गीत
मेरे ख्वाबो में बस जा तू तेरे हम साथ चल देगे
तेरा सूना पड़ा जीवन प्यार मे हम तो बदल देगे
तेरे तो साथ चलने को मेरा यह दिल तड़पता है
वि़ऱह की अाग जो जलती रही उसमें ये सुलगता है
कभी तुम पास आ देखो तुम्हे़ हम प्यारा कल देगे
मेरे ख्वा़बो में बस जा तू तेरे हम साथ चल देगे
खुली आँखो से देखे थे कभी हम सपनो जो तेरे
सनम तू आके बन जाना हकीकत सपनो के मेरे
तुझे छुअेगे कभी काँटे हम काँटो को मसल देगे
मेरे ख्वाबो में बस जा तू तेरे हम…
Added by Akhand Gahmari on May 28, 2014 at 10:36am — 12 Comments
2122 112 2 1122 22
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खार हूँ एक ये सोचा है सभी ने मुझको
फूल के साथ जो देखा है सभी ने मुझको
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बंद सदियों से पड़ा था मैं किसी कोने में
खत तेरा जान के खोला है सभी ने मुझको
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भोर सा रास तुझे आज मगर आया क्यूँ
तम भरी रात जो बोला है सभी ने मुझको
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दाद वैसे तो मिली बात बुरी भी कह दी
बस तेरी बात पे कोसा है सभी ने मुझको
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रूह की बात किसे यार लगी सौदों …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 28, 2014 at 10:30am — 25 Comments
(2212 2212)
या बेख़ुदी की बात कर।
या दिल्लगी की बात कर।
तू ये बता क्या हाल है?
अपनी ख़ुशी की बात कर।
अब उस सदी की बात क्यूँ?
तू इस सदी की बात कर।
जो याद करता हो तुझे,
तू भी उसी की बात कर।
या तो ख़ुदा का नाम ले,
या बंदगी की बात कर।
जो कान में रस घोल दे,
उस बांसुरी की बात कर।
है क्या रखा इस जंग में?
कुछ आशिक़ी की बात कर।
जो भेंट ज्वाला की चढ़ी,
उस…
Added by Zaif on May 28, 2014 at 9:30am — 16 Comments
सुन री सखी
दो शब्द भी प्रेम के
नही लिखती
चीखें,दर्द कराहें
लिखती हूँ प्रेम से |
उनकी बात
कम नही सजा से
तुम्हारे साथ
बिताये हुए पल
सखी कैसे कहूँ मै |
जीवन मेला
लिए रिश्तों का रेला
जाना था दूर
रह गया अकेला
नयनो में अन्धेरा |…
Added by Meena Pathak on May 27, 2014 at 11:00pm — 15 Comments
ऐ प्रकृति,सूक्ष्म आत्मा तुम रहती हो मुझमे
मैं गेह मात्र हूँ,तुम ही इसकी सत वासी
नश्वर अस्तित्व हमारा मिलने दो खुद में;
बन जाने दो मुझे अलौकिक दैवी राशी।
मन तुझे दिया,अपने मन का तुम पथ गढ़ना
सभी समर्पित इच्छाएं,ये तेरी हो जावें
पीछे कोई अंश हमारा नहीं छोड़ना
अद्भुत,नीरव सा मिलन हमारा हो जावे।
तेरा प्रेम,जग-प्राण,मेरा उर उसी संग
स्पन्दित होगा,और मेद, मेदनी हित।
नसों शिराओं में होगी…
ContinueAdded by Vindu Babu on May 27, 2014 at 11:00pm — 16 Comments
2122 1222 1212 211
जिन्दगी भर जिसे हमने इश्क सिखाया था
बेवफा हम नहीं हमने उसे बताया था
दिल दुखाया नहीं हमने कभी न माने वो
आग में जल पड़े दुश्मन गले लगाया था
बात भी प्यार से वाे अब कभी नही करते
चाँदनी रात में जिसने कभी बुलाया था
हम मनाते रहे कसमे जिसे सभी देकर
मौत की नीद भी हमको वही सुलाया था
जल रहा…
ContinueAdded by Akhand Gahmari on May 27, 2014 at 9:30pm — 6 Comments
