For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल- तूने मुझे निकलने का जब रास्ता दिया

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

सबके भले में अपना भला होगा दोस्तो,

जीवन में आगे आएगा, सबके, लिया दिया।।

हम प्रेम प्रेम प्रेम करें,  प्रेम प्रेम प्रेम,

कटु सत्य, प्रेम ने हमें मानव बना दिया।।

हम क्रोध में उलझते रहे दोस्तो परन्तु,

परमात्मा ने प्रेम,  हमें सर्वथा दिया।।

वो व्यस्त हैं गुलाब दिवस को मनाने में,

देखो गुलाब प्रेम में मुझको भुला दिया।।.

मौलिक व अप्रकाशित रचना

Views: 796

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 30, 2014 at 11:14pm

vandana, ji ,आपकी प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी, आपका शुक्रिया

Comment by vandana on May 30, 2014 at 5:45am

तूने मुझे निकलने को जब रास्ता दिया।

मैंने भी तेरे वास्ते सर को झुका दिया।।

वाह आदरणीय बहुत बढ़िया ग़ज़ल 

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:59pm

laxman dhami  , लक्ष्मी जी आपकी टिप्पणी पाकर खुशी मिली है

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:57pm

Madan Mohan saxena,  आपका बहुत बहुत धन्यवाद मदन मोहन जी आप लोगों ने ग़ज़ल को पढा और अपनी राय प3कट की, लेकिन मेरा नेट से कांटेक्ट नहीं रहा था सो देर से आप लोगों का धन्यवाद कर पा रहा हूँ

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:55pm

धर्मेन्द्र कुमार सिंह,जी अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:54pm

Sarita Bhatia, जी आपकी वाह से मुझे मिला .....उत्साह।।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:53pm

  जितेन्द्र 'गीत',   आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:52pm

   coontee mukerji,         अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:51pm

 शिज्जु शकूर, 

शुक्रिया,अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

Comment by सूबे सिंह सुजान on May 29, 2014 at 9:51pm

arun kumar nigam,आपका अभिवादन स्वीकार है आपकी और से मिला उत्साह मुझे अच्छा लगा।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
7 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
8 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
10 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
14 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service