जब जब जागी उम्मीदें ,
अरमानों ने पसारे पंख.
देखा बहेलियों का झुंड,
आसपास ही मंडराते हुए,
समेट लिया खुद को
झुरमुटों के पीछे.
अँधेरा ही भाग्य बना रहा.
हमारे ही लोग,
हमारे जैसे शक्लों वाले,
हमारे ही जैसे विश्वास वाले,
करते रहे बहेलियों का गुण गान.
उन्हें बताते रहे हमारी कमजोरियों के बारे में
बहेलिये भी हराए जा सकते हैं.
कभी सोचा ही नहीं .
उनकी शक्ति प्रतीत होती थी अमोघ.
जंगल में लगी आग में…
ContinueAdded by Neeraj Neer on May 23, 2014 at 9:36am — 23 Comments
हे मन कर कल्पना
बना फिर अल्पना
खोल कर द्वार
सोच के कर पुनः संरचना
हे मन कर कल्पना
क्यूँ मौन तू हो गया
किस भय से तू डर गया
खड़ा हो चल कदम बढ़ा
करनी है तुझे कर्म अर्चना
हे मन कर कल्पना
छोड़ उसे जो बीत गया
भूल उसे जो रीत गया
निश्चय कर दम भर ज़रा
सुना समय को अपनी गर्जना
हे मन कर कल्पना
पथ है खुला तू देख तो
नैनो को मीच खोल तो
ऊंचाई पर ही फल मीठा…
ContinueAdded by Priyanka singh on May 22, 2014 at 6:18pm — 16 Comments
बाद इसके भी बहस कुछ और चलनी चाहिए
सूरतों के साथ सीरत भी बदलनी चाहिए
**
चल पड़े माना सफर में बात इससे कब बनी
लौटने को घर हमेशा साँझ ढलनी चाहिए
**
आ ही जायेगा भगीरथ फिर यहाँ बदलाव को
आस की गंगा तुम्हीं से फिर निकलनी चाहिए
**
है जरूरी देश को विश्वास की संजीवनी
मन हिमालय में सभी के वो भी फलनी चाहिए
**
ब्याह की बातें कहो या फिर कहो तुम देश की
हाथ से जादा …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 22, 2014 at 10:30am — 19 Comments
मन मेरे तू क्या होता?
जो मुझको तू भा जाता
कर लेता मुझको दीवाना
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तुलसी दल होता
मोहन के मस्तक पर सोहता
पा जाता जीवन निर्वाण
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे जमुना जल होता
कृष्णा के तन को छू जाता
पा जाता तू सम्मान
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तू हरिपथ होता
प्यारे के चरणों को छूता
पा जाता सुजीवन सोपान
तो मैं तुझको अपनाता
मन मेरे तू दर्पण होता …
Added by kalpna mishra bajpai on May 21, 2014 at 11:00pm — 12 Comments
गालों पर बोसा दे देकर मुझको रोज़ जगाती है
छप्पर के टूटे कोने से याद की रौशनी आती है
दालानों पर आकर, मेरे दिन निकले तक सोने पर
कोयल, मैना, मुर्ग़ी, बिल्ली मिलकर शोर मचाती है
सबका अपना काम बंटा है आँगन से दालानों तक
गेंहूँ पर बैठी चिड़ियों को दादी मार बगाती है
यूं तो है नादान अभी, पर है पहचान महब्बत की
जितना प्यार करो बछिया को उतनी पूँछ उठती है
लाख छिड़कता हूँ दाने और उनपर जाल बिछाता हूँ
लेकिन घर कोई…
ContinueAdded by Sushil Thakur on May 21, 2014 at 6:00pm — 9 Comments
तोड़ धैर्य के बाँध को, उफन गया सैलाब।
कुछ से उम्मीदें बढ़ीं, कुछ के टूटे ख़्वाब।।
लाँघी सीमा क्रोध की, ऐसा क्या आक्रोश।
भला बुरा सोचा नहीं, अंधा सारा जोश।।
श्रम भी काम न आ सका, काम न आया अर्थ।
बुरे कर्म की कालिमा, यत्न हुआ सब व्यर्थ।।
राग द्वेष का हो मुखर, जिनके मुख से राग।
शक्ति उन्हें मिल ही गई, जो-जो उगलें आग।।
ज्यों बिल्ली के भाग से, छींका फूटा आज।
दण्ड एक को यों मिला, दूजा पाये…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 20, 2014 at 11:40pm — 30 Comments
जेठ की तपती दुपहरी!
