्ल किये जाते हैं
कुछ जाने पहचाने
चेहरों द्वारा
कुछ अपने बेगाने
मोहरों द्वारा
और साथ ही
कत्ल हो जाता है
धू-धू जल जाता…
ContinueAdded by कंवर करतार on May 10, 2014 at 1:58pm — 13 Comments
मेरी अगर माँ ना होती
मैं कहाँ से होता,
किसकी अंगुली पकड़ के चलता
किसका नाम लेकर रोता.
चलना फिरना हँसना गाना
तेरी भांति माँ मुस्काना
प्रेम के एक एक आखर
पग पग संस्कार सिखलाना
गोदी में सिर रखकर आखिर
निर्भीक कहाँ मैं सोता .
दुनियांदारी के कथ्य अकथ्य
जीवन यात्रा के सत्य असत्य
रंगमंच के सारे पक्ष
कुछ प्रत्यक्ष, कुछ नेपथ्य
राजा रानी के किस्सों संग
मन माला में कौन पिरोता..
ये जो वायु, आती जाती…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 10, 2014 at 10:07am — 14 Comments
2122 1222 2122 22/112
दिल से ज्यादा हमें करता कोई मजबूर नहीं
रोज कहता कि घर है उनका बहुत दूर नहीं
मैकदे की चुनी खुद मैंने डगर है साकी
रिंद के दिल में तू रहती है कोई हूर नहीं
आज सागर पिला दे पूरा मुझे ऐ साकी
रिंद वो क्या नशे में जो है हुआ चूर नहीं
गर जो होती नहीं मजबूरी वो आती मिलने
प्यार मेरा कभी हो सकता है मगरूर नहीं
रुख पे बिखरी तेरी जुल्फों ने सितम ढाया है
आज चिलमन में…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 9, 2014 at 5:00pm — 22 Comments
22122
लाचार हो क्या?
सरकार हो क्या?
छुट्टी पे छुट्टी,
इतवार हो क्या?
छूते ही ज़ख़्मी,
औजार हो क्या?
बेचा है खुद को,
बाज़ार हो क्या?
तारीफ कर दूँ,
अशआर हो क्या?
खुद से ही बातें,
बीमार हो क्या?
*****************
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Added by ram shiromani pathak on May 8, 2014 at 5:30pm — 33 Comments
Added by Poonam Shukla on May 7, 2014 at 12:17pm — 10 Comments
१२२२ १२२२ १२२
जमाना अब दीवाना हो रहा है
खुदी से ही बेगाना हो रहा है
जला डाला था जिसने घर हमारा
वही अब आशियाना हो रहा है
जो हमने…
ContinueAdded by अमित वागर्थ on May 7, 2014 at 11:00am — 20 Comments
" सच! बहुत ही अच्छे इंसान थे बल्लू भैया !! क्षेत्रीय बैंक के अध्यक्ष पद पर होते हुए उन्होंने सभी की बहुत मदद की , जो कोई भी पहचान वाला आकर अपनी समस्या बतलाता , उसे कैसे न कैसे बैंक से आर्थिक मदद दिलवा ही देते थे. आज कई लोग तो उन्हीं की वजह से आबाद हुए बैठे है"
" हाँ भाई..! उनकी माँ के मर जाने के बाद आज उनका अपना कोई भी तो नहीं. देखा न ! पिछले वर्ष जब उनकी माँ की मृत्यु हुई थी तो बल्लू भैया के साथ-साथ सैकड़ों लोग सिर मुंडवाने को आगे आ गये और कहने लगे कि यह हम…
ContinueAdded by जितेन्द्र पस्टारिया on May 7, 2014 at 10:58am — 40 Comments
| फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन / फ़ाएलुन |
212 // 212 // 212 // 212 |
| मोतिओं की तरह जगमगाते रहो |
| बुलबुलों की तरह चहचहाते… |
Added by SALIM RAZA REWA on May 6, 2014 at 10:00pm — 19 Comments
आदमी में आदमीयत है नहीं
इससे बढ़कर कोई दहशत है नहीं
रासते, मंजिल, सफ़र, सब है मगर
इस मुसाफिर में वो सीरत है नहीं
बीज जो बोया वही उग पायेगा
इस जमीं की वो हकीकत है नहीं
काम के बन जायेंगे हम भी यहाँ
जब बड़े लोगों की सोहबत है नहीं
सन्निकट मृत्यु के जाकर ये लगा
ज़िन्दगी कम खूबसूरत है नहीं
अब गिला ‘निस्तेज’ कर के क्या करे
अब वफ़ा की कोई कीमत है नहीं
भुवन…
ContinueAdded by भुवन निस्तेज on May 6, 2014 at 9:30pm — 14 Comments
नैन समर्पण ....