कौन है तू, मौन मेरा या मुखर संगीत है,
शब्द है कोई मधुर या भाव शब्दातीत है।
रंग है या रेख केवल,चित्र है या तूलिका,
शेर है मेरी ग़ज़ल का,नज़्म या नवगीत है॥
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कुछ पुरानी भंगिमाएँ,कुछ नई मुस्कान है,
सिसकियों में सुर सजे हैं,आह में भी गान है।
खोजते हैं लोग मेरा अक्स तेरी आँख में,
तू जहां से और तुझ से ये जहां हैरान है॥
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नर्म उजली धूप का उबटन लगे जब गुनगुना,
देवदारों में हवा का बज रहा हो झुनझुना।
मौसमों की करवटों में दास्तानें पढ़ सके,…
Added by Ravi Prakash on May 27, 2014 at 7:00pm — 16 Comments
एक ---
मेरे, उसके बीच
बहता है
एक खामोश दरिया
जिस पे कोई पुल नहीं है
चाहूँ तो
शब्दों के खम्बो
वादों के फट्टों का
पुल खड़ा कर सकता हूँ
मगर
मुझे अच्छा लगता है
दरिया में
उतारना खामोशी से
और फिर
डूबते उतरते
उतर जाना उस पार
दो ----
अनवरत
चल रहा हूँ
नापता
शब्दों की सड़क
ताकि पहुंच सकूँ
अंतिम छोर तक
कूद जाने के लिए
एक खामोश समंदर में
हमेशा हमेशा के…
Added by MUKESH SRIVASTAVA on May 27, 2014 at 5:30pm — 10 Comments
212 1222 212 1222
हर अदा, हवाओं की शोखियाँ समझती हैं
बेखबर नहीं सबकुछ पत्तियाँ समझती हैं
थरथराने लगती हैं इक ज़रा छुअन से ही
बागबाँ है या भँवरे डालियाँ समझती हैं
दर्द कितना है कैसा लग रहा है मुझको ये
मेरे ज़ख़्म से लिपटी पट्टियाँ समझती हैं
आजकल निगाहों को क्या हुआ ज़माने की
तज़्रिबे को चेहरे की झुर्रियाँ समझती हैं
हसरतें हदों को ही भूलने लगी हैं आज
फिक्र को बड़ों की वो बेड़ियाँ…
ContinueAdded by शिज्जु "शकूर" on May 27, 2014 at 4:00pm — 18 Comments
उन फाका मस्त फकीरों की हस्ती ऐसी थी
माल पुवे फीके थे उनकी मस्ती ऐसी थी
राग द्वेष नफ़रत के शहरों में जले फैले
प्यार बढ़ाती थी नानक की बस्ती ऐसी थी
जीवन की सोन चिरैया है हवस में अब
ढाई आखर सीखे ना ख़ुदपरस्ती ऐसी…
ContinueAdded by gumnaam pithoragarhi on May 27, 2014 at 8:30am — 4 Comments
काल-धारा
मेरा स्नेह तुम्हारी ज़िन्दगी के पन्ने पर देर तक
स्वयं-सिद्ध, अनुबद्ध
हलके-से हाशिये-सा रहा यह ज़ाहिर है
ज़ाहिर यह भी कि जब कभी
अपने ही अनुभवों के भावों के घावों को
विषमतायों से विवश तुम चाह कर भी
छिपा न सकी
हाशिये को मिटा न सकी
मिटाने के असफ़ल प्रयास में तुम
घुल-घुल कर, मिट-मिट कर
ऐंठन में हर-बार कुछ और
स्वयं ही टूटती-सी गई
टूटने और मिटने के इस क्रम…
ContinueAdded by vijay nikore on May 27, 2014 at 6:57am — 33 Comments
२२२ ११२ १२२
नानी अब न कहे कहानी
राजा खोये नहीं वो रानी
रेतीली वो नदी पुरानी
गुम पैरों कि मगर निशानी
बोली तुतली हिरन सी आँखे
जाने खोयी कहाँ दिवानी
बचपन बीत गया है पल में
मुरझाई सी लगे जवानी
देखेंजब भी जहर हवा में
बहता आँख से मेरी पानी
भूली सजनी किये थे वादे
उंगली में है पडी निशानी
बिसरा पाये कभी नहीं हम
गांवों वाली…
ContinueAdded by Dr Ashutosh Mishra on May 26, 2014 at 2:54pm — 12 Comments
बीच राह श्मशान बना दो
इंसानों को यह समझा दो |
जीवन नश्वर है यह जानें
मृत्यु सत्य है उसको मानें
नफरत छोड़ प्यार सिखला दो
इंसानों को यह .......