जेठ की तपती दुपहरी, लगे नीरव शांत।
धूप झुलसा रही काया, स्वेद से मन क्लांत।।
शाख पर पक्षी विकल है, गेह में मनु जात।
सूर्य अम्बर आग उगले, जीव व्याकुल गात।१।
जल भरी ठंडी सुराही, पान कर मन तुष्ट।
दूध माखन और मठठा, तन करे है पुष्ट।।
पना अमरस संग चटनी, भा रहे पकवान।
कर्ण को मधुरिम लगे फिर, आज कोयल गान।२।
गूँजता अमराइयों में, बिरह पपिहा राग।
गाँठकर छाया दुपहरी, पढ़ रही निज भाग।।
कृष हुई सरिता निराली, सूख मंथर…
Added by Satyanarayan Singh on May 20, 2014 at 6:00pm — 33 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 20, 2014 at 5:18pm — 28 Comments
हर पतझड़ को ……
ज़िंदगी को ..हर मौसम की जरूरत होती है
उजालों को भी ...अंधेरों की जरूरत होती है
क्यों सिमटे नहीं सिमटते वो बेदर्द से लम्हे
चश्मे अश्क को .खल्वत की ज़रुरत होती है
रात के वाद-ऐ-फ़र्दा पे ..यकीं भला करूँ कैसे
यकीं को भी इक समर्पण की जरूरत होती है
मिट गयी सहर होते ही वो रूदाद-ऐ-मुहब्बत
रूहे- मुहब्बत को आगोश की जरूरत होती है
हिज़्र की सिसकियों से है नम रात का दामन
सोहबते -लब को…
Added by Sushil Sarna on May 20, 2014 at 1:00pm — 20 Comments
क्या भूलूँ क्या याद करूँ ?
सब परछाईं सा लगता है
कब पूछा किसने हाल मेरा
किसने मुझ को दुलराया था
हर काम यहाँ मेरा नसीब
सब कुछ हमको ही करना था
क्या बोलूँ क्या न बोलूँ ?
बस मौन साध के रहना है
घर छोड़ के आई बाबुल का
सोचा ये आँगन मेरा है
पर कोई नहीं जिसे अपना कहूँ
है देश यहाँ बेगानों का
क्या सोचूँ क्या ना सोचूँ ?
बस चंद दिनों का मेला है
सब जन करते निंदा मेरी
करना था वो करती आई
गर फिर भी…
Added by kalpna mishra bajpai on May 19, 2014 at 10:30pm — 22 Comments
ज़रूरी क्या कि ये राहे-सफ़र हमवार हो जाये
न हों दुश्वारियाँ तो ज़िन्दगी बेकार हो जाये
आना का सर कुचलने में कभी तू देर मत करना
कहीं ऐसा न हो, दुश्मन ये भी होशियार हो जाये
फरेबो-मक्र, ख़ुदग़रज़ी न ज़ाहिर हो किसी रुख़ से
वगरना आदमी भी शहर का अख़बार हो जाये
कभी भी एक पल मैं ख़्वाब को सोने नहीं देता
न जाने किस घड़ी महबूब का दीदार हो जाये
मैं दावा-ए-महब्बत को भी अपने तर्क कर दूँगा
जो ख़्वाबों में नहीं आने को वो…
ContinueAdded by Sushil Thakur on May 19, 2014 at 7:00pm — 9 Comments
किसी की अधखिली अल्हड़ जवानी याद आती है
मुझे उस दौर की इक-इक कहानी याद आती है
जिसे मैं टुकड़ा-टुकड़ा करके दरिया में बहा आया
लहू से लिक्खी वो चिठ्ठी पुरानी याद आती है
मैं जिससे हार जाता था लगाकर रोज़ ही बाज़ी
वही कमअक्ल, पगली, इक दीवानी याद आती है
जो गुल बूटे बने रूमाल पे उस दस्ते नाज़ुक से
कशीदाकारी की वो इक निशानी याद आती है
जो गेसू से फ़िसलकर मेरे पहलू में चली आई
वो ख़ुशबू से मोअत्तर रातरानी याद…
ContinueAdded by Sushil Thakur on May 19, 2014 at 7:00pm — 10 Comments
मजदूरी कर पालता अपना वो परिवार
रोज दिहाड़ी वो करे देखे ना दिन वार |
देखे ना दिन वार नहीं देखे बीमारी
कैसे पाले पेट वार है इक इक भारी
मंहगाई अपार ,यही उसकी मज़बूरी
गेंहू चावल दाल मिले जो हो मजदूरी ||
उसका जीवन है बना दर्द भूख औ प्यास
मजदूरी किस्मत बनी जब तक तन में श्वास |
जब तक तन में श्वास पड़ेगा उसको सहना
तसला धूल कुदाल पसीना उसका गहना
सरिता पूछे आज कहो कसूर है किसका
भूखा है मजदूर पेट भरे कौन उसका…
Added by Sarita Bhatia on May 19, 2014 at 6:38pm — 17 Comments
प्यासी धरती आस लगाये देख रही अम्बर को |
दहक रही हूँ सूर्य ताप से शीतल कर दो मुझको ||
पात-पात सब सूख गये हैं, सूख गया है सब जलकल