नैन कटीले होठ रसीले
बाला ज्यों मधुशाला
कुंतल करें किलोल कपोल पर
लज्जित प्याले की हाला
अवगुंठन में गौर वर्ण से
तृषा चैन न पाये
चंचल पायल की रुनझुन से मन
भ्रमर हुआ मतवाला
प्रणय स्वरों की मौन अभिव्यक्ति
एकांत में करे उजाला
मधु पलों में नैन समर्पण
करें प्रेम श्रृंगार निराला
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by Sushil Sarna on May 6, 2014 at 5:30pm — 18 Comments
रोज की है बादलों से छेड़खानी आपने
और गढ़ ली प्यास की कोई कहानी आपने
***
चाह रखते हो भगीरथ सब कहें इतिहास में
पर न खुद से एक दरिया भी बहानी आपने
***
बात करते गाँव की पर कब उसे तरजीह दी
गाँव को तम दे सजाई राजधानी आपने
***
आपको दरिया मिली हर प्यास को सच है मगर
खोद कूआँ कब निकाला यार पानी आपने
***
लाख दुख मैं मानता हूँ आपने झेले मगर
झोपड़ी का दुख न झेला …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 6, 2014 at 12:00pm — 14 Comments
माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार
खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.
नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार
सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार
हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,
दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार
कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार
लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार
दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश
तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.
उजियारा लेते…
ContinueAdded by JAWAHAR LAL SINGH on May 6, 2014 at 11:00am — 20 Comments
किसका साया ……
किसका साया मुझे जीने कि सज़ा देता है
कफ़स में आरज़ू की .रूह को क़ज़ा देता है
पेशानी पे बहारों की .अलम लिखने वाली
कौन मेरी आँखों को नमी की क़बा देता है
थी जब तलक साथ तो ज़िंदगी हसीन थी
अब दर्दे हिज़्र मुझे .हर लम्हा रुला देता है
मेरे ख्वाबों के शबिस्तानों में ..रह्ने वाली
बेवफा लौ मेँ पतंगा .खुद को जला देता है
बेवजह मेरे अश्कों की ..वज़ह बनने वाली
कौन मुझे कफ़न मेँ साँसों की दुआ देता…
Added by Sushil Sarna on May 5, 2014 at 5:36pm — 14 Comments
तुझे अपनी ज़िंदगी में इस तरह शामिल कर लूँ मैं,
कि तू मेरे पास न भी हो तो तेरा दम भर लूँ मैं।।
हर घड़ी रहता है इन आँखों को इन्तज़ार तेरा,
जो तू आये तो तुझे अपनी आँखों में क़ैद कर लूँ मैं।
तेरे तसव्वुर में डूबी हैं तन्हाइयाँ और ज़िंदगी मेरी,
ग़र तुझे पा लूँ तो अपनी हर हसरत पूरी कर लूँ मैं।
तेरी बाँहों में आज पिघल जाने को जी चाहता है,
तेरे सीने से लगकर हमेशा को आँखें बंद कर लूँ मैं। …
Added by Savitri Rathore on May 5, 2014 at 4:26pm — 13 Comments
गोधूली में
बहुत ही कोमल स्वर में
दर्द से भरे हुए,
सूरज जब डूब रहा होता है
मैं जानती हूँ ज़िंदगी!
तुम मेरे लिये गाती हो.
छत से सूखे कपड़े उठाती हुई
बेचैन
मैं ठिठक जाती हूँ.
कुछ पल, कुछ अनबूझे सवाल
मंडराते हैं मेरे आस पास
चिड़ियों की तरह
जो दाना चुगकर, गाना गाकर
लौट जाते हैं अपने घोंसले में.
सांझ
रह जाती है कुँवारी
रात घिर आती है ज़मीं पर
गगन से उतरता है एक चाहत भरा धुंध
और-
पसर जाता है सरसों के खेत…
Added by coontee mukerji on May 5, 2014 at 2:00pm — 10 Comments
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