रूप बड़ा ही सुन्दर पाया
काया ने कब साथ निभाया
साँच बुढ़ापे का दिखला दो
इंसानों को यह .......
यह जग एक मुसाफिरखाना
इसका राज नहीं जो जाना
राज यही उसको बतला दो
इंसानों को यह .......
रिश्ते सारे अजब अनूठे
पाश मोह ममता के झूठे …
Added by Sarita Bhatia on May 26, 2014 at 2:00pm — 19 Comments
2122 1212 22
ज़िन्दगी यूँ लगी भली, फिर भी
बात खुशियों की है चली, फिर भी
देखिये सच कहाँ पहुँचता है
यूँ है चरचा गली गली, फिर भी
क्या करूँ हक़ में कुछ नहीं मेरे
रूह तक तो मेरी जली, फिर भी
क्यों अँधेरा घिरा सा लगता है
साँझ अब तक नहीं ढली फिर भी
आप दहशत को और कुछ कह लें
डर गई हर कली कली फिर भी
अश्क रुक तो गये हैं आखों के
दिल में बाक़ी है बेकली फिर…
ContinueAdded by गिरिराज भंडारी on May 26, 2014 at 12:00pm — 20 Comments
धर्म-कर्म दुनिया में
प्राणवायु भरना
कब सीखा पीपल ने
भेदभाव करना?
फल हों रसदार या
सुगंधित हों फूल
आम साथ…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:00am — 20 Comments
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम …..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो...
केशुओं से झांकते तेरे नैन दोनों
प्याले मदिरा के उफनते लग रहे
काया-कंचन ज्यों कमलदल फिसलन भरे
नैन-अमृत-मद ये तेरा छक पियें
बदहवाशी मूक दर्शक मै खड़ा
तुम इशारों से ठिठोली कर रही हो
जुल्फ हैं लहराते तेरे बदली जैसे
और तुम ..
मुस्कुराती दामिनी सी छल रही हो
इस सरोवर में कमल से खेलती
चूमती चिकने दलों ज्यों…
ContinueAdded by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 25, 2014 at 4:00pm — 12 Comments
दोस्तों चुनाव के दौरान की ग़ज़ल है, विलम्ब से पोस्ट कर रहा हूँ
ज़हनो-दिल ख़ामोश है औ’ हर नज़र दीवार पर
क्या इलेक्शन चीज़ है उतरा नगर दीवार पर
या कोई हो आला लीडर या गली का शेर खां
हर किसी दिख रही अपनी लहर दीवार पर
इस इलेक्शन में खड़ा है ऐसा भी उम्मीदवार
जिसने लटकाया कई सर काटकर दीवार पर
भोंकने लगता है 'शेरू' क्या पता किस बात पर
देखते ही मोहतरम का पोस्टर दीवार पर
बस चुनावी रंग में रंगे हैं ये…
ContinueAdded by Sushil Thakur on May 24, 2014 at 10:00pm — 6 Comments
उम्मीदों का जन आदेश
उम्मीदों का जन आदेश, करे उजागर मन आवेश।
मतदाता के मन की राज, बूझ रहे हैं पंडित आज।१।
घोषित होते ही परिणाम, दिग्गज आज हुए गुमनाम।…
ContinueAdded by Satyanarayan Singh on May 24, 2014 at 10:00pm — 12 Comments
2122 2122 2122
नीले नीले नयनो पर पलकों का पहरा
जैसे चिलमन झील पे कोई हो पसरा
दिल तेरा बेचैन है मुझको भी मालुम
बाँध लूं कैसे मैं लेकिन सर पे सहरा
झीने बस्त्रों में तेरा मादक सा ये तन
जैसे बैठा चाँद कोई ओढ़े कुहरा
सुध में उसकी होश मेरे जब भी उड़ते
जग को लगता जैसे मैं कोई हूँ बहरा
उसकी बातें ज्यों हो कोयल कूके कोई
उतरे बन अहसास कोई दिल पे गहरा
मौलिक व अप्रकाशित
Added by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2014 at 4:25pm — 15 Comments
गांधी जी की कल्पना, हो सकती साकार,
राम राज्य इस देश में, ले सकता आकार |
ले सकता आकार, करे सब मिल तैयारी
मन में हो संकल्प,नहीं फिर मुश्किल भारी
लक्ष्मण कर विश्वास,चले अब ऐसी आंधी
भ्रष्ट तंत्र हो नष्ट, तभी खुश होंगे गांधी ||…
ContinueAdded by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 23, 2014 at 10:00am — 15 Comments
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