मेरी गोदी जो खेल रहे थे नदियाँ जलाशय, पेड़ पल्लव
पशु पक्षी सब भूखे प्यासे हो गये हैं जर्जर
भटक रहे दर-दर वो, दूँ मै दोष बताओ किसको
प्यासी धरती आस लगाए देख रही अम्बर को |
इक की गलती भुगत रहे हैं, बाकी सब बे-कल बे-हाल
इक-इक कर सब वृक्ष काट कर बना लिया महल अपना
छेद-छेद कर मेरा सीना बहा रहे हैं निर्मल जल…
Added by Meena Pathak on May 18, 2014 at 10:10pm — 20 Comments
किसी मासूम की बेचारगी आवाज़ देती है
मुझे मजबूर होटों की हँसी आवाज़ देती है
कोई हंगामा कर डाले न मेरी लफ्ज़े-ख़ामोशी
मेरी बहनों की मुझको बेबसी आवाज़ देती है
तुम्हारे वास्ते वो रेत का ज़रिया सही, लेकिन
कभी जाकर सुनो, कैसी नदी आवाज़ देती है
मेरे हमराह चलकर ग़म के सहरा में तू क्यों तड़पे
तुझे ऐ ज़िन्दगी, तेरी ख़ुशी आवाज़ देती है
मैंने क़िस्मत बना डाली है अपनी बदनसीबी को
मगर, तुमको तुम्हारी ज़िन्दगी आवाज़ देती…
ContinueAdded by Sushil Thakur on May 18, 2014 at 11:00am — 16 Comments
2122 1221 2212
चोट खाते रहे मुस्कुराते रहे
प्यार के फूल हम तो खिलाते रहे
अब भरोसा नहीं जिन्दगी का हमे
दर्द सह कर उसे हम मनाते रहे
जिन्दगी प्यार उनको सिखाती रही
और वो जिन्दगी को भुलाते रहे
साथ वो चल दिये है किसी गैर के
प्रीत की रीत हम तो निभाते रहे
आज की रात हम मर न जाये कही
पास अपने उसे हम बुलाते रहे
बात जब है चली बेवफाई की तो
बेवफा कह हमे वह बुलाते रहे
बात उनकी करे ना करे हम मगर
याद मे उन की आँसू बहाते…
Added by Akhand Gahmari on May 18, 2014 at 9:22am — 20 Comments
तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।
मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।
सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,
जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।
हम प्रेम प्रेम प्रेम करें, प्रेम प्रेम प्रेम,
कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।
हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,
परमात्मा ने प्रेम, हमें सर्वथा दिया।।
वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,
देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला…
ContinueAdded by सूबे सिंह सुजान on May 17, 2014 at 10:00pm — 25 Comments
२१२२ २१२२ २११२२
कितने ही लोगों से हमने हाथ मिलाये
गम में डूबे जब भी कोई काम न आये
दिल तन्हा ये रो के अपनी बात बताये
कैसे उल्फत हाय तन में आग लगाये
तोहफे में दे सका जो गुल भी न हमको
आज वही फूलों से मेरी लाश सजाये
जिनके दिल में गैरों की तस्वीर लगी है
करके गलबहिया वो सर सीने में छुपाये
दिल की बातें दिल ही जब समझे न यहाँ पर
क्यूँ तन्हा फिर भीड़ में दिल खुद को न…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 2:30pm — 21 Comments
| जीवन के अनजाने पथ पर , मोड़ अनेको आते हैं | |
| पथिक अकेला चलता रहता , मिल लोग बिछड़ जाते हैं | |
| कुछ तो मिलकर मन बहलाते , कुछ मौन चले जाते हैं | |
| कोई दे सर्द हवा झोंका , कोई ग़म दे जाते हैं | … |
Added by Shyam Narain Verma on May 17, 2014 at 12:00pm — 11 Comments
बह्र : 1222/1222/1222/1222
तुम्हारे प्यार का सिर पर अगर आंचल नहीं होगा
मेरे जीवन में खुशियों का तो फिर बादल नहीं होगा
यकीनन कुछ न कुछ तो बात है तेरी अदाओं में
ये दिल यूं ही तुम्हारे प्यार में पागल नहीं होगा
तुम्हें कुछ दे न पाऊंगा मगर धोखा नहीं…
Added by शकील समर on May 16, 2014 at 6:16pm — 20 Comments
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