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एक ---

मेरे, उसके बीच
बहता है
एक खामोश दरिया
जिस पे कोई पुल नहीं है
चाहूँ तो
शब्दों के खम्बो
वादों के फट्टों का
पुल खड़ा कर सकता हूँ
मगर
मुझे अच्छा लगता है
दरिया में
उतारना खामोशी से
और फिर
डूबते उतरते
उतर जाना उस पार

दो ----

अनवरत
चल रहा हूँ
नापता
शब्दों की सड़क
ताकि पहुंच सकूँ
अंतिम छोर तक
कूद जाने के लिए
एक खामोश समंदर में
हमेशा हमेशा के लिए

मुकेश इलाहाबादी ----------


-मौलिक एवं अप्रकाशित।

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Comment by MUKESH SRIVASTAVA on June 3, 2014 at 4:14pm

JEE BAHUT BAHUT AABHAAR IS HAUSLAA AAFZEE KE LIYE - SAURABH PANDEY JEE


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 3, 2014 at 3:10pm

आपकी संवेदना शाब्दिक हो कर जिस ढंग से अभिव्यक्त होती है वह हमसभी के लिए उदाहरण बनाती है.
इस प्रस्तुति ने भी आत्मीय सुख दिया है. मनोदशा के इस विशेष पहलू को साझा करने के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाईजी.
आपकी दोनों कविताओं के लिए मैं दिल से बधाई देता हूँ.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 3:56pm

अंतिम छोर तक
कूद जाने के लिए
एक खामोश समंदर में
हमेशा हमेशा के लिए...सुंदर भावों को सहेजे सुंदर रचना ...शब्दों के सहारे हम भी अंतिम छोर तक पहुंचे  ..आप चाहते थे कूद जाना लोग डूब गए ..इस बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 29, 2014 at 9:59am

वाह बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 28, 2014 at 9:50pm

 

  BAHUT BAHUT SHUKRIAA - CONTEE JEE & LAXMAN PRASAD LADIWALA JEE IS HAULAA AAFZAAEE KE LIYE

Comment by coontee mukerji on May 28, 2014 at 8:10pm

बहुत सुंदर रचना.....हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 28, 2014 at 7:21pm

दरिया पार करने का होंसला रखने को लेकर रची कविता, और अंतिम छोर तक खामोश चलते रहने की सुन्दर कल्पना 

विचारों का प्रवाह लिए रची दोनो रचनाओं के लिए बधाई 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on May 28, 2014 at 2:47pm

 bahut bahut shukriaa - rachnaa pasandgee ke liye Gopal Narayan jee & Meena Pathak jee

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 28, 2014 at 2:30pm

मुकेश जी

एक दरिया दूसरा समंदर i

एक के पर जाना है दूजे में सामना है i

क्या बात है i अति सुन्दर i

Comment by Meena Pathak on May 27, 2014 at 10:41pm

बहुत उम्दा ... अच्छी लगी आप की खामोशी ... बधाई | सादर 

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